शीतांशु कुमार सहाय
दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में केंद्रीय सरकार के विभिन्न हलफनामों पर विचार के बाद न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी तथा न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि केंद्र ने मामले को काफी हल्के में लिया है जिसकी निंदा किये जाने की जरूरत है। केंद्रीय सरकार ने समलैंगिक मामले पर उच्चतम न्यायालय में अपना रूख स्पष्ट करते हुए 21 मार्च 2012 को कहा कि इस मामले को अपराध के दायरे से बाहर रखने में कोई त्रुटि नहीं है।
अब अपने देश में पुरुष का पुरुष के साथ और लड़की का लड़की के साथ का शारीरिक सम्बन्ध बनाना अपराध नहीं कहलाएगा। 21 मार्च 2012 को सर्वोच्च न्यायालय में भारत सरकार ने अपनी सफाई में ऐसा ही कहा। सरकार ने वैज्ञानिक-अध्यात्म पर आधारित समृद्ध भारतीय परम्परा को दरकिनार करते हुए समलैंगिकता को मौलिक अधिकार बता दिया।
उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर लाने के अहम मुद्दे पर ढीला रूख अख्तियार करने को लेकर 20 मार्च 2012 को केंद्र सरकार की खिंचाई की थी। इस बात पर भी न्यायाधीशों ने चिंता जताई है कि इतने अहम मुद्दों पर संसद चर्चा नहीं करती और न्यायपालिका पर सीमा लांघने का आरोप लगाती है। दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में सरकार के विभिन्न हलफनामों पर विचार के बाद न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी तथा न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि केंद्र ने मामले को काफी हल्के में लिया है जिसकी निंदा किये जाने की जरूरत है। पीठ ने कहा कि भारत सरकार ने इस मामले को काफी हल्के में लिया है। केंद्र सरकार के इस बर्ताव की निंदा किये जाने की जरूरत जताई है न्यायमूर्तियों ने। जनहित के मुद्दे पर संसद की उदासीनता के बावत सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि पिछले 60 सालों के दौरान संसद ने इतने अहम मुद्दे पर चर्चा नहीं की। जब ऐसे मामलों पर न्यायालय निर्णय लेता है तो न्यायपालिका की ओर से सीमा लांघने की शिकायत करने लगते हैं सांसद।
बड़े अफसोस के साथ सर्वोच्च न्यायपालिका यानी सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वोच्च विधायिका से पूछा, ‘‘सर्वोच्च विधायिका के पास ऐसे मुद्दों के लिए वक्त नहीं है। इन मुद्दों पर विचार करने के लिये विधायिका (संसद) को वक्त मिले, इसके लिये इस देश के लोग कब तक इंतजार करेंगे?’’ अपनी टिप्पणी में पीठ ने यह भी कहा कि विधि आयोग ने भी आईपीसी की धारा 377 को खत्म करने की सिफारिश कर दी थी जिसके तहत समलैंगिक यौन संबंध को अपराध माना गया है और इसकी सजा के तौर पर अधिकतम उम्र कैद की सजा दी जा सकती है।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय को यह टिप्पणी तब करनी पड़ी जब जाने-माने फिल्मकार श्याम बेनेगल ने वरिष्ठ वकील अशोक देसाई के जरिये अपनी बात रखी कि विभिन्न कानूनों में सरकार संशोधन करती रही है लेकिन सरकार इसका फैसला न्यायालय पर छोड़ देती है। बेनेगल समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से हटाने के पक्षधर हैं। बेनेगल ने कहा कि सरकार लंबे समय से कानूनों में संशोधन करने में नाकाम रही है।
औद्योगिक विवाद कानून में पिछले 40 साल से संशोधन नहीं किया गया है और इस अधिनियम में ‘उद्योग’ शब्द अर्थहीन हो गया है। सरकार सोचती है कि न्यायालय ही इनपर फैसला ले। इसके बाद पीठ ने कहा, ‘‘जब भी न्यायालय कुछ करता है तो वे यह भी कहते हैं कि यह न्यायिक सीमा लांघना है।’’ इससे पहले न्यायालय ने कहा कि यह खास मामला है जिसमें सरकार ने उच्च न्यायालय में मामला लड़ने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उदासीन रूख अपनाया है।
पीठ ने कहा, हमें नहीं पता कि वे कितने मामले में उदासीन हैं। यह खास मामला है जहां केंद्र उच्च न्यायालय में बहस के बाद अब उदासीन रूख अपना रहा है। सरकार मामले में तटस्थ रूख के साथ आई है। किसे स्वीकार किया जाना चाहिए, उच्च न्यायालय में जो हलफनामा दायर किया गया था उसे या शीर्ष अदालत में उदासीन रूख को?
इस बात पर भी न्यायालय की ओर से चिंता जताई गई कि विधि आयोग की सिफारिश के बावजूद पिछले 60 साल में संसद ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में संशोधन पर विचार नहीं किया है। न्यायालय ने कहा कि विधायिका के पास इन मुद्दों पर विचार के लिये समय नहीं तो आखिर आम जनता कबतक इंतजार करेगी? शीर्ष अदालत समलैंगिक अधिकार विरोधी कार्यकर्ताओं और राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जो दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध कर रहे हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था और व्यवस्था दी थी कि एकांत में दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाया गया शारीरिक संबंध अपराध नहीं है। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना गया है जिसमें उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। वरिष्ठ भाजपा नेता बीपी सिंघल ने उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहकर सर्वाेच्च न्यायालय में चुनौती दी थी कि इस तरह की गतिविधियां अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ हैं। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपोस्टोलिक चर्चेज जैसे धार्मिक संगठनों ने भी फैसले को चुनौती दी थी।
योगगुरु बाबा रामदेव, ज्योतिषाचार्य सुरेश कौशल, दिल्ली बाल संरक्षण आयोग और तमिलनाडु मुस्लिम मुन्नेत्र कड़गम ने भी उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया था। केंद्र ने पूर्व में शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि समलैंगिकों की संख्या करीब 25 लाख है और इनमें से सात प्रतिशत (1.75 लाख) एचआईवी से ग्रस्त हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह अत्यधिक जोखिम वाले चार लाख लोगों, ‘पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों’(एमएसएम) को अपने एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के दायरे में लाने की योजना बना रहा है और यह पहले ही करीब दो लाख लोगों को इसके दायरे में ला चुका है। एचआईवी ग्रस्त लोगों के कल्याण एवं पुनर्वास के लिये काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘नाज’ फाउंडेशन ने कहा कि समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है और कानून को उस समय हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब मामला आपसी सहमति वाले वयस्कों से जुड़ा हो। यह उन्हें समाज में अलग-थलग करने के बराबर है। वे अपनी यौन अभिव्यक्ति का खुलासा करने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि समाज में इसे अपराध बना दिया गया है। इसके अतिरिक्त परिवार का कोई व्यक्ति यदि यौन अपराध करता है तो इस व्यभिचार को अपराध नहीं माना गया है।
केंद्र सरकार ने समलैंगिक मामले पर उच्चतम न्यायालय में अपना रूख स्पष्ट करते हुए 21 मार्च 2012 को कहा कि इस मामले को अपराध के दायरे से बाहर रखने में कोई त्रुटि नहीं है। महान्यायवादी जीई वाहनवती ने न्यायालय से कहा कि समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने के दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला उन्हें स्वीकार्य है। केंद्र ने न्यायालय से कहा कि आम सहमति से समलैंगिक संबंध बनाने को अपराध मानना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
शनिवार, 24 मार्च 2012
मंगलवार, 20 मार्च 2012
मुलायम को संभालनी चाहिये तीसरे मोर्चे का कमान
शीतांशु कुमार सहाय
मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर तीसरे मोर्चे के तिकड़म के लिये अपने को स्वतंत्र रखा है। यही कारण है कि मुलायम के इर्द-गिर्द तीसरे मोर्चे का कठोर आवरण आरंभिक रूप को प्राप्त करता जा रहा है। ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार, जयललिता, रामविलास पासवान और चंद्रबाबू नायडू एक नए क्षत्रप बनाम तीसरा मोर्चे के नीचे आने को तैयार बैठे हैं।
पांच राज्यों में सम्पन्न विधानसभा चुनाव परिणामों की पृष्ठभूमि में तीसरे मोर्चे की आहट सुनाई देने लगी है। मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर तीसरे मोर्चे के तिकड़म के लिये अपने को स्वतंत्र रखा है। यही कारण है कि मुलायम के इर्द-गिर्द तीसरे मोर्चे का कठोर आवरण आरंभिक रूप को प्राप्त करता जा रहा है। राजनीतिक परिक्रमण तेजी से जारी है और इसके केंद्र में नजर आ रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पिता। मुलायमसिंह यदि समय के बदलाव की आहट को सुन पा रहे हैं तो उन्हें तीसरे मोर्चे की घुरी की कमान संभाल लेनी चाहिए।
वास्तव में उत्तर प्रदेश के जनादेश ने केंद्रीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। इस राजनीतिक भूचाल में कांग्रेस और भाजपा दोनों की नीतियां हिचकोले खा रही हैं। वैसे कांग्रेस की आर्थिक उदारवाद की महंगाई बढ़ाऊ नीतियों से जनता तो पहले से ही खफा है, अब उद्योगपतियों की नजर में भी केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां हाशिये पर हैं। इन नीतियों को पांच राज्यों में जनता ने नकारते हुए अपना जनादेश दिया।
यह जनादेश जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर है। साथ ही इसने कांग्रेस की छद्म धर्मनिरपेक्षता और भाजपा की धार्मिक कट्टरता को भी आईना दिखाया है। भ्रष्ट आचरण के साथ मायावती जिस सामाजिक यांत्रिकी के बूते बसपा को अखिल भारतीय आधार देना चाहती थीं, उसके आकार को लघु करके मतदाता ने स्पष्ट संकेत दिया है कि राजनीतिक प्रवृत्तियों में अतिवाद अब जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। जनता या यों कहें कि मतदाताओं की यह जागरूकता भारतीय लोकतंत्र को पुख्ता व परिपक्व बनाने वाली है। परिणामों के तत्काल बाद तृणमूल कांग्रेस ने मध्यावधि चुनाव की जरुरत बताकर केंद्रीय सरकार को डगमगा दिया।
नतीजों ने केंद्र में अनिश्चय के अंधकार को गहरा दिया है। कांग्रेस और भाजपा की नीतियां लगभग एक जैसी हैं। दोनों की वर्तमान असलियत को सबने चुनावी माहौल में देख लिया। यों अबतक आतंकवादी निरोधी खुफिया केंद्र (एनसीटीसी) का विरोध कर रही भाजपा ने इसे 19 मार्च को लोकसभा व 20 मार्च को राज्यसभा में पारित होने दिया जबकि राज्यसभा में विपक्ष बहुमत में है। राज्यसभा में 20 मार्च को आतंकवादी निरोधी खुफिया केंद्र (एनसीटीसी) पर भारतीय जनता पार्टी का संशोधन प्रस्ताव गिर गया। प्रस्ताव के पक्ष में 77 मत पड़े जबकि विरोध में 99 मत पड़े।
बात बसपा की करें तो पूरे पांच सालों तक काम करने का सुनहरा मौका मिलने के बावजूद बसपा ने दबंगों को लुभाने के लिये उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में आने वाले 22 प्रकार के अपराधों को संज्ञान में लेने वाले मामलों को हत्या और बलात्कार तक ही सीमित कर दिया था। उत्तरप्रदेश में भूमि अधिग्रहण का सिलसिला भी सुनियोजित और चरणबद्ध तरीके से जारी था। चिकित्सा और तकनीकी संस्थानों में प्रवेश पाने वाले दलित छात्रों का जातीय और अंग्रेजी में दक्ष न होने के आधार पर इस हद तक उत्पीड़न जारी रहा कि अबतक 18 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। ऐसे में यदि कहा जा रहा है कि मायावती का दलित वोट बैंक भी खिसका है, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं।
जनता के बुनियादी हितों और घोषणा-पत्र में किये वायदों से आंख चुराने के कारण ही मतदाता ने कांग्रेस, भाजपा और बसपा से मोहभंग होने की तसदीक कर दी। वैसे उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के बाद मायावती दलित हितों की रक्षा व सर्वजन के नारे के बूते दिल्ली की गद्दी हथियाने की दौड़ में लग गई थीं। मायावती का यह स्वप्न तो चकनाचूर हुआ ही, बहुजन समाज पार्टी को अखिल भारतीय आधार देने के मंसूबे भी धराशायी हो गए।
भाजपा को यदि गोवा, उत्तराखण्ड और पंजाब में नाक बचाने की खातिर बढ़त मिल भी गई तो वह उसके राष्टÑीय वजूद रखने वाले नेताओं की बजाए क्षेत्रीय नेताओं और स्थानीय मुद्दों के कारण मिली है। उत्तर प्रदेश में बाबूसिंह कुशवाहा को शरण देकर भाजपा ने भी मनमोहन सिंह और मायावती की राह पकड़ ली। मणिपुर जरूर इस दृष्टि से अपवाद रहा कि वहां स्थानीय मुद्दे निष्प्रभावी रहे। यह राज्य पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से उग्रवाद व अलगाववाद की चपेट में है। राज्य की भौगोलिक अखण्डता को क्षेत्रीय मुद्दे व आंदोलन चुनौती साबित हो रहे हैं। विशेष सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने की मांग को लेकर इस्पाती महिला इरोम शर्मिला पिछले 11 सालों से लगातार अनशन जारी रखी हुई हैं। उनकी इस मांग को व्यापक जनसमर्थन भी हासिल है। बावजूद इसके कोई करिश्मा नहीं हुआ, यह अचरज में डालने वाला सवाल है। मणिपुर में कुकी बहुल क्षेत्र को नया जिला बनाने की मांग भी पिछले दिनों इतनी जबर्दस्त थी कि कुकी और नगा संगठनों ने इस पूरे पर्वतीय राज्य में मजबूत नाकेबंदी कर दी थी। इन परिस्थितियों के बाद भी कांग्रेस की मणिपुर में लगातार तीसरी बार जीत यह दर्शाती है कि व्यापक जनाधार वहां कांग्रेस का ही है। ऐसी ही स्थिति पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और सिकिकम में है।
दरअसल, पांच राज्यों के करीब 14 करोड़ मतदाताओं ने 690 विधानसभा सीटों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करके जो निर्णय दिया है, उससे यही स्वर निकल रहा है कि राष्टÑीय दलों का हृदयविदारक क्षरण हो रहा है। जो कांग्रेस राहुल गांधी बनाम देश के भावी प्रधानमंत्री को लेकर उत्तरप्रदेश में करो या मरो की स्थिति में थी, वह मुंह छिपाने की शर्मनाक हालत में है। उसके सांप्रदायिक हथकण्डों व निर्लज्ज चाटुकारिता को जनता ने नकार दिया है।
उत्तर प्रदेश में विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद पिछड़ी व दलित जातियों में जो राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं जगी थीं, उनका अभी लोप नहीं हुआ है। राष्टÑीय दलों के वंशवादी अहंकार को वे अभी भी कठिन चुनौती साबित हो रही हैं। नतीजतन राज्य-व्यवस्था ज्यादा-से-ज्यादा संघीय स्वरूप ग्रहण करने को व्याकुल है। इस परिप्रेक्ष्य में जहां नीतीश कुमार, ममता बनर्जी व जयललिता की तरह पंजाब में भी प्रकाश सिंह बादल को अपेक्षाकृत ज्यादा स्वायत्तता हासिल हो गई है। वे इस स्वतंत्र शासन में अपने राजनीतिक एजेंडे या घोषणा पत्र में शामिल वायदों को प्रभावी ढंग से लागू कर सकते हैं। मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी को तो मतदाता ने पूर्ण बहुमत देकर ही विधानसभा में भेजा है।
संप्रग गठबंधन में भागीदार तृणमूल कांग्रेस ने मध्यावधि चुनाव का जो संकेत ठीक चुनाव परिणामों के बाद दिया, वह निराधार नहीं है। क्षेत्रीय दलों की यह अपेक्षा बढ़ी है कि राष्टÑीय राजनीति में मुलायम सिंह महत्त्वपूर्ण भूमिका में अवतरित हों। ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार, जयललिता, रामविलास पासवान और चंद्रबाबू नायडू एक नए क्षत्रप बनाम तीसरा मोर्चे के नीचे आने को तैयार बैठे हैं। लालू थोड़ा ना-नुकुर कर रहे हैं। इस संभावित तीसरे मोर्चे की पहली परीक्षा इसी साल जुलाई में होने वाले राष्टÑपति चुनाव में होने वाली है। यदि क्षेत्रीय दल ऐन-केन-प्रकारेण अपना राष्टÑपति देश को देने में कामयाब हो जाते हैं तो इस मोर्चे के अस्तित्व की मान्यता तो प्रमाणित होगी ही, नए लोकसभा चुनाव पूर्व तीसरे मोर्चे का माहौल भी गर्माने लगेगा। तीसरे मोर्चे की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब यह तिकड़मी जातीय तिलिस्म व छद्म धर्मनिरपेक्षता के जंजाल में लिप्त दिखाई न दे। स्पष्ट विचारधारा व जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को लेकर वह जनता के बीच हाजिर हो।
मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर तीसरे मोर्चे के तिकड़म के लिये अपने को स्वतंत्र रखा है। यही कारण है कि मुलायम के इर्द-गिर्द तीसरे मोर्चे का कठोर आवरण आरंभिक रूप को प्राप्त करता जा रहा है। ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार, जयललिता, रामविलास पासवान और चंद्रबाबू नायडू एक नए क्षत्रप बनाम तीसरा मोर्चे के नीचे आने को तैयार बैठे हैं।
पांच राज्यों में सम्पन्न विधानसभा चुनाव परिणामों की पृष्ठभूमि में तीसरे मोर्चे की आहट सुनाई देने लगी है। मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर तीसरे मोर्चे के तिकड़म के लिये अपने को स्वतंत्र रखा है। यही कारण है कि मुलायम के इर्द-गिर्द तीसरे मोर्चे का कठोर आवरण आरंभिक रूप को प्राप्त करता जा रहा है। राजनीतिक परिक्रमण तेजी से जारी है और इसके केंद्र में नजर आ रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पिता। मुलायमसिंह यदि समय के बदलाव की आहट को सुन पा रहे हैं तो उन्हें तीसरे मोर्चे की घुरी की कमान संभाल लेनी चाहिए।
वास्तव में उत्तर प्रदेश के जनादेश ने केंद्रीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। इस राजनीतिक भूचाल में कांग्रेस और भाजपा दोनों की नीतियां हिचकोले खा रही हैं। वैसे कांग्रेस की आर्थिक उदारवाद की महंगाई बढ़ाऊ नीतियों से जनता तो पहले से ही खफा है, अब उद्योगपतियों की नजर में भी केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां हाशिये पर हैं। इन नीतियों को पांच राज्यों में जनता ने नकारते हुए अपना जनादेश दिया।
यह जनादेश जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर है। साथ ही इसने कांग्रेस की छद्म धर्मनिरपेक्षता और भाजपा की धार्मिक कट्टरता को भी आईना दिखाया है। भ्रष्ट आचरण के साथ मायावती जिस सामाजिक यांत्रिकी के बूते बसपा को अखिल भारतीय आधार देना चाहती थीं, उसके आकार को लघु करके मतदाता ने स्पष्ट संकेत दिया है कि राजनीतिक प्रवृत्तियों में अतिवाद अब जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। जनता या यों कहें कि मतदाताओं की यह जागरूकता भारतीय लोकतंत्र को पुख्ता व परिपक्व बनाने वाली है। परिणामों के तत्काल बाद तृणमूल कांग्रेस ने मध्यावधि चुनाव की जरुरत बताकर केंद्रीय सरकार को डगमगा दिया।
नतीजों ने केंद्र में अनिश्चय के अंधकार को गहरा दिया है। कांग्रेस और भाजपा की नीतियां लगभग एक जैसी हैं। दोनों की वर्तमान असलियत को सबने चुनावी माहौल में देख लिया। यों अबतक आतंकवादी निरोधी खुफिया केंद्र (एनसीटीसी) का विरोध कर रही भाजपा ने इसे 19 मार्च को लोकसभा व 20 मार्च को राज्यसभा में पारित होने दिया जबकि राज्यसभा में विपक्ष बहुमत में है। राज्यसभा में 20 मार्च को आतंकवादी निरोधी खुफिया केंद्र (एनसीटीसी) पर भारतीय जनता पार्टी का संशोधन प्रस्ताव गिर गया। प्रस्ताव के पक्ष में 77 मत पड़े जबकि विरोध में 99 मत पड़े।
बात बसपा की करें तो पूरे पांच सालों तक काम करने का सुनहरा मौका मिलने के बावजूद बसपा ने दबंगों को लुभाने के लिये उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में आने वाले 22 प्रकार के अपराधों को संज्ञान में लेने वाले मामलों को हत्या और बलात्कार तक ही सीमित कर दिया था। उत्तरप्रदेश में भूमि अधिग्रहण का सिलसिला भी सुनियोजित और चरणबद्ध तरीके से जारी था। चिकित्सा और तकनीकी संस्थानों में प्रवेश पाने वाले दलित छात्रों का जातीय और अंग्रेजी में दक्ष न होने के आधार पर इस हद तक उत्पीड़न जारी रहा कि अबतक 18 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। ऐसे में यदि कहा जा रहा है कि मायावती का दलित वोट बैंक भी खिसका है, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं।
जनता के बुनियादी हितों और घोषणा-पत्र में किये वायदों से आंख चुराने के कारण ही मतदाता ने कांग्रेस, भाजपा और बसपा से मोहभंग होने की तसदीक कर दी। वैसे उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के बाद मायावती दलित हितों की रक्षा व सर्वजन के नारे के बूते दिल्ली की गद्दी हथियाने की दौड़ में लग गई थीं। मायावती का यह स्वप्न तो चकनाचूर हुआ ही, बहुजन समाज पार्टी को अखिल भारतीय आधार देने के मंसूबे भी धराशायी हो गए।
भाजपा को यदि गोवा, उत्तराखण्ड और पंजाब में नाक बचाने की खातिर बढ़त मिल भी गई तो वह उसके राष्टÑीय वजूद रखने वाले नेताओं की बजाए क्षेत्रीय नेताओं और स्थानीय मुद्दों के कारण मिली है। उत्तर प्रदेश में बाबूसिंह कुशवाहा को शरण देकर भाजपा ने भी मनमोहन सिंह और मायावती की राह पकड़ ली। मणिपुर जरूर इस दृष्टि से अपवाद रहा कि वहां स्थानीय मुद्दे निष्प्रभावी रहे। यह राज्य पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से उग्रवाद व अलगाववाद की चपेट में है। राज्य की भौगोलिक अखण्डता को क्षेत्रीय मुद्दे व आंदोलन चुनौती साबित हो रहे हैं। विशेष सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने की मांग को लेकर इस्पाती महिला इरोम शर्मिला पिछले 11 सालों से लगातार अनशन जारी रखी हुई हैं। उनकी इस मांग को व्यापक जनसमर्थन भी हासिल है। बावजूद इसके कोई करिश्मा नहीं हुआ, यह अचरज में डालने वाला सवाल है। मणिपुर में कुकी बहुल क्षेत्र को नया जिला बनाने की मांग भी पिछले दिनों इतनी जबर्दस्त थी कि कुकी और नगा संगठनों ने इस पूरे पर्वतीय राज्य में मजबूत नाकेबंदी कर दी थी। इन परिस्थितियों के बाद भी कांग्रेस की मणिपुर में लगातार तीसरी बार जीत यह दर्शाती है कि व्यापक जनाधार वहां कांग्रेस का ही है। ऐसी ही स्थिति पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और सिकिकम में है।
दरअसल, पांच राज्यों के करीब 14 करोड़ मतदाताओं ने 690 विधानसभा सीटों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करके जो निर्णय दिया है, उससे यही स्वर निकल रहा है कि राष्टÑीय दलों का हृदयविदारक क्षरण हो रहा है। जो कांग्रेस राहुल गांधी बनाम देश के भावी प्रधानमंत्री को लेकर उत्तरप्रदेश में करो या मरो की स्थिति में थी, वह मुंह छिपाने की शर्मनाक हालत में है। उसके सांप्रदायिक हथकण्डों व निर्लज्ज चाटुकारिता को जनता ने नकार दिया है।
उत्तर प्रदेश में विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद पिछड़ी व दलित जातियों में जो राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं जगी थीं, उनका अभी लोप नहीं हुआ है। राष्टÑीय दलों के वंशवादी अहंकार को वे अभी भी कठिन चुनौती साबित हो रही हैं। नतीजतन राज्य-व्यवस्था ज्यादा-से-ज्यादा संघीय स्वरूप ग्रहण करने को व्याकुल है। इस परिप्रेक्ष्य में जहां नीतीश कुमार, ममता बनर्जी व जयललिता की तरह पंजाब में भी प्रकाश सिंह बादल को अपेक्षाकृत ज्यादा स्वायत्तता हासिल हो गई है। वे इस स्वतंत्र शासन में अपने राजनीतिक एजेंडे या घोषणा पत्र में शामिल वायदों को प्रभावी ढंग से लागू कर सकते हैं। मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी को तो मतदाता ने पूर्ण बहुमत देकर ही विधानसभा में भेजा है।
संप्रग गठबंधन में भागीदार तृणमूल कांग्रेस ने मध्यावधि चुनाव का जो संकेत ठीक चुनाव परिणामों के बाद दिया, वह निराधार नहीं है। क्षेत्रीय दलों की यह अपेक्षा बढ़ी है कि राष्टÑीय राजनीति में मुलायम सिंह महत्त्वपूर्ण भूमिका में अवतरित हों। ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार, जयललिता, रामविलास पासवान और चंद्रबाबू नायडू एक नए क्षत्रप बनाम तीसरा मोर्चे के नीचे आने को तैयार बैठे हैं। लालू थोड़ा ना-नुकुर कर रहे हैं। इस संभावित तीसरे मोर्चे की पहली परीक्षा इसी साल जुलाई में होने वाले राष्टÑपति चुनाव में होने वाली है। यदि क्षेत्रीय दल ऐन-केन-प्रकारेण अपना राष्टÑपति देश को देने में कामयाब हो जाते हैं तो इस मोर्चे के अस्तित्व की मान्यता तो प्रमाणित होगी ही, नए लोकसभा चुनाव पूर्व तीसरे मोर्चे का माहौल भी गर्माने लगेगा। तीसरे मोर्चे की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब यह तिकड़मी जातीय तिलिस्म व छद्म धर्मनिरपेक्षता के जंजाल में लिप्त दिखाई न दे। स्पष्ट विचारधारा व जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को लेकर वह जनता के बीच हाजिर हो।
बुधवार, 7 मार्च 2012
बुधवार, 29 फ़रवरी 2012
शीतांशु कुमार सहाय व धनंजय नाथ तिवारी SHEETANSHU KUMAR SAHAT & DHANANJAY NATH TIWARI
सच्चा मित्र आप के अहंकार की परवाह किये बगैर आप को टोकेगा जरुर जब भी आपको गलत राह पर चलता हुआ पायेगा। सच्चा मित्र कभी आप के साथ उस कर्म में खड़ा हुआ नहीं दिखायी देगा जो कर्म मानवता के बुनियादी उसूलों के खिलाफ जाते हों। आप को चाहे कितना बुरा लगे, वह इस बात की परवाह किये बिना ही आप को सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेगा। वह आप को गलत कर्म को करने के लिए साथ होने की ऊर्जा नहीं देगा। सच्चा मित्र तो बहुत बार आपके विरोध में खड़ा दिखायी देगा; क्योंकि वह कटिबद्ध है आप को गलत मार्ग पर चलने से रोकने के लिए।
शीतांशु कुमार सहाय व धनंजय नाथ तिवारी SHEETANSHU KUMAR SAHAT & DHANANJAY NATH TIWARI
सच्चा मित्र आपके अहंकार की परवाह किये बगैर आपको टोकेगा जरुर जब भी आपको गलत राह पर चलता हुआ पायेगा। सच्चा मित्र कभी आपके साथ उस कर्म में खड़ा हुआ नहीं दिखायी देगा जो कर्म मानवता के बुनियादी उसूलों के खिलाफ जाते हों। आपको चाहे कितना बुरा लगे, वह इस बात की परवाह किये बिना ही आपको सत्य मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करेगा। वह आपको गलत कर्म को करने के लिये साथ होने की ऊर्जा नहीं देगा। सच्चा मित्र तो बहुत बार आपके विरोध में खड़ा दिखायी देगा क्योंकि वह कटिबद्ध है आपको गलत मार्ग पर चलने से रोकने के लिये।
शीतांशु कुमार सहाय व धनंजय नाथ तिवारी SHEETANSHU KUMAR SAHAT & DHANANJAY NATH TIWARI
सच्चा मित्र आपके अहंकार की परवाह किये बगैर आपको टोकेगा जरुर जब भी आपको गलत राह पर चलता हुआ पायेगा। सच्चा मित्र कभी आपके साथ उस कर्म में खड़ा हुआ नहीं दिखायी देगा जो कर्म मानवता के बुनियादी उसूलों के खिलाफ जाते हों। आपको चाहे कितना बुरा लगे, वह इस बात की परवाह किये बिना ही आपको सत्य मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करेगा। वह आपको गलत कर्म को करने के लिये साथ होने की ऊर्जा नहीं देगा। सच्चा मित्र तो बहुत बार आपके विरोध में खड़ा दिखायी देगा क्योंकि वह कटिबद्ध है आपको गलत मार्ग पर चलने से रोकने के लिये।
मंगलवार, 19 जुलाई 2011
अमर हैं अश्वत्थामा
भगवान शंकर के अंशावतार थे महाभारत के प्रमुख पात्र अश्वत्थामा। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं। भगवान शंकर का यह अवतार संदेश देता है कि हमें सदैव अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए; क्योंकि क्रोध ही सभी दु:खों का कारण है। यह गुण अश्वत्थामा में नहीं था। एक और बात जो हमें अश्वत्थामा से सीखनी चाहिए, वह यह कि जो भी ज्ञान प्राप्त करें उसे पूर्ण करें। अधूरा ज्ञान सदैव हानिकारक है। अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलाना तो जानते थे लेकिन उसका उपसंहार करना नहीं। उन्होंने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जिसके कारण संपूर्ण सृष्टि के नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो गया था। इस तथ्य से हमें यह शिक्षा मिलती है कि क्रोध तथा अपूर्ण ज्ञान से कभी सफलता नहीं मिलती। अश्वत्थामा महादेव, यम, काल व क्रोध के अंशावतार थे। वह द्रोणाचार्य के पुत्र थे। अश्वत्थामा अत्यंत शुरवीर, प्रचंडक्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। महाभारत संग्राम में अश्वत्थामा ने कौरवों की सहायता की थी। हनुमानजी आदि सात चिरंजीवियों में अश्वत्थामा का नाम भी आता है। अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये सातों चिरंजीवी हैं। शिवमहापुराण(शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।
सावन का संदेश
रिमझिम बूंदों का महीना है सावन। सावन की फुहारों से मिली ठंडक, हमें कुछ संदेश देती है, हमें कुछ सिखाती है। सावन केवल एक महीना नहीं है, बल्कि जीवन के हर वर्ष में आने वाला एक ऐसा महीना है जिससे हम कई बातें समझ और सीख सकते हैं। सावन के मिजाज में कई बातें हैं जो हमें जीवन की परिस्थितियों से जूझने और सुधरने का मौका देती हैं। सावन की रिमझिम हमारे शरीर को गरमी से हुए नुकसान से उबारती है और झमाझम बारिश धरती की उष्मा को खत्म कर देती है। सावन का महीना हमें जीवन प्रबंधन के कई सूत्र बता रहा है:-- सावन रिमझिम फुहारों का महीना है। आसमान पर दिनभर छाई रहने वाली घटाएं धीरे-धीरे बरसती हैं। यह हमें सिखाती है कि जीवन में हम जब भी किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए निकलें, हमारी गति शुरुआत में धीमी रहे, ताकि हम अपनी योजना के हर पहलू को देखते हुए कोई कदम उठा सकें। सावन में अधिकांश समय आसमान पर बादल रहते हैं, लेकिन बरसते कभी-कभी ही हैं। यह सिखाते हैं कि हमें अपने जीवन में किसी भी चुनौती के लिए हर वक्त तैयार रहना चाहिए, ताकि समय आने पर हमें तैयारियों में देर न लगे। यह महीना और भी कई कारणों से विशेष है, क्योंकि इस दौरान भक्ति, आराधना तथा प्रकृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। यह महीना भगवान शंकर की भक्ति के लिए विशेष माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मास में विधि पूर्वक शिव उपासना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। सावन में ही कई प्रमुख त्योहार जैसे- हरियाली अमावस्या, नाग पंचमी तथा रक्षा बंधन आदि आते हैं। सावन में प्रकृति अपने पूरे शवाब पर होती है, इसलिए यह महीना प्रकृति को समझने व उसके निकट जाने का है। सावन की रिमझिम बारिश और प्राकृतिक वातावरण मन में उल्लास व उमंग भर देती है। सावन का महीना पूरी तरह से शिव तथा प्रकृति को समर्पित है।
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
वेदाचार्य महर्षि याज्ञवल्क्य
ज्ञानं विशिष्टं न तथाहि यज्ञा:, ज्ञानेन दुर्ग तरते न यज्ञै:। (कर्मपरक यज्ञों की अपेक्षा ज्ञान ही श्रेष्ठ है।)
-- याज्ञवल्क्य का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य 'शतपथ ब्राह्मण' की रचना है। इस ग्रंथ में 100 अध्याय हैं जो 14 कांडों में बँटे हैं। पहले दो कांडों में दर्श और पौर्णमास इष्टियों का वर्णन है। कांड 3, 4, 5 में पशुबंध और सोमयज्ञों का वर्णन है। कांड 6, 7, 8, 9 का संबंध अग्निचयन से है। इन 9 कांडों के 60 अध्याय किसी समय 'षटि पथ' के नाम से प्रसिद्ध थे। दशम कांड 'अग्निरहस्य' कहलाता है जिसमें अग्निचयन वाले 4 अध्यायों का रहस्य निरूपण है। कांड 6 से 10 तक में शांडिल्य को विशेष रूप से प्रमाण माना गया है। ग्यारहवें कांड का नाम 'संग्रह' है जिसमें पूर्वर्दिष्ट कर्मकांड का संग्रह है। कांड 12, 13, 14 परिशिष्ट कहलाते हैं और उनमें फुटकर विषय हैं। सोलहवें कांड में वे अनेक अध्यात्म विषय हैं जिनके केंद्र में ब्रह्मवादी याज्ञवल्क्य का महान् व्यक्तित्त्व प्रतिष्ठित है। उससे ज्ञात होता है कि याज्ञवल्क्य अपने युग के दार्शनिकों में सबसे तेजस्वी थे। मिथिला के राजा जनक उनको अपना गुरु मानते थे। वहाँ जो ब्रह्मविद्या की परिषद बुलाई गई जिसमें कुरु, पांचाल देश के विद्वान भी सम्मिलित हुए उसमें याज्ञवल्क्य का स्थान सर्वोपरि रहा।
-- इन दोनों की एकता ही उनके दर्शन का मूल सूत्र था। सूर्य की एक कला या अक्षर प्रणव (ॐ) रूप से मानव के केंद्र की संचालक शक्ति है। मानव भी अमृत का ही एक अंश है। याज्ञवल्क्य का यह अध्यात्म दर्शन अति महत्वपूर्ण है। यही याज्ञवल्क्य का अयातयाम अर्थात् कभी बासी न पड़नेवाला ज्ञान है।
सूर्य विद्या एवं प्रणव
-- वैदिक युग में अत्यन्त विद्वान महर्षि याज्ञवल्क्य हुए हैं। वे ब्रह्मज्ञानी थे। उनकी दो पत्नियां थीं। एक का नाम कात्यायनी तथा दूसरी का मैत्रेयी था। कात्यायनी सामान्य स्त्रियों के समान थीं, वह घर-गृहस्थी में ही व्यस्त रहती थीं, सांसारिक भोगों में अधिक रूचि थी। सुस्वादी भोजन, सुन्दर वस्त्र और विभिन्न प्रकार के आभूषणो में ही वह खोई रहती थीं। याज्ञवल्क्य जैसे प्रसिद्ध महर्षि की पत्नी होते हुए भी धर्म में उसे कोई आकर्षण नहीं दिखाई देता था। मैत्रेयी अपने पति के साथ प्रत्येक धार्मिक कार्य में लगी रहती थी। उनके प्रत्येक कर्मकाण्ड में सहायता देना तथा आवश्यक वस्तु उपलब्ध कराने में उसे आनन्द आता था। अध्यात्म में उसकी गहरी रूचि थी। पति के साथ अधिक समय बिताने के कारण आध्यात्मिक जगत में उसकी गहरी पैठ थी। वह प्रायः महर्षि याज्ञवल्क्य के उपदेशों को सुनती, उनके धार्मिक कर्म में सहयोग देती तथा स्वंय भी चिन्तन-मनन में लगी रहती थी। सत्य को जानने की उसमें तीव्र जिज्ञासा थी।
याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी
-- जब याज्ञवल्क्य संन्यास लेने लगे तो उन्होंने दोनों पत्िनयों को बुलाकर कहा-'' मेरी जो भी सम्पत्ति है उसे मैं तुम दोनों में बराबर-बराबर बाँट देना चाहता हूँ।'' कात्यायनी यह सुनकर चुप रही। तब मैत्रेयी ने कहा- ''भगवन्! इस नश्वर सम्पत्ति को लेकर हम क्या करेंगी? यह तो क्षणिक है। हमें तो आप वह सम्पत्ति दें जिसके कारण आप यथार्थ सम्पत्तिवान् समझे जाते हैं। उसी सम्पत्ति की हमें अधिकारिणी बनाकर उसमें से हिस्सा दीजिये।'' याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी को बहुत समझाया कि सम्पत्ति से किस तरह संसार में सुख मिलता है, किस प्रकार बिना सम्पत्ति के असुविधा होती है; किन्तु मैत्रेयी ने उसे स्वीकार नहीं किया। उसने कहा- ''भगवन्! संसारी सुख का मूल्य ही क्या है? नाशवान वस्तु के भरण-पोषण में इतनी चिन्ता की क्या जरूरत? मुझे तो वह ज्ञान दीजिये जिससे सब लालच ही विलीन हो जाय। ब्रह्मवादिनी पत्नी की बात सुनकर महर्षि अपनी पत्नी की सत्य के प्रति जिज्ञासा को जानकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। वे बोले- ''देवि! तुम मुझे पहले से ही बहुत प्यारी थीं, किन्तु आज इस उत्तर को सुनकर तो मैं तुम पर बहुत ही अधिक प्रसन्न हुआ। देवि! मैं तुम्हें वह ज्ञान दूंगा जिससे वास्तव में तुम्हारी आत्मा का कल्याण होगा और तुम संसार के माया-मोह से सदा के लिए मुफ्त हो जाओगी। यथार्थ बात यही है, सच्चा धन तो ब्रह्मज्ञान ही है।'' ऐसा ही हुआ, मैत्रेयी ने पति द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके ईश्वर को पा लिया और उसका मन स्थायी शांति तथा आनन्द से परिपूर्ण हो गया।
स
-- एक बार महर्षि याज्ञवल्क्य और जनक आपस में बैठकर किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। तभी जनक ने जिज्ञासावश महर्षि याज्ञवल्क्य से प्रश्न किया, ''महर्षि, हम किसकी ज्योति से देखने की सामर्थ्य प्राप्त करते हैं?’ महर्षि बोले, ''सूर्य की ज्योति से।'' यह सुनकर जनक बोले, ''जब सूर्य अस्त हो जाता है तो हमें प्रकाश कहां से प्राप्त होता है?'' जनक का प्रश्न सुनकर महर्षि बोले, ''सूर्य के अस्त हो जाने पर चंद्रमा हमें प्रकाश देता है।'' यह जवाब सुनकर जनक फिर बोले, ''महर्षि, यदि आसमान में बादल छा जाएं और अमावस की काली रात में हम मार्ग भटक जाएं, तो उस समय प्रकाश कहां से उत्पन्न होता है और हम किस प्रकाश के सहारे भटके मार्ग से सही मार्ग पर आ पाते हैं?'' जनक के फिर से किए गए प्रश्न पर महर्षि मुस्कुराते हुए बोले, ''तब शब्दों के सहारे हमारा रास्ता प्रकाशमान होता है और शब्द हमसे कहते हैं-- भटको नहीं मैं तुम्हारे साथ हूं, मेरी आवाज को माध्यम मानकर, प्रकाश जानकर बढ़ते चलो।'' जनक यह उत्तर सुनकर फिर प्रश्न करते हुए बोले, ''यदि सूर्य, चंद्रमा तथा शब्दों का भी अभाव हो, तो उस समय हमारा मार्ग प्रशस्त करने के लिए कौन प्रकाश का रूप लेता है?'' महर्षि याज्ञवल्क्य ने जनक के इस प्रश्न पर कहा, ''जनक जी, यदि प्रकाश सब ओर से लुप्त हो जाए और अंधकार में कुछ न सूझे तो उस समय आत्मा की ज्योति सर्वोपरि होती है। हमारी आत्मा हमें विपत्तियों में, तनाव में, पथरीले मार्ग पर व हर मोड़ पर सदैव सच्चा रास्ता दिखाने को तत्पर रहती है। आत्मा जैसा निश्चल, स्वच्छ, शुभ्र प्रकाश इस पृथ्वी में अन्य कहीं भी विद्यमान नहीं है।'' महर्षि याज्ञवल्कय के इस जवाब पर (आत्मा का प्रकाश ही सर्वोत्तम है व सब प्रकाश लुप्त हो जाने पर आत्मा का प्रकाश ही मानव को राह दिखाता है और उसे जीना सिखाता है) जनक संतुष्ट हो गए और उनके सामने नतमस्तक हो गए।
आत्मा का प्रकाश ही मानव को राह दिखाता है-स्मृति-- इनके द्वारा विरचित 'याज्ञवल्क्य-स्मृति' एक महत्त्वपूर्ण धर्मशास्त्र है, जिसपर 'मिताक्षरा' आदि प्रौढ़ संस्कृत-टीकाएँ हुई हैं। याज्ञवल्क्य-स्मृति प्रसिद्ध है। इस स्मृति में 1003 श्लोक हैं। इसपर विश्वरूप कृत'बालक्रीड़ा'(800-825), अपरार्क कृत'याज्ञवल्कीय धर्मशास्त्र निबंध'(12वीं शती) और विज्ञानेश्वर कृत 'मिताक्षरा'(1070-1100) टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। कारणे का मत है कि इसकी रचना लगभग विक्रम पूर्व पहली शती से लेकर तीसरी शती के बीच में हुई। स्मृति के अंत:साक्ष्य इसमें प्रमाण है। इस स्मृति का संबंध शुक्ल यजुर्वेद की परंपरा से ही था। इसमें तीन कांड हैं आचार, व्यवहार और प्रायश्चित। इसकी विषय-निरूपण-पद्धति अत्यंत बेहतर है। इसपर विरचित मिताक्षरा टीका हिंदू धर्मशास्त्र के विषय में भारतीय न्यायालयों में प्रमाण मानी जाती रही है। मानव धर्मशास्त्र की रचना प्राचीन धर्मसूत्र युग की सामग्री से हुई, ऐसे ही याज्ञवल्क्य-स्मृति में भी प्राचीन सामग्री का उपयोग करते हुए नएसामग्री को भी स्थान दिया गया। कौटिल्य अर्थशास्त्र की सामग्री से भी याक्ज्ञवल्क्य के अर्थशास्त्र का विशेष साम्य है। वृहदारण्यकोपनिषद-- वृहदारण्यकोपनिषद में याज्ञवल्क्य का यह सिद्धांत प्रतिपादित है कि ब्रह्म ही सर्वोपरि तत्त्व है और अमृत्त्व उस अक्षर ब्रह्म का स्वरूप है। इस विद्या का उपदेश याज्ञवल्क्य ने अपनी पत्नी मैत्रेयी को दिया था। शरीर त्यागने पर आत्मा की गति की व्याख्या याज्ञवल्क्य ने जनक से की। यह भी वृहदारण्यकोपनिषद का विषय है। जनक के उस बहुदक्षिण यज्ञ में एक सहस्र गौओं की दक्षिणा नियत थी जो ब्रह्मनिष्ठ याज्ञवल्क्य ने प्राप्त की। शांतिपर्व के मोक्षधर्म पर्व में याज्ञवल्क्य और जनक (इनका नाम दैवराति है) का अव्यय अक्षर ब्रह्मतत्त्व के विषय में एक महत्त्वपूर्ण संवाद है। उसमें नित्य अभयात्मक ब्रह्मतत्व का अत्यंत स्पष्ट और सुदर विवेचन है। उसके अंत में याज्ञवल्क्य ने जनक से कहा--''हे राजन्, क्षेत्रज्ञ को जानकर तुम इस ज्ञान की उपासना करोगे तो तुम भी ऋषि हो जाओगे। कर्मपरक यज्ञों की अपेक्षा ज्ञान ही श्रेष्ठ है (ज्ञानं विशिष्टं न तथाहि यज्ञा:, ज्ञानेन दुर्ग तरते न यज्ञै:, शांति. 306।105)।''वृहदारण्यक उपनिषद' ,वह भी महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा ही हमें प्राप्त है। यजुर्वेद-- भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार याज्ञवल्क्य ने प्रत्यक्ष देव सूर्य से प्रार्थना की--''हे भगवन! मुझे ऐसे यजुर्वेद की प्राप्ति हो, जो अब तक किसी को न मिली हो।'' भगवान सूर्य ने प्रसन्न हो उन्हें दर्शन दिया और अश्वरूप धारण कर यजुर्वेद के उन मन्त्रों का उपदेश दिया, जो तब तक किसी को प्राप्त नहीं हुए थे। अश्वरूप सूर्य से प्राप्त होने के कारण शुक्ल यजुर्वेद की एक शाखा 'वाजसनेय' और मध्य दिन के समय प्राप्त होने से 'माध्यन्दिन' शाखा के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। भागवत के अनुसार याज्ञवल्क्य ने शुक्ल यजुर्वेद की 15 शाखाओं को जन्म दिया। शुक्ल यजुर्वेद-संहिता के मुख्य मन्त्रद्रष्टा ऋषि आचार्य याज्ञवल्क्य हैं। उन्होंने ही हमें 'शुक्ल यजुर्वेद' दिया है। इस संहिता में चालीस अध्याय हैं। 40 अध्यायों में पद्यात्मक मंत्र और गद्यात्मक यजु: भाग का संग्रह है। इसके प्रतिपाद्य विषय ये हैं- दर्शपौर्णमास इष्टि (1-2 अ0); अग्न्याधान (3 अ0); सोमयज्ञ (4-8 अ0); वाजपेय (9 अ.); राजसूय (9-10 अ.); अग्निचयन (11-18 अ.) सौत्रामणी (19-21 अ.); अश्वमेघ (22-29 अ.); सर्वमेध (32-33 अ.); शिवसंकल्प उपनिषद् (34 अ.); पितृयज्ञ (35 अ.); प्रवग्र्य यज्ञ या धर्मयज्ञ (36-39 अ.); ईशोपनिषत् (40 अ.)। यज्ञीय कर्मकांड का संपूर्ण विषय यजुर्वेद के अंतर्गत आता है। आज प्राय: अधिकांश लोग इस वेद शाखा से ही सम्बद्ध हैं और सभी पूजा, अनुष्ठानों, संस्कारों आदि में इसी संहिता के मन्त्र विनियुक्त होते हैं। 'रुद्राष्टाध्यायी' नाम से जिन मन्त्रों द्वारा भगवान रुद्र (सदाशिव) की आराधना होती है, वे इसी संहिता में विद्यमान हैं। इस प्रकार महर्षि याज्ञवल्क्य का लोक पर महान उपकार है। इस संहिता का जो ब्राह्मण भाग 'शतपथ ब्राह्मण' के नाम से प्रसिद्ध है और जो '4 महत्त्वपूर्ण धर्मशास्त्र का प्रणयन हुआ-- से शास्त्रार्थ-- गार्गी, मैत्रेयी और कात्यायनी आदि ब्रह्मवादिनी नारियों से याज्ञवल्क्य का ज्ञान-विज्ञान एवं ब्रह्मतत्त्व-सम्बन्धी शास्त्रार्थ हुआ। -- महर्षि याज्ञवल्क्य की दो पत्िनयाँ थीं- एक तो महर्षि भरद्वाज की पुत्री कात्यायनी, दूसरी मित्र ऋषि की कन्या मैत्रेयी। मैत्रेयी ब्रह्मवादिनी हुई। शुक्ल पक्ष की पंचमी को महर्षि याज्ञवल्क्य का जन्म हुआ था। यज्ञ में पत्नी सावित्री की जगह गायत्री को स्थान देने पर सावित्री ने ब्रह्मा को शाप दे दिया। वे ही कालान्तर में याज्ञवल्क्य के रूप में चारण ॠषि के यहाँ जन्म लिया। वैदिक मन्त्रद्रष्टा ऋषियों तथा उपदेष्टा आचार्यों में महर्षि याज्ञवल्क्य का स्थान सर्वोपरि है। ये महान अध्यात्मवेत्ता, योगी, ज्ञानी, धर्मात्मा तथा श्रीरामकथा के मुख्य प्रवक्ता थे। भगवान सूर्य की प्रत्यक्ष कृपा इन्हें प्राप्त थी। पुराणों में इन्हें ब्रह्माजी का अवतार बताया गया है। श्रीमद्भागवत में आया है कि ये देवरात के पुत्र थे। याज्ञवल्क्य, वैदिक साहित्य में 'शुक्ल यजुर्वेद' की वाजसनेयी शाखा के द्रष्टा हैं। याज्ञवल्क्य का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य शतपथ ब्राह्मण की रचना है। इनका काल लगभग 1800 ई. पू. माना जाता है। विदेहराज जनक जैसे अध्यात्म-तत्त्ववेत्ताओं के ये गुरु रहे हैं। इन्होंने प्रयाग में भरद्वाज को भगवान श्रीराम का चरित सुनाया। इन्हें ज्ञान हो जाने पर लोग बड़े उत्कट प्रश्न करते थे, तब सूर्य ने कहा- ''जो तुमसे अतिप्रश्न तथा वाद-विवाद करेगा उसका सिर फट जायेगा।'' शाकल्य ॠषि ने उपहास किया तो उनका सिर फट गया।-- याज्ञवल्क्य वेदाचार्य महर्षि वैशम्पायन के शिष्य थे। इन्हीं से उन्हें मन्त्र शक्ति तथा वेद ज्ञान प्राप्त हुआ। वैशम्पायन अपने शिष्य याज्ञवल्क्य से बहुत स्नेह रखते थे और इनकी भी गुरु में अनन्य श्रद्धा एवं सेवा-निष्ठा थी। एक बार गुरु वैशम्पायन से इनका कुछ विवाद हो गया। गुरु रुष्ट हो गये और कहने लगे-- ''मैंने तुम्हें यजुर्वेद के जिन मन्त्रों का उपदेश दिया है, उन्हें तुम वमन कर दो।'' निराश हो याज्ञवल्क्य ने सारी वेद मन्त्र विद्या मूर्तरूप में उगल दी, जिन्हें वैशम्पायन के दूसरे अन्य शिष्यों ने तीतर पक्षी बनकर श्रद्धापूर्वक ग्रहण कर लिया और वे सुरम्य वेद मन्त्र उन्हें प्राप्त हो गये। यजुर्वेद की वही शाखा जो तीतर बनकर ग्रहण की गयी थी, 'तैत्तिरीय उपनिषद्' के नाम से प्रसिद्ध हुई। याज्ञवल्क्य ने वाष्कल मुनि से ॠगवेद संहिता और वैशम्पायन के रुष्ट होने पर भगवान सूर्य से यजुर्वेद संहिता पढ़ी।
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