शनिवार, 24 अगस्त 2013

छिपा ही रहेगा नेताजी का राज


-शीतांशु कुमार सहाय
    कुछ राज ऐसे होते हैं जिन्हें बताने में कोई गुरेज नहीं पर कुछ राज ऐसे भी हैं जिन्हें नहीं बताया जा सकता, कभी नहीं! ऐसा ही राज है नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कथित मौत से सम्बन्धित! इस राज पर से केन्द्र सरकार पर्दा नहीं उठाना चाहती। वह डरती है। सफाई देनी पड़ रही है सरकार को कि यदि ऐसा किया गया तो देश संकट में पड़ जाएगा, सम्प्रभुता खतरे में पड़ जाएगी। कई देशों से सम्बन्ध बिगड़ जाएंगे। सूचना का अधिकार (आरटीआइ) के एक आवेदन को खारिज करते हुए प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्नी एमिली शेंकल और बेटी अनीता बोस पर खुफिया संचिकाएँ सार्वजनिक नहीं की जा सकतीं। इसकी धमक शुक्रवार को राज्य सभा में महसूस की गयी। तृणमूल कॉँग्रेस के कुणाल कुमार घोष ने शून्यकाल में यह मामला उठाते हुए पीएमओ द्वारा आरटीआइ के तहत मॉँगी संचिकाओं की जानकारी न देने को आड़े हाथों लिया। उन्होंने प्रधान मंत्री और गृह मंत्री से पूछा कि यह जानकारी सार्वजनिक करने से दूसरे देशों के साथ भारत के सम्बन्ध किस प्रकार प्रभावित होंगे और यह देश की सम्प्रभुता के लिए भी किस तरह खतरा पैदा कर सकता है? उन्होंने मॉँग रखी कि सरकार को गोपनीय दस्तावेजों के बारे में स्पष्ट नीति बनानी चाहिये। इस तरह की नीति न होने के कारण आजादी की लड़ाई के नायक रहे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अंतिम दिनों के बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। विदित हो कि सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और आस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की अनीता नाम की एक बेटी हुई जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं।
    दरअसल, वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट सुभाषचन्द्रबोस डॉट ओआरजी चलाने वाले तथा सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी पर पुस्तक लिख रहे चन्द्रचूड़ घोष ने आरटीआइ के तहत सरकार को लिखे गये नेताजी की पत्नी और बेटी के पत्र तक पहुँच मॉँगी थी। पीएमओ ने अपने उत्तर में कहा कि सम्बन्धित 3 संचिकाएँ अति गोपनीय हैं और उनके दस्तावेजों को प्रकट करने से कुछ देशों के साथ सम्बन्ध प्रभावित होंगे। इस पर पीएमओ के निदेशक राजीव टोपनो का हस्ताक्षर है। उत्तर में कहा गया है कि आरटीआइ अधिनियम, 2005 की धारा 8(1-ए) व धारा 8(बी) के साथ ये प्रकटीकरण से मुक्त हैं। घोष ने कहा कि 1945 में लापता हुए नेताजी का जीवन और समय रहस्यमय है; क्योंकि उनसे जुड़ी अनेक संचिकाएँ विभिन्न सरकारी विभागों के पास हैं। इससे पहले दिल्ली की शोध संस्थान मिशन नेताजी की एक आरटीआइ अपील पर पीएमओ ने स्वीकार किया था कि उसके पास नेताजी की 33 गोपनीय संचिकाएँ हैं। इसके पूर्व अक्तूबर 2009 में चन्द्रचूड़ घोष द्वारा 34 महीने पूर्व आरटीआइ के तहत मॉँगी गयी एक सूचना पर मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय को आदेश दिया था कि नेताजी की मौत से जुड़ी जो भी जानकारियॉँ उसके पास हैं, उन्हें 20 कार्यदिवसों में सार्वजनिक करे। वास्तव में चन्द्रचूड़ ने नेताजी से जुड़ी जो जानकारियॉँ मुखर्जी आयोग ने जुटायी थीं, उन्हें सार्वजनिक करने की गुहार लगायी थी। पर, अब तक ऐसा नहीं हो पाया। यहॉँ यह जानना आवश्यक है कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्देश पर गठित मुखर्जी आयोग ने यह माना था कि नेताजी की मौत 1945 की विमान दुर्घटना में नहीं हुई। हालॉँकि संसद के दोनों सदनों ने मई 2006 में बहस के बाद इसे खारिज कर दिया था। मुखर्जी आयोग ने 14 नवंबर 2005 को रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।
    यहॉँ जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो यह कि 14 अगस्त 1947 की रात को ब्रिटिश सरकार की तरफ से लार्ड माउण्ट बेटन व भारत की तरफ से जवाहरलाल नेहरू ने समझौते के जिन बिन्दुओं पर हस्ताक्षर किये थे, उनके आधार पर नेताजी को राजद्रोही करार दिया गया। यह शर्मनाक है कि जिस व्यक्ति ने देश की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया, अँग्रेजों के दाँत खट्टे किये, देश की सरकार ने उसे राजद्रोही करार दिया। उन्हें अब भी सरकारी तौर पर राजद्रोही ही माना जाता है। विदित हो कि ब्रिटेन नेताजी से हुए युद्ध को अपने तमाम युद्धों में सबसे घातक मानता है। वर्ष 1944 में इम्फाल और कोहिमा के नजदीक नेताजी के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज और जापान की संयुक्त सेना को पीछे हटाने के लिए लेफ्टिनेंट जनरल विलियम स्लिम के नेतृत्व में ब्रिटेन की सेना को काफी संघर्ष करना पड़ा था। इसमें जापान व आजाद हिंद फौज के करीब 53 हजार सैनिक मारे गये और कई लापता हुए थे। इम्फाल में ब्रिटेन के 12,500 सैनिक हताहत हुए जबकि कोहिमा में अन्य 4 हजार सैनिक मारे गये थे। 1944 में इम्फाल की लड़ाई मार्च-जुलाई तक चली थी जबकि कोहिमा की लड़ाई अप्रैल में शुरू होकर जून में समाप्त हुई थी। लन्दन के चेल्सी स्थित नेशनल म्यूजियम में 20 अप्रैल 2013 को आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में 100 से अधिक हस्तियों ने इस युद्ध के पक्ष में मतदान किया। इसलिये ब्रिटेन को नेताजी नहीं सुहाते। वह कभी नहीं चाहेगा कि उनसे सम्बन्धित सच उजागर हो। सो विदेश से सम्बन्ध तो गड़बड़ हो ही सकता है। ...तो इशारों को अगर समझो राज को राज रहने दो!

कोई टिप्पणी नहीं: