सोमवार, 19 अगस्त 2013

भगत ‘शहीद’ नहीं, गाँधी ‘राष्ट्रपिता’ नहीं

शीतांशु कुमार सहाय
उसे यह फिक्र है हरदम, नया तर्ज-ए-जफा क्या है?
हमें यह शौक देखें, सितम की इन्तहां क्या है?

    गजल की इन पंक्तियों को महान स्वतन्त्रता सेनानी भगत सिंह ने तब लिखा था जब उन्हें अँग्रेजों के सितम की इन्तहां देखनी थी। अब उनकी रुह देख रही है भारत सरकार के ‘जुल्म’ की इन्तहां! जिस देश की आजादी के लिए वे मात्र 23 वर्ष की अवस्था में हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ गये, उन्हें देश की सरकार आजादी के 67 वर्ष बाद भी ‘शहीद’ का तमगा न दे सकी। देश के लिए मर-मिटने वालों के लिए इससे बड़ा सितम हो ही नहीं सकता! उन्होंने विवाह नहीं किया था पर उनके भाई के पौत्र यादवेन्द्र सिंह ने सूचना का अधिकार के तहत केन्द्र सरकार से जानना चाहा कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को कब शहीद का दर्जा दिया गया था। मई में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जवाब दिया कि कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं है कि इन तीनों को कब शहीद का दर्जा दिया गया। स्वाधीनता सेनानियों की बेइज्जती का यह पहला उदाहरण नहीं है। पिछले वर्ष सूचना का अधिकार के तहत ही केन्द्र सरकार ने कहा था कि महात्मा गाँधी को सरकार ने ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा नहीं दिया है। मनमोहन सिंह की काँग्रेसी सरकार ने यहाँ तक कहा कि गाँधी को ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा दिया भी नहीं जा सकता। विश्वास हो या न हो पर यही सच है।
    पिछले वर्ष जब केन्द्र सरकार ने कहा कि महात्मा गाँधी राष्ट्रपिता नहीं हैं तो पूरा देश हतप्रभ रह गया था। लखनऊ की 11वीं कक्षा की छात्रा ऐश्वर्या पराशर द्वारा माँगी गयी सूचना पर सरकार ने उपर्युत जवाब दिया तो ऐयवर्या ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा कि गाँधी को राष्ट्रपिता घोषित करने के लिए अधिसूचना जारी करें। तब केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि संविधान में ऐसी व्यवस्था नहीं है कि सरकार गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि दे सके। यह सच है कि संविधान की धारा 8(1) के तहत शैक्षणिक व सैन्य एपाधियों के अलावा कोई अन्य उपाधि देने की इजाजत सरकार को नहीं है। जब सांसदों की सुविधा बढ़ानी हो तो तुरन्त कानून बन जाता है, सरकार आफत में पड़े तो संविधान संशोधित हो जाता है। पर, गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि देने के लिए संविधान में संशोधन नहीं हो सकता। आश्चर्य है कि विपक्षियों ने भी बापू को राष्ट्रपिता की उपाधि से नवाजे जाने के लिए आवाज नहीं उठायी! गाँधी की तरह का हश्र सरकार ने भगत सिंह के साथ भी किया। भगत सिंह के भतीजे बाबर सिंह, राजगुरु और सुखदेव को सरकार ने शहीद घोषित नहीं किया है तो देशवासियों को पिछले वर्ष की तरह ही झाटका लगा। शें गृह मंत्रालय के बचाव में प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह उतरे। उन्होंने शनिवार को कहा कि भगत सिंह किसी सरकारी रिकॉर्ड के मोहताज नहीं हैं। राज्यसभा में विभिन्न दलों के सदस्यों की आपत्ति पर संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने सफाई दी कि सरकार उन्हें शहीद मानती है और सरकारी रिकॉर्ड में सुधार किया जाएगा।
    यों राज्यसभा में जदयू सदस्य केसी त्यागी ने चर्चित नेता राजनारायण का नाम स्वतन्त्रता सेनानियों की सूची में नहीं होने का भी जिक्र किया। राजनारायण के त्याग को सरकार इसलिए भूली कि वे 1977 के काँग्रेस विरोधी आन्दोलन में प्रमुख राजनीतिक हस्ती थे। यहाँ यह भी जानिये कि जब जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 की रात को 1935 के अधिनियम की लाचारगी स्वीकारने वाले स्वाधीनता के बिन्देओं पर हस्ताक्षर किया तो गाँधी ने विरोध जताया था। प्रथम स्वाधीनता दिवस के दिन दिल्ली के जश्न में शामिल न होकर नोआखाली में थे गाँधी और वहीं से विज्ञप्ति जारी की कि जो कथित आजादी आ रही है उसे उन्होंने नहीं लाया; बल्कि सत्ता के लालचियों ने लाया है। इसी खिलाफत की सजा काँग्रेस ने महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि न देकर दी है। यही नहीं महात्मा गाँधी के खून से सनी घास एवं मिट्टी, उनका चश्मा और चरखा सहित उनसे जुड़ी 29 वस्तुएँ ब्रिटेन में नीलाम हो गयीं और मनमोहन सरकार देखती रही। विदित हो कि 2008 में जब अम्बिका सोनी केन्द्रीय संस्कृति मंत्री थीं तो भगत सिंह के गाँव नवांशहर से उनके सम्मान में 2 सिक्के जारी किये थे जिन पर भगत सिंह का जिक्र था। साथ ही नवांशहर का नाम ‘शहीद भगत सिंह नगर’ रखा गया। पर, यह अनिश्चय के गर्त्त में ही है कि महात्मा गाँधी, भगत सिंह, राजगुरुस सुखदेव व राजनारायण पर उचित निर्णय लिया जाएगा या नहीं। अन्त में भगत सिंह की उसी गजल के दूसरे पायदान को याद करते हैं-
दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें।
सारा जहां अदू (शत्रु) सही, आओ मुकाबला करें।

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