शनिवार, 25 अक्टूबर 2014

छठ व्रत की हैं अनेक कथाएँ / CHHATH

-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान सूर्य की आराधना के महापर्व छठ से कई कथाएँ जुड़ी हैं। छठ भारत की पारंपरिक पूजन विधियों में से एक है और सबसे कठिन व्रतों में भी एक है। चार दिन के छठ व्रत से जुड़ी अनेक कथाएँ भी लोकमानस में प्रचलित हैं। मार्कण्डेय पुराण में आये उल्लेख के अनुसार, सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने को छः भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जाना जाता है। वह ब्रह्मा की मानसपुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छः दिनों के बाद भी इसी देवी की पूजा और आराधना कर बच्चे के स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने की कामना की जाती है। यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।

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द्रौपदी ने भी रखा था व्रत---
एक श्रुत कथा के अनुसार, जब पाण्डव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया और पाण्डवों की मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं। पाण्डवों को अपना राजपाट वापस मिल गया। छठ का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। 
वर्ष में दो बार---
छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र में मनाये जानेवाले छठ को ‘चैती छठ’ और कार्तिक में मनाये जानेवाले छठ को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है।
सदियों से चली आ रही है परम्परा---
छठ की परम्परा सदियों से चली आ रही है। एक मान्यता के अनुसार, प्रियव्रत नाम के राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के फलस्वरुप महारानी ने एक शिशु को जन्म दिया पर वह मृत था। इससे पूरे नगर में शोक की लहर दौड़ गयी। तब एक आश्चर्यजनक घटना घटी। आकाश से एक देवी जमीन पर उतरीं और उन्होंने कहा- ‘‘मैं देवी षष्ठी हूँ और समस्त बालिकाओं की रक्षिका हूँ।’’ इसके बाद देवी ने शिशु को स्पर्श किया और बालक जीवित हो उठा। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में यह पर्व मनाने की घोषणा कर दी।
षष्ठी देवी हैं छठी मैया---
षष्ठी देवी का विवाह भगवान शिव व भगवती पार्वती के प्रथम पुत्र कार्तिक से हुआ। वह पंचत्त्व से इतर छठे तत्त्व से उत्पन्न हुईं, अतः उन्हें षष्ठी देवी कहा जाता है। छठ के गीतों में इन्हें छठी मैया के रूप में याद किया जाता है और सूर्य के साथ स्वतः ही इनकी भी पूजा हो जाती है।


झारखंड और जम्मू-कश्मीर में 25 नवंबर से 5 चरणों में विधानसभा चुनाव / Assembly Election in Jharkhand & Jammu-Kashmir-2014

-Sheetanshu Kumar Sahayचुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान कर दिया है। दोनों राज्यों में मतदान 5 चरणों में होंगे। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने दिल्ली की तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का एलान भी किया है। यहां 25 नवंबर को मतदान होंगे। इसके साथ ही दोनों राज्यों में आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लागू हो गई है। चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने शनिवार को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस ने मतदान की तारीखों की घोषणा की। इसके मुताबिक, दोनों राज्यों में 25 नवंबर, 2 दिसंबर, 9 दिसंबर, 14 दिसंबर और 20 दिसंबर को मतदान होंगे जबकि मतगणना 23 दिसंबर को होगी। झारखंड विधानसभा का कार्यकाल 3 जनवरी 2015 को खत्म हो रहा है जबकि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा 19 जनवरी तक है। जम्मू-कश्मीर में 72 लाख वोटर्स हैं जिनके लिए 10015 मतदान केंद्र बनाए जाएंगे। वहीं झारखंड में दो करोड़ सात लाख मतदाता हैं, जो 24648 मतदान केंद्रों पर वोट डाल पाएंगे। दोनों राज्यों में काँग्रेस समर्थित सरकारें हैं।
अब तक की स्थिति---
जम्मू-कश्मीर में फिलहाल नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास सबसे ज्यादा 28 सीटें हैं। पीडीपी 21 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है और काँग्रेस के पास 17 सीटें हैं। 10 सीटें अन्यों के पास हैं। राज्य में 6 साल तक नेशनल कॉन्फ्रेंस और काँग्रेस के गठबंधन की सरकार रही। 2008 में जम्‍मू-कश्‍मीर की 87 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। नेशनल कॉन्‍फ्रेंस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। एनसी ने काँग्रेस के समर्थन से राज्‍य में उमर अब्‍दुल्‍ला के नेतृत्‍व में सरकार बनाई जबकि झारखंड में विधानसभा की 81 सीटें हैं। 2009 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 18-18 सीटें मिलीं जबकि काँग्रेस की झोली में 13 सीटें आईं और 20 सीटें अन्य को मिलीं। झारखंड में इस समय जेएमएम के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार है, जिसे काँग्रेस का समर्थन हासिल है।
आरक्षित सीटें---
झारखंड में 9 अनुसूचित जाति के लिए और 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इसी तरह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजाति का आरक्षण नहीं है।
दिल्ली विधानसभा चुनावों का संकेत नहीं---
चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर कोई संकेत नहीं दिया है, बल्कि इसके स्थान पर तीन रिक्त हो चुकी विधानसभा सीटों महरौली, तुगलकाबाद और कृष्णानगर में उपचुनाव की तारीख घोषित की गई है। स्पष्ट है कि अभी दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने के आसार नहीं है। बता दें कि दिल्ली विधानसभा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 3 नवंबर को सुनवाई होनी है, साथ ही उपराज्यपाल नजीब जंग ने भी अपना मत नहीं दिया है। माना जा रहा है कि आयोग इसी का इंतजार कर रहा है। 
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी---
जम्‍मू-कश्‍मीर घाटी में पहली बार बीजेपी पूरी ताकत से चुनाव में उतर रही है। बाढ़ आने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने साफ कर दिया था कि उनके लिए घाटी में सरकार बनाना पहला उद्देश्य है।  बीजेपी मिशन-44 को मकसद लेकर चल रही है ताकि अपनी सरकार बना सके। दूसरी ओर, इस बार काँग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, जिसका फायदा बीजेपी को हो सकता है। उसकी नजर जम्मू और लद्दाख की 37 सीटों पर है। हालांकि लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने राज्य में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। उसे 6 सीटों में से तीन पर जीत हासिल हुई है। 87 सीटों वाली मौजूदा विधानसभा में उसके 11 विधायक हैं।

झारखंड विधानसभा चुनाव कार्यक्रम---
पहला चरण-
29 अक्टूबर को अधिसूचना जारी
5 नवंबर तक नामांकन करने की तिथि
25 नवंबर को चुनाव  
दूसरा चरण- 
7 नवंबर को अधिसूचना
14 नवंबर तक नामांकन 
15 को स्क्रूटनी
17 नाम वापस लेने की अंतिम तिथि 
2 दिसंबर को चुनाव
तीसरा चरण-
14 नवंबर अधिसूचना
21 नवंबर नामांकन की अंतिम दिन 
22 डेट ऑफ स्क्रूटनी
9 दिसंबर को चुनाव
चौथा चरण- 
19 नवंबर को अधिसूचना
26 नवंबर नामांकन का लास्ट डेट
27 नवंबर को स्क्रूटनी
29 नवंबर नाम वापसी का अंतिम दिन 
14 दिसंबर को चुनाव
पाँचवाँ चरण-
26 नवंबर अधिसूचना
3 दिसंबर नामांकन का अंतिम दिन
4 दिसंबर स्क्रूटनी
6 दिसंबर नाम वापस लेने का अंतिम दिन
20 दिसंबर को चुनाव

भगवान चित्रगुप्त हैं यमराज के आलेखक, ऐसे प्रकट हुए चित्रगुप्त / BHAGWAN CHITRAGUPTA



-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान चित्रगुप्त ब्रह्माजी के 17वें और अंतिम मानसपुत्र हैं। यम द्धितीया को भैयादूज भी कहते हैं। इस दिन बहनों को अपने भाई को हाथ से भोजन कराने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि बहन अगर भाई को भोजन कराती है तो उसकी उम्र बढ़ने के साथ जीवन के कष्ट भी दूर होते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्धितीया के दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना के घर भोजन किया था, अतः इस तिथि को यम द्धितीया कहते हैं। भैयादूज के दिन ही चित्रगुप्त की पूजा के साथ ही कमल दवात और पुस्तकों की पूजा की जाती है। एक बार युधिष्ठिरजी भीष्मजी से बोले- हे पितामह! आपकी कृपा से मैंने धर्मशास्त्र सुने, परन्तु यमद्वितीया का क्या पुण्य है, क्या फल है यह मैं सुनना चाहता हूँ। आप कृपा करके मुझे विस्तारपूर्वक कहिए। भीष्मजी बोले- तूने अच्छी बात पूछी। मैं उस उत्तम व्रत को विस्तारपूर्वक बताता हूँ। कार्तिक मास के उजले और चैत्र के अँधेरे की पक्ष जो द्वितीया होती है, वह यमद्वितीया कहलाती है। युधिष्ठिरजी बोले- उस कार्तिक के उजले पक्ष की द्वितीया में किसका पूजन करना चाहिए और चैत्र महीने में यह व्रत कैसे हो, इसमें किसका पूजन करें?


भीष्मजी बोले- हे युधिष्ठिर, पुराण संबंधी कथा कहता हूँ। इसमें संशय नहीं कि इस कथा को सुनकर प्राणी सब पापों से छूट जाता है। सतयुग में नारायण भगवान्‌ से, जिनकी नाभि में कमल है, उससे चार मुँह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए, जिनसे वेदवेत्ता भगवान्‌ ने चारों वेद कहे। नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत्‌ को शीघ्र रचो। हरि के ऐसे वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनुजी को पैदा किया। इनके बाद दक्ष प्रजापतिजी को पैदा किया और तब उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने को कहा। दक्ष प्रजापतिजी से 60 कन्या उत्पन्न हुई, जिनमें से 10 धर्मराज को, 13 कश्यप को और 27 चंद्रमा को दीं। कश्यपजी से देव, दानव, राक्षस इनके सिवाय और भी गंधर्व, पिशाच, गो और पक्षियों की जातियाँ पैदा हुईं।
धर्मराज को धर्म प्रधान जानकर सबके पितामह ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अधिकार दिया और धर्मराज से कहा कि तुम आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कर्म किए हैं, उसी प्रकार न्यायपूर्वक वेद शास्त्र में कही विधि के अनुसार कर्ता को कर्म का फल दो और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो। ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुद्धिमान धर्मराज ने हाथ जोड़कर सबके परम पूज्य ब्रह्माजी को कहा- हे प्रभो! मैं आपका सेवक निवेदन करता हूँ कि इस सारे जगत के कर्मों का विभागपूर्वक फल देने की जो आपने मुझे आज्ञा दी है, वह एक महान कर्म है। आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैं यह काम करूँगा कि जिससे कर्त्ताओं को फल मिलेगा, परन्तु पूरी सृष्टि में जीव और उनके देह भी अनन्त हैं। देशकाल ज्ञात-अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनन्त हैं। उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अतः मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूँगा, इसलिए मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, शीघ्रकारी, लेख कर्म में विज्ञ, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।
धर्मराज की इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक किए हुए कथन को विधाता सत्य जान मन में प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूर्ण करने की चिंता करने लगे कि उक्त सब गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना चाहिए। उसके बिना धर्मराज का मनोरथ पूर्ण न होगा। तब ब्रह्माजी ने कहा- हे धर्मराज! तुम्हारे अधिकार में मैं सहायता करूँगा। इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने 11 हजार वर्ष तक तपस्या की। जब समाधि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख की सी गर्दन, गूढ़ शिर, चंद्रमा के समान मुख वाले, कलम, दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देख उसे पूछ कि तू कौन है? तब उसने कहा- ''हे प्रभो! मैं माता-पिता को तो नहीं जानता, किन्तु आपके शरीर से प्रकट हुआ हूँ, इसलिए मेरा नामकरण कीजिए और कहिए कि मैं क्या करूँ?'' ब्रह्माजी ने उस पुरुष के वचन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हँसकर कहा- ''तू मेरी काया से प्रकट हुआ है, इससे मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है, इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। धर्मराज के पुर में प्राणियों के शुभाशुभ कर्म लिखने में उसका तू सखा बने, इसलिए तेरी उत्पत्ति हुई है।''  भगवान चित्रगुप्त को ब्रह्माजी ने भगवती की तपस्या कर आशीर्वाद पाने की सलाह दी। ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त से यह कहकर धर्मराज से कहा- ''हे धर्मराज! यह उत्तम लेखक तुझको मैंने दिया है जो संसार में सब कर्मसूत्र की मर्यादा पालने के लिए है।'' इतना कहकर ब्रह्माजी अन्तर्ध्यान हो गए।
चित्रगुप्त कोटि नगर को जाकर चण्ड-प्रचण्ड ज्वालामुखी कालीजी के पूजन में लग गये। उपवास कर उन्होंने भक्ति के साथ चण्डिकाजी की भावना मन में की। उसने उत्तमता से चित्त लगाकर ज्वालामुखी देवी का जप और स्तोत्रों से भजन-पूजन और उपासना इस प्रकार की- ''हे जगत्‌ को धारण करने वाली! तुमको नमस्कार है, महादेवी! तुमको नमस्कार है। स्वर्ग, मृत्यु, पाताल आदि लोक-लोकान्तरों को रोशनी देने वाली, तुमको नमस्कार है। सन्ध्या और रात्रि रूप भगवती तुमको नमस्कार है। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली सरस्वती तुमको नमस्कार है। सत, रज, तमोगुण रूप देवगणों को कान्ति देने वाली देवी, हिमाचल पर्वत पर स्थापित आदिशक्ति चण्डी देवी तुमको नमस्कार है।'' तपस्या पूर्ण होने पर देवताओं और ऋषियों के साथ ब्रह्माजी आशीर्वाद देने पहुँचे। ब्रह्माजी ने उन्हें अमर होने का वरदान दिया। यमराज के आलेखक भगवान चित्रगुप्त की पूजा आश्विन शुक्ल पक्ष द्धितीया को की जाती है।
चित्रगुप्त का विवाह क्षत्रिय वर्ण के विश्वभान की पुत्र श्राद्धदेव मुनि की कन्या नन्दिनी से हुआ। इनका दूसरा विवाह ब्राह्मण वर्ण के कश्यप ऋषि के पोते सुशर्मा की पुत्री इरावती से हुआ। इनके 12 पुत्र हुए जिनके वंशज इन दिनों कायस्थ की 12 उपजातियों के रूप में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में वास करते हैं।

यमराज के साथ रहकर चित्रगुप्त मनुष्य के जीवन-मरण और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्धितीया (यम द्वितीया) को कलम व दवात की पूजा होती है। यह कायस्थों की सबसे बड़ी पूजा है। वर्ष 2014 का चित्रगुप्त पूजा 25 अक्तूबर को है। आप सबको चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ!

बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

दीपावली में महालक्ष्म्यष्टकम् का पाठ / Read Mahālakshmyashtakam on Deepawali


-शीतांशु कुमार सहाय
देवराज इंद्र ने देवी महालक्ष्मी की स्तुति की। वह स्तोत्र 'महालक्ष्म्यष्टकं' जन कल्याण के लिए विख्यात हुआ। महालक्ष्मी की दृष्टि मात्र पड़ जाने से व्यक्ति श्री युक्त हो जाता है। प्रत्येक को इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करके प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए। दीपावली के पावन अवसर पर आप भी धन व ऐश्वर्य की अधिठात्री देवी लक्ष्मी की आराधना के दौरान महालक्ष्म्यष्टकम् का सस्वर पाठ करें और माता की कृपा प्राप्त करें।

महालक्ष्म्यष्टकम्

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 1।।
नमस्ते गरूडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 2।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 3।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 4।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 5।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 6।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि‍।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 7।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 8।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।। 9।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः।। 10।।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।। 11।।

|| इति इन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् ||

आयी दीपावली : जलाइये प्यार का दीया / Deepawali came : Lamp The Lamp of Love



-शीतांशु कुमार सहाय

ह्रीं बीज मंत्र में वास करनेवाली माता धनेश्वरी अपने धनाध्यक्ष कुबेर के साथ आप पर अनवरत् भौतिक-अभौतिक ऐश्वर्यवर्षण करती रहें- हृदय की यही पुकार, हो आप को स्वीकार! दीपावली की असीम शुभकामनाएँ!

दिन गिनते-गिनते फिर बीत ही गया पूरा एक वर्ष। उड़ान की बात तो दूर, सोच ने पर फड़फड़ाये भी नहीं और पुनः आ गयी दीपावली। क्या-क्या सोचा था मगर कुछ हुआ नहीं! कुछ हुए भी तो आधे-अधूरे! कुछ तो सोच की परिधि से बाहर आ भी न सके! कुछ हसरतें तो सोच की धरातल पर भी नहीं आये! यदि आपके साथ ऐसा हुआ है तो यकीन मानिये कि आपके हाथ से सफलताएँ लगातार फिसल रही हैं। जब असफलताएँ हाथ लगती रहेंगी तो तमाम पर्व-त्योहारों का मजा आता नहीं, मजा किरकिरा हो जाता है। किरकिराते मजे का समूल बदलने की शक्ति वास्तव में मनुष्य के हाथों में है। बस, करना यही है कि दिल से प्यार का एक दीया जलाना है। इसके उजियारे में उन हसरतों के सिलसिले को सजाना है; ताकि उस फेहरिश्त पर नजर पड़ते ही याद ताजा हो जाये। ऐसा करने से तमाम हसरतें नतीजे के मुकाम तक अवश्य ही पहुँचेंगी।

दीपावली कब से और क्यों मनायी जाती है, इस बिन्दु पर मतैक्य नहीं है। उस मतभिन्नता में पड़ने के बदले कीजिये वही जो आपको अच्छा लगता है। जरूरी नहीं कि जो एक को पसन्द है वही दूसरे को भी पसन्द हो। लिहाजा अपनाइये वही जिससे औरों को हानि न हो। निश्चय ही वही कार्य सराहनीय है जिसे समाज भी सराहे, जिससे किसी का दिल न दुखाये। पर, अफसोस यही है कि इन दिनों वही ज्यादा हो रहा है जिसे अधिकतर लोग पसन्द नहीं करते हैं। समाज के कथित अगुआ व्यक्ति उन कार्यों को अंजाम दे रहे हैं जो हर किनारे से आलोचित होते हैं, निन्दित होते हैं। यहाँ किसी का नाम लेना उचित नहीं है। पर, इतना तो कहना ही पड़ेगा कि लोकतन्त्र में तन्त्र से जुड़े अधिकतर लोग वही कर रहे हैं जो लोक यानी जनता को पसन्द नहीं, उनके कार्यों से लोकोपकार कम, लोकापकार अधिक हो रहा है। हम यहाँ तन्त्र से नहीं, लोक से मुखातिब हैं कि करें वही जो लोकोपकारी हो। चूँकि वर्तमान दौर पूर्णतः व्यावसायिक है, लिहाजा हर क्षेत्र को व्यवसाय से जोड़कर देखा जाता है। इस व्यावसायिक नजरिये का अपवाद पर्व-त्योहार भी नहीं हैं। दीपावली को भी व्यवसायियों ने अपने हित में उपयोग किया है, परम्परा में व्यावसायिकता को जोड़ दिया है। तभी तो दीपावली के पावन अवसर पर पटाखे छोड़ने की प्रदूषणयुक्त परम्परा को शामिल किया है। यदि समुद्र मन्थन में लक्ष्मी प्रकट हुईं तो दीप जलाकर देवों द्वारा उनके स्वागत की बातें ग्रन्थों में मिलती हैं मगर पटाखे छोड़ने की कला का प्रदर्शन देवताओं ने नहीं किया था। अगर भगवान राम से दीपावली को जोड़ें तो उनके वनवास से लौटने पर अयोध्यावासियों के दीपोत्सव के बीच कहीं विस्फोट की बातों का जिक्र नहीं मिलता। तेज पटाखों को छोड़ने से पूर्व आस-पड़ोस के किसी हृदय रोगी या किसी अन्य बीमार की राय ले लें। इसी तरह कम आवाज वाले पटाखों में आग लगाने से पूर्व किसी बच्चे से पूछें। दोनों स्थितियों में पता यही चलता है कि आपका व्यवहार उनके लिए क्षतिकारक है।

दरअसल, दीपावली को कई नजरिये से देखा जाता है। सबके नजरिये पृथक हो सकते हैं। यदि जेब गर्म हो तो वर्ष में एक दिन नहीं पूरे वर्ष की हर रात दीपावली व हर दिन होली ही है। पर, उस देश में जहाँ की एक-चौथाई आबादी को दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल पाता, वहाँ रुपये में आग लगाना उन दुखियों का मखौल उड़ाना ही तो है। जरूरी नहीं कि 100 दीये ही जलाएँ, एक ही दीया जलाइये, पूरे मन से, दिल से और पूरे वर्ष वैसों के साथ प्यार का दीया जलाइये जो आपके खर्च की सीमा का कभी अन्दाज भी नहीं लगा पाते। प्यार का एक दीया केवल घर को ही नहीं, समाज को रौशन करेगा! ...तो कीजिये दीपावली एंज्वाय और माता धनेश्वरी का इस मंत्र से आराधना करें-
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते।।

सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

झारखंड : विधानसभा चुनाव-2014 में तबाही मचाने का षड्यन्त्र नाकाम, माओवादी मुखलाल धराया, हथियारों का और विस्फोटक का जखीरा बरामद



 -शीतांशु कुमार सहाय
भाकपा माओवादी के उत्तरी छोटनागपुर जोनल कमेटी के सदस्य मुखलाल महतो उर्फ मोछू उर्फ भगत (30) को सोमवार राँची में सोमवार 13 अक्तूबर 2014 को पुलिस ने मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया। डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि गुप्त सूचना मिली थी कि कुख्यात नक्सली राममोहन और मुखलाल महतो अपने हथियार बंद दस्ते के साथ सिल्ली के जंयतीबेड़ा स्थित जुमला में बैठक करने वाले है। श्री कुमार ने बताया कि सूचना के बाद ऑपरेशन स्वर्णरेखा चलाया गया। दस्ता जुमला स्थित नयाकोचा में शनिवार 11 अक्तूबर की रात बैठक कर रहा था। सूचना के बाद रविवार को सुबह 4.30 बजे जैसे ही पुलिस टीम पहुंची। पहाड़ से नक्सलियों ने फायरिंग शुरु कर दी। पुलिस ने भी जबावी फायरिंग शुरु की। नक्सली फायरिंग करते हुए अंधेरे और झाड़ी का फायदा उठाकर भागने लगे। इसी दौरान एक नक्सली को पकड़ा गया। उसने पूछताछ में अपना नाम मुखलाल बताया। पूछताछ में उसने बताया कि विधानसभा में मतदान को प्रभावित करने और पुलिस पार्टी पर हमले की योजना थी।
संवाददाता सम्मेलन में जानकारी देते आरक्षी महानिदेशक राजीव कुमार

डीजीपी ने बताया कि ऑपरेशन के दौरान हथियारों का जखीरा बरामद किया गया है। उन्होंने बताया कि मुखलाल बोकरो, रामगढ़, सिल्ली, गिरिडीह में सक्रिय था। इसके खिलाफ 50 से अधिक मामले विभिन्न थानों में दर्ज है। टीम स्वर्णरेखा में एसपी ग्रामीण सुरेन्द्र कुमार झा, एएसपी हर्षपाल सिंह, सीआरपीएफ के आर के मिश्रा, दिलीप कुमार सिंह, अंशुमन नीलरत्न सहित झारखंड जगुआर तथा अन्य सशस्त्र बल शामिल थे। प्रेस कांफ्रेस में झारखंड के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती, एडीजी केएस मीणा, आइजी सह प्रवक्ता अनुराग गुप्ता, आइजी एमएम भाटिया, डीआइजी प्रवीण कुमार, एसएसपी प्रभात कुमार सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।
संवाददाता सम्मेलन के दौरान फुर्सत के क्षण में सजल चक्रवर्ती ने ली चाय की चुस्की

हथियारों का जखीरा बरामद---
डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि मुखलाल की निशानदेही पर राँची के सिल्ली से दो रायफल, 110 गोली, तीन ग्रेनेड, 40 पीस जिलेटीन, 4 पीस डेटोनेटर, एक मोबाइल, 11 गोली, 15 विभिन्न हथियारों की गोलियों का खोखा, 8 मोबाइल चार्जर, एक केन, 10 मीटर तार, नक्सली साहित्य, रसीद, दैनिक उपयोग के सामान बरामद किये गये। डीजीपी ने बताया कि मुखलाल की निशानदेही पर ही बोकारो के महुआटांड थाना क्षेत्र के असनापानी की पहाड़ी और जंगल क्षेत्र से सर्च करने पर एक एके 47, 54 जिंदा केन बम, 100 डेटोनेटर, 14 क्लेमोर मांइस, 16 केन, एक स्ट्रील ड्रम, 9 स्वीच बम बनाने के सामान और उपकरण बरामद किये गये है। उन्होंने बताया कि बोकारों के कसमार थाना क्षेत्र के तिरियोनाला पहाड़ी व जंगल से 4 केन बम, 7 कोडेक्स वायर, विद्युत तार, एक पाइप बम बरामद किया गया है। उन्होंने बताया कि अन्य बताये ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है।
2 लाख रुपये का चेक देते मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती
टीम को दिया 2 लाख का ईनाम---
डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि टीम में शामिल पुलिसकर्मियों को दो लाख रुपये नकद दिये गये। रुपये मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती ने सभी अधिकारियों को दिये। श्री कुमार ने बताया कि नक्सलियों के मूवमेंट की सूचना देने वाले को 50 हजार रुपये नकद इनाम दिया गया।

परिस्थिति अनोखी टीम बना देती है, टीम इतिहास बना देती है : सजल

झारखंड के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती ने कहा कि परिस्थिति अनोखी टीम बना देती है। टीम इतिहास बना देती है। श्री चक्रवर्ती पुलिस मुख्यालय में चल रहे प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पहुँचे थे। उन्होंने कहा कि राँची की पुलिस टीम में एसपी ग्रामीण सुरेन्द्र कुमार झा, एएसपी अभियान हर्षपाल सिंह ने राज्य पुलिस में अनोखी पहचान बनायी है। कुछ दिनों पहले कुख्यात नक्सली प्रसाद जी को भी गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने टीम की सराहना की। मुख्य सचिव ने राज्य में शहीद पुलिसकर्मियों के लिए शहीद स्मारक बनाये जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आगामी 19 अक्तूबर को पुलिस शहीद समारोह के आयोजन में बेहतर थीम के साथ काम किया जाना चाहिए।
मुखलाल ने इन घटनाओं को दिया था अंजाम---
2014 में बोकारो के लुगु घाटी में लोकसभा चुनाव में पुलिस वाहन को विस्फोट कर उड़ाना।
झुमरा पहाड़ के समीप पन्दना टांड के पास पुलिस जीप को विस्फोट कर उड़ाना।
2014 अगस्त में महुआटांड के चौकीदार की हत्या।
2009 में बोकारो के पंचमों के चौकीदार रामधनी गंझू की हत्या।
2009 में बोकारो में राहावान के बंधु महतो की हत्या।
चुरचु के टुटकी गांव में डिलु महतो की हत्या।
रामगढ़ के गोला में जोभिया गांव में वाहनों को जलाना।
रामगढ़ के गोला के खाखरा में वाहनों को जलाना।
अनगड़ा के हापादाग के जंगल में पुलिस पर हमला।

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी : नोबेल शांति पुरस्कार-2014 विजेता की प्रमुख बातें / Social Worker Kailash Satyarthi : Nobel Peace Prize-2014 Winner's Main Points


मलाला यूसुफजई और कैलाश सत्यार्थी

-शीतांशु कुमार सहाय
भारत के सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को वर्ष 2014 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से देने की घोषणा की गई। सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है और नोबल पुरस्कार पाने वाले सातवें भारतीय हैं। कैलाश सत्यार्थी बच्चों के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो सालों से बाल अधिकार के लिए संघर्षरत हैं। कैलाश सत्यार्थी के बारे में प्रमुख बातें---
(1.) कैलाश का जन्म मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को हुआ था।
(2.) कैलाश सत्यार्थी ने वर्ष 1980 में बालश्रम के खिलाफ 'बचपन बचाओ आंदोलन' की स्थापना की। उनका यह संगठन अब तक 80,000 से ज़्यादा बच्चों को बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और बालश्रम के चंगुल से छुड़ा चुका है।

(3.) गैर-सरकारी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं की सहायता से कैलाश सत्यार्थी ने हज़ारों ऐसी फैकटरियों तथा गोदामों पर छापे पड़वाए, जिनमें बच्चों से काम करवाया जा रहा था। बाल श्रमिकों को छुडाने के दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए हैं। दिल्ली की एक कपड़ा फैक्ट्री में 17 मार्च 2011 को छापे के दौरान उन पर हमला किया गया था। इससे पहले 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुडाने के दौरान उन पर हमला हुआ। ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के रूप में उनकी संस्था लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय है। दिल्ली एवं मुंबई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्टरियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओडिशा और झारखंड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बंधुआ मजदूर के रूप में नियोजित बच्चों को बचाया। उन्होंने बाल तस्करी एवं मजदूरी के खिलाफ कड़े कानून बनाने की वकालत की और अभी तक उन्हें मिश्रित सफलता मिली है। बाल मित्र ग्राम वह मॉडल गांव है जो बाल शोषण से पूरी तरह मुक्त है और यहां बाल अधिकार को तरजीह दी जाती है। 2001 में इस मॉडल को अपनाने के बाद से देश के 11 राज्यों के 356 गांवों को अब तक बाल मित्र ग्राम (चाइल्ड फ्रेंडली विलेज) घोषित किया जा चुका है। इन गांवों के बच्चे स्कूल जाते हैं, बाल पंचायत, युवा मंडल और महिला मंडल में शामिल होते हैं और समय-समय पर ग्राम पंचायत से बाल समस्याओं के संबंध में बातें करते हैं। ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ बाल मित्र ग्राम में 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त, व्यापक और स्तरीय शिक्षा के साथ ही लड़कियां स्कूल न छोड़ें, इसलिए स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं मौजूद हों यह सुनिश्चित करती है।
(4.) कैलाश सत्यार्थी ने 26 साल की उम्र में अपना इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का पेशा छोड़कर बच्चों के अधिकारों के लिए काम करना शुरू किया था। 
(5.) कैलाश सत्यार्थी ने 'रगमार्क' (Rugmark) की शुरुआत की, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि तैयार कारपेट (कालीनों) तथा अन्य कपड़ों के निर्माण में बच्चों से काम नहीं करवाया गया है। इस पहल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में काफी सफलता मिली। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ के लिए बच्चों के शोषण के खिलाफ काम करना था।
(6.) कैलाश सत्यार्थी ने विभिन्न रूपों में प्रदर्शनों तथा विरोध-प्रदर्शनों की परिकल्पना और नेतृत्व को अंजाम दिया, जो सभी शांतिपूर्ण ढंग से पूरे किए गए।
(7.) कैलाश सत्यार्थी यूनेस्को के सदस्य भी रहे हैं।
(8.) वे नई दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में पत्नी सुमेधा, उनकी बेटी, बेटा और बहू शामिल हैं। उनके साथ उनकी संस्था 'बचपन बचाओ आंदोलन' द्वारा बचाए गए बच्चे भी रहते हैं।
(9.) नोबेल से पहले उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिल चुके हैं। इसमें 2009 में यूएस का डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड, 2008 में स्पेन का एलफोंसो कामिन इंटरनेशनल अवार्ड, 2007 में मेडेल ऑफ इटेलियन सीनेट अवार्ड और फ्रीडम अवार्ड, रॉबर्ट एफ. केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (अमेरिका) और फ्रेडरिक एबर्ट इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (जर्मनी) शामिल हैं। इसके साथ ही 2007 में ही यूस लिस्ट ऑफ 'हीरोज एक्टिंग टू एंड मार्डन डे स्लेवरी' में सत्यार्थी का नाम शामिल किया गया था।
(10.) उन्हें 10 दिसंबर 2014 को यह पुरस्कार नार्वे की राजधानी ओस्लों में दिया जाएगा। इस पुरस्कार के साथ 12 करोड़ डॉलर (7,35,54,00,000 रुपये) की धनराशि भी दी जाएगी।
(11.) साल 2014 का शांति के लिए नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को बच्चों एवं युवाओं के दमन के खिलाफ और बच्चों की शिक्षा की दिशा में काम करने के लिए दिया गया है।
(12.) मदर टेरेसा (1979) के बाद कैलाश सत्यार्थी सिर्फ दूसरे भारतीय हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है।
(13.) कैलाश सत्यार्थी ने नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में खुशी जताई। उन्होंने कहा, ''मैं काफी खुश हूं। यह बाल अधिकारों के लिए हमारी लड़ाई को मान्यता है। मैं इस आधुनिक युग में पीड़ा से गुजर रहे लाखों बच्चों की दुर्दशा पर काम को मान्यता देने के लिए नोबेल समिति का शुक्रगुजार हूं।'' 
(14.)  कैलाश सत्यार्थी का अधिकांश कार्य राजस्थान और झारखंड के गांवों में होता है।
(15.) उनके बारे में जानने की लोगों की दिलचस्पी का आलम यह है कि उनकी वेबसाइट पुरस्कार की घोषणा के पाँच मिनट के भीतर ही क्रैश हो गई। पुरस्कार की घोषणा के चंद मिनटों के भीतर ही कैलाश सत्यार्थी ट्विटर पर टॉप ट्रेंड्स में भी कुछ देर शामिल रहे।
(16.) भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने बधाई संदेश में कहा है कि इस पुरस्कार को बाल श्रम जैसी जटिल सामाजिक समस्या के समाधन में भारत के नागरिक समाज के योदान को मान्यता देने और देश से बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने में सरकार के साथ सहयो की उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफ़ज़ई को नोबेल जीतने पर बधाई दी। उन्होंने इसके लिए ट्विटर का सहारा लिया। मोदी ने लिखा, "इस उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है। कैलाश सत्यार्थी ने ऐसे उद्देश्य के लिए पूरा जीवन लगाया है जो पूरी मानवता के लिए अहम है। मैं उनके प्रयासों के लिए उन्हें सलाम करता हूँ।" मोदी ने मलाला को भी बधाई देते हुए लिखा, "मलाला यूसुफ़ज़ई का जीवन धैर्य और साहस की यात्रा है। मैं उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार जीतने पर बधाई देता हूँ।"
(17.) कैलाश इस समय वह ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (बाल श्रम के खिलाफ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं। सत्यार्थी संस्था की वैश्विक सलाहकार परिषद से भी जुड़े रहे हैं। इस संस्था में दुनिया के भर के एनजीओ, शिक्षक और ट्रेड यूनियनें काम करती हैं, जो शिक्षा के लिए ग्लोबल कैंपेन भी चलाती हैं।
(18.) अब तक इन भारतीयों को मिले नोबेल पुरस्कार--- बाल श्रम उन्मूलन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कैलाश सत्यार्थी प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले 8वें और शांति के क्षेत्र में यह पुरस्कार पाने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं। इससे पहले यह पुरस्कार जिन भारतीयों को दिए गए हैं वे हैं---
रवींद्र नाथ टैगोर- 1913 - साहित्य
सीवी रमण- 1930 - भौतिक विज्ञान
हरगोविंद खुराना- 1968 - चिकित्सा औषधि
मदर टेरेसा - 1979 - शांति
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर - 1983 - भौतिक विज्ञान
अमर्त्य सेन - 1998 - अर्थशास्त्र
वी रामकृष्णन - 2009 - रसायन शास्त्र

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त संपादकीय / Joint Editorial By U.S. President Barack Obama and Indian PM Narendra Modi



अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से पीएम नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद आज दोनों नेताओं ने संयुक्त संपादकीय जारी किया। ये संपादकीय वॉशिंगटन पोस्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ। पीएम नरेंद्र मोदी और बराक ओबामा द्वारा संयुक्त रूप से लिखा गया पूरा संपादकीय पढ़ें-

राष्ट्रों के रूप में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका लोकतंत्र, स्वतंत्रता, विविधता एवं उद्यम के प्रति राष्ट्रों के रूप में प्रतिबद्ध हैं और सामान्य मूल्य और परस्पर हितों से जुड़े हैं। हमने मानव इतिहास के पथ में राष्ट्र को सकारात्मक आकार दिया है और आने वाले सालों में साझा कोशिशों से हमारी स्वभाविक और अनोखी साझेदारी अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति को आकार देने में सहायता कर सकती है।

संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत का मूल न्याय और समानता के लिए अपने नागरिकों की साझी इच्छा में है। 1893 में शिकागो में विश्व धर्मसंसद में स्वामी विवेकानंद ने हिन्दुत्व को विश्व धर्म के रूप में प्रस्तुत किया। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने जब अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के साथ भेदभाव और पूर्वाग्रह समाप्त करने की ठानी तब वे महात्मा गांधी की अहिंसा की शिक्षा से प्रेरित थे। गांधी स्वयं हेनरी डेविड थ्यो‍रो की लेखनी से प्रेरित थे।

राष्ट्रों के रूप में हमने लोकहित के लिए दशकों तक साझेदारी की है। भारत की जनता हमारे सहयोग के मजबूत स्तंभ के रूप में याद करती है। हमारे सहयोग के अनेक उदाहरणों में खाद्यान उत्पादन की हरित क्रांति व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान हैं।

आज हमारी साझेदारी सुदृढ़, विश्वसनीय एवं स्थायी है और यह बढ़ रही है। हमारे संबंध पहले से अधिक बहुपक्षीय सहयोग के हैं। ऐसा न केवल संघीय स्तर पर है बल्कि राज्य एवं स्थानीय स्त़र, हमारी दोनों सेनाओं के बीच, निजी क्षेत्रों और नागरिक समाज में भी है। हमारे संबंधों में इतना कुछ हुआ है कि साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह घोषणा की थी कि हम स्वभाविक मित्र हैं।

सालों से बढ़ते सहयोग के बाद से हम विद्यार्थी अनुसंधान परियोजनाओं पर एक साथ काम करते हैं। हमारे वैज्ञानिक अत्याधुनिक तकनीकों को विकसित करते हैं और हमारे वरिष्ठ, अधिकारी वैश्विक विषयों पर निकटता से विचार-विमर्श करते हैं। हमारी सेनाएं वायु, जमीन और समुद्र में संयुक्त अभ्यास करती है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम सहयोग के अप्रत्याशित क्षेत्र में हैं और परिणामस्वरूप हम पृथ्वी से मंगल पर पहुंच गए हैं। इस साझेदारी में भारतीय अमेरिकी समुदाय जीवंत और दोनों देशों के बीच सेतु है। इसकी सफलता हमारी जनता, मुक्त अमेरिकी समाज के मूल्य और एक साथ काम करने की शक्ति के महत्व को दिखाती है।

अभी हमारे संबंधों की वास्तविक क्षमता को पूरी तरह से उपयोग में लाना शेष है। भारत में नई सरकार बनना हमारे संबंधों को व्यापक और दृढ़ बनाने के लिए स्वभाविक अवसर है। नई आकांक्षा और दृढ़ विश्वास की नई ऊर्जा के साथ हम सुदृढ़ एवं पारंपरिक लक्ष्यों से आगे बढ़ सकते हैं। यह समय अपने नागरिकों के लिए ठोस लाभ हासिल करने वाला नया एजेंडा तय करने का है।

भारत के महत्वाकांक्षी विकास एजेंडे के साथ मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका को भी वैश्विक वृद्धि का इंजन बनाए रखते हुए, यह एजेंडा हमें व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी में अपने सहयोग के विस्तार को बढ़ाने के लिए पारस्परिक रूप से लाभप्रद तरीके खोजने में सक्षम बनाता है। आज जब हम वॉशिंगटन में मुलाकात करेंगे तो हम उन तरीकों पर चर्चा करेंगे जिसमें हम अपने समान वातावरण के भविष्य को सुरक्षित बनाते हुए विनिर्माण को बढ़ावा दे सकें और सस्ती अक्षय ऊर्जा का विस्तार कर सकते हैं।

हम उन विषयों पर भी चर्चा करेंगे जिनमें हम अपने व्यापारियों, वैज्ञानिकों और सरकारों को साझीदार बना सकते हैं क्योंकि भारत, खासतौर पर नागरिकों के सबसे गरीब वर्ग के लिए, बुनियादी सेवाओं की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और उपलब्धता में सुधार के लिए काम करता है। इस संबंध में अमेरिका सहायता के लिए तैयार है। एक मजबूत समर्थन का तत्काल क्षेत्र 'स्वच्छ भारत अभियान' है, जिसमें हम संपूर्ण भारत में स्वच्छता और स्वास्थ्य में सुधार के लिए निजी और नागरिक समाज के नवाचार, विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी का लाभ लेंगे।

जहां एक ओर हमारे साझा प्रयासों से हमारे अपने लोगों को लाभ मिलेगा, वहीं हमारी भागीदारी भी अपने हिस्से के योगदान को और व्यापक बनाने की इच्छा रखती है। राष्ट्रों के तौर पर, लोगों के रूप में हम सभी के लिए एक बेहतर भविष्य की कामना करते हैं, जिनमें से एक, हमारी रणनीतिक साझेदारी भी व्यापक स्तर पर दुनिया के लिए लाभों का सृजन करती है। जहां एक तरफ, भारत को अमेरिकी निवेश और तकनीकी साझेदारियों से उत्पन्न वृद्धि से लाभ मिलेगा तो वहीं अमेरिका को एक मजबूत और अधिक समृद्ध भारत से लाभ पहुंचेगा। इसके फलस्वरूप, क्षेत्र और दुनिया हमारी मित्रता से उत्पन्न व्यापक स्थिरता और सुरक्षा से लाभांवित होगी। हम दक्षिण एशिया को एकीकृत बनाने के व्यापक प्रयासों के साथ-साथ इसे मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया के लोगों और इसके बाजारों से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

वैश्विक साझेदार के रूप में हम आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष और कानून प्रवर्तन सहयोग के माध्यम से गुप्तचर सूचनाओं के आदान-प्रदान के द्वारा अपने देशों की सुरक्षा बढ़ाने, जबकि समुद्री क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता और वैध व्यापार को बनाए रखने के लिए भी हम संयुक्त रूप से कार्य करने को प्रतिबद्ध हैं। हमारे स्वास्थ्य सहयोग से हमें सबसे मुश्किल चुनौतियों जैसे इबोला के प्रसार, कैंसर इलाज के अनुसंधान अथवा तपेदिक, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों से निपटने में सफलता पाने में मदद मिलेगी। हम महिला सशक्तिकरण, क्षमता संवर्धन और अफगानिस्तान व अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा के लिए एक साथ काम करने की अपनी हाल की परंपरा का विस्तार करने के भी इच्छुक है।

अंतरिक्ष का अन्वेषण हमारी कल्पना शक्ति को मूर्त रूप देने और हमारी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के लिए चुनौती के रूप में जारी रहेगा। मंगल की परिक्रमा करते हम दोनों देशों के उपग्रह अपनी कहानी कहते हैं। एक बेहतर कल का वादा भारतीयों और अमेरिकी लोगों के लिए ही नहीं है, बल्कि यह एक बेहतर दुनिया की दिशा में कदम बढ़ाने का संकेत देता है। यह 21वीं सदी के लिए हमारी निर्धारित साझेदारी का मुख्य आधार है। हम इस दिशा में चलें साथ-साथ।

कर्मचारी भविष्य निधि की योजना : अब मिलेगा न्यूनतम एक हजार रुपये पेंशन / EPF Scheme : Minimum Pension One Thousand bucks


-शीतांशु कुमार सहाय
केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र प्रसाद कुशवाहा ने झारखंड की राजधानी राँची में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा न्यूनतम एक हजार रुपये पेंशन योजना की शुरुआत की। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव इनडोर स्टेडियम में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने हमेशा कर्मचारियों के हित को महŸव दिया है। उन्होंने कहा कि भविष्य निधि योजना एक महŸवाकांक्षी योजना है। इससे ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को लाभ लेना चाहिये। भविष्य निधि योजना में अधिकतम लोगों को शामिल किया जाये, इसके लिए अनिवार्य अंशदान की वेतन सीमा 6500 रुपये से बढ़ाकर 15 हजार रुपये कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि अनुमान किया जा रहा है कि इस वृद्धि से भविष्य निधि से 50 लाख नये कर्मचारी जुड़ेंगे।
मौके पर उपस्थित झारखंड के श्रम मंत्री केएन त्रिपाठी ने भी कहा कि कर्मियों को भविष्य निधि का लाभ उठाना चाहिये। मौके पर बड़ी संख्या में उपस्थित पेंशनरों को उपहार और प्रमाण पत्र दिये गये। अब इन्हें एक हजार रुपये न्यूनतम पेंशन राशि मिलेगी। अभी तक इन सभी को पेंशन के रूप में बहुत कम राशि मिलती थी। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त समरेन्द्र कुमार ने राँची क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा किये गये कार्यों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान वर्ष में 20345 दावे निपटाये गये। इसके तहत 85.47 करोड़ रुपये का भुगतान लाभुकों को किया गया। शिकायतों का निपटारा 7 दिनों में करने की व्यवस्था की गयी है।

रविवार, 28 सितंबर 2014

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 69वें सत्र की आम बहस में नरेंद्र मोदी के भाषण की 5 गलतियाँ / The United Nations General Assembly (UNGA) at the General Debate of the 69th Session of the Speech of Narendra Modi 5 Mistakes



भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र की आम बहस में भाषण को लेकर भारत में काफी उत्सुकता थी। अपनी भाषण शैली के लिए मशहूर मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में लड़खड़ाते हुए भी नजर आए। करीब 12 साल बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया गया। नरेंद्र मोदी के भाषण में उच्चारण और कई अन्य तरह की गतलियाँ सामने आईं। नरेंद्र मोदी के भाषण की 5 गलतियाँ---
पहली गलती...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण की शुरुआत में ही संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के नाम का गलत उच्चारण किया। उन्होंने सैम कुटेसा (Sam Kutesa) को सैम कुरेसा बोल दिया। 
दूसरी गलती...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महासभा में भाषण के दौरान 69वें सत्र का जिक्र किया तो अंग्रेजी और हिंदी मिलाकर बोल गए। उन्होंने 69वें सत्र को 'सिक्सटी नाइंथवें' सत्र कहकर महासभा को संबोधित किया।  
तीसरी गलती...
मोदी ने कहा की देश की आबादी का जिक्र करते हुए कहा कि भारत वन प्वाइंट ट्वेंटी फाइव (1.25) बिलियन लोगों का देश है। यानी दशमलव के बाद के अंकों को भी मोदी एक साथ ही पढ़ गए। जबकि यह वन प्वाइंट टू फाइव (1.25) बोला जाता है। इसे बोलने के दौरान मोदी थोड़ा लड़खड़ाते हुए भी दिखे।
चौथी गलती...
मोदी भाषण के दौरान कई शब्दों के उच्चारण में गलती करते हुए भी नजर आए। 'प्रकृति' को उन्होंने दो बार 'प्रकुर्ति' बोला, 'समुद्र' को 'समिद्र' और 'समृद्धि' को 'समुर्द्धी' कहा। मोदी 'सम्मान' को 'सन्मान' बोल गए।
पाँचवीं गलती...
संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने के लिए किसी राष्ट्र के प्रतिनिधि को 15 मिनट का समय दिया जाता है लेकिन भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी 35 मिनट तक भाषण देते रहे।

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 69वें सत्र की आम बहस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिया गया वक्तव्य / Text of the Statement by Prime Minister Narendra Modi at the General Debate of the 69th Session of the United Nations General Assembly (UNGA)



प्रस्तुति : शीतांशु कुमार सहाय

'' विशिष्‍ट अतिथिगण और मित्रों

सर्वप्रथम मैं संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के 69वें सत्र के अध्‍यक्ष चुने जाने पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार आप सबको संबोधित करना मेरे लिए अत्‍यंत सम्‍मान की बात है। मैं भारतवासियों की आशाओं एवं अपेक्षाओं से अभिभूत हूं। उसी प्रकार मुझे इस बात का पूरा भान है कि विश्‍व को 1.25 बिलियन लोगों से क्‍या अपेक्षाएं हैं। भारत वह देश है, जहां मानवता का छठवां हिस्‍सा आबाद है। भारत ऐसे व्‍यापक पैमाने पर आर्थिक व सामाजिक बदलाव से गुजर रहा है, जिसका उदाहरण इतिहास में दुर्लभ है।

प्रत्‍येक राष्‍ट्र की, विश्‍व की अवधारणा उसकी सभ्‍यता एवं धार्मिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत चिरंतन विवेक समस्‍त विश्‍व को एक कुटंब के रूप में देखता है। और जब मैं यह बात कहता हूं तो मैं यह साफ करता हूं कि हर देश की अपनी एक philosophy होती है। मैं ideology के संबंध में नहीं कह रहा हूं। और देश उस फिलोस्‍फी की प्रेरणा से आगे बढ़ता है। भारत एक देश है, जिसकी वेदकाल से वसुधैव कुंटुम्‍बकम परंपरा रही है। भारत एक देश है, जहां प्रकृति के साथ संवाद, प्रकृति के साथ कभी संघर्ष नहीं ये भारत के जीवन का हिस्‍सा है और इसका कारण उस philosophy के तहत, भारत उस जीवन दर्शन के तहत, आगे बढ़ता रहता है। प्रत्‍येक राष्‍ट्र की, विश्‍व अवधारणा उसकी सभ्‍यता और उसकी दार्शनिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत का चिरंतन विवेक समस्‍त विश्‍व को, जैसा मैंने कहा - वसुधैव कुटुंबमकम - एक कुटुम्‍ब के रूप में देखता है। भारत एक ऐसा राष्‍ट्र है, जो केवल अपने लिए नहीं, बल्कि विश्‍व पर्यंत न्‍याय, गरिमा, अवसर और समृद्धि के हक में आवाज उठाता रहा है। अपनी विचारधारा के कारण हमारा multi-literalism में दृढ़ विश्‍वास है।

आज यहां खड़े होकर मैं इस महासभा पर एक टिकी हुई आशाओं एवं अपेक्षाओं के प्रति पूर्णतया सजग हूं। जिस पवित्र विश्‍वास ने हमें एकजुट किया है, मैं उससे अत्‍यंत प्रभावित हूं। बड़े महान सिद्धांतों और दृष्टिकोण के आधार पर हमने इस संस्‍था की स्‍थापना की थी। इस विश्‍वास के आधार पर कि अगर हमारे भविष्‍य जुड़े हुए हैं तो शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार और वैश्विक आर्थिक विकास के लिए हमें साथ मिल कर काम करना होगा। तब हम 51 देश थे और आज 193 देश के झंडे इस बिल्डिंग पर लहरा रहे हैं। हर नया देश इसी विश्‍वास और उम्‍मीद के आधार पर यहां प्रवेश करता है। हम पिछले 7 दशकों में बहुत कुछ हासिल कर सके हैं। कई लड़ाइयों को समाप्‍त किया है। शांति कायम रखी है। कई जगह आर्थिक विकास में मदद की है। गरीब बच्‍चों के भविष्‍य को बनाने में मदद दी है। भुखमरी हटाने में योगदान दिया है। और इस धरती को बचाने के लिए भी हम सब सा‍थ मिल कर के जुटे हुए हैं।

69 UN Peacekeeping मिशन में विश्‍व में blue helmet को शांति के एक रंग की एक पहचान दी है। आज समस्‍त विश्‍व में लोकतंत्र की एक लहर है।

अफगानिस्‍तान में शांतिपूर्वक राजनीतिक परिवर्तन यह भी दिखलाता है कि अफगान जनता की शां‍ति की कामना हिंसा पर विजय अवश्‍य पाएगी। नेपाल युद्ध से शांति और लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ा है। भूटान के नए लोकतंत्र में एक नई ताकत नजर आ रही है। पश्चिम एशिया एवं उत्‍तर अफ्रीका में लोकतंत्र के पक्ष में आवाज उठाए जाने के प्रयास हो रहे हैं। Tunisia की सफलता दिखा रही है कि लोकतंत्र की ये यात्रा संभव है।

अफ्रीका में स्थिरता, शांति और प्रगति हेतु एक नई ऊर्जा एवं जागृति दिखायी दे रही है।

हमें एशिया और उसके पूरे अभूतपूर्व समृद्धि का अभ्‍युदय देखा है। जिसके आधार में शांति एवं स्थिरता की शक्ति समाहित है। अपार संभावनाओं से समृद्ध महादेश लैटिन अमेरिका स्थिरता एवं समृद्धि के साझा प्रयास में एकजुट हो रहा है। यह महादेश विश्‍व समुदायों के लिए एक महत्‍वपूर्ण आधार स्‍तंभ सिद्ध हो सकता है।

भारत अपनी प्रगति के लिए एक शांतिपूर्ण एवं स्थिर अंतरराष्‍ट्रीय वातावरण की अपेक्षा करता है। हमारा भविष्‍य हमारे पड़ोस से जुड़ा हुआ है। इसी कारण मेरी सरकार ने पहले ही दिन से पड़ोसी देशों से मित्रता और सहयोग बढ़ाने पर पूरी प्राथमिकता दी है। और पाकिस्‍तान के प्रति भी मेरी यही नीति है। मैं पाकिस्‍तान से मित्रता और सहयोग बढ़ाने के लिए गंभीरता से शांतिपूर्ण वातवारण में बिना आतंक के साये के साथ द्विपक्षीय वार्ता करना चाहते हैं।लेकिन पाकिस्‍तान का भी यह दायित्‍व है कि उपयुक्‍त वातावरण बनाये और गंभीरता से द्विपक्षीय बातचीत के लिए सामने आये।

इसी मंच पर बात उठाने से समाधान के प्रयास कितने सफल होंगे, इस पर कइयों को शक है। आज हमें बाढ़ से पीडि़त कश्‍मीर में लोगों की सहायता देने पर ध्‍यान देना चाहिए, जो हमने भारत में बड़े पैमाने पर आयोजित किया है। इसके लिए सिर्फ भारत में कश्‍मीर, उसी का ख्‍याल रखने पर रूके नहीं हैं, हमने पाकिस्‍तान को भी कहा, क्‍योंकि उसके क्षेत्र में भी बाढ़ का असर था। हमने उनको कहा कि जिस प्रकार से हम कश्‍मीर में बाढ़ पीडि़तों की सेवा कर रहे हैं, हम पाकिस्‍तान में भी उन बाढ़ पीडि़तों की सेवा करने के लिए हमने सामने से प्रस्‍ताव रखा था।

हम विकासशील विश्‍व का हिस्‍सा हैं, लेकिन हम अपने सीमित संसाधनों को उन सभी के सा‍थ साझा करने की छूट दें,जिन्‍हें इनकी नितांत आवश्‍यकता है।

दूसरी ओर आज विश्‍व बड़े स्‍तर के तनाव और उथल-पुथल की स्थितियों से गुजर रहा है। बड़े युद्ध नहीं हो रहे हैं, परंतु तनाव एवं संघर्ष भरपूर नजर आ रहा है, बहुतेरे हैं, शांति का अभाव है तथा भविष्‍य के प्रति अनिश्चितता है। आज भी व्‍यापक रूप से गरीबी फैली हुई है। एक होता हुआ एशिया प्रशांत क्षेत्र अभी भी समुद्र में अपनी सुरक्षा, जो कि इसके भविष्‍य के लिए आधारभूत महत्‍व रखती है, को लेकर बहुत चिंतित है।

यूरोप के सम्‍मुख नए वीजा विभाजन का खतरा मंडरा रहा है। पश्चिम एशिया में विभाजक रेखाएं और आतंकवाद बढ़ रहे हैं। हमारे अपने क्षेत्र में आतंकवादी स्थिरतावादी खतरे से जूझना जारी है। हम पिछले चार दशक से इस संकट को झेल रहे हैं। आतंकवाद चार नए नए रूप और नाम से प्रकट होता जा रहा है। इसके खतरे से छोटा या बड़ा, उत्‍तर में हो या दक्षिण में, पूरब में हो या पश्चिम में, कोई भी देश मुक्‍त नहीं है।

मुझे याद है, जब मैं 20 साल पहले विश्‍व के कुछ नेताओं से मिलता था और आतंकवाद की चर्चा करता था, तो उनके यह बात गले नहीं उतरती थी। वह कहते थे कि यह law and order problem है। लेकिन आज धीरे धीरे आज पूरा विश्‍व देख रहा है कि आज आतंकवाद किस प्रकार के फैलाव को पाता चला जा रहा है। परंतु क्‍या हम वाकई इन ताकतों से निपटने के लिए सम्मि‍लित रूप से ठोस अंतरराष्ट्रीय प्रयास कर रहे हैं और मैं मानता हूं कि यह सवाल बहुत गंभीर है। आज भी कई देश आतंकवादियों को अपने क्षेत्र में पनाह दे रहे हैं और आतंकवादियों को अपनी नीति का उपकरण मानते हैं और जब good terrorism and bad terrorism , ये बातें सुनने को मिलती है, तब तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की हमारी निष्‍ठाओं पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं।

पश्‍चिम एशिया में आतंकवाद पाश्विकता की वापसी तथा दूर एवं पास के क्षेत्र पर इसके प्रभाव को ध्‍यान में रखते हुए सम्मिलित कार्रवाई का स्‍वागत करते हैं। परंतु इसमें क्षेत्र के सभी देशों की भागीदारी और समर्थन अनिवार्य है। अगर हम terrorism से लड़ना चाहते हैं तो क्‍यों न सबकी भागीदारी हो, क्‍यों न सबका साथ हो और क्‍यों न उस बात पर आग्रह भी किया जाए। sea, space एवं cyber space साझा समृद्धि के साथ –साथ संघर्ष के रंगमंच भी बने हैं। जो समुद्र हमें जोड़ता था, उसी समुद्र से आज टकराव की खबरें शुरू हो रही हैं। जो स्‍पेस हमारी सिद्धियों का एक अवसर बनता था, जो सायबर हमें जोड़ता था, आज इन महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में नए संकट नजर आ रहे हैं।

उस अंतरराष्‍ट्रीय एकजुटता की, जिसके आधार पर संयुक्‍त राष्‍ट्र की स्‍थापना हुई, जितनी आवश्‍यकता आज है, उतनी पहले कभी नहीं थी। आज अब हम interdependence world कहते हैं तो क्‍या हमारी आपसी एकता बढ़ी है। हमें सोचने की जरूरत है। क्‍या कारण है कि UN जैसा इतना अच्‍छा प्‍लेटफार्म हमारे पास होने के बाद भी अनेक जी समूह बनाते चले गए हम। कभी G 4 होगा, कभी G 7 होगा, कभी G 20 होगा। हम बदलते रहते हैं और हम चाहें या न चाहें, हम भी उन समूहों में जुड़े हैं। भारत भी उसमें जुड़ा है।

लेकिन क्‍या आवश्‍यकता नहीं है कि हम G 1 से आगे बढ़ कर के G-All की तरफ कदम उठाएं। और जब UN अपने 70 वर्ष मनाने जा रहा है, तब ये G-All का atmosphere कैसे बनेगा। फिर एक बार यही मंच हमारी समस्‍याओं के समाधान का अवसर कैसे बन सके। इसकी विश्‍वसनीयता कैसे बढ़े, इसका सामर्थ्‍य कैसे बढ़े, तभी जा कर के यहां हम संयुक्‍त बात करते हैं। लेकिन टुकड़ों में बिखर जाते हैं, उसमें हम बच सकते हैं, एक तरफ तो हम यह कहते हैं कि हमारी नीतियां परस्‍पर जुड़ी हुई हैं और दूसरी तरफ हम जीरो संघ के नजरिये से सोचते हैं। अगर उसे लाभ होता है तो मेरी हानि होती है, कौन किसके लाभ में है, कौन किसके हानि में है, यह भी मानदंड के आधार पर हम आगे बढ़ते हैं।

निराशावादी या आलोचनावादी की तरह कुछ भी नहीं बदलने वाला है। एक बहुत बड़ा वर्ग है, जिसके मन में है कि छोड़ो यार, कुछ नहीं बदलने वाला है, अब कुछ होने वाला नहीं है। ये जो निराशावादी और आलोचनावादी माहौल है, यह कहना आसान है। परंतु अगर हम ऐसा करते हैं तो हम अपनी जिम्‍मेदारियों से भागने का जोखिम उठा रहे हैं। हम अपने सामूहिक भविष्‍य को खतरे में डाल रहे हैं। आइए, हम अपने समय की मांग के अनुरूप अपने आप को ढालें। हम वक्‍त की शांति के लिए कार्य करें।

कोई एक देश या कुछ देशों का समूह विश्‍व की धारा को तय नहीं कर सकता है। वास्‍तविक अन्‍तरराज्‍यीय होना, यह समय की मांग है और यह अनिवार्य है। हमें देशों के बीच सार्थक संवाद एवं सहयोग सुनिश्चित करना है। हमारे प्रयासों का प्रारंभ यहीं संयुक्‍त राष्‍ट्र में होना चाहिए। संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाना, इसे अधिक जनतांत्रिक और भागीदारी परक बनाना हमारे लिए अनिवार्य है।

20वीं सदी की अनिवार्यताओं को प्रतिविदित करने वाली संस्‍थाएं 21वीं सदी में प्रभावी सिद्ध नहीं होंगी। इनके सम्‍मुख अप्रासंगिक होने का खतरा प्रस्तुत होगा, और भी आग्रह से कहना चाहता हूं कि पिछली शताब्‍दी के आवश्‍यकताओं के अनुसार जिन बातों पर हमने बल दिया, जिन नीति-नियमों का निर्धारण किया वह अभी प्रासंगिक नहीं है। 21वीं सदी में विश्‍व काफी बदल चुका है, बदल रहा है और बदलने की गति भी बड़ी तेज है। ऐसे समय यह अनिवार्य हो जाता है कि समय के साथ हम अपने आप को ढालें। हम परिवर्तन करें, हम नए विचारों पर बल दें। अगर ये हम कर पायेंगे तभी जाकर के हमारा relevance रहेगा। हमें अपने सभी मतभेदों को दरकिनार कर आतंकवाद से लड़ने के लिए सम्मिलित अंतरराष्‍ट्रीय प्रयास करना चाहिए।

मैं आपसे यह अनुरोध करता हूं कि इस प्रयास के प्रतीक के रूप में आप comprehensive convention on international terrorism को पारित करें। यह बहुत लंबे अरसे से pending mark है। इस पर बल देने की आवश्‍यकता है। terrorism के खिलाफ लड़ने की हमारी ताकत का वो एक परिचायक होगा और इसे हमारा देश, जो terrorism से इतने संकटों से गुजरा है, उसको समय लगता है कि जब तक वे इसमें initiative नहीं लेता है, और जब तक हम comprehensive convention on international terrorism को पारित नहीं करते हैं, हम वो विश्‍वास नहीं दिला सकते हैं। और इसलिए, फिर एक बार भारत की तरफ से इस सम्‍माननीय सभा के समक्ष बहुत आग्रहपूर्वक मैं अपनी बात बताना चाहता हूं। हमें outer space और cyber space में शांति, स्थिरता एवं व्‍यवस्‍था सुनिश्चित करनी होगी। हमें मिलजुल कर काम करते हुए यह सुनिश्चित करना है कि सभी देश अंतरराष्‍ट्रीय नियमों, मानदंडों का पालन करें। हमें UN Peace Keeping के पुनित कार्यों को पूरी शक्ति प्रदान करनी चाहिए।

जो देश अपनी सैन्‍य टुकडि़यों को योगदान करते हैं, उन्‍हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए। निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने से उनका हौसला बुलंद होगा। वो बहुत बड़ी मात्रा में त्‍याग करने को तैयार है; बलिदान देने को तैयार है, अपनी शक्ति और समय खर्च करने को तैयार हैं, लेकिन अगर हम उन्‍हें ही निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखेंगे तो कब तक हम UN Peace Keeping फोर्स को प्राणवान बना सकते हैं, ताकतवर बना सकते हैं। इस पर गंभीरता से सोचने की आवश्‍यकता है।

आइए, हर सार्वभौमिक वैश्विक रिसेसिकरण एवं प्रसार हेतू अपने प्रयासों में दोगुनी शक्ति लगाएं। अपेक्षाकृ‍त अधिक स्थिर तथा समावेशी विकास हेतू निरंतर प्रयासरत रहें। वैश्विकरण ने विकास के नए ध्रुवों, नए उद्योगों और रोजगार के नए स्रोतों को जन्‍म दिया है। लेकिन साथ ही अरबों लोग गरीबी और अभाव के अर्द्धकगार पर जी रहे हैं। कई देश ऐेसे हैं, जो विश्‍वव्‍यापी आर्थिक तूफान के प्रभाव से बड़ी मुश्किल से बच पा रहे हैं। लेकिन इन सब में बदलाव लाना जितना मुमकिन आज लग रहा है, उतना पहले कभी नहीं लगता था।

Technology ने बहुत कुछ संभव कर दिखाया है। इसे मुहैया करने में होने वाले खर्च में भी काफी कमी आई है। यदि आप सारी दुनिया में Facebook और Twitter के प्रसार की गति के बारे में, सेलफोन के प्रसार की गति के बारे में सोचते हैं तो आपको यह विश्‍वास करना चाहिए कि विकास और सशक्तिकरण का प्रसार भी कितनी तेज गति से संभव है।

जाहिर है, प्रत्‍येक देश को अपने राष्‍ट्रीय उपाय करने होंगे, प्रगति व विकास को बल देने हेतु प्रत्‍येक सरकार को अपनी जिम्‍मेदारी निभानी होगी। साथ ही हमारे लिए एक स्‍तर पर एक सार्थक अंतर्राष्‍ट्रीय भागीदारी की आवश्‍यकता है, जिसका अर्थ हुआ, नीतियों को आप बेहतर समन्‍वय करें ताकि हमारे प्रयत्‍न, परस्‍पर संयोग को बढ़ावा दे तथा दूसरे को क्षति न पहुंचाये। ये उसकी पहली शर्त है कि दूसरे को क्षति न पहुंचाएं। इसका यह भी अर्थ है कि जब हम अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यापारिक संबंधों की रचना करते हैं तो हमें एक दूसरे की चिंताओं व हितों का ध्‍यान रखना चाहिए।

जब हम विश्‍व के अभाव के स्‍तर के विषय में सोचते हैं, आज basic sanitation 2.5 बिलियन लोगों के पहुंच के बाहर है। आज 1.3 बिलियन लोगों को बिजली उपलब्‍ध नहीं है और आज 1.1 बिलियन लोगों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्‍ध नहीं है। तब स्‍पष्‍ट होता है कि अधिक व्‍यापक व संगठित रूप से अंतरराष्‍ट्रीय कार्यवाही करने की प्रबल आवश्‍यकता है। हम केवल आर्थिक वृद्धि के लिए इंतजार नहीं कर सकते। भारत में मेरे विकास का एजेंडा के सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू इन्‍हीं मुद्दों पर केंद्रित हैं।

मैं यह मानता हूं कि हमें post 2015 development agenda में इन्‍हीं बातों को केन्‍द्र में रखना चाहिए और उन पर ध्‍यान देना चाहिए। रहने लायक तथा टिकाऊ sustainable विश्‍व की कामना के साथ हम काम करें। इन मुद्दों पर ढेर सारे विवाद एवं दस्‍तावेज उपलब्‍ध हैं। लेकिन हम अपने चारों ओर ऐसी कई चीजें देखते हैं, जिनके कारण हमें चिंतित व आगाह हो जाना चाहिए। ऐसी भी चीजें हैं जिन्‍हें देखने से हम चिंतित होते जा रहे हैं। जंगल, पशु-पक्षी, निर्मल नदियां, जज़ीरे और नीला आसमान।

मैं तीन बातें कहना चाहूंगा, पहली बात, हमें चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी जिम्‍मेदारियों को निभाने में ईमानदारी बरतनी चाहिए। विश्‍व समुदाय ने सामूहिक कार्यवाही के सुंदर संतुलन को स्‍वीकारा है, जिसका स्‍वरूप common व differentiated responsibilities । इसे सतत कार्यवाही का आधार बनाना होगा। इसका यह भी अर्थ है कि विकसित देशों को funding और technology transfer की अपनी प्रतिबद्धता को अवश्‍य पूरा करना चाहिए।

दूसरी बात, राष्‍ट्रीय कार्यवाही अनिवार्य है। टेक्‍नोलोजी ने बहुत कुछ संभव कर दिया है, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी। आवश्‍यकता है तो सृजनशीलता व प्रतिबद्धता की। भारत अपनी टेक्‍नोलोजी क्षमता को साझा करने के लिए तैयार है। जैसा कि हमने हाल ही में सार्क देशों के लिए एक नि:शुल्‍क उपग्रह बनाने की घोषणा की है।

तीसरी बात हमें अपनी जीवनशैली बदलने की आवश्‍यकता है। जिस ऊर्जा का उपयोग न हुआ हो, वह सबसे साफ ऊर्जा है। इससे आर्थिक नुकसान नहीं होगा। अर्थव्‍यवस्‍था को एक नई दिशा मिलेगी।

हमारे भारतवर्ष में प्रकृति के प्रति आदरभाव अध्‍यात्‍म का अभिन्‍न अंग है। हम प्रकृति की देन को पवित्र मानते हैं और मैं आज एक और विषय पर भी ध्‍यान आकर्षित करना चाहता हूं कि हम climate change की बात करते हैं। हम होलिस्टिक हेल्‍थ केयर की बात करते हैं। जब हम back to basic की बात करते हैं तब मैं उस विषय पर विशेष रूप से आप से एक बात कहना चाहता हूं। योग हमारी पुरातन पारम्‍परिक अमूल्‍य देन है। योग मन व शरीर, विचार व कर्म, संयम व उपलब्धि की एकात्‍मकता का तथा मानव व प्रकृति के बीच सामंजस्‍य का मूर्त रूप है। यह स्‍वास्‍थ्‍य व कल्‍याण का समग्र दृष्टिकोण है। योग केवल व्‍यायाम भर न होकर अपने आप से तथा विश्व व प्रकृति के साथ तादम्‍य को प्राप्त करने का माध्यम है। यह हमारी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर तथा हम में जागरूकता उत्पन्न करके जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक हो सकता है। आइए हम एक ‘’अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’’ को आरंभ करने की दिशा में कार्य करें। अंतत: हम सब एक ऐतिहासिक क्षण से गुजर रहे हैं। प्रत्येक युग अपनी विशेषताओं से परिभाषित होता है। प्रत्येक पीढी इस बात से याद की जाती है कि उसने अपनी चुनौतियों का किस प्रकार सामना किया। अब हमारे सम्मुख चुनौतियों के सामने खड़े होने की जिम्मेदारी है। अगले वर्ष हम 70 वर्ष के हो जाएंगे। हमें अपने आप से पूछना होगा कि क्या हम तब तक प्रतीक्षा करें तब हम 80 या 100 के हो जाएं। मैं मानता हूं कि UN के लिए अगला साल एक opportunity है। जब हम 70 साल की यात्रा के बाद लेखाजोखा लें, कहां से निकले थे, क्यूं निकले थे, क्या मकसद था, क्या रास्ता था, कहां पहुंचे हैं, कहां पहुंचना है।

21 सदी के कौन से प्रकार हैं, कौन से challenges हैं, उन सबको ध्यान में रखते हुए पूरा एक साल व्यापक विचार मंथन हो। हम universities को जोडें, नई generation को जोड़ें जो हमारे कार्यकाल का विगत से मूल्यांकन करे, उसका अध्ययन करे और हमें वो भी अपने विचार दें। हम नई पीढ़ी को हमारी नई यात्रा के लिए कैसे जोड़ सकते हैं और इसलिए मैं कहता हूं कि 70 साल अपने आप में एक बहुत बड़ा अवसर है। इस अवसर का उपयोग करें और उसे उपयोग करके एक नई चेतना के साथ नई प्राणशक्ति के साथ, नए उमंग और उत्साह के साथ, आपस में एक नए विश्वास साथ हम UN की यात्रा को हम नया रूप रंग दें। इस लिए मैं समझता हूं कि ये 70 वर्ष हमारे लिए बहुत बड़ा अवसर है।

आइए, हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाने के अपने वादे को निभाएं। यह बात लंबे अरसे से चल रही है लेकिन वादों को निभाने का सामर्थ्‍य हम खो चुके हैं। मैं आज फिर से आग्रह करता हूं कि आज इस विषय में गंभीरता से सोचें। आइए, हम अपने Post 2015 development agenda के लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करें।

आइए 2015 को हम विश्व की प्रगति प्रवाह को एक नया मोड़ देने वाले एक वर्ष के रूप में हम अविस्मरणीय बनायें और 2015 एक नितांत नई यात्रा के प्रस्थान बिंदु के रूप में मानव इतिहास में दर्ज हो। यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि सामूहिक जिम्मेदारी को हम पूरी तरह निभाएंगे।

आप सबका बहुत बहुत आभार।

धन्यवाद। नमस्ते। ''

शनिवार, 27 सितंबर 2014

2015 को उपलब्धि के साल के रूप में याद करें : नरेंद्र मोदी / Remember 2015 As The Year of Achievement : Narendra Modi / संयुक्त राष्ट्रसंघ में नरेन्द्र मोदी का पहला भाषण हिन्दी में / Narendra Modi's first speech at the United Nations in Hindi


शीतांशु कुमार सहाय
दुनियाभर के नेताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है न्याय और शांति के लिए लड़ता है। मोदी ने कहा कि उन्हें पहली दफा संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए गौरव का अनुभव हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देते हुए कहा कि भारत सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव से गुजर रहा है। मोदी ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो कभी प्रकृति से संघर्ष नहीं करता, बल्कि समन्वय के सिद्धांत और दर्शन के साथ काम करता है और आगे बढ़ता है। उन्होंने कहा कि भारत शांतिपूर्ण संवृद्धि के लिए शांति, मित्रता और सहयोग से काम कर रहा है। पाकिस्तान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि उसके साथ भी भारत का यही रुख है और उसके साथ भारत द्विपक्षीय वार्ता की हिमायत करता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को भी भारत के शांतिपूर्ण रुख पर उचित प्रतिक्रिया देनी चाहिए। मोदी ने कहा कि कश्मीर में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए पाकिस्तान की मदद के लिए उन्होंने हाथ बढ़ाया था। मोदी ने कहा कि आतंक के साये में पाकिस्तान के साथ बातचीत नहीं हो सकती, हालांकि भारत वार्ता करना चाहता है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में आज के समय में भले ही युद्ध नहीं हो रहा है, लेकिन हलचल जारी है। मोदी ने कहा कि आतंकवादी के खतरे से कई देश जूझ रहे हैं और भारत पिछले चार दशक से इस खतरे का सामना कर रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आतंकवाद से पूरब और पश्चिम के सभी देश जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि 20 साल पहले पश्चिम के लोग आतंकवाद को कानून और व्यवस्था का संकट बताते थे लेकिन आज वे इसे वैश्विक समस्या मानते हैं। मोदी ने आतंकवाद पर खासा बल देते हुए कहा कि इससे लड़ने के लिए सभी देशों के बीच साझेदारी और सहयोग की जरूरत है। माेदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के संगठन बनने के मसले पर कहा कि हमें जी 1 से बढ़कर जी ऑल की तरफ बढ़ना चाहिए। मोदी ने कहा कि आतंकवाद से मुकाबले के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना चाहिए। मोदी ने कहा कि आतंकवाद से लड़ने के मामले में यूएन को पहल करनी होगी और भारत इस मामले में सभी देशों से पहल करने का आग्रह करता है।

मोदी ने कहा कि हमें यूनए शांति मिशन के कार्यों को अच्छी तरह अंजाम और सहायता देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि समावेशी विकास के लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा। उन्होंने कि वैश्वीकरण ने रोजगार के अवसर निकाले लेकिन अभी भी करोड़ों लोग भूखमरी के शिकार हैं। उन्होंने कि तकनीक ने चीजों को काफी आसान बना दिया है और इसके जरिए हम अधिक कुशलतापूर्वक कार्यों को अंजाम दे सकते हैं। मोदी ने कहा कि आज भी कई सारे देश आतंकवादी को पनाह दे रहे हैं, ऐसे में इसका खात्मा नहीं हो सकता। मोदी ने कहा कि सभी मुल्कों को एक मंच पर लाने में संयुक्त राष्ट्र को पहल करनी चाहिए। मोदी ने योग की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि योग से सभी तरह के विकास से हम मुक्त हो सकते हैं। ऐसे में हमें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तरफ बढ़ना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हर पीढ़ि के समक्ष चुनौतियां होती हैं और उन चुनौतियों का सामना करने के लिए उसे अपनी रणनीति बनानी पड़ती है। हमें भी नयी परिस्थितियों में समस्याओं को नये परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए और उनका समाधान ढूंढा जाना चाहिए। मोदी ने कहा कि यूएन के अगले साल 70 साल हो जाएंगे, ऐसे में हमें इसे और सफल बनाने के लिए पूरी ताकत के लिए साथ पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि 2015 को हम उपलब्धि के साल के रूप में याद करें, यही मेरा सबसे आग्रह है और उसके लिए हमें कोशिश करनी चाहिए।

गुरुवार, 25 सितंबर 2014

भाजपा-शिवसेना का 25 साल पुराना गठबंधन टूटा / 25 Years Old The BJP-Shiv Sena Alliance's Broken


महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना से 25 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया है। गुरुवार को मुंबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बात का एलान कर दिया। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि शिवसेना मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर अड़ी हुई थी। उनके मुताबिक शिवसेना ने कई प्रस्ताव दिए लेकिन उनमें से किसी में भी उनके हिस्से की सीटों में कमी नहीं आ रही थी। हर बार या तो हमारी सीटें कम हो रही थीं या हमारे सहयोगी दलों की। फडणवीस ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान उनकी पार्टी शिवसेना पर हमले नहीं करेगी और शिवसेना से वे भी ऐसी ही उम्मीद कर रहे हैं। भाजपा की ओर से इस एलान के तुरंत बाद ही शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के घर यानी मातोश्री के बाहर बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए शिवसैनिकों ने अपनी पार्टी के पक्ष में जिंदाबाद के नारे लगाए। शिवसेना के सांसद आनंदराव अडसूल ने दावा किया है कि भाजपा और एनसीपी के बीच सांठगांठ है। इस बीच, अभी यह साफ नहीं है कि केंद्र में एनडीए सरकार में मंत्री अनंत गीते अपना पद छोड़ेंगे या नहीं। इससे पहले शिवसेना ने गुरुवार को धमकी भरे लहजे में कहा था कि अगर भाजपा ने दूसरा रास्ता (गठबंधन तोड़ने का) अपनाया तो उन्हें मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा। शिवसेना नेता दिवाकर राउते ने दावा किया कि उनकी पार्टी सहयोगियों को सीटें देने के लिए 148 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हो गई थी लेकिन उस पर सहयोगी पार्टियां और बीजेपी राजी नहीं हुई।

मंगलवार, 16 सितंबर 2014

उपचुनाव (सितंबर 2014) : भारतीय जनता पार्टी की बुरी स्थिति के मुख्य कारण / By-elections (September 2014) : The Main Cause of The Bad Situation Bharatiya Janata Party


उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करारे झटके ने पीएम नरेंद्र मोदी के 64वें जन्मदिन का जश्न ही फीका कर दिया। मोदी के खास सिपहसालार अमित शाह अपने पहले ही इम्तेहान में ही फेल हो गए। जिन राज्यों में गैर बीजेपी सरकारें थीं वहां तो बीजेपी फिसली ही, अपने राज्यों में भी उसकी भद पिट गई। जानने की कोशिश करते हैं कि किन 5 बड़ी वजहों से बीजेपी को करारी हार मिली।

कारण 1 : नहीं चला लव जेहाद

यूपी में भाजपा को महज 3 सीटें ही नसीब हुईं। 8 सीटें समाजवादी पार्टी की झोली में गईं। ये सभी सीटें बीजेपी विधायकों के सांसद बन जाने पर खाली हुई थीं। बीजेपी ने यूपी उपचुनाव में लव जेहाद को बड़ मुद्दा बनाया। लेकिन जनता ने सिरे से इसे खारिज कर दिया। अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ पर दांव खेला, योगी ने जमकर मेहनत भी की, लेकिन जनता को लव जेहाद के मुद्दे को नकार दिया। साफ है कि सिर्फ उग्र हिंदुत्व के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता। विकास का एजेंडा जनता के सामने रखना ही होगा। चौंकाने वाली बात ये है कि ऐसा नतीजा तब आया जब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने चुनाव से खुद को दूर रखा। बावजूद इसके बीजेपी का प्रदर्शन शर्मनाक रहा। आखिलेश राज में यूपी का हाल किसी से छिपा नहीं है, बावजूद इसके सपा के शानदार प्रदर्शन ने यूपी में बीजेपी के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।

कारण 2 : महंगाई का मुद्दा

चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस नीत यूपीए सरकार पर महंगाई को लेकर जबरदस्त हमला बोला। अपनी हर रैली में मोदी ने जनता को कांग्रेस के उस वादे की याद दिलाई जिसमें 100 दिनों के भीतर महंगाई से निजात दिलाने की बात कही गई थी, लेकिन अपनी सरकार के 100 दिन में मोदी जनता को महंगाई से राहत नहीं दिला पाई। सब्जियों खासकर टमाटर के दाम आसमान पर पहुंच गए। मोदी का अच्छे दिन लाने का वादा पार्टी पर बैकफायर कर गया। आखिर में जनता का गुस्सा बीजेपी पर उतरा।

कारण 3 : भाजपा नहीं मोदी

उपचुनाव के नतीजों से साफ हो गया कि लोकसभा चुनाव में जनता ने भाजपा नहीं मोदी के नाम पर वोट दिया था। मोदी के नाम पर ही लोग ही घरों से बाहर निकले। लेकिन उपचुनाव में मोदी नहीं बल्कि बीजेपी मैदान में थी। राजस्थान, गुजरात में लोगों ने बीजेपी को नकार दिया। अब बीजेपी एंटी इंकम्बेंसी का बहाना भी नहीं कर सकती क्योंकि यूपी जैसे महत्वपूर्ण राज्य में भी बीजेपी गोते लगा गई। उसके हिस्से महज 3 सीटें ही आईं। जबकि सभी 11 सीटें उसके पास ही थी। इससे पहले उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी झटका खा चुकी है। यानि आने वाले वक्त में बीजेपी के लिए खतरे की घंटी।

कारण 4 : भाजपा का अति आत्मविश्वास

उपचुनाव में भाजपा का अति आत्मविश्वास भी उसे ले डूबा। राजस्थान, गुजरात में पार्टी ने सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन उपचुनाव के नतीजे बिल्कुल उलट रहे। मोदी के जाते ही गुजरात में कांग्रेस ने पैर जमाने शुरु कर दिए और राजस्थान में वसुंधरा का ओवर कॉन्फिडेंस ही उन्हें ले डूबा। खुद वसुंधरा का करीबी उम्मीदवार भी चुनाव हार बैठा। कांग्रेस ने युवा नेता सचिन पायलट के हाथों चुनाव की कमान सौंपी और नतीजा सामने आया। शायद, बीजेपी को लगने लगा था कि यूपी में मचे हाहाकार के बाद अब बस जनता सीधे उसके पास ही आएगी। नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। लेकिन जनता ने बता दिया कि सत्ता इतनी आसानी से नहीं मिलती, इसके लिए मेहनत करनी होती है।

कारण 5 : बेलगाम बयानबाजी

भाजपा नेता की बेलगाम बयानबाजी ने भी बीजेपी का बेड़ा गर्क किया। गोवा जैसे छोटे राज्य से उग्र बयान आए। खास तौर पर हिंदुत्व को लेकर। कई मंत्रियों ने तो हिंदू राष्ट्र की वकालत तक कर डाली। इसके अलावा श्रीराम सेना जैसे हिंदुत्ववादी संगठनों के उभार और उनके उग्र बयानों ने सेकुलर धारा के लोगों एकजुट कर दिया। इसका साफ असर चुनाव नतीजों ने नजर आया। इसी का फायदा कांग्रेस और सपा को मिला। मोदी जिस कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रहे थे, उसे संजीवनी मिल गई। कलह से जूझ रही कांग्रेस के लिए चुनाव नतीजे किसी वरदान से कम नहीं दिख रहे।

सोमवार, 15 सितंबर 2014

अभ्युदय ने जिन्दगी की पहली परीक्षा दी / ABHYUDAYA'S FRIST EXAMINATION



आज सोमवार 15 सितम्बर 2014 को मेरे पुत्र अभ्युदय ने जिन्दगी की पहली परीक्षा दी। यह परीक्षा जिन्दगी जीने की नहीं; जिन्दगी में ‘आगे’ बढ़ने के लिए परम्परागत पढ़ाई की परीक्षा थी। अगले चार दिनों तक परीक्षा चलेगी। लोअर किंडरगार्डेन (एलकेजी) की परीक्षा प्रातः आठ बजे से दस बजे तक हुई। इस दौरान की विद्यालीय घटनाओं की चर्चा उसने ‘विचित्र अंदाज’ में अपनी माँ से की। एक बात तो यह बतायी कि परीक्षा में मैडम (शिक्षिका) सबकुछ भूल जाती है। उसने किसी प्रश्न का उत्तर पूछा तो शिक्षिका ने याद न रहने की बात कही। उसे पहली बार यह भी अनुभव हुआ कि परीक्षा में स्वयं ही लिखना पड़ता है, किसी से पूछकर या किसी का देखकर नहीं। वास्तव में अभ्युदय ने जिन्दगी की सच्चाई बतायी कि जिन्दगी में आगे बढ़ने के लिए ‘अकेला’ ही आगे आना होता है, तभी मंजिल मिल पाती है। .....तो मित्रों अभ्युदय को अपना आशीर्वाद दें और आत्मपरीक्षण करें कि आप इन दिनों जिन्दगी की किस ‘परीक्षा’ से गुजर रहे हैं या किस ‘परीक्षा’ में उत्तीर्ण होने के लिए और कितनी सामर्थ्य जुटानी होगी।
इति शुभम्!
-शीतांशु   

शनिवार, 13 सितंबर 2014

मजीठिया वेतन आयोग के मुताबिक वेतन का इस प्रकार निर्धारण / This Type of Majithia Wage Commission Wage Determination



मजीठिया वेतनमान को लेकर पत्रकारों के सामने सबसे बड़ी समस्या वेतन गणना की आ रही है। गुजरात के पत्रकार साथियों ने हाईकोर्ट में मजीठिया वेतनमान का केस लगाया था वह भी वेतन गणना के कारण लटका हुआ है। संभवतः उक्त मामले की 8 अगस्त को सुनवाई पूरी हो गई है और वेतन की गणना सीए से कराई जा रही है। इस फैसले पर देशभर के पत्रकारों की नजर है। पहली बार पत्रकारों की एकता का दम दिख सकती है क्योंकि हाईकोर्ट ने एक माह में ही सुनवाई पूरी कर ली।

गणना की गणितः समाचार पत्रों को 8 श्रेणियों में व एजेंसी को 4 श्रेणी में रखा गया है।

जैसे- 50 से 100 करोड़ का व्यवसाय करने वाले समाचार पत्र को चतुर्थ श्रेणी में रखा गया है। इसमें समूह 2 वेतनमान Rs.16000-ARI(3%)-28900 अर्थात् मूल वेतन 28900 है। जबकि 16000 को आधार मानकर वार्षिक वेतनवृद्धि करनी है। मतलब यदि एक साल या 240 दिन कर्मचारी की सेवा हो गई तो 480 रूपए मूल वेतन और वृद्धि होगी। जबकि तीन माह के उच्च वेतन के बराबर साल में एरियर भुगतान दिया जाना है। अर्थात् तीन माह का वेतन। एक वेतन मान अतिरिक्त बोनस के तौर पर दिया जाता है।

basic 28900
veriable pay 10115  10115 बेसिक का 35 प्रतिशत (चार्ट अनुसार)

dearness allowance 15186  15186 बेसिक का 52.55 प्रतिशत

All-India Annual Average CPI – IW

(Preceding 12 months in question)
Minus
All-India Annual Average CPI – IW
(July 2009 to June 2010)
Dearness Allowance = --------------------------------------------X Rate of Neutralization (1.0) X Basic Pay

All-India Annual Average CPI – IW
(July 2009 to June 2010) जो वर्तमान में 52.55 प्रतिशत के आसपास आता है।

house rent 2890 2890 बेसिक का 10 प्रतिशत

मकान किराया एक्स शहर के लिए बेसिक का 30 प्रतिशत, वाई शहर के लिए 20 प्रतिशत और जेड श्रेणी के शहर के लिए 10 प्रतिशत निर्धारित है।
कौन सा शहर किस श्रेणी का है इसका निर्धारण मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा में दिया हुआ है।

transport allowance 1445 बेसिक का 5 प्रतिशत
ट्रास्टपोर्ट एलाउंस एक्स शहर के लिए बेसिक का 20 प्रतिषत, वाई शहर के लिए 10 प्रतिशत और जेड श्रेणी के शहर के लिए 5 प्रतिशत निर्धारित है।

medical allowance 1000
वर्ग1 व 2 के अखबारों के लिए लिए 1000 और 3 व 4 श्रेणी के अखबारों के लिए 500 रूपए निर्धारित है।

night allowance 2250  75 रूपए प्रतिदिन
वर्ग 1 व 2 के अखबारों के लिए लिए 100 रूपए प्रतिदिन और 3 व 4 श्रेणी के लिए 75 रूपए व अन्य श्रेणी के अखबारों में कार्यरत कर्मचारियों को 50 रूपए प्रतिदिन निर्धारित है।

conveyance 5392.74 बेसिक का 16.66 प्रतिशत
समुद्र तल से 1500 मीटर ऊंची जगहों में रहने वालों पत्रकारों को हार्डशिप एलांउस 1000 रूपए प्रतिमाह दी जाती है।

कुल वेतन 67178.74
इसमें 12.36 प्रतिषत पीएफ कटता है और इन्कम टैक्स व अन्य कटौतियां कर्मचारियों की इच्छानुसार होती है।

चैकानें वाले आंकड़े
मजीठिया वेतनमान अंतिम श्रेणी के पत्रकारों के लिए कुछ खास नहीं लेकिन वर्ग 1 से 4 तक पत्रकारों के लिए विशेष लाभदायी है। वर्ग 1 व 2 के कर्मचारियों का वेतन कटौतियों के वाबजूद 50 हजार से ऊपर होगा। लेकिन सालान वृद्धि निराशाजनक लगती है।

उक्त गणना अप्रैल 2014 की है, ऐसे कर्मचारी जो नए है। पुराने कर्मचारियों का बेसिक उनकी वरिष्ठता के अनुसार अलग होगी। अन्य वर्षों लिए डियरनेस एलांउस में परिवर्तन होगा। उक्त वेतन पत्रकारों के लिए न्यूनतम है। इससे ऊपर वेतन मिलता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं।

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

स्वामी विवेकानंद के विश्व बंधुत्व का संदेश / Swami Vivekananda's Message of Universal Brotherhood





अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले की 13वीं बरसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर 11 सितंबर 2001 के हमले और इसी दिन 1893 में शिकागो में दिए गए स्वामी विवेकानंद के भाषण में फर्क बताया। प्रधानमंत्री ने कहा है कि अगर दुनिया स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं पर अमल करती तो 9/11 जैसी कायराना हरकत न होती। 121 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में विश्व बंधुत्व का संदेश दिया था।

धर्म संसद में भाषण से पहले स्वामी विवेकानंद सिर्फ नरेंद्र थे जो बहुत मुश्किलों का सामना करते हुए जापान, चीन और कनाडा की यात्रा कर अमेरिका पहुंचे थे। उनको तो धर्म संसद में बोलने का मौका भी नहीं दिया जा रहा था लेकिन जब उन्होंने अमेरिका के भाइयों और बहनों के संबोधन से भाषण शुरू किया तो पूरे दो मिनट तक आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में तालियां बजती रहीं। इसके बाद धर्म संसद सम्मोहित होकर स्वामी जी को सुनती रही। अमेरिकी मीडिया ने उन्हें भारत से आया 'तूफानी संन्यासी' 'दैवीय वक्ता' और 'पश्चिमी दुनिया के लिए भारतीय ज्ञान का दूत' जैसे शब्दों से सम्मान दिया। अमेरिका पर स्वामी विवेकानंद ने जो असर छोड़ा वो आज भी कायम है। इसीलिए, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जब भारतीय संसद को संबोधित किया तो स्वामी विवेकानंद का संदेश उनकी जुबान पर भी था। हिंदू धर्म के प्रतीक के रूप में गेरुए कपड़े से अमेरिका का पहला परिचय स्वामी विवेकानंद ने ही कराया था। उनके भाषण ने अमेरिका पर ऐसा असर छोड़ा कि गेरुए कपड़े अमेरिकी फैशन में शुमार किए जाने लगे। शिकागो-भाषण से ही दुनिया ने ये जाना कि भारत गरीब देश जरूर है लेकिन आध्यात्मिक ज्ञान में वो बहुत अमीर है। 121 साल पहले दुनिया के धर्मों पर हुई विश्व संसद में दिए गए स्वामी विवेकानंद के भाषण ने भारत के बारे में अमेरिका ही नहीं समूची दुनिया की सोच को बदल दिया।
स्वामी विवेकानंद कैसे गए अमेरिका---
अमेरिका जाने से पहले नरेंद्र नाथ मद्रास में थे। तब उन्होंने अखबारों में शिकागो में हो रही धर्म संसद के बारे में सुना था। कहते हैं नरेंद्रनाथ को उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने सपने में आकर धर्म संसद में जाने का संदेश दिया था लेकिन नरेंद्र नाथ के पास पश्चिम देशों में जाने के लिए पैसे नहीं थे। नरेंद्र नाथ ने खेत्री के महाराज से संपर्क किया और उन्हीं के सुझाव पर अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। महाराजा खेत्री की मदद से ही 31 मई 1893 को स्वामी विवेकानंद, चीन-जापान और कनाडा होते हुए अमेरिका की यात्रा पर निकल पड़े।
धर्म संसद में बुलाए नहीं गए थे विवेकानंद---
30 जुलाई 1893 को स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शिकागो पहुंचे, लेकिन वो ये जानकर परेशान हो गए कि सिर्फ जानी-मानी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को ही विश्व धर्म संसद में बोलने का मौका मिलेगा। विवेकानंद ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें हार्वर्ड में भाषण देने के लिए बुलाया। राइट विवेकानंद से बहुत प्रभावित थे, जब उन्होंने जाना कि धर्म संसद के लिए स्वामी जी के पास किसी संस्था का परिचय नहीं है, तब उन्होंने कहा कि स्वामी जी, आपसे आपके परिचय के लिए पूछना ऐसा ही है जैसे सूरज से पूछा जाए कि स्वर्ग में वो किस अधिकार से चमक रहा है। इसके बाद प्रोफेसर राइट ने धर्म संसद के चेयरमैन को चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने लिखा था कि ये व्यक्ति हमारे सभी प्रोफेसरों के ज्ञान से भी ज्यादा ज्ञानी है। स्वामी विवेकानंद धर्मसंसद में किसी संस्था के नहीं बल्कि भारत के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल किए गए।
भाषण में स्वामी विवेकानंद ने कहा---
11 सितंबर 1893 को शिकागो में धर्मसंसद शुरू हुई। स्वामी विवेकानंद का नाम पुकारा गया। सकुचाते हुए स्वामी विवेकानंद मंच पर पहुंचे। वो घबराए हुए थे। माथे पर आए पसीने को उन्होंने पोंछा। लोगों को लगा कि भारत से आया ये नौजवान संन्यासी कुछ बोल नहीं पाएगा। स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु का ध्यान किया और इसके बाद उनके मुंह से जो बोल निकले, उसे धर्म संसद सुनती रह गई। स्वामी विवेकानंद के पहले शब्द थे अमेरिका के भाइयो और बहनो। ये सुनते ही वहां करीब दो मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही। इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने ज्ञान से भरा ऐसा ओजस्वी भाषण दिया जो इतिहास बन गया। स्वामी विवेकानंद के भाषण में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का दिया गया वैदिक दर्शन का ज्ञान था। इस भाषण में दुनिया को शांति से जीने का संदेश छुपा था। इसी भाषण में वो संदेश भी है जिसमें स्वामी विवेकानंद ने कट्टरता और हिंसा की जमकर आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिकता कट्टरता और उसी की भयानक उपज धर्मांधता ने लंबे वक्त से इस सुंदर धरती को जकड़ रखा है। ऐसे लोगों ने धरती को हिंसा से भर दिया है। कितनी ही बार उसे मानव रक्त से रंग दिया, सभ्यताओं को तबाह किया और सभी देशों को निराशा के गर्त में धकेल दिया। इसके बाद जितने दिन भी धर्म संसद चली स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म, और भारत के बारे में दुनिया को वो ज्ञान दिया जिसने भारत की नई छवि बना दी। इस धर्म संसद के बाद स्वामी विवेकानंद विश्व प्रसिद्ध हस्ती बन गए। हाथ बांधे हुआ उनका पोज शिकागो पोज के नाम से जाना जाने लगा। स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण के बाद इसे थॉमस हैरीसन नाम के फोटोग्राफर ने खींचा था। हैरीसन ने स्वामी जी की आठ तस्वीरें ली थीं जिनमें से पांच पर स्वामी जी ने अपने हस्ताक्षर भी किए थे। अगले तीन साल तक स्वामी विवेकानंद अमेरिका में और लंदन में वेदांत की शिक्षाओं का प्रसार करते रहे।
विवेकानंद अमेरिका से श्रीलंका पहुंचे---
15 जनवरी 1897 को विवेकानंद अमेरिका से श्रीलंका पहुंचे। उनका जोरदार स्वागत हुआ। इसके बाद वो रामेश्वरम से रेल के रास्ते आगे बढ़े। रास्ते में लोग रेल रोककर उनका भाषण सुनने की जिद करते थे। विवेकानंद विदेशों में भारत के आध्यात्मिक ज्ञान की बात करते थे लेकिन भारत में वो विकास की बात करते थे। गरीबी, जाति व्यवस्था और साम्राज्यवाद को खत्म करने की बात करते थे। रामेश्वरम से मद्रास होते हुए विवेकानंद कोलकाता पहुंचे, वो कोलकाता जो उनकी जन्मभूमि थी और लंबे वक्त तक उनकी कर्मभूमि रही।
राम कृष्ण मिशन की नींव रखी---
शिकागो की धर्म संसद से भारत लौटने पर 1 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद ने राम कृष्ण मिशन की नींव रखी। राम कृष्ण मिशन नए भारत के निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ-सफाई के काम से जुड़ गया। स्वामी विवेकानंद नौजवानों के आदर्श बन गए। 1898 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना की। 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में ही स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया लेकिन उनके कहे शब्द आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, जिसका मूल मंत्र है-- ''उठो, जागो और लक्ष्य तक पहुंचने से पहले रुको मत।'' (Wake up, wake up and do not stop before reaching the target.)

नरेंद्रनाथ के स्वामी विवेकानंद बनने की राह---
रविंद्रनाथ टैगोर, अरविंदो घोष और महात्मा गांधी की तरह स्वामी विवेकानंद को भारत की आत्मा को जगाने वाले भारतीय राष्ट्रवाद के मसीहा के तौर पर देखा जाता है। उनमें छुपे महानता के ये गुण बचपन से ही दिखने लगे थे। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता हाईकोर्ट में वकील विश्वनाथ दत्त और उनकी पत्नी भुवनेश्वरी देवी के घर में नरेंद्र नाथ का जन्म हुआ था। विश्वनाथ दत्त प्रगतिशील सोच वाले शख्स थे, जबकि भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की थीं। नरेंद्र नाथ के जीवन पर माता और पिता दोनों की सोच का गहरा असर पड़ा। बचपन में चंचल स्वभाव वाले नरेंद्र बड़े होकर एक धीर-गंभीर और पढ़ने में रुचि रखने वाले नौजवान में बदल गए। धर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास और विज्ञान हर विषय में उनकी रुचि थी। नरेंद्र ने शास्त्रीय संगीत भी सीखा और 1881 में जनरल एसेंबली इंस्टीट्यूशन नाम से जाने जाने वाले स्कॉटिश चर्च कॉलेज से चित्रकला की परीक्षा पास की। 1884 में उन्हें कला में स्नातक की डिग्री मिली। उनकी बहुमुखी प्रतिभा देख कर जनरल एसेंबली इंस्टीट्यूशन के प्रिसिंपल विलियम हेस्टी ने उन्हें जीनियस कहा था। 28 सितंबर 1895 को शिकागो एडवोकेट नाम के अंग्रेजी अखबार ने उनके बारे में लिखा कि विवेकानंद ऐसी अंग्रेजी बोलता है जैसे वो उसकी मातृभाषा हो। नरेंद्र नाथ जीनियस थे और ज्ञान के लिए इस जीनियस की भूख खत्म नहीं हो रही थी। वो ईश्वर को तलाश रहे थे। इसी तलाश ने उन्हें ब्रह्म समाज के केशुब चंद्र सेन और देवेंद्रनाथ टैगोर वाले धड़े से जोड़ दिया। नरेंद्रनाथ की जिज्ञासा यहां भी शांत नहीं हुई। फिर, एक दिन क्लास में मशहूर कवि विलियम वर्डस् वर्थ की कविता में ट्रांस शब्द का अर्थ समझाते हुए प्रोफेसर हेस्टी ने कहा कि जिसे सचमुच इसका अर्थ जानना हो उसे रामकृष्ण परमहंस से मिलना चाहिए और यहीं से एक शिष्य से गुरु की मुलाकात तय हो गई। कहते हैं गुरु के बिना बुद्धिमान से बुद्धिमान शख्स भी अपने जीवन के लक्ष्य और अर्थ नहीं तलाश पाता है। स्वामी विवेकानंद के साथ भी यही हुआ, जबतक कि उनकी मुलाकात राम कृष्ण परमहंस से नहीं हुई थी।
गुरु रामकृष्ण परमहंस से नरेंद्रनाथ की मुलाकात---
स्वामी विवेकानंद अगर ज्ञान की रौशनी थे तो रामकृष्ण परमहंस वो प्रकाश पुंज थे जिनके ज्ञान की रौशनी ने नरेंद्रनाथ को विवेकानंद बना दिया था। अपने कॉलेज के प्रिंसिपल से रामकृष्ण परमहंस के बारे में सुनकर, नवंबर 1881 को वो उनसे मिलने दक्षिणेश्वर के काली मंदिर पहुंचे थे। रामकृष्ण परमहंस से भी नरेंद्र नाथ ने वही सवाल किया जो वो औरों से कर चुके थे, कि क्या आपने भगवान को देखा है? रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया-हां मैंने देखा है, मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितना कि तुम्हें देख सकता हूं। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं। रामकृष्ण परमहंस के जवाब से नरेंद्रनाथ प्रभावित तो हुए लेकिन शुरुआत में वो उनकी सोच को समझ नहीं सके। हालांकि इस मुलाकात के बाद उन्होंने नियम से रामकृष्ण परमहंस के पास जाना शुरू कर दिया। वो रामकृष्ण परमहंस के विचारों से सहमत नहीं थे। निराकार ब्रह्म के साथ एकाकार हो जाने के अद्वैतवाद के सिद्धांत को शुरुआत में उन्होंने धर्मविरोधी तक समझा। तर्क-वितर्क में वो रामकृष्ण परहमंस का विरोध करते थे, तब उन्हें यही जवाब मिलता था कि सत्य को सभी कोण से देखने की कोशिश करो। इसके बाद नरेंद्र के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया, जब 1884 में उनके पिता का देहांत हो गया। अमीर घर के नरेंद्र एकाएक गरीब हो गए। उनके घर पर उधार चुकाने की मांग करने वालों की भीड़ जमा होने लगी। नरेंद्र ने रोजगार तलाशने की भी कोशिश की लेकिन नाकाम रहने पर वो रामकृष्ण परमहंस के पास लौट आए। उन्होंने परमहंस से कहा कि वो मां काली से उनके परिवार की माली हालत सुधारने के लिए प्रार्थना करें। रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि वो खुद काली मां से प्रार्थना क्यों नहीं करते। कहा जाता है कि नरेंद्र तीन बार काली मंदिर में गए लेकिन हर बार उन्होंने अपने लिए ज्ञान और भक्ति मांगी। इस आध्यात्मिक तजुर्बे के बाद नरेंद्र ने सांसारिक मोह का त्याग कर दिया और राम कृष्ण परमहंस को अपना गुरु मान लिया। राम कृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को जीवन का ज्ञान दिया। 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस के निधन के दो साल बाद नरेंद्र भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े।
भारत भ्रमण---
भारत भ्रमण के दौरान वो देश में फैली गरीबी, पिछड़ेपन को देखकर विचलित हो उठे। छह साल तक नरेंद्रनाथ भारत की समस्या और आध्यात्म के गूढ़ सवालों पर विचार करते रहे। कहा जाता है कि इसी यात्रा के अंत में कन्याकुमारी में नरेंद्र को ये ज्ञान मिला कि नए भारत के निर्माण से ही देश की समस्या दूर की जा सकती है। भारत के पुनर्निर्माण का लगाव ही उन्हें शिकागो की धर्मसंसद तक ले गया।

आधार कार्ड का मजाक : भगवान हनुमान का आधार कार्ड नंबर- 2094 7051 9541 / Joke of The AAdhar Card : Lord Hanuman AAdhar Card No. 2094 7051 9541


पवनपुत्र भगवान हनुमान की पहचान तय हो गई है! दुनिया में उनके चाहे जितने भी मंदिर हों लेकिन उनका निवास स्थान भी तय हो गया है! ये भी तय हो चुका है कि हनुमानजी के पिता का क्या नाम है। आप सोच रहे होंगे, आखिर ये क्या बकवास है लेकिन ये हम बिना वजह नहीं कह रहे। हमारे इस बयान पर सरकारी दस्तावेज मुहर लगा रहे हैं। देश की बेहद अहम योजनाओं में शामिल आधार कार्ड को बनाने वाले सरकारी कर्मचारी किस तरह आँखें मूँदकर कार्ड छापते हैं, इसका जीता जागता सबूत राजस्थान के सीकर में मिला है। यहाँ भगवान हनुमान के नाम से आधार कार्ड भी बन गया और तस्वीर की जगह बजरंग बली की फोटो भी लगी है। दरअसल, सीकर में हनुमानजी के नाम से आधार कार्ड जारी हो चुका है। कार्ड पर बाकायदा उनकी तस्वीर छपी है और पिता के नाम पर पवनजी छपा हुआ है। कार्ड का नंबर है 209470519541 और कार्ड पर हनुमानजी का मोबाइल नम्बर भी छपा हआ है। साथ ही उनके जन्म की तारीख 1 जनवरी 1959 दी गई है। सीकर के दांतारामगढ़ में जारी कार्ड पर हनुमान जी का पता है, वार्ड नम्बर 6, दांतारामगढ़, पंचायत समिति के पास, जिला सीकर। जाहिर है इस पते पर कोई भी लिफाफा पहुँचना बेहद मुश्किल था। तीन दिनों तक डाकिया इस पते को खोजता रहा लेकिन उसे हनुमान जी का एक मंदिर तक देखने को नहीं मिला। हारकर पोस्ट ऑफिस स्टाफ ने लिफाफा खोला तो सारी बातें सामने आईं। सवाल ये है कि आखिर आधार कार्ड पर किसके फिंगर प्रिंट्स लिये गए और किसकी आँखों के रेटिना स्कैन किये गए ? तय है कि ये सरासर मजाक है और इस बेआधार मजाक के लिए आधार कार्ड बनानेवाले जिम्मेदार हैं। हनुमान जी के इस आधार कार्ड पर न सिर्फ पंजीयन क्रमांक- 1018 / 18252 / 01821 और कार्ड नंबर- 2094 7051 9541 दर्ज हैं। पवनपुत्र कहलाने वाले हनुमान जी के पिता के नाम वाले कॉलम में 'पवन जी' भी लिखा हुआ है। भगवान हनुमान के नाम पर जारी किए गए इस कार्ड को लेकर अब सबसे ज्यादा परेशानी शहर के डाकिये को हो रही है जो इस बात से परेशान है कि आखिर यह कार्ड कहाँ पहुँचाया जाए। यह कार्ड तीन दिन पहले सीकर के दातारामगढ़ कस्बे के पोस्ट ऑफिस में पहुंचा जिसमें वार्ड नंबर-6, दातारामगढ़ का पता लिखा है। जब यह पता ठीक न होने पर पोस्ट ऑफिस स्टाफ ने लिफाफे को खोला तो उसमें हनुमान जी के नाम का आधार कार्ड मिला। वे इस आधार कार्ड पर पंजीयन क्रमांक और कार्ड नंबर के साथ-साथ मोबाइल फोन नंबर भी देखकर हैरान रह गए। जब उस मोबाइल नंबर पर फोन किया गया, तो पता चला कि वह नंबर अंकित नामक एक युवक का है। अंकित के मुताबिक, दो साल पहले तक वह आधार कार्ड बनाने वाली कंपनी में ही सुपरवाइजर के पद पर तैनात था और उसी समय उसने भी आधार कार्ड के लिए अप्लाई किया था लेकिन किसी कारणवश कार्ड नहीं बन पाया।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर हिन्दुस्थान समाचार की रायशुमारी : जनता ने दिये अच्छे अंक / Completion of 100 Days of The Modi Government, Referendum of Hindusthan Samachar : People Gave Good Marks



प्रस्तुति : शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay
-18 राज्य के 51441 लोगों की राय
-मोदी से 5 साल में अपेक्षित परिणामों की उम्मीद
-मोदी दिखे मनमोहन पर भारी
-सौ दिन का रिपोर्ट कार्ड, अच्छे अंकों से पास हुई मोदी सरकार
-अरूणाचल, जम्मू-कश्मीर और मध्य प्रदेश में 80 प्रतिशत से अधिक मोदी के दीवाने
-दिल्ली, राजस्थान और उत्तराखंड में भी बरकरार है क्रेज
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के सौ दिन पूरे होने पर देश की जनता ने उनकी नेतृत्व में चल रही सरकार को अच्छे अंक दिये हैं। लोगों ने पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार के शासन को ज्यादा उम्दा बताया है। लेकिन, उनसे अपेक्षित परिणामों की उम्मीद पांच साल में करने की राय 40 फीसदी लोगों ने दी है। जनता ने जहां मोदी की विदेश नीति को सकारात्मक नजरों से देखा है वहीं इस सरकार के पहले बजट से लोगों की उम्मीदों में इजाफा होने का भी संकेत मिला है। हालांकि महंगाई के मुद्दे पर तत्कालिक राहत न मिलने का लोगों में मलाल जरूर दिखा लेकिन भविष्य को लेकर अधिकतर जनता आशान्वित है।
मोदी सरकार के सौ दिन का यह रिपोर्ट कार्ड देश की एकमात्र बहुभाषी न्यूज एजेंसी ‘हिन्दुस्थान समाचार’ द्वारा कराए गए एक सर्वे के आधार पर तैयार किया गया है। न्यूज एजेंसी ने देश के 18 राज्यों में 51,441 लोगों के बीच जब रायशुमारी की तो पता चला कि 44 प्रतिशत लोग मोदी से पांच साल में अपेक्षित परिणामों की आशा कर रहे हैं। सर्वे में लोगों से पूछा गया था कि मोदी सरकार से अपेक्षित परिणामों की आशा कब तक करनी चाहिए ? इस सवाल के जवाब में 25 प्रतिशत लोगों ने एक साल का वक्त दिया तो 31 फीसदी की राय दो साल की रही। करीब 26 प्रतिशत लोगों ने अपेक्षित परिणामों के लिए प्रधानमंत्री मोदी को पांच साल का समय देना उचित माना, जबकि 18 फीसदी इस मत के थे कि मोदी को आगामी कार्यकाल तक का वक्त दिया जाना चाहिये। इस तरह 44 प्रतिशत लोगों को मोदी से पांच साल में अपेक्षित परिणामों की आशा है। एक साल का वक्त देने वालों में सर्वाधिक राय त्रिपुरा, अरूणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और असम से मिली जहां के क्रमशः 85, 60, 71 और 45 प्रतिशत लोगों ने कहा कि मोदी से अपेक्षित परिणामों की आशा एक साल बाद करनी चाहिए। तीन साल का समय देने वालों में सर्वाधिक संख्या मध्य प्रदेश से 50 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश से 42-42 प्रतिशत, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से 40-40 प्रतिशत और दिल्ली से 36 प्रतिशत दर्ज किया गया। इसी तरह पांच साल तक का समय देने की वकालत करने वालों में सर्वाधिक संख्या झारखंड और हरियाणा में 39-39 प्रतिशत और बिहार में 37 फीसदी रही। पांच साल बाद अगले कार्यकाल में अपेक्षित परिणामों की उम्मीद करने वालों में सर्वाधिक 60 प्रतिशत लोग पंजाब में मिले।

मनमोहन पर भारी दिखे मोदी---
100 दिनों में मोदी सरकार मनमोहन सरकार की तुलना में कैसी रही ? इस सवाल के जवाब में मात्र 20.6 प्रतिशत लोग ही मोदी सरकार को पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार की तुलना में खराब मान रहे हैं, जबकि करीब 40 प्रतिशत जनता मोदी सरकार को अच्छी और 25.6 प्रतिशत लोग संतोषजनक मान रहे हैं। जिन लोगों को तुलनात्मक जवाब देने में कठिनाई हो रही थी उन्होंने ‘पता नहीं’ विकल्प चुना। ऐसे लोगों की संख्या भी लगभग 15 प्रतिशत रही। इस तरह करीब 80 प्रतिशत लोग मोदी सरकार से संतुष्ट दिखे। चूंकि परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक सम्मानजनक यानि डिस्टिंक्शन मार्क माना जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि मोदी के सौ दिन के रिपोर्ट कार्ड में जनता ने डिस्टिंक्शन मार्क दर्ज कर दिया है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश, दिल्ली, अरूणाचल प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश व हरियाणा जैसे राज्यों के क्रमशः 75, 73, 72, 72, 70 और 60 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार को मनमोहन सरकार की अपेक्षा बेहतर माना। उधर, जम्मू-कश्मीर में 52, असम और त्रिपुरा में 50, प0 बंगाल में 47, उत्तराखंड में 42, उत्तर प्रदेश में 37 और महाराष्ट्र में 31 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार को ज्यादा अच्छा बताया। हालांकि बिहार और छत्तीसगढ़ में मोदी सरकार को अव्वल बताने वालों की संख्या क्रमशः 32 और 24 प्रतिशत ही रही लेकिन इसके अलावा क्रमशः 44 और 42 प्रतिशत ऐसे लोग भी रहे जो सरकार को संतोषजनक बता रहे हैं। इन दोनों राज्यों में मोदी सरकार को खराब बताने वालों की संख्या क्रमशः 09 और 14 प्रतिशत रही।
मोदी के प्रति आकर्षण बरकरार---
करीब 36 प्रतिशत लोगों ने माना कि नरेंद्र मोदी के प्रति जनता में आकर्षण अभी भी बरकरार है जबकि 31 प्रतिशत लोगों ने रायशुमारी के दौरान बीचोबीच वाली स्थिति बताई। एक तरह से ये लोग भी मोदी के पक्ष में जाते दिखे। इससे मोदी के प्रति आकर्षण का प्रतिशत 67 हो जाता है। हालांकि 21 फीसदी लोगों की राय में सरकार बनने के बाद मोदी का क्रेज घटा है। 12 फीसदी लोगों ने इस सवाल के जवाब में कहा कि उन्हें पता नहीं। मोदी के प्रति सर्वाधिक आकर्षण अरूणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और उत्तराखंड में दिखा। इन राज्यों में क्रमशः 97, 85, 80, 71, 72 और 71 प्रतिशत लोग मोदी के दीवाने दिखे। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, हरियाणा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में यह प्रतिशत क्रमशः 33, 23, 39, 39, 41 व 52 रहा। महाराष्ट्र में मोदी का आकर्षण खराब बताने वालों की संख्या 25 प्रतिशत रही। हालांकि यहां के 35 प्रतिशत लोगों ने इस सवाल के जवाब में बीचोबीच वाली स्थिति बताई। बिहार में भी 52 प्रतिशत लोग बीचोबीच वाली स्थिति के पक्षधर रहे। उधर, महाराष्ट्र में मोदी के प्रति पहले जैसा आकर्षण अब नहीं दिख रहा। वहां मात्र 23 प्रतिशत लोग ही मोदी के आकर्षण को अच्छा मान रहे हैं जबकि खराब मानने वालों की संख्या 25 प्रतिशत है।
महंगाई व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर असमंजस---
महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मोदी को सत्ता सौंपने वाली जनता रायशुमारी के दौरान इन दोनों मुद्दों पर असमंजस में दिखी। हालांकि 38 प्रतिशत लोगों को विश्वास है कि मोदी सरकार महंगाई पर नियंत्रण कर लेगी। 27 प्रतिशत ने भविष्य में इस पर नियंत्रण की संभावना जताई। इस तरह 65 प्रतिशत लोग महंगाई से निजात पाने की उम्मीद किये हैं। हालांकि 21 फीसदी लोग सरकार को महंगाई रोक पाने में अक्षम पा रहे हैं और करीब 14 प्रतिशत ने इस सवाल के जवाब में कहा, ‘‘पता नहीं महंगाई रूक पायेगी अथवा नहीं’’। इसी तरह 36 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार को भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सफल माना, जबकि 24 प्रतिशत भविष्य में इस पर नियंत्रण की संभावना देख रहे हैं। यानि 60 प्रतिशत लोगों को विश्वास है कि मोदी भ्रष्टाचार को रोक लेंगे। हालांकि 22 प्रतिशत लोग इस मत के रहे कि सरकार भ्रष्टाचार को नहीं खत्म कर पायेगी वहीं 19 प्रतिशत ने ‘‘पता नहीं’’ का विकल्प भरा।
मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर जनता की राय---
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 38 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार की कार्यप्रणाली को अच्छा बताया। इसके अलावा 28 प्रतिशत ने संतोषजनक कहा। इस तरह 66 प्रतिशत लोग मोदी सरकार की कार्यशैली के प्रति सकारात्मक सोच बनाया हैं। हालांकि 18 प्रतिशत लोगों की राय में मोदी सरकार के कामकाज का तरीका ठीक नहीं। वहीं 17 प्रतिशत लोगों ने इस सवाल के जवाब में ‘‘पता नहीं’’ कहा। मोदी सरकार की कार्यशैली को सर्वाधिक पसंद करने वाले लोग मध्य प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और असम राज्यों में मिले जहां क्रमशः 88, 75, 62, 60, 62 और 53 प्रतिशत लोगों ने इसे अच्छा बताया। इन राज्यों में मोदी सरकार की कार्यशैली को खराब कहने वालों का प्रतिशत क्रमशः 01, 00, 02, 04, 06 और 33 रहा। असम में कार्यप्रणाली को खराब कहने वालों की संख्या सर्वाधिक 33 प्रतिशत रही। झारखंड के 43 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार की कार्यशैली को अच्छा बताया तो 33 फीसदी लोगों को यह संतोषजनक दिखा। खराब कहने वालों की संख्या 13 प्रतिशत रही। इसी तरह छत्तीसगढ़ के 47 प्रतिशत लोगों की निगाह में मोदी सरकार की कार्यशैली अच्छी है, जबकि 13 प्रतिशत लोग इसे खराब बता रहे हैं और 23 प्रतिशत ने संतोषजनक माना।  उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में ‘‘अच्छी’’ कार्यप्रणाली कहने वालों की संख्या क्रमशः 36, 33 और 30 प्रतिशत है तो खराब बताने वाले क्रमशः 24, 16 व 07 प्रतिशत लोग हैं। हालांकि इन राज्यों के क्रमशः 36, 22 और 42 प्रतिशत लोगों ने सरकार की कार्यप्रणाली को संतोषजनक बताया।
विदेश नीति पर जनता का मिजाज---
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 34 प्रतिशत लोग मोदी सरकार की विदेश नीति को सफल मान रहे हैं। इसके अलावा 28 प्रतिशत भविष्य में इसकी सफलता की संभावना देख रहे हैं। इस तरह 62 प्रतिशत लोग मोदी की विदेश नीति को सही बता रहे हैं। जिन लोगों ने मोदी की विदेश नीति की सफलता को नकारा है, उनकी संख्या 19 प्रतिशत दर्ज की गई। इस सवाल के जवाब में ‘‘पता नहीं’’ कहने वाले भी 19 फीसदी रहे। मध्य प्रदेश में 83 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर में 66, दिल्ली में 63, उत्तराखंड में 53 और राजस्थान में 52 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार की विदेश नीति को सफल बताया। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आसाम, झारखंड, पंजाब व हरियाणा में यह प्रतिशत क्रमशः 30, 32, 41, 38, 46 और 45 दर्ज किया गया। प0 बंगाल, छत्तीसगढ़ और बिहार के क्रमशः 28, 22 और 28 फीसदी लोगों ने ही मोदी की विदेश नीति को सफल माना। हालांकि इन राज्यों में अधिकतर लोगों ने भविष्य की संभावनाओं पर ज्यादा उम्मीद दिखाई।
62 प्रतिशत लोग सरकार के पहले बजट से संतुष्ट---  
सर्वे में एक सवाल मोदी सरकार के पहले बजट पर था। करीब 39 प्रतिशत लोगों ने बजट को देश की अर्थव्यवस्था को दुरूस्त करने वाला बताया, जबकि 23 प्रतिशत ने संतोषजनक कहा। यानि 62 प्रतिशत लोग सरकार के पहले बजट से संतुष्ट दिखे। 20 प्रतिशत लोगों ने इसे अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल देखा। हालांकि लगभग 19 प्रतिशत लोगों को इस सवाल का जवाब देने में कठिनाई हुई तो उन्होंने ‘‘पता नही’’ कहा। ‘‘पता नहीं’’ का जवाब देने वालों में सर्वाधिक 64 प्रतिशत संख्या बिहार से दर्ज की गई। इस राज्य में बजट को नकारात्मक मानने वाले 06 प्रतिशत रहे और सकारात्मक मानने वालों की संख्या भी मात्र 02 प्रतिशत ही रही। हालांकि 28 प्रतिशत लोगों ने बजट को संतोषजनक बताया। राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, मध्य प्रदेश और हरियाणा के क्रमशः 63, 64, 65 और 57 प्रतिशत लोगों ने बजट को अर्थव्यवस्था ठीक करने वाला माना जबकि असम में यह संख्या 52 प्रतिशत, प0 बंगाल में 45, झारखंड में 40, हिमाचल में 45, पंजाब में 53, अरूणाचल में 49, उत्तर प्रदेश में 40 और महाराष्ट्र में 33 प्रतिशत दर्ज हुई।
मोदी की नीतियां और विकास---
रायशुमारी के दौरान 38 प्रतिशत लोगों ने माना कि मोदी सरकार की नीतियां देश के विकास को सही दिशा में रफ्तार देंगी। साथ ही 31 प्रतिशत लोगों ने भविष्य में ज्यादा संभावना देखी। इस तरह 69 प्रतिशत लोग इस उम्मीद में हैं कि मोदी की नीतियां देश के विकास को गति देंगी। हालांकि करीब 20 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार की नीतियों को देश के विकास के लिए उपयुक्त नहीं माना। वहीं 11 प्रतिशत ने ‘‘पता नहीं’’ का विकल्प चुना। मोदी सरकार की नीतियों के सर्वाधिक प्रशंसक असम में दिखे जहां के 69 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इन नीतियों से देश के विकास को सही दिशा में गति मिलेगी। इसके बाद अरूणाचल प्रदेश के 65, दिल्ली के 61, मध्य प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के 60-60, राजस्थान के 53, पंजाब के 52, उत्तराखंड के 59, हरियाणा के 52, उत्तर प्रदेश के 39 और प0 बंगाल के 38 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार की नीतियों के पक्ष में दिखे। इन प्रदेशों से मिली नकारात्मक राय का प्रतिशत क्रमशः 00, 07, 08, 05, 17, 19, 04, 26, 26 और 15 दर्ज किया गया।   
जनता कैसे देख रही मोदी के वादे को---
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार करीब 34 प्रतिशत लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने वादों को पूरा करेंगे। इसके अलावा 31 प्रतिशत लोग इसे संभावित मानकर चल रहे हैं। इस तरह 65 प्रतिशत लोग वादे को पूरा होने को लेकर आशान्वित हैं जबकि 21 प्रतिशत का कहना है कि मोदी अपने वादे पूरा नहीं कर पायेंगे। दरअसल, मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान जनता से ढेर सारे वादे किये थे। अब सरकार बनते ही उनसे जनता की अपेक्षाएं बहुत बढ़ गयी हैं। इस संबंध में पूछे गये सवाल के जवाब में अरूणाचल प्रदेश के 82 प्रतिशत, मध्य प्रदेश के 75, उत्तराखंड के 62, राजस्थान के 61, बिहार और जम्मू-कश्मीर के 60-60, हिमाचल प्रदेश के 53, दिल्ली के 47, पंजाब के 46, हरियाणा के 45, छत्तीसगढ़ के 37, आसाम और झारखंड के 34-34, प0 बंगाल के 39, चंडीगढ़ के 32, महाराष्ट्र के 29 और उत्तर प्रदेश के 27 प्रतिशत लोगों ने कहा कि मोदी अपने वादे पूरा करेंगे। हालांकि त्रिपुरा के केवल 09 प्रतिशत लोगों में ही मोदी के वादों के प्रति विश्वास दिखा। दरअसल वहां के 71 प्रतिशत लोगों ने ‘‘पता नहीं’’ विकल्प पर अपना मत दिया है।

सर्वे-एक नजर में---
1-मनमोहन की तुलना में अच्छी है मोदी सरकार- करीब 80 प्रतिशत
2-मोदी सरकार का पहला बजट-संतोषजनक- 62 प्रतिशत
3-विकास को रफ्तार देंगी मोदी की नीतियां- सही- 69 प्रतिशत
4-महंगाई को नियंत्रित करेंगी मोदी सरकार- 65 प्रतिशत
5-भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पायेंगे मोदी- 60 प्रतिशत
6-विदेश नीति रहेगी सफल- 62 प्रतिशत
7-अच्छी और संतोषजनक है सरकार की कार्यप्रणाली- 66 प्रतिशत
8-वादे निभायेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- 65 प्रतिशत
9-अभी भी बरकरार है मोदी का आकर्षण- 67 प्रतिशत
10-पांच साल में मोदी से करें अपेक्षित परिणामों की आशा- 44 प्रतिशत

सर्वे का आकार---
मोदी सरकार के प्रति जनता का मिजाज जानने के लिए हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी ने देश के 18 राज्यों की पड़ताल की। इस दौरान 51,441 लोगों का सर्वे सैंपल लिया गया, जिसमें 63 प्रतिशत पुरुष, 37 प्रतिशत महिलाएं थीं। इन सब में करीब 52 प्रतिशत 40 वर्ष से कम के युवा थे। इसमें समाज के सभी वर्ग और क्षेत्र के लोगों की राय ली गई है। सर्वे के दौरान कुल दस सवालों के जवाब पूछे गये थे। सर्वेक्षण का यह कार्य हिन्दुस्थान समाचार के सैकड़ों कर्मठ संवाददाताओं ने कड़ी मेहनत कर 22 से 31 अगस्त के बीच पूरा किया। इसके बाद सम्पूर्ण आकड़े को संकलन प्रपत्र में इकट्ठा कर इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई।
सर्वे में जिन 18 राज्यों को आच्छादित किया गया, उनके नाम हैं-
1-उत्तर प्रदेश
2-मध्य प्रदेश
3-महाराष्ट्र
4-झारखंड
5-बिहार
6-प0 बंगाल
7-छत्तीसगढ़
8-हिमाचल प्रदेश
9-राजस्थान
10-त्रिपुरा
11-जम्मू-कश्मीर
12-आसाम
13-पंजाब
14-अरूणाचल प्रदेश
15-दिल्ली
16-चंडीगढ़
17-उत्तराखंड
18-हरियाणा


      ये थे सवाल और उनके जवाब


मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार---
उत्तर        संख्या        प्रतिशत
अच्छी        20,071        39
खराब        10,612        21
संतोषजनक    13,173        26
पता नहीं        7,585        15


मोदी सरकार का पहला बजट क्या अर्थव्यवस्था ठीक करेगा---

उत्तर        संख्या        प्रतिशत
हां        20,024        39
नहीं        10,142        20
संतोषजनक    11,726        23
पता नहीं        9,549        19


क्या मोदी सरकार की नीतियां विकास को देंगी रफ्तार---
उत्तर        संख्या        प्रतिशत
हां        19,706        38
नहीं        10,254        20
संभावना है    16,037        31
पता नहीं        5,444        11


क्या मोदी सरकार महंगाई पर नियंत्रण कर लेगी---
उत्तर        संख्या        प्रतिशत
हां        19,666        38
नहीं        10,989        21
संभावना है    13,641        27
पता नहीं        7,145        14


क्या मोदी सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पायेगी---
उत्तर        संख्या        प्रतिशत
हां        18,314        36
नहीं        11,189        22
संभावना है    12,191        24
पता नहीं        9,747        19


क्या मोदी सरकार की विदेश नीति सफल रहेगी---
उत्तर        संख्या        प्रतिशत
हां        17,708        34
नहीं        9,631        19
संभावना है    14,414        28
पता नहीं        9,688        19

मोदी सरकार की कार्यप्रणाली कैसी है---
उत्तर        संख्या        प्रतिशत
अच्छी        19,539        38
खराब        9,048        18
संतोषजनक    14,212        28
पता नहीं        8,642        17

 
क्या प्रधानमंत्री अपने वादे पूरे कर पायेंगे---
उत्तर        संख्या        प्रतिशत
हां        17,284        34
नहीं        10,710        21
संभावना है    15,850        31
पता नहीं        7,597        15


क्या मोदी का आकर्षण अभी भी बरकरार है---
उत्तर        संख्या        प्रतिशत
अच्छी है        18,348        36
खराब है        10,936        21
बीचोबीच        15,864        31
पता नहीं        6,293        12

मोदी से अपेक्षित परिणामों की आशा कब करनी चाहिये---
उत्तर            संख्या        प्रतिशत
एक साल में        13066        25
तीन साल में        16114        31
पांच साल में        13160        26
आगामी कार्यकाल में    9101        18