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बुधवार, 25 नवंबर 2020

दुष्कर्म की प्राथमिकी दर्ज न करने पर आरक्षी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई होगी Non-registration Of FIR For Rape Will Bring Strict Action Against The Accused Officers FIR Essential In Rape Case


भारत में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को लेकर केन्द्रीय  गृह मंत्रालय ने अक्एतूबर २०२० में एडवाइजरी जारी की है। पिछले कुछ दिनों में, खासतौर से हाथरस कांड में जिस तरह शुरुआती स्‍तर पर पुलिस से लापरवाही हुई, उन कमियों को दूर करने के लिए मंत्रालय ने कहा है। पीड़‍िताओं को अक्‍सर थाने के चक्‍कर काटने पड़ते हैं। गृह मंत्रालय ने साफ कहा है कि एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी न की जाए। अपनी एडवाइजरी में गृह मंत्रालय ने कहा है कि एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। मंत्रालय ने आईपीसी और सीआरपीसी के प्रावधान गिनाते हुए कहा कि राज्‍य/केंद्रशासित प्रदेश इन का पालन सुनिश्चित करें। गृह मंत्रालय ने चेतावनी देते हुए कहा क‍ि लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्‍त से सख्‍त कार्रवाई की जानी चाहिए।

महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में पुलिस की संवदेनहीनता अक्‍सर सामने आती रही है। एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी की शिकायतें खूब आती हैं। इसके अलावा मेडिकल टाइम पर न होना, जान-बूझकर केस को कमजोर बनाना, मामले को टालने की शिकायतें भी आम हैं। पुलिस अक्‍सर रेप के मामलों में जरूरी फोरेंसिक प्रक्रिया का पालन नहीं करती। इससे महत्‍वपूर्ण सबूत नष्‍ट हो जाते हैं और केस कमजोर हो जाता है। गृह मंत्रालय ने जिस तरह से अपनी एडवाइजरी में जांच प्रक्रिया पर जोर दिया है, उससे साफ है कि पुलिस की कार्यशैली से वह संतुष्‍ट नहीं है। इसलिए एडवाइजरी जारी करनी पड़ी

गृह मंत्रालय की एडवाइजरी पर एक नज़र  :

    संज्ञेय अपराध की स्थिति में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। कानून में 'जीरो एफआईआर' का भी प्रावधान है (अगर अपराध थाने की सीमा से बाहर हुआ है)।
    IPC की धारा 166 A(c) के तहत, एफआईआर दर्ज न करने पर अधिकारी को सजा का प्रावधान है।
    सीआरपीसी की धारा 173 में बलात्‍कार से जुड़े मामलों की जांच दो महीनों में करने का प्रावधान है। गृह मंत्रालय ने इस के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया है जहां से मामलों की मॉनिटरिंग हो सकती है।
    सीआरपीसी के सेक्‍शन 164-A के अनुसार, बलात्‍कार/यौन शोषण की मामले की सूचना मिलने पर 24 घंटे के भीतर पीड़‍िता की सहमति से एक रजिस्‍टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर मेडिकल जांच करेगा।
    इंडियन एविडेंस ऐक्‍ट की धारा 32(1) के अनुसार, मृत व्‍यक्ति का बयान जांच में अहम तथ्‍य होगा।
    फोरेंसिंक साइंस सर्विसिज डायरेक्‍टोरेट ने यौन शोषण के मामलों में फोरेंसिंक सबूत इकट्ठा करने, स्‍टोर करने की गाइडलाइंस बनाई हैं। उनका पालन हो।
सरकार की ओर से बताया गया है कि दुष्कर्म, यौन शोषण व हत्या जैसे संगीन अपराध होने पर फोरेंसिंक साइंस सर्विसिज डायरेक्‍टोरेट ने सबूत इकट्ठा करने गाइडलाइन बनाई है. ऐसे मामलों में फॉरेंसिक सबूत इकट्ठा करने के लिए गाइडलाइन का पालन करना अनिवार्य है।
    अगर पुलिस इन प्रावधानों का पालन नहीं करती तो न्‍याय नहीं हो पाएगा। अगर लापरवाही सामने आती है तो ऐसे अधिकारियों के खिलाफ सख्‍त से सख्‍त कार्रवाई होनी चाहिए।
एडवाइजरी में बताया गया है कि इंडियन एविडेंस एक्‍ट की धारा 32(1) के तहत मृत व्‍यक्ति का बयान जांच में अहम तथ्‍य होगा।