बुधवार, 16 जनवरी 2013

जनरल एंटी अवॉइडेंस रूल्स यानी गार पर एक नज़र


पार्थसारथी शोम

 जनरल एंटी अवॉइडेंस रूल्स यानी गार को साल 2016 तक के लिए टाल दिया गया. वर्ष 2012 में यह उस वक्त सुर्खियों में आया, जब तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसे लागू करने संबंधी घोषणा की थी. हालांकि, इस घोषणा के बाद उठे विवादों के कारण इसे स्थगित कर दिया गया और पार्थसारथी शोम की अगुवाई में एक समिति गठित की गयी. सरकार ने समिति की प्रमुख सिफारिशों को मानते हुए इसे अप्रैल, 2014 से लागू करने का फैसला किया था. अब सरकार ने इसे दो साल के लिए टाल दिया है और यह अप्रैल, 2016 से प्रभावी होगा. गार क्या है, क्यों है, इसे लेकर विवाद और शोम समिति ने क्या सिफारिशें की थीं, इन्हीं सवालों के जवाब के बीच ले जाता आज का नॉलेज..

 पार्थसारथी शोम समिति की सिफारिशें----
1. शोम समिति ने विवादास्पद कर प्रावधान को तीन साल तक टालने के लिए सिफारिश की थी.
2. समिति ने प्रावधानों का उपयोग मॉरिशस में कंपनियों के वजूद की विश्‍वसनीयता की जांच करने के लिए नहीं करने का भी प्रस्ताव दिया था.
3. समिति ने सिफारिश की कि गार को तभी लागू किया जाना चाहिए, यदि कर लाभ की मौद्रिक सीमा 3 करोड. रु पये या इससे अधिक हो.
4. गार को लागू करने के लिए समिति ने नकारात्मक सूची यानी निगेटिव लिस्ट की भी सिफारिश की थी. नकारात्मक सूची में लाभांश की अदायगी या कंपनी द्वारा दोबारा शेयरों की खरीद, अन्य शाखा या सहायक कंपनी की स्थापना, सेज या अन्य क्षेत्र में इकाई की स्थापना को शामिल किया जा सकता है.
5. कंपनियों के अंत:समूह लेन-देन पर गार लागू नहीं किया जाये. समिति के मुताबिक, इससे एक व्यक्ति को टैक्स लाभ हो सकता है, लेकिन इससे कुल टैक्स राजस्व पर कोई असर नहीं पडे.गा.
6. समिति ने आयकर कानून में संशोधन कर उसमें व्यावयासिक पूंजी (कर्मशियल सब्स्टन्स) को शमिल करने की भी सिफारिश की थी.

एक नज़र गार पर----
1. 1961 के आयकर अधिनियम के तहत वित्त अधिनियम-2012 में बदलाव किया गया था.
2. 2012 के जुलाई में प्रधानमंत्री ने गार पर पार्थसारथी शोम की एक समिति गठित की थी.
3. 01 सितंबर 2012 को शोम समिति ने विभित्र सिफारिशों के साथ रिपोर्ट पेशकी.
4. 2016-17 तक के लिए गार को स्थगित करने की सिफारिश समिति ने की थी.

अप्रैल 2016 से नये प्रावधानों के तहत किस तरह होगा प्रभावी----
1. कर चोरी के मामले को दर्ज करने से पहले देनी होगी विदेशी निवेशकों को नोटिस, सफाई का मौका भी मिलेगा.
2. गार के तहत कार्रवाई की अनुमति के लिए तीन सदस्यीय समिति बनेगी. हाइकोर्ट के अध्यक्ष इस समिति के अध्यक्ष होंगे.
3. एक ही आय पर दोबारा कर नहीं लगाया जायेगा.
4. 30 अगस्त, 2010 से पहले के मामलों पर गार नहीं लगेगा.
5. इसके दायरे में प्रवासी भारतीय नहीं आयेंगे.

लोकतंत्र में अमूमन हर फैसले की सियासी वजह होती है. सियासत का मुख्य एजेंडा होता है वोट बैंक. वोट बैंक की इसी राजनीति के कारण बडी-से-बडी नीतियों और योजनाओं को परवान चढ.ते देखा गया. सरकारों को महत्वपूर्ण नीतियों से कदम पीछे तक खींचना पड.ा. सब्सिडी के लिए कैश फॉर ट्रांसफर योजना से लेकर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तक इसकी नजीर बनी है. अब इस कड.ी में सरकार की एक नयी नीति भी जुड. गयी है. यह है गार यानी जनरल एंटी अवॉयइडेंस रूल्स.
सरकार ने जनरल एंटी अवॉइडेंस रूल्स (गार) को साल 2016 तक के लिए टाल दिया है. वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि गार के प्रावधान पहली अप्रैल 2016 से लागू होंगे. ऐसा कहा जा रहा है कि सरकार के इस कदम के पीछे आर्थिक से अधिक राजनीतिक कारण जिम्मेदार हैं. इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो अगले साल लोकसभा चुनाव. ऐसे में सरकार का अब पहला काम देश की अर्थव्यवस्था को सुनहरी तसवीर देना और महंगाई पर नियंत्रण करना है. आर्थिक विकास दर बढ.ाने, शेयर मार्केट में तेजी लाने और औद्योगिक विकास दर बढ.ाने के साथ महंगाई पर लगाम कसने के लिए उसे निवेश की जरूरत है.

क्या है गार का प्रावधान----
गार एक ऐसा कानून है, जिसके जरिए सरकार विदेशी निवेशकों पर नजर रख सकती है. उन्हें टैक्स चोरी से रोक सकती है. किसी संधि का गलत फायदा उठाने वाली कंपनियों पर नकेल कस सकती है. यदि कुछ गड.बड.ी पायी जाती है, तो उन कंपनियों का पिछला लेखा-चिट्ठा खोलकर उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. विदेशी निवेशकों को इन प्रावधानों पर ही सबसे अधिक ऐतराज है. उनका कहना है कि वे इन प्रावधानों के खिलाफ हैं. वे कंपनियों का पुराना लेखा-चिट्ठा खोलकर देखने और कुछ गड.बड.ी पाये जाने पर पुराने तारीख से टैक्स वसूलने के भी विरोधी हैं. गौरतलब है कि आयकर अधिनियम, 1961 के तहत वित्त अधिनियम, 2012 में सामान्य कर-परिवर्तन रोधी नियम (गार) के प्रावधानों को शामिल किया गया था.

कौन होगा इससे प्रभावित----
गार के लागू होने के बाद इसका प्रावधान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर सभी को प्रभावित करेगा. विदेशी निवेशक मॉरिशस जैसे देशों के माध्यम से देश में निवेश करते हैं. इन देशों में कर संबंधी कई तरह के छूट के प्रावधान हैं. यदि निवेशक द्विपक्षीय कर संधि का फायदा उठाते हैं, तो इसके बावजूद गार के प्रयोग में आने के बाद वे कर के दायरे में आयेंगे. सरकार के मुताबिक, भारत में हर किसी को अपनी आमदनी पर टैक्स देना पड.ता है. ऐसे में विदेशी कंपनियों को छूट नहीं दी जा सकती. वह भी तब जब ज्यादातर विदेशों से आने वाला धन उन भारतीयों का है, जो विदेशों में काले धन के रूप में है.
यह काला धन उन टैक्स हैवेन देशों में रखा गया है, जिनसे भारत की दोहरा कराधान संधि है. गार के लागू होने के बाद दोहरा कराधान संधि के तहत निवेश करने वाले निवेशक भी कर के दायरे में आ जाएंगे.

दायरे में आम आदमी भी----
इसके दायरे में सिर्फ बडी कंपनियां या कर संधि का लाभ उठाने वाले निवेशक ही नहीं आयेंगे, बल्कि आम आदमी पर भी इसका असर पडे.गा. मसलन, यदि कर अधिकारियों को यह लगता है कि किसी कर्मचारियों का वेतन सिर्फ इसलिए कम रखा गया है, ताकि इनसे करों से बचने का उपाय किया जा सके, तो उन्हें वेतनों को फिर से नया रूप देकर कर तय करना होगा.
इसके अलावा, यदि किसी परिवार में कोई अपने पति या पत्नी से कर्ज लिया है, जिसके लिए आप ब्याज दे रहे हैं तो आयकर विभाग यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि आपने एक परिवार के सदस्य से कर्ज केवल ब्याज भुगतान पर कर कटौती के लिए लिया है. दूसरी तरफ पति या पत्नी अर्जित ब्याज पर यदि कम कर दे रहा है, तो इसे गार का उल्लंघन माना जायेगा.
गार के इन प्रावधानों को 2012 से ही लागू किया जाना था, लेकिन कई स्तरों पर इसके विरोध के कारण पहले एक साल के लिए टाल दिया गया. उसके बाद सरकार ने इस मसले पर शोम समिति गठित की, जिसने एक सितंबर, 2012 को अपनी रिपोर्ट पेशकी. सरकार ने शोम समिति की सभी नहीं, लेकिन प्रमुख सिफारिशों को कुछ बदलावों के साथ स्वीकार किया.

क्या है मुख्य मकसद----
गार नियमों को लाने का मकसद विदेशी निवेशकों को ऐसे रास्ते अपनाने से रोकना है, जिनका मुख्य लक्ष्य केवल कर लाभ प्राप्त करना हो. सरकार ऐसे रास्ते को कर से बचने का एक अमान्य रास्ता मानेगी और उसकी अनुमति नहीं दी जायेगी.
यानी विदेशी संस्थागत निवेशकों पर वैसे कर समझौते लागू नहीं होंगे, जो आयकर अधिनियम की धारा 90 और 90ए के तहत आते हैं. गौरतलब है कि आयकर की धारा 90 और 90ए के तहत दोहरे कराधान से बचने का समझौता विभित्र देशों के साथ किया जाता है. इसमें कंपनियों को दोहरे कराधान से बचने की व्यवस्था है.

गार की आलोचना----
जानकारों के मुताबिक, आयकर विभाग के अधिकारी इसका उपयोग निवेशकों को परेशान करने के लिए कर सकते हैं. इसके अलावा नये नियम लागू होने के बाद अधिकारियों के प्रशिक्षण की कमी के कारण इसे लागू करने में भी चुनौतियां आ सकती हैं. इसके अलावा करों के मूल्यांकन के तरीके में बदलाव का भी निवेशकों और बाजार के जानकारों ने विरोध किया था.(prabhat khabar)


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