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गुरुवार, 11 नवंबर 2021

सूर्य के तेज से बने भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र, इन्द्र का वज्र और शिव का त्रिशूल

 -शीतांशु कुमार सहाय 

सभी सूर्योपासकों को यह जानना आवश्यक है कि १६ कलाओं में निपुण भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र किस प्रकार बना। देवराज इन्द्र का वज्र और भगवान शिव का त्रिशूल आखिर किस प्रकार निर्मित हुए। 



सोमवार, 8 नवंबर 2021

छठ : डूबते सूर्य को नमस्कार Chhath

 


-शीतांशु कुमार सहाय 

   पूरी धरती पर भारत का बिहार और आस-पास का एकमात्र ऐसा मानव निवास क्षेत्र है, जहाँ के लोग डूबते सूर्य की भी आराधना करते हैं। 

     छठ सूर्योपासना का ऐसा महापर्व है जो वर्ष में दो बार चैत्र और कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी पर्यन्त मनाया जाता है। प्रमुख आयोजन षष्ठी तिथि को होता है जिस दिन सन्ध्या काल में जलाशय में स्नान कर खड़े अवस्था में ही जल से भीगे वस्त्र पहने हुए डूबते अरुणाभ सूर्यदेव को ऋतुफल, पकवान, दूध, जल आदि से अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इस षष्ठी यानी छठी तिथि के कारण इस महापर्व का नाम 'छठ' पड़ा। 

     चार दिवसीय छठ महापर्व की चतुर्थी तिथि को उदित सूर्यदेव की आराधना (सुबह के प्रथम मुहूर्त के बाद) होती है, जिसे 'नहाय-खाय' कहते हैं। पञ्चमी तिथि को अस्त होने के पश्चात् शाम में सूर्यदेव की पूजा की जाती है, जिसे 'खरना' कहा जाता है। षष्ठी की शाम में अस्ताचलगामी यानी डूबते अरुणाभ सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इसी तरह सप्तमी तिथि को उदयगामी यानी उगते अरुणाभ सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करने के पश्चात् चार दिवसीय छठ महापर्व सम्पन्न होता है।

नीचे जो प्रकाशित आलेख है, वह पटना से छपनेवाले दैनिक समाचार पत्र 'राष्ट्रीय सहारा' में शुक्रवार, 16 नवम्बर 2007 को प्रकाशित हुआ था। इस आलेख को राष्ट्रीय सहारा में कार्यरत तत्कालीन फीचर सम्पादकद्वय सुनील पाण्डेय और किशोर केशव ने अपनी कुशल विद्वत्ता में सम्पादित किया था।

एक बार आप भी पढ़िये और और जानिये उन तथ्यों को जिन्हें आप अबतक नहीं जानते..... 



मंगलवार, 2 नवंबर 2021

धनतेरस और प्रदोष व्रत एक ही दिन, जानिये शुभ मुहूर्त Dhanteras 2021

 


धनतेरस की शुभकामना!

   सनातन हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्त्व है। प्रदोष व्रत में आदिदेव भगवान शंकर और माता पार्वती की आराधना की जाती है।

भक्ति भाव के साथ प्रदोष व्रत रखने वालों को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मनोकामना पूरी होती है। 

प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। यह महीने में दो बार होता है-- पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में आता है।

कार्तिक महीने को शास्त्रों में बेहद शुभ माना जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

इस साल धनतेरस आज यानी २ नवम्बर, मंगलवार को है। मंगलवार को पड़नेवाले प्रदोष व्रत को 'भौम प्रदोष व्रत' कहा जाता है। त्रयोदशी तिथि में धनतेरस और प्रदोष व्रत होने के कारण हर वर्ष ये एक ही दिन पड़ते हैं।

भौम प्रदोष व्रत तिथि २ नवम्बर २०२१ को दोपहर ०२ बजकर ०१ मिनट से प्रारम्भ होगी, जो कि ३ नवम्बर को दोपहर ०१ बजकर ३२ मिनट पर समाप्त होगी। 

आज धनतेरस के दिन भौम प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ समय शाम ०६ बजकर ४२ मिनट से रात ०८ बजकर ४९ मिनट तक है। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि के दिन सूर्योदय से पुष्कर व सिद्ध योग रहेगा। 

इस सुअवसर पर 'प्रदोष व्रत कथा' को पूरे मनोयोग से पढ़ना अथवा सुनना चाहिये। नीचे के लिंक पर क्लिक करें और आप भी सपरिवार अवश्य सुनें प्रदीप व्रत कथा।

प्रदोष व्रत कथा इस लिंक पर क्लिक कर सुनिये...

    https://youtu.be/1nVsGtHS-ug