बुधवार, 25 दिसंबर 2013

अन्दर की खुशी को बाहर की दुनिया में मत खोजो : स्वामी राधानाथ / SWAMI RADHANATH



-शीतांशु कुमार सहाय/ SHEETANSHU KUMAR SAHAY
सत्य और ईश्वर की खोज में निकले स्वामी राधानाथ ने कहा कि भारत में उन्हें वह सबकुछ मिला, जो सपने में भी उन्होंने कभी नहीं सोचा था। 
एक अमेरिकी स्वामी राधानाथ ने मंगलवार 24 दिसम्बर 2013 को झारखण्ड की राजधानी राँची में कहा कि सारे ऐशो-आराम को छोड़कर भारत के हिमालय के गुफाओं-कंदराओं और वृन्दावन के आश्रम में उन्हें वह सबकुछ मिला जिसकी परिकल्पना भी उन्होंने कभी नहीं की थी। उन्होंने बताया कि 1973 में जब वे सारे जगह को घूम कर वापस लौटे तो जीवन यात्रा वृत्तान्त लिखने के लिए सैकड़ों लोगों ने आग्रह किया लेकिन दो-तीन कारणों से उन्होंने इसे लिखने से प्रारंभ में मना कर दिया। पहला कारण था कि अपने ऊपर ही किताब लिखने की धृष्टता वह नहीं करना चाहते थे, दूसरी बात यह थी कि अपने यात्रा वृत्तान्त की सच्ची कहानी पर लोगों को विश्वास नहीं होता और तीसरा कारण वह खुद भी एक लेखक नहीं थे। इसी बीच भक्तिदत्त स्वामी जो मृत्यु शय्या पर थे, उन्होंने पुस्तक लिखने का आग्रह किया। तब उन्होंने पुस्तक ’द जर्नी होम’ लिखा। रांची में ही 24 दिसम्बर 2013 को अमेरिकी संन्यासी राधानाथ स्वामी द्वारा लिखित पुस्तक ’द जर्नी होम’ का हिन्दी संस्करण ’अनोखा सफर’ का विमोचन किया गया।
-रिचर्ड बना 'स्वामी राधानाथ'
भारत की संस्कृति एक महासागर है जिसमें सारी दुनिया की संस्कृतियों का समावेश है। यह तथ्य 1950 में अमेरिका के शिकागो में एक सम्पन्न यहूदी परिवार में जन्में रिचर्ड (रिची) को तब समझ में आया जब उसने 19 वर्ष की उम्र में गृहत्याग कर आध्यात्मिक सफर की शुरूआत की। आज भारत का युवा पश्चिम की चमक-दमक से चकाचैंध है। डीजे, डिस्को, ड्रग्स, सैक्स व उपभोगतावाद के जाल में उलझता जा रहा है। दूसरी तरफ रिचर्ड ने 19 वर्ष की आयु में संपन्नता के शिखर पर बैठे अमेरिकी समाज को छोड़ा था तो वहां संपन्नता से उकताये युवा हिप्पी बन रहे थे। रिचर्ड भी बन सकता था। पर, उसे तलाश थी जीवन के ध्येय की जो उसे मिला भारत की सनातन संस्कृति में। अमेरिका से यूरोप और यूरोप से पश्चिम एशिया का 6 महीने तक रोमांच, अवसाद और खतरों से भरा सफर करते हुए रिचर्ड पाकिस्तान की ओर से भारत में प्रवेश करने के लिए बाघा सीमा पर पहुंचा। वहां भारत के आव्रजन अधिकारी ने धूल-धूसरित फटेहाल अमेरिकी नौजवान रिचर्ड से कहा-  ''भारत में पहले ही बहुत भिखारी हैं, मैं तुम्हें प्रवेश नहीं दूंगा।'' कुछ घंटे बाद जब उसकी ड्यूटी बदली तो एक उम्रदार सरदार जी ड्यूटी पर आए। उन्होंने रिचर्ड की प्रार्थना सुनकर उसे भारत में आने दिया जिसके बाद कई वर्षों तक बिना पैसे के अयाचक भाव से देशभर में घम-घूम कर भारत की आध्यात्मिक परंपराओं का नजदीकी अध्ययन किया। देश संतों से सत्संग किया और अंत में भक्तियोग का मार्ग अपना लिया। उसका नाम हुआ 'स्वामी राधानाथ'। आज स्वामी राधारानाथ का प्रचार क्षेत्र पूरा विश्व है। रिचर्ड (रिची) से राधानाथ स्वामी तक का अनोखा सफर बहुत रोमांचकारी था जिसे 40 वर्ष बाद 2010 में स्वामी जी ने ‘द जर्नी होम’ या ‘अनोखा सफर’ नाम से प्रकाशित अपनी पुस्तकों में लिखा।


-प्रार्थना से प्राप्ति
स्वामी राधानाथ ने ईश्वर की खोज में पग-पग पर मौत का सामना किया और प्रार्थना के बल पर ही विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल बनाया। अपराध पर नियन्त्रण को लेकर देश में कई कानून बने, इसके बावजूद लगातार घटनाएँ हो रही हैं। ऐसी स्थिति में जब तक नैतिक मूल्यों को महत्त्व नहीं दिया जायेगा, तब तक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आयेगा।
-भगवान खोजने की कहानी ‘अनोखा सफर’
स्वामी राधानाथ ने बताया कि यह एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें भगवान खोजने की कहानी है। यह पुस्तक लोगों को प्रेरणा देगी, ऐसी उम्मीद है। उन्होंने कहा कि लोगों के हृदय में ही सबसे बड़ा खजाना छिपा है लेकिन लोग अन्दर की खुशी को बाहर की दुनिया में खोज रहे हैं। उन्होंने कहा कि मन, बुद्धि व अन्य चीजें उड़ती खुशियां दे सकती है, सच्ची खुशी तो प्रेम के अनुभव से ही प्राप्त होगी। ‘अनोखा सफर’ एक ऐसी सम-सामायिक पुस्तक है जिसे पढ़कर भारत के युवा भारत की सनातन संस्कृति में ही अपनी कुंठाओं के हल खोज सकते हैं। 336 पृष्ठों की यह पुस्तक सरल भाषा में लिखी गयी है। पाठक को लगता है कि वह रोमांचक यात्रा कर रहा है। स्वामी राधारानाथ ने इस्लाम, ईसाइयत, बौद्ध, तांत्रिक व औघड़, हठयोग जैसी अनेक आध्यात्मिक धाराओं का अनुभव किया जिसे खूबसूरती से इस पुस्तक में जड़ दिया। राधारानाथ ने भारत की सनातन संस्कृति की श्रेष्ठता को पुस्तक अनोखा सफर में प्रस्तुत कर दिया। स्वामी राधारानाथ ने संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ कृष्णभक्ति और भगवान कृष्ण की लीलास्थली ब्रज क्षेत्र (वृन्दावन) की महिमा को भी प्रस्तुत किया है। वृन्दावन को ही अपने जीवन का अंतिम पड़ाव बनाया।
-खुद को ही भूल गये
स्वामी राधानाथ ने कहा कि लोग खुशियों की तलाश में खुद को ही भूल गये हैं। अमेरिकी स्वामी ने कहा कि सभी आध्यत्मिक परम्पराओं में यही बात कही गयी है। जमीन-जमीन पर चलकर जब वे हिमालय की गुफाओं में पहुँचे तो वहाँ उन्होंने देखा कि साधु-सन्त लंगोट पहने इसी तरह की आन्तरिक खुशियों को महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब वे वृन्दावन पहुँचे तो काफी खुशी हुई।

-सर्वज्ञान वेद में
अमेरिकी संन्यासी ने कहा कि भारतीय ज्ञान, भक्ति और संस्कृति का सार तत्त्व ही पूरी दुनिया को नयी रोशनी देने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर के विचारक जिस ज्ञान की खोज कर रहे हैं, वह ज्ञान भारत के वेद व नैतिक मूल्यों से मिल सकता है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि धर्म के बाह्य आडम्बर को छोड़कर मूल तत्त्व को समझने की जरुरत है।

1 टिप्पणी:

bobby ने कहा…

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