Pages

पृष्ठ Pages

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

जानिये पूरा 'जन-गण-मन' गीत Know Full Jan-Gan-Man Song

-शीतांशु कुमार सहाय
आइये जानते हैं, राष्ट्रगान के बारे में। बंगाल के साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा सन् १९११ ईस्वी में लिखा गया 'जन-गण-मन' ही विश्व के सब से बड़े लोकतांत्रिक देश भारत का राष्ट्रगान है। 'जन-गण-मन' को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी मातृभाषा बंगला में लिखा था। बाद में आबिद अली ने इस का हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया। राष्ट्रगान में संस्कृत भाषा के शब्दों की अधिकता है। इसे २७ दिसंबर सन् १९११ ईस्वी को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कलकत्ता (अब कोलकाता) अधिवेशन में गाया गया था। राष्ट्रगान को गाने में ५२ सेकेंड का समय लगता है।
सच यह है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत का राष्ट्रगान बनाने के लिए 'जन-गण-मन' गीत की रचना नहीं की थी। आप सच जान लीजिये। बात सन् १९११ ईस्वी की है, जब दिल्ली को कलकत्ता की जगह भारत की राजधानी बनाया गया था। उस समय नयी राजधानी दिल्ली में विशेष 'दरबार' का आयोजन किया गया था। इस में इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम को भी आमंत्रित किया गया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर से जॉर्ज पंचम के स्वागत के लिए गीत लिखने को कहा गया था और इस तरह 'जन-गण-मन' गीत की रचना हुई जो पाँच अवतरणों का है। २४ जनवरी सन् १९५० ईस्वी को भारत की संविधान सभा में राष्ट्रगान के रूप में 'जन गण मन' के हिन्दी संस्करण के प्रथम अवतरण को स्वीकार किया गया। 
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने जिस कविता की रचना की थी उस के केवल पहले पद को ही राष्ट्रगान माना गया। पूरी कविता पाँच अवतरणों यानी पदों में है। कविता के पाँचों अवतरण यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ--

जन-गण-मन अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता !
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग,
विन्ध्य-हिमाचल, यमुना-गंगा उच्छल जलधितरंग,
जब शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष माँगे,
गा हे तव जय गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे; जय-जय-जय-जय हे।।

अहरह तव आह्वान प्रचारित, सुनि तव उदार वाणी,
हिन्दू बौद्ध सिक्ख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी,
पूरब पश्चिम आसे, तव सिंहासन पासे,
प्रेमहार हय गाथा।
जन-गण-ऐक्यविधायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।

पतन अभ्युदय वन्धुर पन्था, युग-युग धावित यात्री,
तुम चिरसारथि, तव रथचक्रे, मुखरित पथ दिनरात्रि।
दारुण विप्लव-माझे, तव शंखध्वनि बाजे,
संकटदुःखत्राता।
जन-गण-पथपरिचायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।

घोर तिमिरघन निविड़ निशीथे, पीड़ित मूर्छित देशे,
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल, नतनयने अनिमेषे।
दुःस्वप्ने आतंके, रक्षा करिले अंके,
स्नेहमयी तुमि माता।
जन-गण-दुःखत्रायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।

रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि, पूर्व उदयगिरिभाले,
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।
तव करुणारुणरागे, निद्रित भारत जागे,
तव चरणे नत माथा।
जय हे जय हे जय-जय-जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।

(द्रष्टव्य : ऊपर लाल रंग में लिखा गया अंश भारत का राष्ट्रगान बना।)
साभार : शीतांशु टीवी https://www.youtube.com/channel/UCWD-lRTEY05tZFsqpyPl3jA

गुरुवार, 10 जनवरी 2019

विश्व हिन्दी दिवस : विश्व फलक पर हिन्दी की बुलन्दी World Hindi Day

-शीतांशु कुमार सहाय
देश-दुनिया में हिन्दी निरन्तर प्रसारित हो रही है। यह विश्व के सर्वाधिक लोग द्वारा बोली जानेवाली भाषा के रूप में स्थापित हो रही है। भारत से बाहर भी हिन्दी का लगातार प्रसार जारी है। सच तो यह है कि विश्वभाषा का दर्ज़ा प्राप्त अंग्रेजी से ज़्यादा पूरी दुनिया में हिन्दी बोली जाती है। चीनी भाषा के बाद हिन्दी भाषा ही सब से ज़्यादा लोग द्वारा बोली जाती है। आज विश्व हिन्दी दिवस है। विश्व हिन्दी दिवस हर साल १० जनवरी को मनाया जाता है। विश्व हिन्दी दिवस २०१९ का उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित करना और हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। इस दिन सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। 
हिन्दी फिल्म ‘द एक्सीडेण्टल प्राइम मिनिस्टर’ को लेकर हाल में फिर ‘कुछ ज़्यादा’ ही चर्चित हुए भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने १० जनवरी २००६ को विश्व हिन्दी दिवस की मनाने की शुरुआत की थी। तब से प्रतिवर्ष १० जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। 
बहुत लोग अब भी ‘हिन्दी दिवस’ और ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के बीच अन्तर नहीं जानते। अगर आप भी नहीं जानते तो मैं बता देता हूँ। वास्तव में १० जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ और प्रतिवर्ष १४ सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। १४ सितम्बर सन् १९४९ ईस्वी को भारत की संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया था। अतः प्रतिवर्ष १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

विश्व हिन्दी दिवस की पृष्ठभूमि व विश्व हिन्दी सम्मेलन

हिन्दी के विकास के लिए विश्व हिन्दी सम्मेलनों को आरम्भ किया गया। इस के तहत पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन सन् १९७५ ईस्वी में १० जनवरी को भारत के महाराष्ट्र राज्य के नागपुर नगर में आयोजित हुआ था। अतः तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने १० जनवरी सन् २००६ ईस्वी को प्रतिवर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की आधिकारिक घोषणा की थी। 
विदित हो कि पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन १० से १४ जनवरी सन् १९७५ ईस्वी तक नागपुर में आयोजित हुआ था। उस सम्मेलन का बोधवाक्य था- वसुधैव कुटुम्बकम्। इस सम्मेलन में ३० देशों के १२२ प्रतिनिधि शामिल हुए थे। १९७५ में विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शृँखला आरम्भ की गयी। तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने इस के लिए पहल की थी। पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा (महाराष्ट्र) के सहयोग से नागपुर में सम्पन्न हुआ जिस में प्रसिद्ध समाजसेवी एवं स्वतन्त्रता सेनानी विनोबा भावे ने अपना विशेष सन्देश भेजा था।
इस के बाद दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन मॉरीशस देश में हुआ था। मॉरीशस की राजधानी पोर्टलुई में २८ से ३० अगस्त सन् १९७६ ईस्वी तक दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन संचालित हुआ था। पिछले वर्ष ११वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन अगस्त २०१८ में मॉरीशस में आयोजित किया गया था। 
सन् २००६ ईस्वी में पहला विश्व हिन्दी दिवस नॉर्वे स्थित भारतीय दूतावास ने मनाया था। इस के बाद दूसरा और तीसरा विश्व हिन्दी दिवस भारतीय नॉर्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल की अध्यक्षता में बहुत धूमधाम से मनाया गया था।
तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन देश की भारत की राजधानी नयी दिल्ली में २८ से ३० अक्तूबर सन् १९८३ ईस्वी तक किया गया। सम्मेलन में १७ देशों के १८१ प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया। इस में कुल ६,५६६ प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिन में विदेशों से आये २६० प्रतिनिधि भी शामिल थे।
चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन २ दिसम्बर से ४ दिसम्बर १९९३ तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया। सम्मेलन में मॉरीशस के अतिरिक्त लगभग २०० विदेशी प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। यों पाँचवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में आयोजित हुआ। यह आयोजन ४ से ८ अप्रैल १९९६ तक चला। सम्मेलन में भारत से १७ और अन्य देशों के २५७ प्रतिनिधि शामिल हुए।
छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन लन्दन में १४ सितम्बर से १८ सितम्बर सन् १९९९ ईस्वी तक आयोजित हुआ। सम्मेलन में २१ देशों के ७०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसी तरह सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में ५ से ९ जून सन् २००३ ईस्वी तक हुआ। सम्मेलन में भारत से २०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस में १२ से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान व अन्य हिन्दी सेवी सम्मिलित हुए थे।
आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन १३ से १५ जुलाई सन् २००७ ईस्वी तक संयुक्त राज्य अमेरिका के नगर न्यूयॉर्क में हुआ। नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन २२ से २४ सितम्बर सन् २०१२ ईस्वी तक दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग में हुआ। सम्मेलन में २२ देशों के ६०० से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। 
दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन १० से १२ सितम्बर सन् २०१५ ईस्वी तक भारत में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ। ग्यारहवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन १८ से २० अगस्त सन् २०१८ ईस्वी तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित हुआ था। अब १२वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन सन् २०२१ ईस्वी में संयुक्त राज्य अमेरिका के नगर न्यूयॉर्क में होगा।

विश्व में हिन्दी की बढ़ती शक्ति

प्रशान्त महासागर के दक्षिण में मेलानेशिया में स्थित फिजी देश है। भारत के बाहर फिजी पहला देश है जहाँं हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। इसे ‘फिजियन हिन्दी’ या ‘फिजियन हिन्दुस्तानी’ भी कहते हैं। यह अवधी, भोजपुरी और अन्य बोलियों का मिश्रित रूप है। 
अभी विश्व के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, युगाण्डा, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरिशस, फिजी और दक्षिण अफ्रीका समेत कई देशों में हिन्दी बोली जाती है।
सन् २०१७ ईस्वी में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में पहली बार ‘अच्छा’, ‘बड़ा दिन’, ‘बच्चा’ और ‘सूर्य नमस्कार’ जैसे हिन्दी शब्दों को शामिल किया गया। 

अपनी भाषा में ही प्रगति

हिन्दी केवल एक भाषा नहीं, हिन्दी एक संस्कृति है। हिन्दी में अनेकता के एकता का बीज छिपा है। यह बोलने और सीखने में सहज है। 
यह तथ्य अकाट्य सच है कि कोई भी प्राणी जितना अपनी भाषा में सहज होता है, उतना किसी और भाषा में नहीं। मनुष्य पर भी यह तथ्य लागू होता है। अपनी भाषा के जरिये हम जिनता उन्नति कर सकते हैं, उतना किसी अन्य भाषा के आश्रित होकर नहीं। अन्य भाषाओं पर भी अधिकार होना चाहिए लेकिन अपनी भाषा को पीछे छोड़कर नहीं। इस सन्दर्भ में मुझे आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कविता की पंक्ति याद आयी-
निज भाषा उन्नति अहै, 
सब उन्नति को मूल।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हमें समझाया कि अपनी भाषा से ही उन्नति सम्भव है; क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूल आधार है। विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान सभी देशों से जरूर लीजिये मगर उन का प्रचार मातृभाषा में ही कीजिये।