गुरुवार, 22 अगस्त 2013

विकीलीक्स से 160 गुना बड़ा पर्दाफाश : टैक्स चोरों के नए ठिकाने
प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय


स्विट्जरलैंड और लिश्टेनश्टाइन जैसे छोटे देशों में टैक्स चोरों के पैसे होने की बात पुरानी. वर्जिन आइलैंड, समोआ और ऐसे छोटे द्वीप अब इनके नए पनाहगाह बन रहे हैं. खोजी पत्रकारों ने भारतीयों सहित कई रईसों का पर्दाफाश किया है. भारत की अर्थव्यवस्था का 17 से 42 फीसदी हिस्सा काले धन के रूप में है, जिसका रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है. इस साल के बजट में भारत सरकार ने एलान किया कि देश में सिर्फ 42,800 लोगों की सालाना आमदनी एक करोड़ रुपये से ज्यादा है. हालांकि दिल्ली के कई इलाके हैं, जहां सिर्फ एक घर की कीमत 10 करोड़ रुपये से ज्यादा होती है. लगभग सवा अरब की आबादी वाले भारत में सिर्फ तीन फीसदी लोग आय कर देते हैं यानी चार करोड़ लोग से कम.
भारत के धनी सांसद और शराब कारोबारी विजय माल्या का नाम भी टैक्स चोरों में शामिल है. उनके अलावा सांसद विवेकानंद गद्दाम सहित 612 भारतीय हैं. लेकिन यह पूरा तंत्र व्यापक रूप में फैला है, जिसमें 170 देशों के कच्चे चिट्ठे को उजागर किया गया है.
यह अपनी तरह का पहला खुलासा है, जिसमें दुनिया भर के खोजी पत्रकारों ने हिस्सा लिया. अमेरिका की खोजी पत्रकारिता की संस्था आईसीआईजे ने इस मुहिम को पूरा करने में सवा साल का वक्त लिया. इसमें नामी गिरामी नेताओं के अलावा महंगी कारों पर सवार होने वाले अमीर लोग भी हैं.
जिन भारतीयों का नाम आया है, उन पर आय कर और भारतीय रिजर्व बैंक के अलावा सीबीआई के मामले बन सकते हैं. जर्मन सरकार ने इस खोजी मुहिम में शामिल सभी पत्रकारों से अपील की है कि वे अपने दस्तावेज सरकारों को सौंपें ताकि टैक्सचोरों पर कार्रवाई हो सके.
पत्रकारों ने जो दस्तावेज जमा किए हैं, उनमें 25 लाख खुफिया फाइलें हैं, जिन्हें जमा करने के लिए कंप्यूटर में 260 गीगाबाइट स्पेस की जरूरत होगी. विकीलीक्स ने 2010 में जो खुलासे किए थे, यह उससे करीब 160 गुना ज्यादा बड़ा है.
इस अभियान में दुनिया भर के 38 देशों ने हिस्सा लिया, जिनमें वॉशिंगटन पोस्ट, गार्डियन और बीबीसी के अलावा भारतीय हिस्सेदारी के रूप में इंडियन एक्सप्रेस शामिल था. एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि खुफिया दस्तावेजों में उन रकमों का जिक्र है, जो ट्रांसफर किए गए. इसमें कंपनियों के बीच का गड़बड़झाला भी बताया गया है.
जिस तरह भारत में एयरलाइन के लिए पैसे नहीं जुटा पाने वाले विजय माल्या के काले पैसे का जिक्र है, उसी तरह दीवालिया हो रहे यूरोपीय देश ग्रीस के लोगों का भी गैरकानूनी पैसा इन जगहों पर जमा है. खुलासे के बाद ग्रीक सरकार ने कहा है कि वह 100 से ज्यादा बैंक खातों की पड़ताल करेगी. अंतरराष्ट्रीय खुलासे में लगभग सवा लाख खातों का जिक्र है.
जांच में पता चला है कि ये लोग सिंगापुर की पोर्टकुलिस ट्रस्टनेट और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड की कॉमनवेल्थ ट्रस्ट लिमिटेड की मदद से दूसरे देशों में फर्जी कंपनियां बनाते थे, जिसके बाद फर्जी बैंक खाते खोले जाते थे. इन खातों तक पहुंच पाना बहुत मुश्किल है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में 1000 अरब से 1600 अरब डॉलर का गैरकानूनी लेन देन होता है.
एक अनुमान के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था का 17 से 42 फीसदी हिस्सा काले धन के रूप में है, जिसका रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है. आरोप हैं कि ये पैसे जाने माने रईसों का है, जो स्विट्जरलैंड और दूसरे देशों में फर्जी नामों से बैंक खाता रखते हैं. कई गैरसरकारी संगठन इस पैसे को देश लाने का दबाव बनाते रहे हैं.
इस साल के बजट में भारत सरकार ने एलान किया कि देश में सिर्फ 42,800 लोगों की सालाना आमदनी एक करोड़ रुपये से ज्यादा है. हालांकि दिल्ली के कई इलाके हैं, जहां सिर्फ एक घर की कीमत 10 करोड़ रुपये से ज्यादा होती है. लगभग सवा अरब की आबादी वाले भारत में सिर्फ तीन फीसदी लोग आय कर देते हैं यानी चार करोड़ लोग से कम. (dw.de)

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