शनिवार, 27 जून 2015

रुडी व गोयल की उपस्थिति में केन्द्रीय कौशल विकास मंत्रालय व एनटीपीसी के बीच समझौता / Agreement Between NTPC & Central Skill Development Ministry at Patna

पटना में कौशल विकास से सम्बद्ध समझौते पर हस्ताक्षर करते एनटीपीसी व केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के अधिकारी।

-शीतांशु कुमार सहाय
कुशल भारत के निर्माण के साथ देश के हरेक युवा को सम्मानपूर्वक आजीविका से जोड़ने के लिए नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) द्वारा नेशनल स्किल्ड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन एवं नेशनल स्किल्ड डेवलपमेंट फण्ड के साथ एक समझौता-पत्र पर पटना में 26 जून 2015 को हस्ताक्षर हुए। इस अवसर पर केन्द्रीय विद्युत एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल और केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राजीव प्रताप रुडी उपस्थित थे।
पटना में समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद संचिकाओं के आदान-प्रदान करते केन्द्रीय कौशल विकास मंत्रालय व एनटीपीसी के अधिकारी। पीछे खड़े हैं केन्द्रीय विद्युत एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल और केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राजीव प्रताप रुडी।

-बिहार के लिए वरदान एनटीपीसी
इस मौके पर एनटीपीसी के अध्यक्ष अरूप राय चौधरी ने कहा कि एनटीपीसी बिहार के लिए वरदान साबित हुआ है, जहाँ अभी 4 हजार मेगावाट की बिजली का उत्पादन हो रहा है। कौशल विकास के मामले में एनटीपीसी बिहार के 25 हजार युवाओं को प्रशिक्षण देगा; ताकि ये व्यावसायिक क्षेत्र में प्रशिक्षण का लाभ उठा सकें। उन्होंने कहा कि सभी लोग को रोजगारपरक प्रशिक्षण दिया जायेगा। उन्होंने केन्द्र सरकार के पहल की सराहना करते हुए कहा कि एनटीपीसी कौशल विकास के मामले में हर तरह की मदद देने को तैयार है।
पटना में समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद संचिकाओं के आदान-प्रदान करते केन्द्रीय कौशल विकास मंत्रालय व एनटीपीसी के अधिकारी। पीछे खड़े हैं केन्द्रीय विद्युत एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल और केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राजीव प्रताप रुडी।

-5 हजार लोग प्रशिक्षित
इस अवसर पर कौशल विकास मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री ज्योत्सना ने कहा कि कौशल विकास में अभी तक 5 हजार लोग को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इस मौके पर समझौते के संबंध में एनटीपीसी द्वारा बिहार के युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। सर्टीफायड प्रशिक्षकों द्वारा टेªनिंग दी जायेगी।

देश का पहला कौशल विकास विश्वविद्यालय बिहार में : रूडी / FIRST SKILL DEVELOPMENT UNIVERSITY IN INDIA AT BIHAR

पटना में केन्द्रीय कौशल विकास मंत्रालय व एनटीपीसी के बीच समझौते के दौरान एनटीपीसी के अध्यक्ष, केन्द्रीय विद्युत एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल और केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राजीव प्रताप रुडी।

-शीतांशु कुमार सहाय
केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राजीव प्रताप रुडी ने शुक्रवार को पटना में 26 जून 2015 को केन्द्रीय कौशल विकास मंत्रालय व नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) के बीच समझौते के दौरान कहा कि बिहार में देश का पहला कौशल विकास विश्वविद्यालय खुलेगा। यह निर्णय अगले सत्र में केन्द्र सरकार लेगी। इसके बाद विश्वविद्यालय खोलने की तैयारी शुरू हो जायेगी। मंत्री ने कहा कि 15 जुलाई को विश्व में कौशल विकास दिवस मनाने की तैयारी है। देश में 65 साल के बाद पहली बार कौशल विकास मंत्रालय की स्थापना हुई है और इसका पहली बार वे मंत्री बने हैं।
-50 करोड़ लोग का होगा कौशल विकास   
रूडी ने कहा कि कौशल विकास के माध्यम से ही देश के युवाओं को रोजगार से जोड़ा जायेगा। इस कार्य में केन्द्र के 24 मंत्रालय जुड़े हैं। सभी 6 से 7 करोड़ रुपये इसके लिए खर्च कर रहे हैं। गुजरात में यह विभाग 15 वर्ष पहले से चल रहा है। उन्होंने कहा कि देश के 50 करोड़ लोग को कौशल विकास से जोड़ने के लिए प्रशिक्षण दिया जायेगा। विश्व में कौशल विकास के मामले में पीछे है। भारत में केवल तीन प्रतिशत लोग ही कौशल विकास से जुड़े है जबकि कोरिया में 96 प्रतिशत, चीन में 46, अमेरिका में 68, जापान में 80 प्रतिशत लोग कौशल विकास से युक्त हैं।
-हर साल 50 हजार प्रशिक्षक
मंत्री रुडी ने कहा कि एनटीपीसी से जो समझौता हुआ है उससे कौशल विकास से जुड़े युवाओं को 12 सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जायेगा। इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हर साल सेवानिवृत्त होनेवाले 50 हजार सैनिकों को प्रशिक्षक बनाया जायेगा। देश के सभी पावर सेक्टर से कौशल विकास के लिए समझौता किया जायेगा और प्रशिक्षण देने के लिए उनसे अनुरोध किया जाएगा। देश के 543 संसदीय क्षेत्र में कौशल विकास केन्द्र खोले जायेंगे।
-रूकेगा पलायन, बनेगा नया बिहार
रुडी ने कहा कि बिहार के नौजवान रोजगार के लिए बाहर जाते हैं और छोटे-छोटे कार्य करते हैं। अब उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ेगा। बिहार में भी दो-तीन माह के अंदर कौशल विकास विभाग की स्थापना की जायेगी। उन्होंने कहा कि बिहार में यदि विकास करना हो तो नया बिहार बनाना होगा। 

बुधवार, 24 जून 2015

'मेरा देश मेरा जीवन' : लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा में आपातकाल / 'My Country My Life' : LK Advani's Autobiography on Emergency


प्रस्तुति : शीतांशु कुमार सहाय
इतिहास में प्रत्येक युग किसी बड़ी अवधारणा का द्योतक होता है, जिसे कई वैज्ञानिकों और राजनीतिक चिंतकों ने 'सामूहिक मन' कहा है। जब यह अवधारणा अधिकांश लोगों के दिलो-दिमाग पर छा जाती है, तब वह इतिहास की प्रेरक शक्ति बन जाती है। इस दृष्टि से देखने पर पता चलेगा कि बीसवीं शताब्दी के अधिकांश आंदोलन परस्पर संबंधित दो बड़ी अवधारणाओं से प्रेरित थे-स्वतंत्रता और लोकतंत्र।
स्वतंत्रता की तलाश में कई परतंत्र राष्ट्रों ने उपनिवेशवादी शासन के विरुध्द संघर्ष किया। हालाँकि राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए इनमें से अधिकांश संघर्षों की शुरुआत अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में हुई, लेकिन उनके परिणाम मुख्य रूप से बीसवीं शताब्दी में प्राप्त हुए। राष्ट्र की स्वतंत्रता के साथ अन्य सशक्त आकांक्षाएँ भी पनपीं-जैसे राजतंत्र, सैनिक तानाशाह, निरंकुश कम्युनिस्ट पार्टी अथवा अन्य प्रकार की दमनकारी व्यवस्था के विरुध्द जनता के शासन की आकांक्षा। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष तो विदेशी शक्ति के विरुध्द करना पड़ा, किंतु लोकतंत्र के लिए संघर्ष आंतरिक शासन-व्यवस्था के विरुध्द करना पड़ा।
कई देशों में राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए अभियान जितना कठिन था, लगभग उतना ही कठिन था लोकतंत्र के लिए संघर्ष-और इसे उतने ही हिंसात्मक रूप से कुचल दिया गया। भावी इतिहासकार यह दर्ज करेंगे कि दो विश्व युध्द यदि बीसवीं शताब्दी के फलक पर दाग हैं तो स्वतंत्रता और लोकतंत्र की विजय इस युग की गौरवशाली उपलब्धि हैं।
भारत में हम लोग सौभाग्यशाली रहे कि हमारे पड़ोसी देशों और विश्व के अन्य देशों की भाँति सन् 1947 में ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के बाद हमें लोकतंत्र के लिए अलग से युध्द नहीं करना पड़ा। स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र उतने ही सहज ढंग से आया जैसे कि यहाँ पर पंथनिरपेक्षता स्वाभाविक रूप से थी; जैसाकि मैं इस संबंध में आगे चर्चा करूँगा। इन दोनों अवधारणाओं की स्वाभाविक स्वीकृति मुख्य रूप से भारत की हिंदू प्रकृति के कारण हुई। मानव इतिहास में हमेशा ऐसे उदाहरण रहे हैं कि कोई अवधारणा कितनी भी उदार क्यों न हो और उसकी जड़ें देश की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक भूमि में कितनी ही गहरी क्यों न हो, किंतु ऐसा नहीं हुआ है कि वह अहंकार-प्रेरित और सत्ता की लोलुपता में मदांध लोगों के प्रहार से सदैव बच गई हो। जब ऐसे प्रहार होते हैं तो जिस अवधारणा पर प्रहार होता है, कुछ देर के लिए उसपर ग्रहण लग जाता है। लेकिन ग्रहणकाल की इसकी वेदना ही छाए हुए अंधकार को दूर करने के लिए संघर्ष हेतु और अविनाशी अवधारणा के देदीप्यमान प्रकाश को बिखेरने के लिए विशाल जनसमूह को प्रेरित करती है।
ऐसा लगता है कि राष्ट्र को उचित सीख लेने और इसके माध्यम से उस अवधारणा हेतु अपनी प्रतिबध्दता बहाल करने के लिए इतिहास जान-बूझकर ऐसी अग्नि-परीक्षा की स्थिति पैदा करता है।
ऐसा ही कुछ जून 1975 में भारत में हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत पर कू्रर आपातकालीन शासन लागू कर लोकतंत्र पर ग्रहण लगा दिया। उन्नीस माह के बाद कांग्रेस पार्टी की तानाशाही के विरुध्द भारत की जनता के गौरवशाली संघर्ष के परिणामस्वरूप यह ग्रहण छँटा। यदि आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक अंधकारमय अवधि थी तो लोकतंत्र की बहाली के लिए किया गया विजयी संघर्ष सबसे देदीप्यमान घटना। ऐसा हुआ कि मैं अपने हजारों देशवासियों की तरह आपातकाल की संपूर्ण उन्नीस माह की अवधि जेल में व्यतीत करने के कारण इसका भुक्तभोगी तथा आपातकाल के विरुध्द युध्द में विजय प्राप्त करनेवाली लोकतंत्र सेना का एक सेनानी-दोनों रूपों में था।
-जून 1975 की दो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ :
भारत की स्वतंत्रता के साठ वर्षों पर नजर डालने पर पता चलता है कि इन छह दशकों में दो तिथियाँ ऐसी हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है और ये दोनों जून 1975 से जुड़ी हुई हैं।
इनमें से एक है-12 जून। सभी राजनीतिक विश्लेषकों को अचंभे में डालते हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में इंदिरा कांग्रेस की भारी पराजय हुई। दूसरा, उसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा में चुने जाने को निरस्त कर दिया और इसके साथ ही चुनावों में भ्रष्टाचार फैलाने के आधार पर उन्हें 6 वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया।
दूसरी तिथि है-25 जून। लोकतंत्र-प्रेमियों के लिए यह तिथि स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे काले दिवसों में से एक के रूप में याद रखी जाएगी। इस दुर्भाग्यपूर्ण तिथि से घटनाओं की ऐसी शृंखला चल पड़ी, जिसने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी तानाशाही में परिवर्तित कर दिया।
दिल्ली में जून के महीने में सबसे अधिक गरमी होती है। अतएव जब दल-बदल के विरुध्द प्रस्तावित कानून से संबंधित संयुक्त संसदीय समिति ने बगीचों के शहर बंगलौर, जो कि ग्रीष्मकाल में भी अपनी शीतल-सुखद जलवायु के लिए विख्यात है, में 26-27 जून को अपनी बैठक करने का निर्णय लिया तो मुझे काफी प्रसन्नता हुई। हम दोनों-अटलजी और मैं-इस समिति के सदस्य थे, जिसके कांग्रेस (ओ) के नेता श्याम नंदन मिश्र भी सदस्य थे।
हालाँकि, जब 25 जून की सुबह मैं दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर बंगलौर जानेवाले विमान पर सवार हुआ तो मुझे इस बात का जरा भी खयाल नहीं था कि यह यात्रा दो वर्ष लंबी अवधि के लिए मेरे 'निर्वासन' की शुरुआत है, जिसके संबंध में माउंट आबू बैठक के दौरान पार्टी सांसद और प्रख्यात ज्योतिषी डॉ. वसंत कुमार पंडित ने भविष्यवाणी की थी।
लोकसभा के अधिकारियों ने बंगलौर हवाई अड्डे पर मेरे सहयात्री मिश्र और मेरी अगवानी की। राज्य विधानसभा के विशाल भवन के पास स्थित विधायक निवास पर हमें ले जाया गया। अटलजी एक दिन पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे। इस संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष थे-कांग्रेस पार्टी के दरबारा सिंह, जो बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री बने।
26 जून को सुबह 7.30 बजे मेरे पास जनसंघ के स्थानीय कार्यालय से एक फोन आया। दिल्ली से जनसंघ के सचिव रामभाऊ गोडबोले का एक अत्यावश्यक संदेश था। वे कह रहे थे कि मध्य रात्रि के तुरंत बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तारी जारी है। पुलिस शीघ्र ही अटलजी और आपको गिरफ्तार करने के लिए पहुँचने वाली होगी। मैंने यह सूचना श्याम बाबू को दी। इसके बाद हम लोग एक साथ अटलजी के कमरे में गए। इस संबंध में संक्षिप्त चर्चा के बाद हम इस निर्णय पर पहुँचे कि हम लोग गिरफ्तारी से बचने का प्रयास नहीं करेंगे।
8.00 बजे आकाशवाणी से समाचार सुनने के लिए मैंने रेडियो चलाया। मुझे आकाशवाणी समाचारवाचक की परिचित आवाज के स्थान पर इंदिरा गांधी की गमगीन आवाज सुनाई दी। यह उनका राष्ट्र के नाम किया जानेवाला अचानक प्रसारण था, इस सूचना के साथ कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल घोषित कर दिया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आंतरिक अशांति से निबटने के लिए आपातकाल लागू करना आवश्यक था।
मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, जब मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना कि विपक्ष के बहुत बड़े षडयंत्र से देश को बचाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही उनका मनगढ़ंत आरोप यह था कि कुछ ऐसे तत्त्व हैं, जो लोकतंत्र के नाम पर भारत के लोकतंत्र को मिटाने के लिए तत्पर थे और इसे रोकने की आवश्यकता थी।
अटलजी और मैंने एक संयुक्त प्रेस वक्तव्य तैयार किया, जिसमें जयप्रकाशजी और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी की भर्त्सना की गई, आपातकाल की निंदा की गई और घोषणा की गई कि 26 जून, 1975 का वही ऐतिहासिक महत्त्व होगा, जो स्वतंत्रता पूर्व अवधि में 9 अगस्त, 1942 का है, जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासकों से कहा था-'भारत छोड़ो।'
हालाँकि यह वक्तव्य एक व्यर्थ प्रयास था। लोगों तक इस संदेश को पहुँचाने का कोई माध्यम ही नहीं था, क्योंकि आपातकाल की घोषणा के साथ ही सरकार ने तानाशाही की चिरपरिचित परंपरा के अनुकूल प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी। स्वतंत्रता के बाद पहली बार प्रेस पर पूर्ण सेंसरशिप लगाई गई थी।
पुलिस हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए सुबह 10.00 बजे आ पहुँची। प्रख्यात समाजवादी नेता मधु दंडवते भी एक अन्य संसदीय समिति की बैठक में भाग लेने के लिए बंगलौर में मौजूद थे, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। हम चारों को बंगलौर सेंट्रल जेल ले जाया गया। उस दिन, मेरी डायरी में उल्लिखित है-''26 जून, 1975 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का अंतिम दिन हो सकता है। आशा करता हूँ कि मेरा यह भय गलत सिध्द हो।'
-लालकृष्ण आडवाणी
(यह लेख वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा 'मेरा देश मेरा जीवन' से लिया गया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण 25 जून 2015 को भोपाल में श्रीश्री रविशंकर करेंगे)

25 जून : आपातकाल की ‘जयन्ती’ अर्थात् लोकतन्त्र की हत्या / June 25 : Emergency 'Jubilee', The Murder of Democracy


-शीतांशु कुमार सहाय
इंदिरा गाँधी को जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राजनारायण की चुनाव संबंधी याचिका पर फैसला सुनाया कि चुनाव संबंधी भ्रष्टाचार के लिए वह दोषी हैं तब उनकी लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो गयी। इंदिरा गाँधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। पूरे देश में लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) सहित तमाम जागरूक लोग ने 25 जून 1975 को इंदिरा गाँधी के इस्तीफे की माँग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान की सभा में हिस्सा लिया। जेपी ने तालियों के बीच रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियाँ ‘‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’’ का उद्बोधन किया। 25 जून को ही जेपी ने घोषणा की कि इंदिरा गाँधी को इस्तीफे के लिए मजबूर करने के लिए अहिंसक प्रदर्शन और सत्याग्रह किया जायेगा। जेपी ने सेना और पुलिस को गैर-कानूनी आदेशों का पालन नहीं करने की सलाह दी। जेपी और आम जनता की आवाज तथा माँगों को कुचलने के लिये इंदिरा गाँधी ने 25 जून कीे मध्य रात्रि में बिना मंत्रिमंडल की सलाह के आंतरिक आपातकाल लगाने की प्रस्ताव पर राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद को हस्ताक्षर करने को बाध्य किया। इसके साथ ही कानून की दृष्टि से समानता का अधिकार एवं मौलिक अधिकारों के कार्यान्वयन के लिए न्यायालय में अपील करने के अधिकारों को राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 359 के अंतर्गत निरस्त करने के संबंध में आदेश जारी कर दिया। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 मास की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था।
-मामला
मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि रायबरेली से इंदिरा गाँधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं. यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गाँधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।"
-26 जून को आंतरिक आपातकाल की घोषणा
26 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी एवं लोकनायक जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नानाजी देशमुख, जॉर्ज फर्नांडिस, राजनारायण, मधु लिमये और काँग्रेसी युवा तुर्क नेता चन्द्रशेखर, रामधन, कृष्णकांत, मोहन धारिया तथा देश के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर सहित लाखों विरोधी दल के नेता कार्यकर्ता, सामाजिक संगठन के लोग एवं पत्रकार को जेल में डाल दिया, गया। अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गयी, नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को स्थगित कर दिया गया। जय प्रकाश नारायण ने अपनी-जेल डायरी में व्यथित हृदय से लिखा था, ’’लोकतंत्र के क्षितिज को विस्तृत करने की बात तो एक ओर रह गयी और मानों लोकतंत्र ही एकाएक काल का ग्रास बन गया।’’ इस प्रकार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को तानाशाही में बदल डाला गया।

-लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा में आपातकाल
''8.00 बजे आकाशवाणी से समाचार सुनने के लिए मैंने रेडियो चलाया। मुझे आकाशवाणी समाचारवाचक की परिचित आवाज के स्थान पर इंदिरा गांधी की गमगीन आवाज सुनाई दी। यह उनका राष्ट्र के नाम किया जानेवाला अचानक प्रसारण था, इस सूचना के साथ कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल घोषित कर दिया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आंतरिक अशांति से निबटने के लिए आपातकाल लागू करना आवश्यक था।'' -लालकृष्ण आडवाणी, वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री

(यह वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा 'मेरा देश मेरा जीवन' से लिया गया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण 25 जून 2015 को भोपाल में श्रीश्री रविशंकर करेंगे)

इटारसी में आरआरआई जलने के कारण बिहार से चलनेवाली 31 ट्रेनों का परिचालन रद्द / 31 TRAINS CANCELLED

 -शीतांशु कुमार सहाय
कुछ दिन पहले इटारसी में आरआरआई के जलने के कारण दिनांक 25, 26, 27 एवं 28 जून, 2015 को पूर्व मध्य रेल से खुलने, गुजरने, पहँुचनेवाली 31 ट्रेनों  का परिचालन रद्द किया गया है। मित्रों यदि आप इन ट्रेनों से यात्रा करनेवाले हैं तो कृपया वैकल्पिक व्यवस्था कर लें और अपना टिकट वापस कर लें।

टिकट की पूरी राशि रेलवे वापस करेगी। रद्द ट्रेनों के विवरण निम्नानुसार हैं -
(क) दिनांक 25.06.2015 को खुलनेवाली ट्रेनों जिनका परिचालन रद्द किया गया है -
1.    दिनांक 25.06.2015 को राजेन्द्रनगर टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 12142 राजेन्द्रनगर-लोकमान्य तिलक टर्मिनल एक्सप्रेस
2.    दिनांक 25.06.2015 को रक्सौल से खुलने वाली गाड़ी सं. 12545 रक्सौल-लोकमान्य तिलक टर्मिनल एक्सप्रेस
3.    दिनांक 25.06.2015 को पटना से खुलने वाली गाड़ी सं. 12792 पटना-सिकंदराबाद एक्सप्रेस
4.    दिनांक 25.06.2015 को छत्रपति साहूमहाराज टर्मिनल कोल्हापुर से खुलने वाली गाड़ी सं. 11045 कोल्हापुर-धनबाद एक्सप्रेस
5.    दिनांक 25.06.2015 को सिकंदराबाद से खुलने वाली गाड़ी सं. 12791 सिकंदराबाद-पटना एक्सप्रेस
6.    दिनांक 25.06.2015 को लोकमान्य तिलक टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 15548 लोकमान्य तिलक टर्मिनल-जयनगर एक्सप्रेस
7.    दिनांक 25.06.2015 को पटना से खुलने वाली गाड़ी सं. 22353 पटना-बंगलोर कैंट प्रीमियम एक्सप्रेस

(ख) दिनांक 26.06.2015 को खुलने वाली ट्रेनों जिनका परिचालन रद्द किया गया है -
1.    दिनांक 26.06.2015 को मुजफरपुर से खुलने वाली गाड़ी सं. 11062 मुजफरपुर-लोकमान्य तिलक टर्मिनल पवन एक्सप्रेस
2.    दिनांक 26.06.2015 को राजेन्द्रनगर टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 13201 राजेन्द्रनगर-लोकमान्य तिलक टर्मिनल एक्सप्रेस
3.    दिनांक 26.06.2015 को लोकमान्य तिलक टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 11061 लोकमान्य तिलक टर्मिनल-मुजफरपुर पवन एक्सप्रेस
4.    दिनांक 26.06.2015 को लोकमान्य तिलक टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 12141 लोकमान्य तिलक टर्मिनल-राजेन्द्रनगर टर्मिनल एक्सप्रेस
5.    दिनांक 26.06.2015 को लोकमान्य तिलक टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 13202 लोकमान्य तिलक टर्मिनल-राजेन्द्रनगर टर्मिनल एक्सप्रेस
6.    दिनांक 26.06.2015 को अहमदाबाद से खुलने वाली गाड़ी सं. 15560 अहमदाबाद-दरभंगा एक्सप्रेस
7.    दिनांक 26.06.2015 को दानापुर से खुलने वाली गाड़ी सं. 22351 दानापुर-यशवंतपुर एक्सप्रेस


(ग) दिनांक 27.06.2015 को खुलने वाली ट्रेनों जिनका परिचालन रद्द किया गया है -
1.    दिनांक 27.06.2015 को राजेन्द्रनगर टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 12142 राजेन्द्रनगर-लोकमान्य तिलक टर्मिनल एक्सप्रेस
2.    दिनांक 27.06.2015 को हावड़ा से खुलने वाली गाड़ी सं. 12321 हावड़ा-मुंबई एक्सप्रेस
3.    दिनांक 27.06.2015 को पटना से खुलने वाली गाड़ी सं. 12742 पटना-वास्कोडिगामा एक्सप्रेस
4.    दिनांक 27.06.2015 को रक्सौल से खुलने वाली गाड़ी सं. 15267 रक्सौल-लोकमान्य तिलक टर्मिनल एक्सप्रेस
5.    दिनांक 27.06.2015 को मुंबई से खुलने वाली गाड़ी सं. 12322 मुंबई-हावड़ा एक्सप्रेस
6.    दिनांक 27.06.2015 को लोकमान्य तिलक टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 18610 लोकमान्य तिलक टर्मिनल-राँची एक्सप्रेस
7.    दिनांक 27.06.2015 को सूरत से खुलने वाली गाड़ी सं. 19047 सूरत-भागलपुर एक्सप्रेस

(घ) दिनांक 28.06.2015 को खुलने वाली ट्रेनों जिनका परिचालन रद्द किया गया है -
1.    दिनांक 28.06.2015 को राजेन्द्रनगर टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 12142 राजेन्द्रनगर-लोकमान्य तिलक टर्मिनल एक्सप्रेस
2.    दिनांक 28.06.2015 को पटना से खुलने वाली गाड़ी सं. 12296 पटना-बंगलोर संघमित्रा एक्सप्रेस
3.    दिनांक 28.06.2015 को गया से खुलने वाली गाड़ी सं. 12389 गया-चेन्नई एगमोर एक्सप्रेस
4.    दिनांक 28.06.2015 को पटना से खुलने वाली गाड़ी सं. 12792 पटना-सिकंदराबाद एक्सप्रेस
5.    दिनांक 28.06.2015 को राजेन्द्रनगर टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 13201 राजेन्द्रनगर-लोकमान्य तिलक टर्मिनल एक्सप्रेस
6.    दिनांक 28.06.2015 को बंगलोर कैंट से खुलने वाली गाड़ी सं. 22354 बंगलोर कैंट-पटना प्रीमियम एक्सप्रेस
7.    दिनांक 28.06.2015 को लोकमान्य तिलक टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 12141 लोकमान्य तिलक टर्मिनल-राजेन्द्रनगर टर्मिनल एक्सप्रेस
8.    दिनांक 28.06.2015 को बंगलोर से खुलने वाली गाड़ी सं. 12295 बंगलोर-पटना संघमित्रा एक्सप्रेस
9.    दिनांक 28.06.2015 को सिकंदराबाद खुलने वाली गाड़ी सं. 12791 सिकंदराबाद-पटना एक्सप्रेस
10.    दिनांक 28.06.2015 को लोकमान्य तिलक टर्मिनल से खुलने वाली गाड़ी सं. 13202 लोकमान्य तिलक टर्मिनल-राजेन्द्रनगर टर्मिनल एक्सप्रेस।
(http://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.in)

मंगलवार, 23 जून 2015

रामायण में वर्णित घटनाएँ सच हैं / Ramayana is real, say experts


-शीतांशु कुमार सहाय
रामायण और महाभारत को कल्पना कहनेवालों की बातों को पहले भी झूठ करार किया जा चुका है। अब एक अनुसन्धान के आधार पर सिद्ध हुआ है कि रामायण में वर्णित घटनाएँ सच हैं। यहाँ मैं अँग्रेजी समाचार पत्र ‘डेक्कन क्रॉनिकल’ के 18 जून 2015 के इंटरनेट संस्करण का यक समाचार मूल रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।
पहले भगवान को नमन कर लूँ-
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।1।।
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।2।।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।।



New research carried out by anthropological scientists from the Estonian Biocentre and the University of Delhi claims that events of the mythological epic Ramayana occurred in reality thousands of years ago. Hyderabad: New research carried out by anthropological scientists from the Estonian Biocentre and the University of Delhi claims that events of the mythological epic Ramayana occurred in reality thousands of years ago. Scientists say that results of their genetic studies, with existing data, show genetic signatures of tribal groups featured in the Ramayana such as the Gonds, Kols and Bhils. Gonds are  a prominent group in Adilabad district of Telangana.

Researchers claimed that populations in the Indian subcontinent can trace their ancestors to more than 60,000 years back. Scientists say that this is proof of the authenticity and actual occurrence of the events described in Ramayana, which would have occurred more than 12,000 years ago. The Gonds, Kols and Bhils are believed to be the ancient tribal groups of the region and have found mention in the Ramayana. Authenticity of the mythological text has been questioned several times. While there have been voices proclaiming the authenticity of the Ramayana, research to prove it has increased in recent times.

Dr Vadlamudi Raghavendra Rao, professor of anthropology, University of Delhi, and one of the authors of the study, said, “Definitely, the events described in Ramayana occurred in real. Our research has showed close genetic affinity of these tribes to other ethnic groups. We have shown that there is continuity in the populations groups living here.  Other researchers are working to prove other angles of this.”

The study was carried out by Estonian Biocentre researcher Gyaneshwar Chaubey, Institute of Scientific Research on Vedas, Dr Saroj Bala and Dr Raghavendra Rao. The Bhil, Kol and Gond are three major Indian tribes that have been widely acknowledged in the epic Ramayana, particularly in the chapters Ayodhyakanda, Aranyakanda and Kishkindhakanda. Gonds are prominently found in Adilabad district and other states and number about 40 lakh.

The research study says since these tribes are inhabitants of the country since the Stone Age, their genetic affinity to existing populations show the authenticity of the Ramayana. Researchers said these tribal groups form a closed cluster with Dravidian groups, known as inhabitants of South India. 
(from Deccan Chronicle | Amar tejaswi | June 18, 2015, 02.06 am IST) link is--- http://www.deccanchronicle.com/150618/nation-current-affairs/article/ramayana-real-say-experts

रामायण के साक्ष्य

अब मैं उन वर्तमान साक्ष्यों के बारे में बता रहा हूँ जो रामायणकाल की सच्चाई उजागर कर रहे हैं। 

-हनुमान गढ़ी मंदिर में राम भक्त हनुमान ने प्रभु श्रीराम का उस वक्त तक इंतज़ार किया था जब उनका अयोध्या से निर्वासन हो गया था।

-ये जानकी मंदिर है जो कि जनकपुर नेपाल में स्थित है, जानकी माता सीता का ही एक और नाम है।

 









-वनवास काल में प्रभु श्रीराम माता सीता और लक्ष्मण ने पंचवटी में एक झोपड़ी बनायी थी जो कि वर्तमान समय मे नासिक के नजदीक है।

 









-लेपक्षी आंध्र-प्रदेश में स्थित वह स्थान है जहां सीता माता की रक्षा करते समय जटायु रावण के हमले से घायल होकर गिरे थे।

 









-हनुमान जी का ये विशालकाय पदचिह्न श्रीलंका में है।

 












-रामसेतु तैरते पत्थरों का सेतु है जो वानर सेना द्वारा लंका जाने के लिए बनाया गया था। नासा द्वारा समुद्र में खोजा गया रामसेतु ऐसे लोगों की मान्यता को और पुष्ट करता है। रामसेतु जिसे अंग्रेजी में एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत (तमिलनाडु) के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। भौगोलिक प्रमाणों से पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस में जोड़ता था। यह पुल करीब 18 मील (30 किलोमीटर) लंबा है। ऐसा माना जाता है कि 15वीं शताब्दी तक पैदल पार करने योग्य था। एक चक्रवात के कारण यह पुल अपने पूर्व स्वरूप में नहीं रहा। रामसेतु एक बार फिर तब सुर्खियों में आया था, जब नासा के उपग्रह द्वारा लिए गए चित्र मीडिया में सुर्खियां बने थे।

-रावण ने शिवजी की घोर तपस्या कर उनसे वरदान पा लिया था, इसलिए रावण ने अपना एक मंदिर बनवाया जो कि पहला ऐसा मंदिर था जो तपस्या करने वाले के लिए बनाया गया था। यह मदिर कोनेस्वरम नाम से जाना जाता है जो श्रीलंका में है।

 




-जब रावण माता सीता को लंका लाया था तब सर्वप्रथम रावण माता को कोतुवा ले गया था जो कि अब सीता कोतुवा नाम से श्रीलंका का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।

 







-कोतुवा से वह माता को अशोक वाटिका ले गया था, जिसका यथार्थ में नाम अशोकवनम है जो कि श्रीलंका में है।

 









-यह तस्वीर उसानगोड़ा श्रीलंका की है जहां ज़मीन का कुछ हिस्सा काला है जो उस समय हुआ जब हनुमान जी ने लंका में आग लगायी थी, ये भी कहा जाता है कि इस स्थान पर ही रावण का पुष्पक विमान उतरता था।
 







-कहा जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें अपनी पटरानी मंदोदरि के साथ निवास करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। यह वही महल है, जिसे पवनपुत्र हनुमान ने लंका के साथ जला दिया था। लंका दहन को रावण के विरुद्ध राम की पहली बड़ी रणनीतिक जीत माना जा सकता है क्योंकि महाबली हनुमान के इस कौशल से वहां के सभी निवासी भयभीत होकर कहने लगे कि जब सेवक इतना शक्तिशाली है तो स्वामी कितना ताकतवर होगा। ...और जिस राजा की प्रजा भयभीत हो जाए तो वह आधी लड़ाई तो यूं ही हार जाता है। 

-सुग्रीव अपने भाई बाली से डरकर जिस कंदरा में रहता था, उसे सुग्रीव गुफा के नाम से जाना जाता है। यह ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित थी। ऐसी मान्यता है कि दक्षिण भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के विरुपाक्ष मंदिर से कुछ ही दूर पर स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता था और यही रामायण काल का ऋष्यमूक है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियां स्थापित हैं। रामायण की एक कहानी के अनुसार वानरराज बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस को मारकर उसका शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए दुंदुभि के रक्त की कुछ बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपने तपोबल से जान लिया कि यह करतूत किसकी है। क्रुद्ध ऋषि ने बाली को शाप दिया कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब बाली ने उसे प्रताड़ित कर अपने राज्य से निष्कासित किया तो वह इसी पर्वत पर एक कंदरा में अपने मंत्रियों समेत रहने लगा। यहीं उसकी राम और लक्ष्मण से भेंट हुई और बाद में राम ने बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य मिला।

जय श्री राम


रविवार, 21 जून 2015

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस : विश्वगुरु भारत का आधुनिक अभियान / International Yoga Day : World Teacher India of the Modern Campaign

शीतांशु कुमार सहाय
विश्व ने रविवार 21 जून 2015 को प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया। पूरे विश्व के लोग इस दिन भारतीय योगियों के आदेश पर झुकते रहे, उठक-बैठक करते रहे, हाथ-पैर मोड़ते रहे और अपूर्व शान्ति के लिए सृष्टि के प्रथम अक्षर ‘ऊँ’ का पवित्र उच्चारण कर धरती से अन्तरिक्षपर्यन्त पावनता का वातावरण कायम करते रहे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, जब विश्वविरादरी एक साथ एक ही कार्य किया हो। ऐसा होने पर भारत की ‘वसुधैवकुटुम्बकम्’ (समूची धरती के लोग परिवार हैं) वाली संस्कृति भी चरितार्थ हुई। इस विश्व कीर्तिमान से हम भले ही प्रसन्न हो जायें और प्रसन्न होने का विषय भी है, पर हमसे अधिक प्रसन्नता उसे है जिसने हमें धरती पर भेजा। जगद्नियन्ता भगवान मनुष्य के इस सामूहिक प्रयास से निश्चित ही बेहद प्रसन्न हैं; क्योंकि ऐसी सकारात्मक सामूहिकता विश्वविरादरी ने इससे पूर्व कभी नहीं दिखायी। 
विश्व को ज्ञान का प्रथम प्रकाश देनेवाला भारत ‘विश्वगुरु’ के रूप में जाना जाता रहा है। अपने उसी रूप को पुनः भारत ने प्रदर्शित किया है, बिना किसी आर्थिक लाभ लिये ही विश्व को योग का अमूल्य उपहार प्रदान किया है। विश्वव्यापी अशान्ति के बीच अमोघ शान्ति का मूलमन्त्र दिया है। शस्त्रास्त्रों की होड़ को समाप्त करने का सूत्र दिया है। पतित होकर गर्त्त में गिर रहे मनुष्य को पावनता के शिखर पर पहुँचने का सोपान उपलब्ध कराया है। रिश्ते-नातों को भूलकर हर किसी से काम-पिपासा को तृप्त करनेवालों को तृप्ति का नया साधन सुलभ कराया है, जहाँ की नैतिकता कभी अनैतिकता का अवलम्बन प्राप्त नहीं करती।

मनुष्य को भगवान बनानेवाले योग के विश्व दिवस के आगाज का समय बड़ा ही पावन है। अभी विश्व में प्रचलित सबसे प्राचीन वैज्ञानिक दिनपत्री (कैलेण्डर) विक्रम सम्वत् के अनुसार 21 जून 2015 को आषाढ़ अधिमास की पंचमी तिथि है। अधिमास को मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं जिस दौरान देवाराधना का विशेष महत्त्व होता है। यों हिजरी सम्वत् 1436 का सबसे पवित्र महीना रमजान चल रहा है और प्रत्येक मुसलमान इस पूरे महीने में (योग के नियमानुसार ही) संयमित-संस्कारित जीवन व्यतीत करते हैं, अल्लाह की उपासना में समय बिताते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि योग दिवस मनाने पर जब संयुक्त राष्ट्रसंघ में मतदान हुआ तो विश्व के 177 देशों ने भारत के इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था जिनमें 47 इस्लामी देश हैं। वैसे भी सनातनी (हिन्दू) से अधिक योग मुसलमान करते हैं जो प्रतिदिन 5 बार वज्रासन में बैठकर अल्लाह की खिदमत करते हैं, नमाज पढ़ते हैं और चरण स्पर्श की मुद्रा में सिर भी झुकाते हैं। इसी तरह भारतीय निर्देशन में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर विश्व ने असीम शान्ति के लिए परवरदीगार के सामने सिर झुकाया।
भारतीय मनीषियों द्वारा प्रदत्त अमूल्य सांस्कृतिक उपहार योग को आत्मसात् कर विश्व के सभी देश धन्य हो गये! धन्य हैं भारत के वे सभी योगी भी जिन्होंने सभी देशों में जाकर 21 जून 2015 को उन देशों के निवासियों को योग करवाया और इसके मर्म को समझाया। हालाँकि अँग्रजों ने लगभग 200 वर्षों तक भारत को न केवल लूटा; बल्कि इसके तमाम तकनीकों, उत्पादन इकाइयों, राष्ट्रीय व धार्मिक एकता को तहस-नहस किया। यों निर्यातक देश भारत आयातक बन गया। विश्वगुरु भारत दीन-हीन दीखने लगा। पर, अब स्थितियाँ बदल रही हैं, इसमें प्रत्येक भारतीय अपना सहयोग दे तो फिर से भारत विश्वगुरु बन सकता है। वैसे 21 जून 2015 को विश्वविरादरी को योग के भारतीय वरदान से अभिसिक्त कर हमने विश्वगुरु बनने की राह पर एक आधुनिक कदम आगे बढ़ा दिया है। शीघ्र ही हम आयुर्वेद के प्रति भी ऐसा ही करनेवाले हैं और उसके बाद कई और कदम बढ़ाये जायेंगे, बस सरकार के सही कदम का साथ देते जाइये। कई ऐसी बातें हैं जिन्हें बोलकर या लिखकर बताना उचित नहीं, सही समय पर सही व्यावहारिक कदम ही उठाये जायेंगे और यही उचित भी है। मैं 1991 से लगातार योग कर रहा हूँ और औषधिविहीन जीवन जी रहा हूँ। बहुत आवश्यक होने पर ही औषधि का सेवन करता हूँ। ....तो मानिये मेरी सलाह और प्रतिदिन योग करें और योग के पश्चात् श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ श्लोक अर्थ सहित अवश्य पढ़ें, शेष कार्य भगवान करते जायेंगे। इति शुभम्!


शुक्रवार, 19 जून 2015

विश्व योग दिवस : योग करते थे नेहरू, मिला शीर्षासन करता चित्र / WORLD YOG DAY : JAWAHARLAL NEHRU WAS FOLLOWER OF YOGA

-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay

विश्व योग दिवस (21 जून) के पहले पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की योग करते हुए फोटो सामने आई है। इस फोटो में नेहरू शीर्षासन की मुद्रा में हैं। नेहरू ने इस संबंध में एक किताब में लिखा है कि उन्हें शीर्षासन से फायदा होता है। योग से होने वाले फायदों को लेकर पंडित नेहरू ने लिखा था, ''शीर्षासन के दौरान सिर के बल खड़ा होना होता है।'' एक अंग्रेजी वेबसाइट के मुताबिक नेहरू ने लिखा था, ''इससे नीचे अपनी हथेलियों से सहारा देने के वजह से हाथों और उंगलियों के इंटरलॉक खुलते हैं। मेरा मानना है कि शारीरिक व्यायाम का यह सबसे अच्छा आसन है। मैं इसे पसंद करता हूं। मुझे इससे बहुत फायदा मिला है। योग करने से मेरी मानसिक शक्ति अच्छी होती है और साथ ही दिमाग शांत रहता है जिससे परेशानी के दौर में भी सहनशीलता की शक्ति विकसित होती है।'' योग करते हुए नेहरू की फोटो के सामने आने से बाबा रामदेव के दावे पर मुहर लग गई है। सोमवार 15 जून 2015 को चंडीगढ़ में रामदेव ने कहा था कि पंडित नेहरू और इंदिरा गाँधी भी योग करती थीं। रामदेव ने यह भी कहा था कि सोनिया गाँधी भी योग करती रही हैं लेकिन काँग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी योग से दूर हैं, इसलिए वह सत्ता से दूर हैं। राहुल गाँधी को योग सिखाने के लिए भी रामदेव तैयार थे। रामदेव ने काँग्रेस के नेताओं को नसीहत दी है कि वे योग के कार्यक्रम का राजनीतिक तौर पर तो विरोध कर सकते हैं लेकिन योग का विरोध न करें।
21 जून को जहाँ विश्व योग दिवस यूएन सहित दुनियाभर के तमाम देशों में मनाया जाएगा, वहीं कुछ मुस्लिम संगठन इसके विरोध में हैं। काँग्रेसशासित राज्य भी योग दिवस के विरोध में उतर आए हैं। बुधवार 17 जून 2015  को उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत ने बयान जारी कर कहा कि उत्तराखंड योग दिवस के कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा। इसी तरह झारखंड में भी काँग्रेस ने योग दिवस का विरोध करने का फैसला लिया है। विश्व योग दिवस के मौके पर 21 जून को सरकार की तरफ से राजपथ पर हजारों लोग के साथ योग का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सरकार की ओर से काँग्रेस नेताओं को भी आमंत्रण भेजा गया है। हालांकि, अभी तक काँग्रेस के किसी बड़े नेता के ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होने की पुष्टि नहीं की गई है। (शीर्षासन में पंडित नेहरू का चित्र 1950 के दशक का है।)
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शनिवार, 9 मई 2015

प्रधानमंत्री ने कोलकाता में सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी तीन योजनाएं लांच कीं


-शीतांशु कुमार सहाय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी तीन योजनाएं 'प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना', 'प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना' और 'अटल पेंशन योजना' का कोलकाता में लांच की। जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत दो लाख का जीवन-बीमा मिलेगा, जबकि सुरक्षा बीमा योजना के तहत दो लाख तक का दुर्घटना बीमा मिलेगा। दोनों योजनाओं का लाभ कोई भी बैंक खाताधारक उठा सकता है। वहीं, अटल पेंशन योजना उन बैंक खाताधारकों के लिए है, जिनकी आमदनी कर योग्य नहीं है और जो किसी अन्य संवैधानिक सामाजिक सुरक्षा योजना से नहीं जुड़े हैं। इस योजना के तहत एक हजार रुपये, दो हजार, तीन हजार, चार हजार और पाँच हजार रुपये मासिक पेंशन का विकल्प होगा, जिसके लिए प्रीमियम राशि अलग-अलग होगी। अधिकतम 40 साल की उम्र तक इसका सदस्य बना जा सकता है और 60 साल की उम्र से पेंशन मिलना शुरू होगा। मोदी ने कोलकाता में मुख्य समारोह में तीनों योजनाओं का उद्घाटन किया, जबकि राज्यों की राजधानियों समेत देश के 166 प्रमुख शहरों में एक साथ आयोजित कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केंद्रीय मंत्री सांसद तथा अन्य वरिष्ठ नेतागण शामिल हुए।

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना की मुख्य बातें ...
0 बीमा राशि दो लाख जो किसी भी कारण से मृत्यु होने की स्थिति में देय होगी।
0 बीमा अवधि एक साल (01 जून से 31 मई), हर साल 31 मई तक कराना होगा नवीकरण
0 18 से 50 साल की आयु वर्ग के हर बैंक खाताधारक होंगे पात्र। आधार होगा मुख्य केवाईसी।
0 330 रुपये होगी सालाना प्रीमियम राशि।
0 सदस्यता के लिए 31 मई तक करना होगा बैंक में आवेदन, ऑटो डेबिट से कटेगी प्रीमियम की राशि।
0 देर से सदस्यता लेने वालों को भी देनी होगी पूरी प्रीमियम राशि।
0 जिस बैंक में खाता होगा वहीं होगा मास्टर पॉलीसी होल्डर।
0 सदस्यता की अधिकतम उम्र सीमा 5० साल। एक बार सदस्य बनने के बाद 55 साल की उम्र तक ले सकते हैं लाभ।
0 55 साल की उम्र या बैंक खाता बंद होने या इसमें अपर्याप्त राशि होने पर समाप्त हो जायेगी सदस्यता।
0 एक से अधिक बैंक खातों के जरिये एक से अधिक सदस्यता लेने पर एक ही सदस्यता होगी वैध, अन्य का प्रीमियम होगा जब्त।
0 330 रुपये के प्रीमियम में 289 रुपये बीमा कंपनी (एलआईसी या अन्य) को मिलेगा, 3० रुपये एजेंट के खर्च पर जायेंगे और 11 रुपये बैंक को प्रशासनिक खर्च के रूप में मिलेंगे।

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना की मुख्य बातें ...
0 दुर्घटना के कारण मृत्यु पर बीमा राशि दो लाख।
0 दुर्घटना में दोनों आँखों की दृष्टि पूरी तरह चली जाने और उनके ठीक होने की कोई संभावना नहीं होने, दोनों हाथों या दोनों पैरों के  इस्तेमाल लायक न.न रहने या एक आँख की रोशनी जाने और एक हाथ या पैर के इस्तेमाल लायक नहीं रहने पर बीमा राशि दो लाख।
0 एक आँख की रोशनी पूरी तरह चले जाने और उसके वापस आने की कोई संभावना नहीं होने या एक हाथ या पैर का इस्तेमाल लायक नहीं रहने पर एक लाख की बीमा राशि।
0 बीमा अवधि एक साल (01 जून से 31 मई), हर साल कराना होगा रिन्यू। एक साथ कई सालों या अनिश्चित अवधि के रिन्यू के लिए भी बैंक को दे सकते हैं निर्देश।
0 18 से 70 साल की आयु वर्ग के हर बैंक खाताधारक होंगे पात्र। आधार होगा मुख्य केवाईसी।
0 12 रुपये होगी सालाना प्रीमियम राशि।
0  योजना के शुरुआती अनुभव के आधार पर प्रीमियम राशि में हो सकती है बढ़ोतरी। पहले तीन साल तक बढ़ाेतरी नहीं करने की होगी पूरी कोशिश।
0  सदस्यता के लिए 31 मई तक करना होगा बैंक में आवेदन, ऑटो डेबिट से कटेगी प्रीमियम की राशि।
0  देर से सदस्यता लेने वालों को भी देनी होगी पूरी प्रीमियम राशि।
0  जिस बैंक में खाता होगा वहीं होगा मास्टर पॉलीसी होल्डर।
0  70 साल की उम्र या बैंक खाता बंद होने या इसमें अपर्याप्त राशि होने पर समाप्त हो जायेगी सदस्यता।
0  एक से अधिक बैंक खातों के जरिये एक से अधिक सदस्यता लेने पर एक ही सदस्यता होगी वैध, अन्य का प्रीमियम होगा जब्त।
0 12 रुपये के प्रीमियम में 10 रुपये बीमा कंपनी (एलआईसी या अन्य) को मिलेगा, एक रुपया एजेंट के खर्च पर जायेगा और एक रुपया बैंक को प्रशासनिक खर्च के रूप में मिलेगा।

अटल पेंशन योजना की मुख्य बातें ...
0  असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों पर फोकस।
0  एक हजार, दो हजार, तीन हजार, चार हजार तथा पाँच हजार रुपये मासिक पेंशन का विकल्प।
0 18 से 40 साल की उम्र के ऐसे बैंक खाताधारक जिनकी आय करयोग्य नहीं है और जो किसी अन्य संवैधानिक सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ नहीं उठा रहे हैं, इसके पात्र होंगे।
0  60 साल की उम्र से मिलना शुरू होगा पेंशन।
0  सरकार तय करेगी न्यूनतम पेंशन राशि।
0  31 दिसंबर 2015 से पहले योजना में शामिल होने वालों के लिए सरकार हर साल अधिकतम 1000 रुपये का योगदान अपनी ओर से देगी।



रविवार, 26 अप्रैल 2015

इंडिया का नाम भारत होना चाहिए : बदलेगा देश का नाम, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्यों को भेजा नोटिस / BHARAT V/S INDIA


-शीतांशु कुमार सहाय
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार 25 अप्रैल 2015 को बहुत ही अहम फैसला लिया है कोर्ट ने कहा है कि इंडिया का नाम भारत होना चाहिए, इस मांग वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र के साथ ही सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस संदर्भ में जवाब मांग लिया है। महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन भटवाल ने इस याचिका में बोला है कि संविधान में इंडिया शब्द का प्रयोग केवल संदर्भ के रूप में ही हुआ है। भारत का ही प्रयोग आधिकारिक रूप में होना चाहिए। इंडिया नाम को बदलकर भारत के नाम से पहचाना जाना चाहिए इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस याचिका में देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत किए जाने की मांग की गई है। इस पर शीर्ष अदालत ने देश के नामकरण पर उठाए गए सवालों का परीक्षण करने का फैसला किया है। केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा गया है कि क्या ‘इंडिया’ नाम को बदलकर ‘भारत’ कर दिया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस भी जारी किया। याचिका में केंद्र को किसी सरकारी उद्देश्य के लिए और आधिकारिक पत्रों में इंडिया नाम का इस्तेमाल करने से रोकने की मांग की गई है। यह याचिका महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन भटवाल ने दायर की। उन्होंने कहा कि यहां तक कि गैर सरकारी संगठनों और कॉर्पोरेट्स को भी सभी आधिकारिक और अनाधिकारिक उद्देश्यों के लिए ‘भारत’ का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया जाना चाहिए। जनहित याचिका में कहा गया है कि संविधान सभा में देश का नाम रखने के लिए ‘भारत, हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष’ नाम रखने के प्रमुख सुझाव आए थे। इसके अलावा याचिका में कई और दलीलें दी गई है। संविधान की धारा 1 में इंडिया शब्द का इस्तेमाल गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 और इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के संदर्भ को प्रदर्शित करने के लिए किया गया है। इस आधार पर इंडिया शब्द का प्रयोग सही नहीं है। इसके अलावा यह भी पूछा गया गया कि क्या इंडिया शब्द को दुनियाभर के कूटनीतिक संबंधों को भुनाने के लिए किया गया। फिलहाल इस देश का नाम इंडिया रखने को लेकर कोई लिखित दस्तावेज नहीं है तो फिर यह नाम कैसे पड़ा।
निरंजन भटवाल ने यह याचिका दायर की है। भटवाल का कहना है कि ऐसा कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप को इंडिया के नाम से पुकारा गया हो या इसके निवासियों को इंडियंस कहा गया हो। याचिका के मुताबिक, 'मुगल शासकों ने भी कभी हमें इंडिया नहीं कहा। इंडिया शब्द ब्रिटिश शासन के दौरान चलन में आया।' याचिका कहती है कि संविधान लिखे जाने के दौरान डॉ. बीआर आंबेडकर ने भी इस मुद्दे पर संविधान सभा में खासी बहस की थी। हालांकि, इस बहस का नतीजा स्पष्ट नहीं है। याचिका ने संविधान के अनुच्छेद 1 का हवाला दिया जिसके मुताबिक, ''इंडिया, यानी भारत, राज्यों का समूह होगा।'' सत्ताधारी बीजेपी ने बेंगलुरु में अपने अधिवेशन में विदेश नीति पर एक प्रस्ताव पास किया था जिसमें इंडिया की जगह बार-बार भारत शब्द का ही इस्तेमाल हुआ था। संविधान की धारा 395 में स्पष्ट तौर से भारत शब्द का उल्लेख हुआ है।

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

पटना उच्च न्यायालय का शताब्दी समारोह : मूलभूत अधिकारों के संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका अहम : राष्ट्रपति / Centenary of the Patna High Court



 
-शीतांशु कुमार सहाय
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार 18 अप्रैल 2015 को पटना में पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। समारोह में राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा कि पटना उच्च न्यायालय के 100 वर्ष पूरा होना ऐतिहासिक क्षण है। मूलभूत अधिकारों के संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। आजादी के बाद पटना उच्च न्यायालय ने कई ऐतिहासिक फैसले दिये हैं। न्यायपालिका ने हमेशा संविधान की रक्षा की है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में न्यायालय का सूचना तकनीक से लैस होना जरूरी है। राष्ट्रपति ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के 100 साल में प्रवेश करना ऐतिहासिक क्षण है। बिहार ने देश को कई न्यायाधीश दिये। यहीं से देश को पहला राष्ट्रपति मिला। इस समारोह का विधिवत् उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दीप प्रज्वलित कर किया। दीप प्रज्जवल के समय राष्ट्रपति के साथ बिहार के राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी, भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू भी साथ रहे। शताब्दी समारोह पूरे साल भर तक चलेगा। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एचएलदत्तू ने समारोह की अध्यक्षता की।

-लंबित मामले और न्यायाधीशों के रिक्त पद
श्री मुखर्जी ने अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 43 है जबकि वर्तमान में सिर्फ 31 न्यायाधीश काम कर रहे हैं और 12 सीटें रिक्त हैं। श्री मुखर्जी ने कहा कि कोर्ट में जजों की कमी है। न्यायाधीशों की कमी के कारण लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। लंबित मामलों की संख्या लाखों में पहुँच गई है। उन्होंने कहा कि इन खाली सीटों को भरने की आवश्यकता है; ताकि आम आदमी को त्वरित और समय पर न्याय मिले।
-बढ़ाई जाय न्यायाधीशों की संख्या
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा कि त्वरित एवं गुणवतापूर्ण न्याय लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुत जरूरी है। आम आदमी को कम खर्च पर न्याय मिलना चाहिये। उन्होंने अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मुकदमों का शीघ्र निष्पादन किये जाने की आवश्यकता बतायी और कहा कि मामलों के शीघ्र निष्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिये न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ अदालतों एवं अन्य आधारभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराना जरूरी है। राष्ट्रपति ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालत तक बड़ी संख्या में मुकदमें लंबित हैं, इसके लिये उच्चतम न्यायालय से लेकर निचले अदालतों तक में लंबित मुकदमों के निष्पादन के लिए गंभीर प्रयास किये जाने चाहिये। कई राज्यों के उच्च न्यायालय और निचली अदालतों में भी न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं, जो लंबित मुकदमों के निपटारे में विलम्ब का बड़ा कारण है। उन्होंने न्यायालयों में रिक्तयों को भरने के लिये तेजी से कार्रवाई करने पर बल दिया और कहा कि बहाली में गुणवता से कोई भी समझौता नहीं किया जाना चाहिये। 

-न्यायालय में सूचना तकनीक
राष्ट्रपति ने कहा कि आज न्यायालय को भी सूचना तकनीक से लैस करने की जरूरत है। सूचना तकनीक से जुड़ने के बाद जरूरतमंदों को समय पर न्याय मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि सूचना तकनीकी एवं कम्प्यूटर का इस्तेमाल मुकदमों के रिकॉर्ड के संधारण और त्वरित निष्पादन में मददगार हो सकता है।
-न्यायपालिका एवं कार्यपालिका
राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने कहा कि संविधान में न्यायपालिका एवं कार्यपालिका की जिम्मेदारियों का स्पष्ट उल्लेख है। न्यायालय के कई ऐतिहासिक फैसलों ने कार्यपालिका को अपनी जिम्मेदारी निभाने का रास्ता भी दिखाया है।
-डाक टिकट, स्मारिका व शताब्दी भवन

पटना हाईकोर्ट के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इस अवसर पर राष्ट्रपति ने शताब्दी समारोह के दौरान पटना हाईकोर्ट के शताब्दी भवन का शिलान्यास भी किया गया। शताब्दी समारोह पर डाक टिकट भी जारी किया गया। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर पटना हाईकोर्ट के शताब्दी समारोह स्मारिका का विमोचन भी किया गया।
-पटना उच्च न्यायालय का स्वर्णिम इतिहास
राष्ट्रपति ने पटना उच्च न्यायालय के स्वर्णिम इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि ये गर्व की बात है कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सच्चिदानंद जैसे लोग यहाँ वकालत करते थे, जिनका योगदान संविधान के निर्माण में भी रहा था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बीपी सिन्हा, न्यायाधीश आरएन लोढ़ा एवं न्यायाधीश ललित मोहन शर्मा बाद में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने।
-मुख्य न्यायाधीश नरसिम्हा को गर्व   
इस मौके पर पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी ने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया। अपने संबोधन में न्यायाधीश रेड्डी ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के 100 साल पूरे होने पर गर्व की अनुभूति हो रही है। यह क्षण सभी के लिए ऐतिहासिक है। बिहार महापुरूषों की धरती है। पटना उच्च न्यायालय ने कई देश को कई महान न्यायाधीश दिये हैं।
-केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा
केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा- मैं पटना की धरती पर राष्ट्रपति महोदय का स्वागत करता हूँ। उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय का इतिहास गौरवशाली रहा है। पटना उच्च न्यायालय ने देश को कई न्यायाधीश दिये हैं। अपने 100 साल के सफर में इसने कई मानदण्ड स्थापित किये हैं। श्री प्रसाद ने कहा कि राजेन्द्र प्रसाद ने भी पटना उच्च न्यायालय में वकालत की थी। कई नेताओं ने भी यहाँ वकालत किया है।
- केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा
इस अवसर पर केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि मैं अपने आप को गौरवशाली महसूस कर रहा हूँ कि मुझे पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह में भाग लेने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य उच्च न्यायालय के ऊपर पड़नेवाले दबाव को कम करना है। लंबित मामलों को घटना हमारा प्रयास है। श्री गौड़ा ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था को मजबूत बनाया जायेगा; ताकि लोगों को किसी प्रकार की कोई परेशान न हो। केन्द्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों को भरने के साथ-साथ आधारभूत सुविधाएँ मुहैया कराने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में लंबित मामलों को देखते हुए महसूस किया जा रहा है कि अन्य माध्यम से भी विवादों को निपटाये जाने के लिए रास्ते तलाश किये जायें।

-बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा
पटना उच्च न्यायालय को इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए जिन चीजों की जरूरत होगी, राज्य सरकार उसे उपलब्ध करायेगा। पटना उच्च न्यायालय को राज्य सरकार की ओर से पूरा सहयोग मिलेगा। साथ ही पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या भी बढ़नी चाहिये। उक्त बातें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह के अवसर पर अपने संबोधन में कही। इस अवसर पर मुख्यमंत्री राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को शताब्दी समारोह में अपना किमती समय देने के लिए धन्यावद दिया। श्री कुमार ने कहा कि बिहार के लिए आज गौरव का दिन है और राष्ट्रपति का इस अवसर पर इसमें शामिल होना बिहारवासियों के लिए खुशी का क्षण है। पटना हाईकोर्ट के 100वें साल में प्रवेश करने पर उन्होंने बिहार की जनता को शुभकामनाएँ भी दी। इस अवसर पर उन्होंने पटना हाईकोर्ट के इतिहास पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1913 में हाईकोर्ट के भवन निर्माण आरंभ किया गया था। 1916 में तीन साल बाद भवन के बनने के बाद इसमें कार्य प्रारंभ हुआ। मुख्य न्यायाधीश समेत 7 न्यायाधीशों से पटना हाईकोर्ट में काम की शुरूआत हुई थी। इस अवसर पर श्री कुमार ने कहा कि न्याय के साथ विकास में न्यायापालिका का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कानून राज्य में न्यायापालिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मुख्यमंत्री श्री कुमार ने पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए कहा- राज्य में न्याय के साथ विकास, सबको न्याय दिलाने एवं राज्य में कानून का राज स्थापित करने में न्यायपालिका की बड़ी भूमिका है। जब मैंने राज्य का कार्यभार संभाला तो मेरी पहली प्राथमिकता सुशासन और न्याय के साथ विकास की थी। स्पीडी ट्रायल की व्यवस्था कर अपराधियों को सजा दिलाने का सर्वाधिक दर बिहार में रहा है।

-पटना उच्च न्यायालय का इतिहास
1916 में पटना उच्च न्यायालय ने अपना काम प्रारंभ किया था। 1913 से इसके भवन के निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ था। 3 वर्षों के अन्दर निर्माण कार्य पूरा हुआ और 7 न्यायाधीशों के साथ पटना उच्च न्यायालय ने अपना काम शुरू किया। बाद में 1948 में उड़ीसा उच्च न्यायालय, फिर 2000 में झारखण्ड उच्च न्यायालय की स्थापना हुई।
-महत्त्वपूर्ण सहभागिता
इस अवसर पर पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय विधि मंत्री सदांनद गौड़ा, केंद्रीय संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद भी मौजूद हैं। वहीं समारोह में सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान और पूर्व मुख्य न्यायाधीश, पटना हाईकोर्ट के वर्तमान और पूर्व न्यायाधीश सहित कई मंत्री भी उपस्थित रहे। साथ ही बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, बिहार के विधि मंत्री नरेन्द्र नारायण यादव सहित राज्य मंत्रिमण्डल के मंत्रीगण, न्यायाधीश, वरिष्ठ अधिकारी एवं गणमान्य व्यक्ति बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
-राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की विदाई

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपने दो दिवसीय बिहार दौरे के बाद शनिवार 18 अप्रैल 2015 को विशेष विमान से पटना से नयी दिल्ली वापस लौट गये। राष्ट्रपति को पटना हवाई अड्डा के स्टेट हैंगर में आयोजित एक समारोह में विदाई दी गयी। इस अवसर पर सशस्त्र पुलिस बल ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया तथा उन्होंने संयुक्त टुकड़ी से सलामी ली। हवाई अड्डा पर राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, बिहार विधानसभा के उपाध्यक्ष अमरेन्द्र प्रताप सिंह, विधान परिषद मंे प्रतिपक्ष नेता सुशील कुमार मोदी, विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता नन्द किशोर यादव, जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी सहित बिहार सरकार के कई मंत्री सहित अन्य गणमान्य लोग भी मौजूद रहे।  हवाई पट्टी पर भी, मुख्यमंत्री एवं वरीय अधिकारियों ने महामहिम राष्ट्रपति को फूलों का गुलदस्ता भेंट किया और उनके सुखद यात्रा एवं सफल जीवन की कामना की। राष्ट्रपति ने मुख्यमंत्री को इस अवसर पर दो पुस्तकं भी भेंट कीं। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति जी को पुनः बिहार आने के लिए कहा।



बुधवार, 15 अप्रैल 2015

इन्सेफलाइटिस पर 28 करोड़ रुपये से अधिक खर्च, नतीजा शून्य निकला / ENCEPHALITIS


-करोड़ों रुपये खर्च होने पर केवल बदला इन्सेफलाइटिस का नाम- नया नाम है इन्सेफेलोपैथी /ENCEPHALOPATHY
-शीतांशु कुमार सहाय
पिछले सात वर्षों में मौत ही मौत! अब भी यह सिलसिला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में चल ही रहा है। जिले में इन्सेफलाइटिस के शोध, दवा व अन्य मदों में पिछले दो वर्षों में 28 करोड़ रुपये से अधिक खर्च दिखाये गये पर नतीजा शून्य निकला। हर साल गर्मी में मौत का पर्याय बनकर बच्चों पर कहर ढाहनेवाले इन्सेफलाइटिस का सिर्फ नाम ही तो बदला है। इन्सेफलाइटिस के बजाय ‘इन्सेफेलोपैथी’ हो गया है। केंद्र सरकार के इस खर्च (28 करोड़ रुपये) में यदि बिहार राज्य सरकार के खर्च को मिला दिया जाय तो यह रकम काफी अधिक हो जायेगी। देश-विदेश की कई जाँच एजेंसियाँ लगीं पर नतीजा ढाक के तीन पात। स्मरणीय है कि पिछले कई वर्षों से उत्तर बिहार में इन्सेफलाइटिस से बच्चों की मौत का सिलसिला नहीं रूक रहा है। सबसे अधिक प्रभाव मुजफ्फरपुर जिले में देखने को मिलता है। कारण जानने के लिए शोध मद में केंद्र सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किये पर अभी तक किसी खास नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सका है। बच्चों के इलाज में बिहार सरकार भी करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। फलतः इस वर्ष भी लक्षण के आधार पर ही इलाज चलेगा। गर्मी के दस्तक देते ही इंसेफेलोपैथी के मरीजों का इलाज के लिए आना शुरू हो गया है। मौसम की तल्खी बढ़ती गयी तो मरीजों की संख्या भी बढ़ती जाती है।
-इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में मुजफ्फरपुर के 694 गाँव
इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में मुजफ्फरपुर जिले के 694 गाँव आते हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से कराये गये शोध में यह आँकड़ा सामने आया है। वर्ष 2010 से 2014 तक लगातार इन गाँवों में तथा इसके आस-पास मरीज मिले हैं। जिले के सिविल सर्जन ने इन प्रखंडों में इन्सेफेलोपैथी बीमारी से बचाव के लिए चिकित्सक व मेडिकल स्टाफ को जरूरी टिप्स देने का काम प्रारम्भ किया है। इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में जिले का मुसहरी, मीनापुर, बोचहाँ, काँटी प्रखंडों के ग्राफ सबसे ऊपर हैं। मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग इन क्षेत्रों के गाँवों पर पूरी नजर रखेगा। लोगों में जागरुकता लाने व बीमारी के नियन्त्रण के लिए इन गाँवों में माइकिंग कराने व घर-घर में पर्चा पहुँचाने का निर्णय लिया गया है। बच्चों के शत-प्रतिशत टीकाकरण के साथ ही एक-एक परिवार को जागरुक करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है; ताकि कम-से-कम बच्चे इस साल प्रभावित हो सकें।
-डा. जैकब मानते हैं लीची को कारण

इन्सेफेलोपैथी के शोध में लगे चेन्नई के वरीय वैज्ञानिक डॉ. जैकब जॉन की पिछले दिनों आयी शोध रपट पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं। शोध में उन्होंने इस बीमारी के पीछे लीची को भी एक कारण माना था। पर, इस साल तो 15 अप्रैल तक लीची में फूल से फल का निकलना शुरू हुआ, फिर भी श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) व केजरीवाल अस्पताल में इन्सेफलाइटिस प्रभावित मरीजों का आना शुरू हो गया है। कई संदिग्ध मरीज भी सामने आये हैं। इस शोध पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लीची उत्पादक किसान भोलानाथ झा इस बीमारी के शोध में लगे यहाँ के चिकित्सक, स्वास्थ्य एवं प्रशासन के वरीय अधिकारी का कहना है कि इसके शोध में सही कारणों का पता लगाना जरूरी है। मुसहरी स्थित लीची अनुसन्धान केन्द्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने कहा है कि वर्षों से लीची हमारी पहचान व मौसमी फल है। इन्सेफलाइटिस बीमारी का कारण लीची नहीं कुछ दूसरा है जिसपर सामूहिक रूप से शोध जरूरी है।
-डॉ. गोपाल बताते हैं तापमान को जिम्मेदार

इस बीमारी के एक अन्य शोधकर्ता व एसकेएमसीएच के वरीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. गोपाल शंकर सहनी का कहना है कि इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण तापमान यानी गर्मी है। जब तापमान बढ़ता है, मरीजों का बढ़ना शुरू हो जाता है और तापमान के घटते ही घटने लगती है मरीजों की संख्या।




बुधवार, 8 अप्रैल 2015

दो सौ से अधिक कौओं की मौत, बर्ड फ्लू की आशंका / MORE THAN 200 CROWS DEAD


-शीतांशु कुमार सहाय
झारखण्ड राज्य के खूटी जिलान्तर्गत कर्रा थाना परिसर स्थित पेड़ों पर बैठे दो सौ से अधिक कौओं की अचानक हुई मौत से लोगों में दहशत का आलम है। लोगों को इस बात का भय सता रहा है कि कहीं यह बर्ड फ्लू की निशानी तो नहीं है। जानकारी के अनुसार, थाना परिसर में लगे पेड़ों पर कौए तथा अन्य पक्षी रात को अपना बसेरा बनाते हैं। मंगलवार 7 अप्रैल 2015 की शाम को भी लोगों ने पक्षियों की चहचहाट सुनी, पर सुबह लोगों ने देखा कि पेड़ों के नीचे दौ सौ से अधिक कौए मरे पड़े हैं। आधा दर्जन चील की भी मौत हो गयी। पक्षियों की इस तरह की अचानक मौत से लोग अचम्भित तो हैं ही, उन्हें इस बात का भय सता रहा है कि यह कोई बड़े खतरे की घण्टी तो नहीं है। खूँटी क्षेत्र में किसी पक्षी विशेषज्ञ के नहीं रहने के कारण कौओं की मौत का कारणों का पता नहीं चल सका है।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

चितरंजन और वाराणसी की तर्ज पर विकसित होगा मढ़ौरा : रुडी / MARHAURA DIESEL LOCOMOTIVE (Rail Engine) FACTORY


-100 इंजन प्रतिवर्ष की क्षमता होगी मढ़ौरा रेल डीजल इंजन कारखाने की
-वाराणसी लोकोमोटिव कारखाने से बेहतर है मढ़ौरा रेल डीजल इंजन कारखाना

जिस प्रकार लोकोमोटिव कारखाने की वजह से चितरंजन और वाराणसी का विकास हुआ ठीक उसी प्रकार सारण जिले का मढ़ौरा भी अब देश के पटल पर अपनी एक अलग पहचान बनायेगा। इंजन कारखाने की शुरूआत से रेल नेटवर्क में मढ़ौरा ही नहीं सारण की अपनी पकड़ बढ़ जायेगी। इसकी वजह से क्षेत्र की आधारभूत संरचना का विकास होना भी तय है। प्रधानमंत्री व स्थानीय सांसद-सह-केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रुडी मिलकर इस कार्यक्रम को मुकाम तक पहुँचाने में लगे हैं। मढ़ौरा इंजन कारखाने से लगभग एक़ लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। गौरतलब है कि बिहार के विकास को लेकर केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली की अध्यक्षता में केन्द्र सरकार के मंत्रियों की एक उच्चस्तरीय बैठक नई दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक स्थित वित्त मंत्रालय के कार्यालय में सोमवार 6 अप्रैल 2015 को हुई थी, जिसमें बिहार के विकास की रूपरेखा तय की गई। बैठक में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रुडी, ऊर्जा मंत्री पीयुष गोयल, पेट्रॉलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी, केन्द्रीय मंत्री राम कृपाल यादव, केन्द्रीय मंत्री गिरीराज सिंह, केन्द्रीय मंत्री डा॰ महेश शर्मा, केन्द्रीय मंत्री अशोक गजापति एवं रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के अलावा अन्य वरिष्ठ मंत्री व सभी विभागीय सचिव उपस्थित थे। उक्त बातों की जानकारी केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता (स्वतंत्र) प्रभार-सह-संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव प्रताप रुडी ने मीडिया को दी।  
श्री रुडी ने कहा कि औद्योगिक क्षेत्र के रूप में पूरे बिहार में पहचान रखनेवाले मढ़ौरा का रेल डीजल इंजन कारखाना रेलवे की आय को बढ़ानेवाली एक महत्त्वपूर्ण परियोजना है। यह फैक्ट्री वाराणसी की डीजल लोकोमोटिव कारखाने से कई मामले में बेहतर है। इस परियोजना के पूरा हो जाने पर उच्च क्षमता व हाई स्पीडवाले करीब 100 इंजन प्रतिवर्ष निर्मित होंगे जिनकी बिक्री देश के अलावा दूसरे देशों को भी की जानी है। हाई स्पीडवाली डीजल लोकोमोटिव (इंजन) की दुनियाभर में माँग हीं मढ़ौरा की इस परियोजना को रेलवे की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना बनाती है। बैठक में स्थानीय सांसद-सह-केन्द्रीय मंत्री श्री रुडी ने सारण जिले की वैसी लंबित विभिन्न योजनाओं से वित्त मंत्री को अवगत कराया जिनके कार्यान्वयन से बिहार के विकास को गति मिल सकती है। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि राज्य में केन्द्र सरकार की विभिन्न परियोजनाओं के लंबित होने का मुख्य कारण भूमि अधिग्रहण में राज्य सरकार की उदासीनता रही है।
श्री रुडी ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि लालू प्रसाद यादव जब रेलमंत्री थे तब कारखाने की घोषणा के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण शुरू करवाया था पर जब इसके लिए धन की आवश्यकता पड़ी, तब योजना को किनारे लगा दिया गया। आज नीतीश कुमार भी भूमि अधिग्रहण का विरोध कर बिहार की जनता के साथ राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अन्य स्थानों की तरह मढ़ौरा में कारखाने के लिए जमीन प्राप्त करने में कोई परेशानी नहीं है। यहाँ लोग बिना किसी विरोध के रेलवे को भूमि देने के लिए तैयार हैं परन्तु कुछ लोग अपनी राजनीति की रोटी सेंकने के लिए क्षेत्र के विकास में अवरोध उत्पन्न कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी श्री रुडी ने मढ़ौरा की विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए पूर्ववर्ती केन्द्र की संप्रग सरकार से लेकर राज्य सरकार तक प्रयास किया था परन्तु पूर्ववर्ती सरकारों की संवेदनहीनता के कारण कभी भी ये योजनाएँ फलीभूत नहीं हो पायीं। श्री रुडी ने कहा कि केन्द्र का लक्ष्य राज्य की भौगोलिक दशा और दिशा को ध्यान में रखकर विकास के विविध प्रारूपों के नियोजन और कार्यान्वयन से समग्र विकास का लक्ष्य हासिल करना है। इसके अतिरिक्त बिहार के विकास के संदर्भ में उन बुनियादी शर्तों को भी पूरा करने का है जिसमें अंतिम व्यक्ति का हित सर्वोपरि हो। श्री रुडी के प्रवक्ता धनंजय तिवारी ने यह जानकारी दी।

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

झारखण्ड के मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विरोधी दल के नेता व विधायकों के वेतन में दुगुनी वृद्धि / Doubling the salaries of Jharkhand Chief Minister, Ministers, Opposition leader and legislators



-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay           
अभी कुछ ही दिन हुए हैं झारखण्ड में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बने हुए। तीन महीने से भी कम समय में रघुवर सरकार ने झारखण्ड के माननीयों के वेतन भत्ते को बढ़ाने हेतु समिति का गठन भी कर दिया। और तो और 13 मार्च 2015 को गठित इस समिति ने मात्र 12 दिनों के अंदर ही अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी। 24 मार्च को सौंपे गये रिपोर्ट को यदि सरकार अक्षरशः लागू करती है तो झारखण्डी माननीयों का वेतन भत्ता लगभग दोगुना हो जायेगा। वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष व मुख्यमंत्री को 1 लाख 33 हजार रूपये बतौर वेतन भत्ता मिलता है जो समिति के अनुशंसा के अनुसार बढ़कर 2 लाख 20 हजार रूपये प्रतिमाह हो जायेगा। वहीं मंत्रियों व नेता विपक्ष का वेतन भत्ता 1 लाख 17 हजार से बढकर 2 लाख 10 हजार हो जायेगा तो विधायकों को मिलने वाला वेतन भत्ता 96 हजार रूपये से बढ़कर 1 लाख 75 हजार रूपये हो जायेगा। माननीयों के लिए अच्छे दिन लाने वाले इस वृद्धि से झारखण्ड सरकार पर सलाना 80 करोड़ रूपये का अधिक बोझ पड़ने का अनुमान है।
गौरतलब है कि 15 नवंबर 2000 में झारखण्ड बनने के बाद से यहां के विधायकों के वेतन भत्ते में 3 बार वृद्धि की जा चुकी है। गरीब जनता वाले इस राज्य के माननीयों के वेतन में सबसे पहली वृद्धि 21 दिसंबर 2001 को हुई। पुनः 21 सितंबर 2005 और 3 सितंबर 2011 को इनके लिए वेतन भत्ते में वृद्धि करनी पड़ी। इस बार गरीब गुरबों की बात करने वाली मासस के विधायक अरूप चटर्जी के नेतृत्व में बनी विधानसभा समिति ने मात्र 12 दिनों में ही अपनों के वेतन भत्ते में वृद्धि की सिफारिश कर दी। इस समिति के कार्य करने की तीव्रता को देखकर लोगों के मन में एक आह बरबस आ ही जाता है कि काश! झारखण्ड के विकास के लिए बने में हर इक योजना पर इतनी तीव्रता से काम होता तो आज झारखण्ड का कायाकल्प ही हो जाता है। बात सिर्फ इतनी सी नहीं है कि झारखण्डी माननीयों के वेतन भत्ते में वृद्धि हो रही है। इस वृद्धि की सबसे बड़ी बात यह है कि विधायकों के वेतन वृद्धि के घोर विरोधी रहे भाकपा माले के पूर्व विधायक विनोद सिंह की अनुपस्थिति में इस वृद्धि का किसी भी विधायक ने विरोध करने का साहस तक नहीं दिखाया। विनोद सिंह के पहले विधायकों के वेतन वृद्धि का विरोध उनके पिता भाकपा माले के ही पूर्व विध्ाायक स्वर्गीय महेन्द्र सिंह किया करते थे।
अभी कुछ ही दिन हुए थे जब सरकार ने अपने मंत्रियों के एसयूवी गाड़ी खरीदने की स्वीकृति दी थी। झारखण्ड की जनता जानना चाहती है कि जिस राज्य के बहुसंख्यक लोगों को एक अदद साइकिल तक नसीब नहीं होती है वहां के मंत्रियों के लिए इतनी महंगी गाड़ियों की आवश्यकता भला क्या है ? यह सर्वविदित है कि खनिज संपदा के मामले में धनी इस राज्य के 40 प्रतिशत से भी अधिक की आबादी जहां दो जून रोटी के संघर्षरत है। किसान आज भी खेती के लिए मानसून पर ही आश्रित हैं। आज भी झारखण्ड में सिंचाई की स्थिति राज्य बनने के पहले जैसी ही है भले ही सरकारी आंकड़े कुछ कहते हों। मानसून के साथ जुआ खेलते हुए किसान किसी तरह साल में एक बार ही फसल उपजा पाते हैं। किसान कहना चाहती है काश! हमारे बारे में हमारी सरकार ने ऐसे ही तेजी से काम किया होता तो आज हम भी समृद्धि के मामले में पंजाब और हयिाणा के किसानों का टक्कर दे रहे होते। सरकारी कार्यालयों में वर्षों से पड़े रिक्त पदों को सरकार फंड के अभाव में भर नहीं पा रही है। नगरपालिकाओं में तो आजादी के बाद से बहाली तक नहीं हो पाई है। ऐसे में झारखण्डी माननीयों के वेनत भत्ते में वृद्धि आम आदमी के मन में निश्चित ही टीस पैदा करती है।
पता नहीं ऐसा क्यों है कि हर मसले पर अपनी अलग-अलग राय रखने वाले तमाम राजनीतिक दल माननीयों के वेतन भत्ते में वृद्धि के मामले में इतनी एकजुट कैसे हो जाती है ? झारखण्ड के अधिकतर विभागों की स्थिति ऐसी है कि वर्षों से यहां कम्प्यूटर ऑपरेटर का पद तक सृजित नहीं किया जा सका है जबकि आज के युग में कम्प्यूटर के बिना किसी भी विभाग का काम चल नहीं सकता है। 400-500 रूपये दैनिक की दर से अनुबंध्ा पर वर्षों से काम करने वाले कम्प्यूटर ऑपरेटर आज भी अपने कार्यालय के बॉस के रहमोकरम पर कार्य कर रहे हैं। सबसे दुखद बात यह कि झारखण्ड बनने के 14 वर्ष बीत जाने के भी आज तक किसी भी सरकार ने अनुबंध पर काम करने वाले इन कम्प्यूटर ऑपरेटरों के लिए श्रम विभाग में मानदेय की दर निर्धारित करना भी जरूरी नहीं समझा। ऐसे में इन बेचारों के मन में विधायकांे के वेतन भत्ते में हो रही वेतन वृद्धि पर प्रश्न उठना स्वभाविक है।
झारखण्ड में वर्षों से शिक्षा का अलख जलाने वाले पारा शिक्षकों के वेतन वृद्धि व स्थायीकरण के मुद्दे पर हरेक सरकार ने इन्हें केवल आश्वासन का घूंट पिलाने का ही काम किया है। झारखण्ड सरकार के द्वारा इनके समस्याओं के निराकरण के लिए समिति बनाई गई। पर समिति की सिफारिश का कुछ पता नहीं। ऐसे कितनी ही समितियां हैं जिनके द्वारा सालों से कोई रिपोर्ट नहीं दी गई है। कई बार तो पिछली सरकारों ने माना कि पारा शिक्षकों को स्थायी करना संभव नहीं है क्योंकि इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ेगा। भला ऐसे में पारा शिक्षकों से ईमानदारीपूर्वक कार्य करने की आशा कैसे की जा सकती है। आज वर्षों से पारा शिक्षक के रूप में कार्य कर सरकार नौकरी प्राप्त करने की उम्र सीमा खो चुके हजारों युवाओं के मन से एक ही सवाल उठ रहा है क्या मानीनयों के वेतन भत्ते में होने वाली वृद्धि से राज्य सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा ? माननीयों के वेतन भत्ता में वृद्धि पर पारा शिक्षका संघ के प्रदेश नेता विक्रांत ज्योति कहते हैं कि लोकतंत्र में आज राजा हित प्रजा हित से ऊपर हो चुका है। यही कारण है कि वर्षों से कार्य करने वाले पारा शिक्षकों की समस्याओं के समाधान के बदले सरकार और विपक्ष अपने हित पर काम करने में मशगुल हैं। पारा शिक्षकों की बात छोड़ दीजिये आज सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले मासूमों के मन में भी सवाल उठ रहा है। देश के भावी कर्णध्ाार अपने भाग्य विधाताओं से पूछ रहा है कि पैसे के अभाव में हमारे छात्रवृत्ति व पोशाक में कटौती की जाती है तो ऐसे में आपके वेतन वृद्धि के लिए पैसे कहां से आ जाते हैं ? अभी-अभी विधानसभा में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बयान दिया कि मनरेगा कर्मियों के मानदेय में वृद्धि करने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है। अर्थात् रोजगार सेवकों का मानदेय बढ़ने वाला नहीं हैं। भला ऐसे में अनुबंध पर काम करने वाले रोजगार सेवक अपने भाग्य निर्माताओं से पूछ ही सकता है कि माननीयों के वेतन भत्ते में वृद्धि के मामले में रघुवर राज में ऐसा रवैया क्यों नहीं अपनाया जाता है ?
अभी हाल ही की बात है। यहां वर्षों से झारखण्ड शिक्षा परियोजना परिषद् के अध्ाीन प्रखंड साधन सेवी व संकुल साधन सेवी यानि बीआरपी व सीआरपी कार्य कर रहे हैं। शिक्षाधिकार कानून के मुताबिक इस पद पर आसीन व्यक्तियों के लिए बीएड या समकक्ष की डिग्री होना आवश्यक माना गया है। अनुमानित तौर पर पूरे राज्य मे लगभग 4000 बीआरपी-सीआरपी कार्यरत हैं जिनमें से प्रशिक्षित की संख्या मात्र 500 के आसपास है। अप्रशिक्षित बीआरपी-सीआरपी के लिए जब प्रशिक्षण की बात आई तो परियोजना के कार्यकारिणी ने वित्तीय भार का हवाला देते हुए फैसला लिया कि अप्रशिक्षित बीआरपी-सीआरपी को प्रशिक्षित किया जायेगा, लेकिन उनके प्रशिक्षण में होने वाले व्यय का वहन संबंधित बीआरपी-सीआरपी करेंगे। विदित हो कि इन अप्रशिक्षित बीआरपी-सीआरपी को प्रशिक्षण कराने में अनुमानित तौर पर बमुश्किल केवल 5 करोड़ रूपये ही खर्च होना है। अब भला जिस राज्य की सरकार अपने माननीयों के वेतन भत्ते के लिए सलाना 80 करोड़ रूपये का अतिरिक्त बोझ झेल सकती है तो बीआरपी-सीआरपी के लिए केवल 5 करोड़ रूपये खर्च नहीं कर सकती है ? ऐसे में उम्र के बेकाम पड़ाव में पहुंचे ऐसे युवाओं के मन में भी सवाल है कि हमारे माननीय क्या केवल अपने बारे में ही सोचते रहेंगे ? जिस शिक्षा विभाग का काम आज बीआरपी-सीआरपी के बिना चल नहीं सकता है उस पद को स्थायी करने की जहमत भी किसी सरकार ने नहीं उठाया जबकि इस पद की स्वीकृति आरटीई में भी है जिसमें इस पद को संकुल समन्वयक का नाम दिया गया है।
लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने ‘अच्छे दिन आयेंगे’ का नारा दिया था। जनता का तो पता नहीं पर वेतन भत्ते में वृद्धि के द्वारा झारखण्ड के माननीयों के लिए अच्छे दिन लाने की तैयारी की जा रही है। लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने एक और नारा दिया था- ‘सबका साथ, सबका विकास‘। माननीयों के वेतन वृद्धि के मामले को देख कर आम आदमी अपने निजाम से पूछ रही है क्या यही है सबका साथ, सबका विकास। आम आदमी कह रहा है कि अपनी वेतन वृद्धि के मामले में भाजपा ने सबका यानि सभी विध्ाायकों का साथ मिला और सभी विधायकों के वेतन में होने वाली वृद्धि से सबका विकास भी हो जायेगा। आम आदमी सोच रहा है हमारी सरकार ने अपने लोगों यानि विधायकों के लिए तो यह नारा सच कर दिखाया। अब देखना है कि राज्य की जनता के लिए यह नारा कब और कितना सार्थक सिद्ध हो पाता है ?