मंगलवार, 31 मई 2022

प्रेमचन्द के बिना हिन्दी साहित्य का इतिहास अधूरा The Great Author Premchand

 -शीतांशु कुमार सहाय 


जयन्ती (३१ जुलाई) पर महान हिन्दी साहित्यकार प्रेमचन्द को कोटि-कोटि प्रणाम!

आधुनिक भारत के शीर्षस्थ साहित्यकार प्रेमचंद की रचना दृष्टि साहित्य के विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुई है। उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्होंने साहित्य सृजन किया।

अपने जीवनकाल में ही उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि मिल गई थी किन्तु पाठकों के बीच आज भी उनका कहानीकार का रूप स्वीकारा, सराहा जाता है।

उन का जीवन जितनी गहनता लिये हुए है, साहित्य के फलक पर उतना ही व्यापक भी है। प्रेमचन्द ने हिन्दी साहित्य की महती सेवा की और इस के भण्डार को अपनी लेखनी की निधि से धन्य किया। 

उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल पुस्तकें तथा हजारों की संख्या में लेख आदि की रचना की।

वे स्वयं आजीवन ज़मीन से जुड़े रहे और अपने पात्रों का चयन भी हमेशा परिवेश के अनुसार ही किया।

हिन्दी साहित्य के आकाश में प्रेमचन्द सदा-सर्वदा दैदीप्यमान रहेंगे। 

सोमवार, 23 मई 2022

देश को खोखला बनाती हैं मुफ़्त वाली योजनाएँ Free Schemes Make The Country Weak

 -शीतांशु कुमार सहाय 


     
भारत महान है लेकिन इस की महानता दिखायी नहीं दे रही है। विश्व के सब से बड़े लोकतन्त्र के बहुत लोग (सभी नहीं) मुफ़्त सरकारी सुविधाओं की अपेक्षा रखते हैं। पर, यह स्थिति देश को हर तरीके से कमजोर और देशवासियों को अकर्मण्य बना देता है। प्रसन्नता इस बात की है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्रीय सरकार मुफतिया योजनाओं को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है। इस सन्दर्भ को एक उदाहरण के माध्यम से समझिये...

     अर्थशास्त्र के एक प्राध्यापक ने अपने एक बयान में कहा, “मैं ने पहले कभी किसी छात्र को अनुत्तीर्ण नहीं किया, पर हाल ही में मुझे एक पूरी-की-पूरी क्लास को फेल करना पड़ा है l”

     आखिर ऐसा क्यों हुआ; क्योंकि उस क्लास छात्रों ने दृढ़तापूर्वक यह कहा था-- “समाजवाद सफल होगा। न कोई गरीब होगा और न कोई धनी होगा।”  उन छात्रों का दृढ़ विश्वास है कि यह सब को समान करनेवाला एक महान सिद्धांत है।

     तब प्राध्यापक ने कहा– अच्छा ठीक है ! आओ हम क्लास में समाजवाद के अनुरूप एक प्रयोग करते हैं। सफलता पाने वाले सभी छात्रों के विभिन्न ग्रेड (अंकों) का औसत निकाला जाएगा और सब को वही एक काॅमन ग्रेड दिया जायेगा।

पहली परीक्षा के बाद...

     सभी ग्रेडों का औसत निकाला गया और प्रत्येक छात्र को B ग्रेड प्राप्त हुआl

     जिन छात्रों ने कठिन परिश्रम किया था वे परेशान हो गए और जिन्होंने कम पढ़ाई की थी वे खुश हुए l

     दूसरी परीक्षा के लिए कम पढ़नेवाले छात्रों ने पहले से भी और कम पढ़ाई की और जिहोंने कठिन परिश्रम किया था, उन्होंने यह तय किया कि वे भी मुफ़्त का ग्रेड प्राप्त करेंगे और उन्होंने भी कम पढ़ाई की l

दूसरी परीक्षा में ...

     सभी का काॅमन ग्रेड D आया l

     इस से कोई खुश नहीं था और सब एक-दूसरे को कोसने लगे।

     जब तीसरी परीक्षा हुई तो काॅमन ग्रेड F हो गयाl

     जैसे-जैसे परीक्षाएँ आगे बढ़ने लगीं, स्कोर कभी ऊपर नहीं उठा; बल्कि और भी नीचे गिरता रहा। आपसी कलह, आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज और एक-दूसरे से नाराजगी के परिणाम स्वरूप कोई भी नहीं पढ़ता था; क्योंकि कोई भी छात्र अपने परिश्रम से दूसरे को लाभ नहीं पहुँचाना चाहता था l

     अंत में सभी आश्चर्यजनक रूप से फेल हो गए और प्राध्यापक ने उन्हें समझाया-

     इसी तरह समाजवाद  की नियति भी अंततोगत्वा फेल होने की ही है; क्योंकि इनाम जब बहुत बड़ा होता है तो सफल होने के लिए किया जानेवाला उद्यम भी बहुत बड़ा करना होता है l

     परन्तु जब सरकारें मेहनत के सारे लाभ मेहनत करने वालों से छीन कर वंचितों और निकम्मों में बाँट देगी, तो कोई भी न तो मेहनत करना चाहेगा और न ही सफल होने की कोशिश करेगा l

उन्होंने यह भी समझाया-

     "इस से निम्नलिखित पाँच सिद्धांत भी निष्कर्षित व प्रतिपादित होते हैं :-

१. यदि आप राष्ट्र को समृद्ध और समाज को सक्षम बनाना चाहते हैं, तो किसी भी व्यक्ति को उस की समृद्धि से बेदखल कर गरीब को समृद्ध बनाने का क़ानून नहीं बना सकते।

२. जो व्यक्ति बिना कार्य किये कुछ प्राप्त करता है, तो वह अवश्य ही अधिक परिश्रम करनेवाले किसी अन्य व्यक्ति के पुरस्कार को छीन कर उसे दिया जाता है।

३. सरकार तब तक किसी को कोई वस्तु नहीं दे सकती, जब तक वह उस वस्तु को किसी अन्य से छीन न ले।

४. आप सम्पदा को बाँटकर उस की वृद्धि नहीं कर सकते।

५. जब किसी राष्ट्र की आधी आबादी यह समझ लेती है कि उसे कोई काम नहीं करना है; क्योंकि शेष आधी आबादी उस की देख-भाल जो कर रही है और बाकी आधी आबादी यह सोचकर ज़्यादा अच्छा कार्य नहीं कर रही कि उस के कर्म का फल किसी दूसरे को मिलना है, तो वहीं से उस राष्ट्र के पतन की शुरुआत हो जाती है।

आप ने पूरा आलेख पढ़ा है तो आप को मैं धन्यवाद देता हूँ और यदि समझ में आया है तो देश हित में आगे शेयर करें...

रविवार, 8 मई 2022

माँ या पिता के नाम एक दिन का सम्मान भारतीय संस्कृति के विरुद्ध Mother's Day Or Father's Day Are Not Good In Indian Culture

-शीतांशु कुमार सहाय 


 हमारी परम्परा है... 

      प्रातः उठने के पश्चात् माँ, पिता और सभी बड़ों के चरण स्पर्श कर उन का अभिवादन करना।

      अर्थात् प्रतिदिन मदर्स डे, फादर्स डे, ब्रदर्स डे, सिस्टर्स डे मनाती आयी है हमारी पीढ़ियाँ।

      ऐसे में किसी एक दिन को तरजीह देना वास्तव में अपनी समृद्ध संस्कृति को निम्नतर आँकने के समतुल्य है। 

      मनुस्मृति में महर्षि मनु ने कहा है...

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोसेविनः।

चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्।।

      अर्थात्, प्रतिदिन बड़े-बुजुर्गों के अभिवादन से आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है। 

      जय भारत!

मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

आज़ादी का अमृत उत्सव : अँग्रेजों को हरानेवाले महान स्वाधीनता सेनानी वीर कुँवर सिंह The Great Feedom Fighter of Indìa Veer Kunwar Singh


 -शीतांशु कुमार सहाय

थे वयोवृद्ध तुम, किन्तु जवानी नस-नस में लहराती थी।

बिजली लज्जित हो जाती थी, तलवार चमक जब जाती थी।

तुम बढ़ते जिधर, उधर मचता अरि-दल में कोलाहल-क्रन्दन।

हे वीर तुम्हारा अभिनन्दन!

      कविवर सत्यनारायण लाल ने अपनी कविता ‘वीर कुँवर सिंह के प्रति’ में प्रख्यात भारतीय स्वाधीनता सेनानी वीर बाबू कुँवर सिंह की शूरता व विजय अभियान का काव्यात्मक वर्णन किया है। कुँवर सिंह ने अन्तिम साँस तक परतन्त्रता को स्वीकार नहीं किया और बाद के स्वतन्त्रता संग्रामियों के लिए ऐसा आदर्श छोड़ गये, जिसे अपनाकर देश को स्वाधीन कराना सम्भव हो सका।

      भारत के बिहार राज्य अन्तर्गत वर्तमान भोजपुर ज़िले के जगदीशपुर गाँव के ज़मीन्दार थे कुँवर सिंह के दादा उमराँव सिंह। विपरीत परिस्थिति आने पर उमराँव सिंह को परिवार सहित अपने मित्र वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाजीपुर के नवाब अब्दुल्ला के पास जाना पड़ा। वहीं उमराँव सिंह की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे साहेबजादा सिंह का नाम दिया गया। साहेबजादा सिंह ताक़तवर होने के साथ-साथ क्रोधी और उग्र व्यवहार वाले थे। साहेबजादा सिंह का विवाह पंचरत्न देवी से हुआ। उन के चार पुत्र हुए- कुँवर सिंह, दयाल सिंह, राजपति सिंह और अमर सिंह।  

      वर्ष १७७७ ईस्वी में १३ नवम्बर को कुँवर सिंह का जन्म हुआ था। बचपन से ही कुँवर सिंह वीरता और साहस के कार्यों में संलग्न रहने के कारण पढ़ने पर ध्यान न दे सके। इस सन्दर्भ में लेखक रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ ने लिखा है- ‘‘वे प्रारम्भ से ही सरस्वती की सेवा से विरत रहकर चण्डी के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे। .....उन्होंने जितौरा के वन में अपने लिए फूस का बंगला बनवाया था। वे वहीं रहकर शिकार प्रभृति वीरता के कार्यों से अपना मनोविनोद किया करते थे।’’

      तरुणावस्था में ही कुँवर सिंह का विवाह गया के देवमूँगा के प्रसिद्ध ज़मीनदार राजा फतेह नारायण सिंह की पुत्री से हुआ। दाम्पत्य मधुर था पर कुँवर सिंह की आसक्ति अन्य औरतों में बनी रही। आरा की धरमन बीवी अन्त तक उन के शौर्य और प्रणय में साथ देती रही। धरमन और उन की बहन करमन ने कुँवर सिंह के नेतृत्व में अँग्रेजों के विरुद्ध युद्ध भी किया। 

      सन् १८२६ ईस्वी में साहबजादा सिंह की मृत्यु के बाद बाबू कुँवर सिंह को जगदीशपुर की रियासत की बागडोर सौंपी गयी। राजगद्दी पर बैठते ही कुँवर सिंह ने जगदीशपुर का काफ़ी विकास किया। जगदीशपुर दुर्ग को सुन्दर व ज़्यादा सुरक्षित बनाकर हथियारों से लैस घुड़सवारों की फौज बनायी। कुँवर सिंह के भाइयों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नहीं थे, पर इस की चिन्ता उन्हें नहीं थी। शेर की तरह अकेले ही वे दहाड़ते थे।

      वर्ष १८४५-४६ से ही अँग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी सुलगने लगी थी। कई बिहारियों को कारागार में डाला जा चुका था। सोनपुर का गुप्त सम्मेलन इस सन्दर्भ में प्रभावशाली रहा, पर सफलता सन्दिग्ध रही। यों १८५७ में अन्दर-ही-अन्दर देशभर में एकसाथ विद्रोह करने की योजना बनी पर बैरकपुर छावनी (बंगाल) के सिपाही मंगल पाण्डेय ने निर्धारित समय से कुछ माह पूर्व मार्च १८५७ में ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का श्रीगणेश कर दिया। इस की सूचना बिहार में पटना के दानापुर छावनी के सैनिकों को भी मिली और वे सब भी समय से पूर्व ही अँग्रजों के विरुद्ध विद्रोह कर डाले। चूँकि सैनिकों यानी सिपाहियों ने इस की शुरुआत की, अतः इसे ‘सिपाही विद्रोह’ कहते हैं। 

      सिपाही विद्रोह को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है। दानापुर के सैनिकों ने जगदीशपुर के महाराज कुँवर सिंह को अपना नेतृत्व सौंपा। अस्सी वर्षों की अवस्था में उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारा और कई युद्धों में कम्पनी की गोरी सेना को परास्त कर शौर्य और पराक्रम की अमिट गाथा लिख डाली। 

      सम्पूर्ण भारतवर्ष को वीर विजयी कुँवर सिंह के शौर्य पर गुमान है। भारत माता के इस महान सपूत के चरणों में सम्पूर्ण भारतवासियों के प्रणाम निवेदित हैं। संसद भवन में वीर बाबू कुँवर सिंह के चित्र को ससम्मान लगाकर देश ने उन के प्रति अपना कर्तव्य निभाया। कुँवर सिंह सिपाही विद्रोह के प्रथम बिहारी सेनानी हैं जिन का चित्र संसद भवन में लगाया गया। 

      स्वतन्त्र भारत भूमि पर साँस लेनेवाला प्रत्येक नागरिक प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक वीर बाबू कुँवर सिंह के बलिदान का ऋणी है। आइये, हम सब भारत की एकता, अखण्डता और स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण रखकर उन के प्रति आंशिक ऋणमुक्ति का प्रयास जारी रखें। 

      भारत में सिपाही विद्रोह की व्यापकता के मद्देनज़र १९ जून १८५७ ईस्वी को पटना के आयुक्त विलियम टेलर ने स्थानीय प्रमुख व्यक्तियों की बैठक विद्रोह को दबाने के सन्दर्भ में बुलायी, जिन में से तीन मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया। भोजपुर के तरारी थानान्तर्गत लकवा गाँव के पीर अली को भी टेलर ने पाँच जुलाई १८५७ ईस्वी को पकड़वाया और मात्र तीन घण्टों की न्यायालीय प्रक्रिया के पश्चात् फाँसी दे दी गयी। 

      पीर अली पटना में पुस्तक की दूकान चलाते और स्वाधीनता विद्रोह में भाग लेते थे। एक पेड़ से लटकाकर उन्हें फाँसी दे दी गयी। पटना में गाँधी मैदान के निकट स्थित वर्तमान कारगिल शहीद स्मारक के निकट ही वह पेड़ स्थित था। तत्कालीन दण्डाधिकारी मौलवी बख्श के आदेश पर ही पीर अली को फाँसी की सज़ा दी गयी थी।  

      भारत माता के सपूत पीर अली की शहादत ने देशभक्तों को उद्वेलित कर दिया। फलतः १९ जून १८५७ की शाम को दानापुर छावनी के सैन्य सिपाहियों की टोली कुँवर सिंह के नेतृत्व में रणाहुति देने आरा की ओर कूच कर गयी। कुँवर के छोटे भाई अमर सिंह सहित विशाल सिंह व हरेकृष्ण सिंह भी युद्ध में शामिल हो गये। युद्ध की तैयारी के लिए जगदीशपुर के दुर्ग में २० हज़ार सैनिकों के लिए छः महीनों की खाद्य सामग्रियों, अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र और अन्य आवश्यक सामानों को संग्रहित कर लिया गया। यों अस्सी वर्षीय कुँवर सिंह के नेतृत्व में भारत माता के वीर सपूतों ने शाहाबाद क्षेत्र में अँग्रेजी हुकूमत को परास्त कर दिया। उस समय का शाहाबाद वर्तमान में बिहार के चार जिलों में बँटा है। ये ज़िले हैं- भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास। अब शाहाबाद नाम का कोई ज़िला नहीं है। 

      ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने ५०० सैनिकों को डनवर के नेतृत्व में आरा भेजा। शाहाबाद के सैनिकों ने कुँवर सिंह के कुशल नेतृत्व में रणकौशल दिखाते हुए २९-३० जुलाई १८५७ ईस्वी को डनवर की सेना को परास्त कर दिया। इसी तरह लायड को भी हार का सामना करना पड़ा। जीवित अँग्रेज सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी बना लिया। बिहार के भोजपुर ज़िले के वर्तमान आरा शहर में स्थित महाराजा महाविद्यालय परिसर में स्थित आरा हाउस कुँवर सिंह की जीत का परिचायक है, जहाँ अँग्रेजों को कैद कर रखा गया था। यहाँ ‘वीर कुँवर सिंह संग्रहालय’ बनाया गया है। बिहार सरकार ने आरा में उन के नाम पर ‘वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय’ की स्थापना की है

      बंगाल तोपखाने का मेजर आयर उस दौरान जलयान से प्रयागराज जा रहा था। वह सैनिकों सहित आरा के बीवीगंज में कुँवर सेना से युद्ध करने आ गया। उस ने बन्दी बनाये गये अँग्रेज सैनिकों को मुक्त कराया। आयर ने कुँवर सेना के कई अधिकारियों को फाँसी दे दी। इस बीच कुँवर सिंह अपने बचे साथियों सहित आगे की रणनीति बनाने के लिए जगदीशपुर आ गये।

      इस के बाद कैप्टन रैटरे के सौ सिक्ख सैनिकों सहित दो सौ अन्य सैनिकों के साथ १२ अगस्त १८५७ ईस्वी की सुबह जगदीशपुर पर हमला कर दिया। जितौरा गढ़ को बर्वाद कर अमर सिंह व दयाल सिंह के घर को जला दिया गया। पुनः सैनिकों को संगठित कर कुँवर सिंह २६ अगस्त १८५७ ईस्वी को मिर्जापुर (वर्तमान उत्तर प्रदेश का एक ज़िला) पहुँचे। मिर्जापुर में अँग्रेजों को पराजित करने के बाद वे रामगढ़, घोरावाल, नेवारी, तप्पा उपरन्धा को जीतते हुए बाँदा और कालपी होते हुए कानपुर पहुँचे। ग्वालियर की क्रान्ति सेना, नाना साहेब व कुँवर सिंह ने मिलकर कानपुर में अँग्रेजों से युद्ध किया पर वे असफल रहे। इस के उपरान्त कुँवर सिंह लखनऊ आ गये। लखनऊ के नवाब ने उन्हें शाही वस्त्र व धन से सम्मानित किया। 

      घटना १७ मार्च १८५८ ईस्वी की है। आजमगढ़ के निकट अतरौलिया में कुँवर सिंह अपने पुराने साथियों से मिले और अँग्रेजों के चंगुल से भारत की मुक्ति पर रणनीतिक चर्चा की। सैनिकों को संगठित करने की नीति भी बनी। तैयारी चल ही रही थी कि अँग्रेज कर्नल मिलमैन ने कुँवर सिंह और उन के साथियों पर अचानक आक्रमण कर दिया। पूरी तैयारी न रहने के बावजूद अपने देशभक्त सैनिकों का कुशल नेतृत्व करते हुए कुँवर सिंह ने मिलमैन और उस के सैनिकों को बुरी तरह परास्त किया। सैकड़ों सैनिक मारे गये। अन्ततः २६ मार्च १८५८ ईस्वी को भारत माता के महान सपूत महाराजा कुँवर सिंह ने पुनः आजमगढ़ को अपने कब्जे में किया। अभी महाराजा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करती हुई आजमगढ़ की प्रजा खुशी मना ही रही थी कि फिर २७ मार्च १८५८ ईस्वी को कर्नल डेम्स के नेतृत्व में अँग्रेजी सेना ने हमला कर दिया मगर इस बार भी कुँवर सिंह की सेना से मात खानी पड़ी। लगातार मात खाते अँग्रेजों ने कुँवर सिंह को अपना सब से बड़ा शत्रु मान लिया था और उन्हें मार डालने की हर सम्भव कोशिश की जाने लगी। 

      बात १३ अप्रील १८५८ ईस्वी की है। कुशल सेनापति निशान सिंह के नेतृत्व में दो हज़ार वीर सैनिकों को आजमगढ़ की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपकर महाराज कुँवर सिंह गाजीपुर चले गये। १६ अप्रील  ईस्वी को उन्होंने लुगार्ड पर हमला कर दिया। वे सैनिकों सहित पुनः आजमगढ़ आ गये और लुगार्ड के नेतृत्ववाली ब्रिटिश सेना से भयंकर युद्ध किया। कुछ देशद्रोही रियासतों के राजाओं ने अँग्रेजों को अपनी सेना मुहैया करायी और धन से भी सहायता की। इस कारण देशभक्तों पर देशद्रोहियों की टोली मजबूुत पड़ने लगी। इसलिए कुछ सैनिकों सहित कुँवर सिंह दूसरी तरफ कूच कर गये। लुगार्ड के निर्देश पर ब्रिगेडियर डगलस ने सैनिकों के साथ कुँवर सिंह का पीछा किया। 

      डगलस १९ अप्रील १८५८ ईस्वी को नागरा की ओर बढ़ा जिस की जानकारी गुप्तचरों ने दी तो कुँवर सिंह सैनिकों के साथ सिकन्दरपुर की ओर चल दिये और वहीं से घाघरा नदी पार कर गये। इस तरह वे २० अप्रील १८५८ ईस्वी की रात में गाजीपुर के मनिआर गाँव पहुँचे, जहाँ उन का भव्य स्वागत किया गया। गाजीपुर के ही शिवपुर के लोग ने बीस नावों की व्यवस्था की। भारत की स्वतऩ्त्रता के लिए प्राण उत्सर्ग करने को तत्पर सैकड़ों वीर सैनिकों के साथ कुँवर सिंह शिवपुर घाट से गंगा पार गये। इस तरह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तमाम चौकसियों के बावजू़द २२ अप्रील १८५८ ईस्वी को एक हज़ार पैदल और घुड़सवार सैनिकों के साथ महाराज कुँवर सिंह जगदीशपुर पहुँचने में सफल रहे। उन्होंने पहले सभी सैनिकों को गंगा पार कराया और अन्तिम नाव से स्वयं पार करने लगे। इसी बीच अँग्रजी सेना वहाँ आ धमकी और कुँवर सिंह के नाव पर अन्धाधुन्ध गोलीबारी कर दी। एक गोली कुँवर सिंह के दायें बाँह में लगी। गोली का विष शरीर में न फैले, इसलिए कुँवर सिंह ने म्यान से तलवार निकाली और अपने बायें हाथ से बाँह के निकट से दायें हाथ को काटकर गंगा में डाल दिया। केवल स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही नहीं; बल्कि विश्व इतिहास में ऐसा प्रकरण उपलब्ध नहीं है कि देशसेवा के लिए कोई सेनानी स्वयं अपने शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग काटकर डाला हो। माता गंगा को भी किसी भक्त ने भगीरथ काल से अबतक ऐसा ‘भोग’ नहीं चढ़ाया है। 

      भारत माता को ईस्ट इण्डिया कम्पनी की दास्तां से मुक्ति दिलाने के लिए नौ महीने में १५ युद्ध लड़नेवाले महान देशभक्त कुँवर सिंह के शरीर में जाँघ सहित कई अंगों में घाव थे। उस पर से दायाँ हाथ काट लेने पर दायीं बाँह पर भी असह्य दर्द देनेवाला बड़ा घाव हो गया। जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के घायल होने की सूचना पाकर अँग्रेज प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा कि अब भोजपुर के रणबाँकुरों को पराजित करना आसान होगा। यों आरा से ले ग्रेण्ड के नेतृत्व में अँग्रेज सैनिकों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। प्रजा की भलाई के लिए कुँवर सिंह ने बायें हाथ से भारत माता की पवित्र मिट्टी का तिलक लगाया और बायें हाथ से ही तलवार लहराते हुए सैनिकों के साथ अँग्रेज सैनिकों पर कहर बनकर टूटे। यह कुँवर सिंह के जीवन का अन्तिम युद्ध था। इस युद्ध में भी वे विजेता ही रहे। इस तरह २३ अप्रील १८५८ ईस्वी को जगदीशपुर ही नहीं, आरा से भी अँग्रेजों को खदेड़ दिया और आरा में विजयोत्सव मनाया गया। अँग्रेजों के ध्वज ‘यूनियन जैक’ को उतारकर कुँवर सिंह ने अपना ध्वज फहराया। सैकड़ों सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी भी बनाया। बिहार में अब भी २३ अप्रील को प्रतिवर्ष ‘कुँवर सिंह का विजयोत्सव’ मनाया जाता है। इस दिन (२३ अप्रील) को 'शौर्य दिवस' के रूप में मनाया जाता है। कुँवर सिंह के अदम्य साहस, पराक्रम और शौर्य के कारण उन के नाम के आगे ‘वीर’ शब्द जोड़ते हैं। उन्होंने जीवन की चौथी अवस्था (८०-८१ वर्ष) में अपनी वीरता का लोहा  मनवाया, अतः उन्हें ‘बाबू’ (पिता या अभिभावक) की भी संज्ञा दी जाती है।    

      भारत के इतिहास कुँवर सिंह जैसे व्यक्तित्व नहीं मिलते हैं। आज भी उन की जीवनी हमें देशभक्ति, साम्प्रदायिक एकता और परहित की ओर प्रेरित करती है। उन के राज्य में सभी धर्मों और जातियों को समान अधिकार मिले हुए थे। उन्होंने विलासिता के बीच भी देशभक्ति और व्यक्तिगत खुशी के बीच भी परहित को प्रश्रय दिया। उन्होंने अपनी प्रेमिका धरमन के नाम पर आरा में ‘धरमन मस्जिद’ बनवायी जहाँ आज भी मुसलमान नमाज अदा करते हैं और कुँवर सिंह की साम्प्रदायिंक सौहार्द को बढ़ावा देने की भूमिका को सराहते हैं। धरमन की बहन करमन के नाम पर उन्होंने एक गाँव बसाया जो आज भी ‘करमन टोला’ के नाम से प्रसिद्ध है। धरमन और करमन केवल नृत्यांगना ही नहीं वीरांगना भी थीं। दोनों ने १८५७ ईस्वी के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में कुँवर सिंह की सेना में शामिल होकर बहादुरी के साथ लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुईं।

      विजयोत्सव के तीन दिनों बाद २६ अप्रील १८५८ ईस्वी को वीर बाबू कुँवर सिंह ने युद्ध, उन्माद और प्रतिशोध की इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। 

      इस आलेख में तो अति संक्षिप्त रूप से ही वीर बाबू कुँवर सिंह के व्यक्तित्व व कृतित्व को रेखांकित करने का प्रयास मैं ने किया। पर, इस बात का अफसोस है कि भारतीय इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप और शिवाजी की तरह ही प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानी बाबू कुँवर सिंह के साथ भी घोर अन्याय किया है। कुँवर सिंह और उन के परिजनों के बलिदान के अलावा धरमन और करमन जैसी वीरांगनाओं को भी इतिहासकारों ने नकारने का कुत्सित प्रयास किया है। हर भारतवासी उन्हें श्रद्धा से स्मरण करे और संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा ले। 

      अन्त में कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की कविता याद हो आयी-

उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई और पेशवा नाना था।

इधर बिहारी वीर बाँकुड़ा खड़ा हुआ मस्ताना था।।

अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।

सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

बुधवार, 30 मार्च 2022

नववर्ष २०७९ विक्रम सम्वत् का आरम्भ २ अप्रैल को New Vikram Samvat 2079 From April 2, 2022

 -शीतांशु कुमार सहाय

विक्रम सम्वत् २०७९ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा (२ अप्रैल २०२२) को आरम्भ हो रहा है। विश्वभर में सनातनधर्मी इसी सम्वत् के आधार पर अपना पर्व-त्योहार मनाते हैं। यह सम्वत् चाँद की दिशा व दशा के आधार पर दिन-तिथि निर्धारित करता है। ग्रन्थों की बात मानें तो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा के दिन ही आदिशक्ति के आदेश से ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। भारतीय दर्शन में सृष्टि की उत्पत्ति आदिशक्ति से मानी जाती है। उन्होंने अपने रूप को जल, स्थल और वायु के साथ-साथ समस्त देवी-देवताओं, मानव व अन्य जीव-जन्तुओं की करोड़ों श्रेणियों में विभक्त किया। आदिशक्ति ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की और ब्रह्माण्ड के कण-कण में वह स्वयं ही विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं।
सर्वप्रथम आदिशक्ति ने नीरव शान्ति और भयंकर अन्धेरे के बीच अपने शब्द-स्वरूप ‘ऊँ’ को प्रकट किया जिससे नीली रश्मि उत्पन्न हुई और सर्वत्र ऊँ व्याप्त हो गया। ऊँ के नाद (स्वर) से ब्रह्माण्ड में उथल-पुथल हुई तो गति उत्पन्न हुई और विभिन्न वायु प्रकट हुए। यों सर्वत्र जल-ही-जल दिखायी देने लगा। तब आदिशक्ति ने नारायण (विष्णु) का पुरुषस्वरूप धारण किया। विष्णु के नाभि से एक कमल प्रकट हुआ जिससे ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई।
आदिदेव ब्रह्मा को आदिशक्ति ने सृष्टि का आदेश दिया। ब्रह्मा ने चारों ओर मुख घुमाकर ब्रह्माण्ड की व्यापकता का दर्शन किया तो उनके चार मुख हो गये। उन्होंने अपने अस्तित्व पर विचार करना और अपनी उत्पत्ति वाले स्थान के अन्वेषण में बहुत समय व्यतीत किया पर पता न चला तो तपस्या में लीन हो गये। सौ दिव्य वर्षों तक तपश्चर्या के दौरान उन्हें अन्तःकरण में दिव्य प्रकाश दिखायी दिया। साथ ही नारायण का दर्शन भी प्राप्त हुआ। नारायण ने उन्हें सृष्टि की रचना के लिए उत्प्रेरित किया। सभी मित्रों को भारतीय नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
भारतीय नववर्ष का ऐतिहासिक महत्व---
१. यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब ९७ करोड़ ३९ लाख ४९ हजार ११७ वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
२. विक्रम सम्वत् का पहला दिन : उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, और न ही कोई भिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो। सम्राट विक्रमादित्य ने २०७९ वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था।
३. प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।
४. नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
५. गुरु अंगददेव प्रगटोत्सव : सिक्ख परंपरा के द्वितीय गुरु का जन्म दिवस।
६. समाज को श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
७. संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
८. शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
९. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : ५११२ वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व---
१. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
२. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
३. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
अत: हमारा नववर्ष कई कारणों को समेटे हुए है, अत: हर्षोउल्लास के साथ नववर्ष  मनायें और दूसरो को भी मनाने के लिए प्रेरित करें।

शुक्रवार, 11 मार्च 2022

उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में किसे मिली कितनी सीट Final Voting Results From Utter Pradesh, Uttarakhand, Punjab, Goa & Manipur


- शीतांशु कुमार सहाय
   यहाँ जानिये कि विभिन्न चरणों में गत दिनों पाँच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में हुए विधानसभा आम निर्वाचन के परिणाम में किन राजनीतिक दलों को कितने निर्वाचन क्षेत्रों में जीत मिली--

उत्तर प्रदेश 

१) भारतीय जनता पार्टी : भाजपा को कुल २७४ क्षेत्रों में जीत मिली और पिछली बार (२०१७) से ४८ सीट कम हो गयी।  

२) समाजवादी पार्टी गठबन्धन : पिछली बार से ७२ सीट अधिक मिली और कुल १२४ क्षेत्रों में विजय मिली। 

३) काँग्रेस : केवल २ क्षेत्रों की जनता ने काँग्रेस में आस्था दिखायी। वर्ष २०१७ की अपेक्षा ५ सीट का नुकसान हुआ है। 

४) बहुजन समाज पार्टी : २०१७ की अपेक्षा १८ सीट कम हो गयी और एकमात्र सीट पर जीत मिली। 

उत्तराखण्ड :

१) भारतीय जनता पार्टी : वर्ष २०१७ में हुए विधानसभा आम निर्वाचन की अपेक्षा ९ क्षेत्रों की कमी हुई। ४८ सीट पर जीत मिली। 

२) काँग्रेस : पिछली बार से ७ सीट बढ़ गयी। कुल १८ क्षेत्रों में जीत मिली। 

३) बहुजन समाज पार्टी : पहली बार खाता खुला और २ क्षेत्रों में जीत मिली। 

पंजाब :

१) आम आदमी पार्टी : २०१७ में हुए पिछले विधानसभा आम निर्वाचन से इस बार ७२ सीट अधिक मिले। आप को कुल ९२ क्षेत्रों में जीत मिली। 

२) काँग्रेस : कुल १८ क्षेत्रों में जीत मिली और पिछली बार से ५९ सीट कम हो गयी। 

३) शिरोमणि अकाली दल : केवल ४ नेता विधानसभा के लिए चुने गये। पिछली बार से ११ विधायक कम हो गये।

४) भारतीय जनता पार्टी : वर्ष २०१७ की अपेक्षा एक सीट का नुकसान हुआ है और मात्र २ क्षेत्रों में जीत मिली है। 

गोवा : 

१) भारतीय जनता पार्टी : पिछले विधानसभा आम निर्वाचन के परिणाम से ७ सीट का मुनाफा हुआ। २० क्षेत्रों में जीत मिली। 

२) काँग्रेस : पिछली बार से नौ सीट कम हो गयी और ११ प्रत्याशी जीते।

३) आम आदमी पार्टी : पार्टी का खाता खुला और २ क्षेत्रों में जीत मिली। 

४) एमजीपी : एक सीट का नुकसान हुआ है और मात्र दो सीट पर जीत मिली। 

मणिपुर :

१) भारतीय जनता पार्टी : वर्ष २०१७ के विधानसभा आम निर्वाचन के परिणाम से इस बार ११ अधिक सीट पर जीत मिली। कुल ३२ क्षेत्रों में जीत मिली। 

२) एनपीपी : इस दल को पिछले विधानसभा आम निर्वाचन के परिणाम से ४ सीट अधिक मिले और कुल ७ प्रत्याशी जीते। 

३) जनता दल यूनाइटेड : राज्य में इस दल का खाता खुला और ६ क्षेत्रों में जीत मिली। 

४) काँग्रेस : पिछली बार से २३ सीट कम हो गयी और केवल ५ क्षेत्रों में जीत मिली। 

 

गुरुवार, 10 मार्च 2022

दुबारा मुख्यमंत्री बन कई कीर्तिमान बनायेंगे योगी आदित्यनाथ Yogi Adityanath Will Make Many Records By Becoming The Chief Minister Again In Utter Pradesh

अपने कार्यालय में योगी आदित्यनाथ

 

-शीतांशु कुमार सहाय

       उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने रही है। मुख्यमंत्री फिर से भाजपा के दिग्गज नेता योगी आदित्यनाथ बनेंगे और कई मिथकों को तोड़ेंगे। 

नोएडा का मिथक तोड़ेंगे 

       उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक मिथक हमेशा से चर्चा में रहा है कि जो भी मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान नोएडा जाता है, उस की कुर्सी अगले चुनाव में चली जाती है। नोएडा से जुड़े इस अंधविश्वास का खौफ नेताओं में इतना अधिक रहा है कि अखिलेश यादव बतौर मुख्यमंत्री एक बार भी नोएडा नहीं गये। उन से पहले उन के पिता मुलायम सिंह यादव, नारायण दत्त तिवारी, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह जैसे नेताओं ने भी नोएडा से दूरी बनाये रखी। 

       वर्ष २००७ से २०१२ के बीच मायावती ने इस मिथक को तोड़ने के लिए दो बार नोएडा गईं। परिणाम यह हुआ कि वर्ष २०१२ में उन की सरकार गिर जाने के बाद नोएडा का ये मिथक फिर चर्चा में आ गया। 

      वर्ष २०१७ में पहली बार मुख्यमंत्री बनकर भाजपा के योगी आदित्यनाथ अपने कार्यकाल के दौरान कई बार नोएडा गये। इस के बावजूद उन पर नोएडा वाले अन्धविश्वास का असर नहीं हुआ और वह उत्तर प्रदेश के लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। मतलब यह कि अब नोएडा वाला मिथक भी टूट गया है।

लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे योगी

       आज़ादी के बाद से उत्तर प्रदेश में अब तक कोई भी मुख्यमंत्री पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद अगले चुनावी नतीजों के उपरान्त मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनकर योगी आदित्यनाथ यह कीर्तिमान भी अपने नाम कर लेंगे।

अविवाहित मुख्यमंत्री 

       योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के पहले अविवाहित मुख्यमंत्री हैं, जो लगातार दुबारा मुख्यमंत्री के पद पर बैठेंगे। प्रदेश में विधि-व्यवस्था ठीक करने और विकास के नये कीर्तिमान बनाने के कारण ही जनता ने सत्ता की बागडोर उन्हें सौंपी। 

प्रथम संन्यासी मुख्यमंत्री 

       योगी आदित्यनाथ से पहले भारत के किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री के पद पर कोई संन्यासी नहीं बैठा था। यह कीर्तिमान भी योगी के नाम है।

मंगलवार, 1 मार्च 2022

महाशिवरात्रि व्रत कथा Mahashivratri Vrat Katha

 


      महाशिवरात्रि व्रत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत के रहस्य को स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती के सम्मुख व्यक्त किया था।

      नीचे के लिंक पर क्लिक कीजिये और सुनिये कल्याणकारी महाशिवरात्रि व्रत कथा...

महाशिवरात्रि व्रत कथा 


बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

अँग्रजों ने छिन्न-भिन्न किया भारत के सामाजिक ताने-बाने को The British Destroyed The Social Fabric Of India


-शीतांशु कुमार सहाय

आज नौ फरवरी है, मेरा जन्मदिन। अतः मैंने सोचा कि आज कुछ ऐसा लिखा जाये जिसे मेरे प्यारे मित्र वास्तव में पढ़ें और ज्ञान में वृद्धि करें। 

मित्रों! सभी जानते हैं कि भारत ने विश्व को कई अमूल्य उपहार दिये हैं। इन उपहारों में एक है अध्यात्म-विज्ञान जो सब के कल्याण का कारक है- शारीरिक रूप से भी और आध्यात्मिक रूप से भी। जिस समय कृत्रिम उपग्रहों का आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय ही अर्थात् हज़ारों वर्षों पूर्व हमारे मनीषियों ने कई आकाशीय पिण्डों की पृथ्वी से दूरी और उन की गति आदि के बारे में बताया था जो आज भी आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर खरा है। नौ ग्रहों का पृथ्वी और इस पर रहनेवाले जीवों पर प्रभाव आदि का विश्लेषण हज़ारों वर्षों पूर्व ही किया गया। 

साथ ही समाज का ताना-बाना इस प्रकार बुना गया था जिस में सार्वजनिक धन का समाज में इतना समान वितरण था कि कोई भिखारी यहाँ नहीं था। सब के हाथ में रोज़गार था, सभी हुनरमन्द थे, सभी ज्ञानवान थे, सभी सामाजिक व राजकीय नियमों को पूर्णतः माननेवाले सभ्य और उच्च आचरणवान नागरिक थे। कार्य के अनुसार वर्ण-व्यवस्था होने के बावजूद जातिगत या धर्मगत वैमनस्यता नहीं थी। ऐसे ही गुणों ने भारत को विश्वगुरु की संज्ञा दिलायी। यही गुण अँग्रेजों को रास न आया और उन्होंने यहाँ अपने शासन को मजबूत करने के लिए अपने कई विशेषज्ञों से सर्वेक्षण कराया जिन में एक था मैस्क्युले। उस ने भारत भ्रमण के बाद सन् १८३५ ईश्वी में ब्रिटिश सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट का एक अंश.... 

 ''मैं भारत के कोने-कोने में घूमा हूँ। मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखायी दिया जो भिखारी हो, चोर हो। इस देश में मैं ने इतनी धन-दौलत देखी है, इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श, गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता हम इस देश को जीत पायेंगे, जब तक इस की रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो है-- इस की आध्यात्मिक संस्कृति और इस की विरासत! इसलिए मैं प्रस्ताव रखता हूँ कि हम पुरातन शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति को बदल डालें; क्योंकि यदि भारतीय सोचने लगें कि जो भी विदेशी है और अँग्रेजी है, वही अच्छा है और उन की अपनी चीजों से बेहतर है तो वे आत्म-गौरव और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जायेंगे जैसा हम चाहते हैं। एक पूरी तरह से दमित देश!''

आज वास्तव में स्थिति यह है कि जो हिन्दी या अन्य भारतीय भाषा बोलता है, उसे भारत के ही लोग अंग्रेजी बोलनेवालों की अपेक्षा कमतर आँकते हैं। भारतीय अपने समृद्ध अतीत पर गौरवान्वित नहीं होते; विदेशियों की बात पर विश्वास करते हैं। 

सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

नर्मदा स्तुति व मन्त्र Narmada Stuti & Mantra

पवित्र नर्मदा नदी

प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय
     माघ महीने में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान शिव के आदेश और आशीर्वाद से नदी के रूप में नर्मदा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। अमरकंटक पर्वत से निकलकर यह पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हुई मध्यप्रदेश और गुजरात के पार अरब सागर में मिल जाती है। गंगा की तरह नर्मदा भी देवी के रूप में पूजित हैं। यहाँ 'नर्मदा स्तुति' और 'नर्मदा मन्त्र' प्रस्तुत है। इन का पाठ और जप कल्याणकारी है। 

नर्मदा स्तुति 

नम: पुण्यजलेआद्येनम: सागरगामिनि।
नमोऽस्तुतेऋषिगणै: शंकरदेहनि:सृते।
नमोऽस्तुते धर्मभृतेवरानने नमोऽस्तुते देवगणैकवन्दिते।
नमोऽस्तुते सर्वपवित्रपावने नमोऽस्तुते सर्वजगत्सुपूजिते।।१।।

पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामेवा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।
त्रिभि: सारस्वतं पुण्यं सप्ताहेनतुयामुनम्।
सद्य:पुनातिगाङ्गेयं दर्शनादेवनर्मदाम्। कनकाभांकच्छपस्थांत्रिनेत्रांबहुभूषणां।
पद्माभय: सुधाकुम्भ: वराद्यान्विभ्रतींकरै:।।२।।

नर्मदा मंत्र

ऐं श्रीं मेकल-कन्यायै सोमोद्भवायै देवापगायै नम:।*

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

सरस्वती वन्दना Saraswati Vandana



 -शीतांशु कुमार सहाय

विद्या की देवी माँ सरस्वती के पावन चरणों में नमस्कार है। वसन्त पंचमी के अवसर पर कीजिये उन की आराधना! आइये इस मंत्र से उन की उपासना करें.....  

या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।१।।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाद्यां जगद्व्यापिनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारपहाम्।।
हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।२।।

विसर्जन : जल में क्यों विसर्जित करते हैं देव प्रतिमाओं को Why Do Gods Immerse Idols In Water?



  -शीतांशु कुमार सहाय 
    आखिर देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को जल में ही क्यों विसर्जित कर दिया जाता है? 
     शास्त्रों के अनुसार जल ब्रह्म का स्वरूप माना गया है; क्योंकि सृष्टि के आरंभ में और अंत में संपूर्ण सृष्टि में सिर्फ जल ही जल होता है। जल बुद्घि और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इस के देवता गणपति को माना गया है। जल में ही श्रीहरि का निवास है, इसलिए जल को नारायण भी कहते हैं। 
     माना जाता है कि जब जल में देव प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है, तो देवी-देवताओं का अंश मूर्ति से निकलकर वापस अपने लोक को चला जाता है यानी परब्रह्म में लीन हो जाता है। यही कारण है कि मूर्तियों और निर्माल को जल में विसर्जित किया जाता है।

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

Indian Union Budget 2022-23 Highlights भारत के केन्द्रीय बजट २०२२-२३ की मुख्य बातें


Union Finance Minister of India Mrs. Nirmala Sitharaman presented the Union Budget for the financial year 2022-23 on Tuesday, 1 February 2022. She reached the Lok Sabha with a tab in a red cloth and presented a completely paperless digital budget. Here are the highlights of the budget...

·  Government to simplify customs rate for sectors including chemicals.

·   To give duty concessions for some electronics manufacturer.

·     Lower duty some chemicals.

·  Revokes anti dumping duty for some steel products.  

· Government to cap surcharge on Long term capital gains at 15%.

·   Government extends tax incentive for startups up to March 2023.

·   Tax gift of virtual digital asset.

· Government to tax income from Virtual digital assets transfer at 30%.

·  Government proposes more reforms in direct tax regime. Government to allow new provision to update return for tax payers.

·  Proposes new plan to file updated income tax return.

·  Proposes cut in alternate minimum tax for Cooperate society, MAT reduce to 15%.

·  Fiscal deficit in FY22 gap 6.9% of GDP vs 6.8% goal.

·  Fiscal deficit in FY23 gap 6.4% of GDP.  

·  Digital rupee to be introduced by central bank in FY 23 to be backed by block chain technology.

· Government plans Rs. 1 trln. assistance to states borrowing plans.

· Proposes Rs. 7.5 trln. on capital allocation.

· Proposes Rs. 10.6 trln. on effective capital expenditure.

·  To allow to set up international arbitration center in gift city.

·   Give data centers as infra status.  

· Rs 6,000 crore programme to rate MSMEs will be  rolled out over the next five years, Finance Minister Nirmala Sitharaman said on Tuesday, February 1, 2022.

· As part of initiatives to promote digital infrastructure, a desh stack e-portal will be launched, union financs minister noted in her presentation of the Union Budget for 2022-23.

·  Startups will be promoted for Drone Shakti.

·   Government SEZs act to be replaced with new law, new law to boost exports competitiveness.

·  To open up defense R&D for startup, academia, industry.

·   65% of defense capex  to be kept for local companies.

· To promote public transports in urban areas.

·    Plans battery swapping policy.

·  Budget would continue to provide impetus to  growth.

· The economic recovery is benefitting from public investments and capital spending, she said in her Budget 2022-23 speech.

· Added that inclusive development, productivity enhancement, energy transition and climate action are four pillars of development.

·   Sitharaman noted that the PM Gati Shakti master plan is based on seven engines of growth.  

·   Government to get all Post office on core banking systems in 2022.

·  Plans to digital University to provide access to school.

·  Drinking water projects allocated Rs. 60,000 crore.

. Housing projects allocated Rs. 48,000 crore.

·  ECLGS scheme to have Rs5tn total cover.

· To promote startups for Drone making.  

·   Plans to cut dependence on oil seed imports.

·   Urban transport to be connected to railways.

·   Plans find for farm startups under Nabard.

·  Plans expansion of water supply projects.  

· Rail, POST to work together on logistic.

·   To make new Vande Bharat trains in 3 years.

·   100 cargo terminals in 3 years.

·    Economy is seen growing at 9.2 per cent in the current fiscal, finance minister Nirmala Sitharaman said while presenting the Union Budget.

·    Plans to cut dependence on oil seed imports.

·     Infrastructure, logistic key areas of India focus.

·  Highways to expanded by 25,000 KMS by 23.

·    Promoting digital economy, fintech among the government focus, committed to strengthening abilities of poor.

·  Make in India can create 60 lakh new jobs, Public issue of LIC is expected shortly.

मंगलवार, 11 जनवरी 2022

कोरोना संक्रमितों की मौत का सच जानिये Coronavirus : Know Fact of Death


 -शीतांशु कुमार सहाय 

दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच मौत का आँकड़ा भी रफ़्तार पकड़ रहा है। दिल्ली सरकार द्वारा जारी एक महत्त्वपूर्ण आँकड़े के अनुसार ५ दिन में कोरोना संक्रमण से भरनेवाले ४६ लोग में से ३४ मौत का कारण संक्रमितों में को-मॉर्बिडिटी (गंभीर बीमारियों से ग्रसित) का होना पाया गया है। 

यह आँकड़ा ५ से ९ जनवरी तक का है। इस का मतलब यह हुआ कि ५ से ९ जनवरी तक अर्थात् ५ दिनों में हुई कुल मृत मरीज़ों में से लगभग ७४% अन्य गम्भीर बीमारियों से ग्रसित थे।

४६ मृतकों में से २८ पुरुष और १८ महिलाएँ थीं। दिल्ली सरकार के आँकड़े के  विश्लेषण से विदित होता है कि को-मॉर्बिडिटी वाले २१ मरीज़ों को दिल्ली के विभिन्न अस्पताल में भर्ती होने के बाद कोरोना हुआ था और उन की मृत्यु हो गयी। जिन ४६ कोरोना मरीज़ों की मृत्यु हुई, उन में से ३२ मरीज़ आईसीयू में भर्ती थे। ३७ मरीज़ ऐसे थे जिन का ऑक्सीजन लेवल अस्पताल में भर्ती होने के दौरान ९४ से कम था। मतलब यह कि उन के शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम थी जो मृत्यु के कारणों में शामिल हुई।

दोनों डोज भी काम न आये

दिल्ली सरकार के आँकड़े से पता चलता है कि दिल्ली में ५ से ९ जनवरी के बीच जिन ४६ मरीज़ों की मृत्यु हुई, उन में से ११ मरीज़ों को कोरोना टीके की दोनों डोज लग चुकी थी।

अधिक उम्र का असर

५ से ९ जनवरी के बीच जिन ४६ मरीज़ों की मौत हुई, उन में से २५ मरीज़ों की आयु ६० वर्ष से अधिक थी। इन के अलावा १४ मरीज़ों की उम्र ४१ से ६० वर्ष के बीच थी। इसी तरह ५ मरीज़ २१ से ४० वर्ष उम्र-वर्ग के थे। एक मरीज १६ से २० साल और एक मरीज़ की उम्र शून्य से १५ वर्ष के आयु-वर्ग में था।

५०% मृत्यु एक दिन में 

पाँच दिनों में कोरोना से मृत ४६ में से १२ मरीज़ों की मृत्यु अस्पताल में भर्ती होने वाले दिन ही हुई थी। इसी तरह ११ मरीज़ों की मौत अस्पताल में भर्ती होने के बाद एक दिन के अन्दर हुई थी। मतलब २३ कोरोना संक्रमितों अर्थात् ५०% मरीज़ों की मौत एक दिन में ही हो गयी। ६ मरीज़ों की मौत २ दिन के अंदर, १४ मरीज़ों की मौत ३ से ७ दिन के अंदर और शेष ३ मरीज़ों की मौत एक सप्ताह के अंदर हुई।

जानिये को-मॉर्बिडिटी को

अगर कोई व्यक्ति मधुमेह, कॉर्निया से सम्बन्धित रोग , हृदय रोग, यकृत से सम्बन्धित रोग, अस्थमा, टायफायड, एड्स, वृक्क से सम्बन्धित रोग, खून की कमी, गठिया जैसे रोग से ग्रसित हैं तो वह मरीज़ में को-मॉर्बिडिटी कही जाती है। किसी रोग के कारण डायलिसिस करानेवाले मरीज़ भी इसी श्रेणी में आते हैं। 


शनिवार, 25 दिसंबर 2021

२५ दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस क्यों Why Tulsi Poojan Diwas on 25 December


-शीतांशु कुमार सहाय 

       हिन्दू धर्म में तुलसी पूजन की परम्परा प्राचीन काल से है। प्रतिदिन तुलसी की पूजा करना, उन की जड़ को शुद्ध जल अर्पित करना हमारी शुद्ध, स्वस्थ और आनन्दपूर्ण संस्कार का अभिन्न अंग है। हम गुरु, माँ, पिता, भाई या बहन के लिए विशेष डे नहीं मनाते; क्योंकि प्रतिदिन इन के अभिवादन करने का परामर्श हमारा ग्रन्थ देता है और यह हमारी दिनचर्या में शामिल है। वैसे आषाढ़ पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' कहते हैं और उस दिन गुरु की विशेष आराधना की जाती है। पर, सच को थोड़ा और जानिये कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु वेद व्यास जी का अवतरण दिवस है। इसलिए उन की जयन्ती को 'गुरु पूर्णिमा' कहते हैं। 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भगवान ने वेद व्यास जी को अपना ही प्रतिरूप बताया है। इस तरह "कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्" के आधार पर भी गुरु पूर्णिमा की सार्थकता समझ में आती है।  

     आखिर जिन का पूजन या अभिवादन दिनचर्या में सम्मिलित हो, उन के लिए वर्ष में एक दिन का निर्धारण क्यों?     

     वैसे पिछले कुछ वर्षों से भारत में २५ दिसम्बर को 'तुलसी पूजन दिवस' मनाने की प्रथा शुरू हुई। इस प्रथा की शुरुआत सन् २०१४ ईस्वी से हुई और इस दौरान देश के कई केंद्रीय मंत्रियों और सन्तों ने तुलसी पूजा के महत्त्व का बखान सोशल मीडिया द्वारा किया था। तब से २५ दिसम्बर को प्रतिवर्ष 'तुलसी पूजन दिवस' मनाया जाने लगा। यदि तुलसी की महत्ता बताने के लिए एक अदद दिवस की आवश्यकता थी तो पहले से ही विक्रम सम्वत् के पञ्चाञ्ग में 'तुलसी विवाह'  (कार्तिक शुक्ल एकादशी) के रूप में विद्यमान है। तुलसी विवाह को ही और धूमधाम से, भव्य आयोजन कर, सोशल मीडिया पर प्रचार कर मनाया जाता तो अधिक अच्छा होता। 

     जब हमारे सारे पर्व-त्योहार विक्रम सम्वत् के अनुसार होते हैं तो फिर 'तुलसी पूजन' अंग्रेजी सम्वत् के अनुसार २५ दिसम्बर को क्यों? वैसे तुलसी पूजा हमारी दिनचर्या में शामिल है और इस के लिए वर्ष में केवल एक दिन का निर्धारण उचित नहीं? अगर इस का निर्धारण किया भी गया तो विक्रम सम्वत् के अनुसार ही दिन निर्धारित किया जाना चाहिये था। 

     कहीं ऐसा तो नहीं कि हम गणेश चतुर्थी के बदले गणेश दिवस, रामनवमी को छोड़कर राम दिवस, जन्माष्टमी को छोड़कर कृष्ण दिवस, महाशिवरात्रि के बदले शिव दिवस, नवरात्र की जगह दुर्गा दिवस, छठ को छोड़कर सूर्य दिवस की ओर बढ़ रहे हैं? 

सोमवार, 13 दिसंबर 2021

काशी विश्वनाथ धाम के नये स्वरूप का अनावरण


काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  अनावरण किया। वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम के नये परिसर का अनावरण्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुभ मुहूर्त रेवती नक्षत्र (दोपहर १:३७ बजे से १:५७ बजे तक २० मिनट का शुभ मुहूर्त था) में किया। मोदी ने मंदिर में मंत्रोच्चार के साथ पूजा की, मंदिर निर्माण में शामिल मजदूरों पर पुष्प वर्षा कर सम्मानित किया और उन के साथ सीढ़ी पर बैठ फोटो भी खिंचवाई। उन्होंनेे धर्माचार्यों और विशिष्टजनों से संवाद किया।

काशी विश्वनाथ धाम पूरी तरह से नया हो चुका है और ५ लाख स्क्वायर फीट में यह फैला हुआ है। ९०० करोड़ रुपये की लागत से बनी इस परियोजना में कई आकर्षण हैं। साथ ही कुछ प्रतीक भी हैं, जो बड़ा संदेश देते हैं। इन में हैं- शंकराचार्य, भारत माता और अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमाएँ। भारत माता की प्रतिमा के जरिए भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रवाद को उकेरना का प्रयास किया है। इसी तरह शंकराचार्य के माध्यम से हिंदुत्व का संदेश देने की कोशिश है। ऐसा पहली बार है, जब ऐसे किसी स्थान पर अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा लगायी जा रही है। 


१८वीं सदी की रानी रहीं अहिल्याबाई होलकर को बड़ी संख्या में मंदिरों के निर्माण के लिए इतिहास में जाना जाता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐसा पहली बार है, जब किसी धार्मिक स्थान पर उन की प्रतिमा लगी है और उन के जरिये गलत इतिहास को सुधारने का संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है। मराठा रानी अहिल्याबाई होलकर की राजधानी इंदौर के दक्षिण में स्थित महेश्वर में थी, जो मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे स्थित था। कुशल योद्धा और प्रशासक होने के साथ ही अहिल्याबाई होलकर मंदिरों के निर्माण और उन के पुनरुद्धार के लिए चर्चित रही हैं। 

अहिल्याबाई होलकर का काशी विश्वनाथ धाम से भी निकट का सम्बन्ध रहा है। मंदिर का जो मौजूदा स्वरूप है, उस का निर्माण १७८० ईस्वी में अहिल्याबाई होलकर ने ही कराया था। इस के बाद १९वीं सदी में महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बाबा विश्वनाथ को चढ़ाया था। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के वक्त बड़ी संख्या में महारानी अहिल्याबाई होलकर के पोस्टर देखने को मिले। मोदी के नेतृत्व में केदारनाथ में शंकराचार्य की प्रतिमा, राम मंदिर निर्माण और अब काशी कॉरिडोर का निर्माण हुआ। 

'दिव्य काशी, भव्य काशी' अभियान


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी २०१४ से ही काशी के सांसद हैं और वह यहाँ एक-एक प्रोजेक्ट की निजी तौर पर निगरानी कर रहे हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण उन का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है और उस की हर अपडेट वह लगातार लेते रहे हैं।

विश्‍वनाथधाम के गर्भगृह में पूजा-अर्चना के बाद पीएम मोदी सीधे उन मजदूरों के बीच पहुँचे जिन्‍होंने दिन-रात मेेेहनत कर काशी विश्‍वनाथ काॅरिडोर तैयार किया। पीएम ने मजदूरों पर फूल बरसाए और उन के साथ बैठकर फोटो खिंचवाई। मोदी ने वहाँ अपने लिए रखी कुर्सी हटवा दी और मजदूरों के साथ सीढ़ी पर बैठकर ही फोटो खिंचवाई। कुछ देर तक पीएम ने मजदूरों से बात भी की। 

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

सूर्य के तेज से बने भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र, इन्द्र का वज्र और शिव का त्रिशूल

 -शीतांशु कुमार सहाय 

सभी सूर्योपासकों को यह जानना आवश्यक है कि १६ कलाओं में निपुण भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र किस प्रकार बना। देवराज इन्द्र का वज्र और भगवान शिव का त्रिशूल आखिर किस प्रकार निर्मित हुए। 



सोमवार, 8 नवंबर 2021

छठ : डूबते सूर्य को नमस्कार Chhath

 


-शीतांशु कुमार सहाय 

   पूरी धरती पर भारत का बिहार और आस-पास का एकमात्र ऐसा मानव निवास क्षेत्र है, जहाँ के लोग डूबते सूर्य की भी आराधना करते हैं। 

     छठ सूर्योपासना का ऐसा महापर्व है जो वर्ष में दो बार चैत्र और कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी पर्यन्त मनाया जाता है। प्रमुख आयोजन षष्ठी तिथि को होता है जिस दिन सन्ध्या काल में जलाशय में स्नान कर खड़े अवस्था में ही जल से भीगे वस्त्र पहने हुए डूबते अरुणाभ सूर्यदेव को ऋतुफल, पकवान, दूध, जल आदि से अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इस षष्ठी यानी छठी तिथि के कारण इस महापर्व का नाम 'छठ' पड़ा। 

     चार दिवसीय छठ महापर्व की चतुर्थी तिथि को उदित सूर्यदेव की आराधना (सुबह के प्रथम मुहूर्त के बाद) होती है, जिसे 'नहाय-खाय' कहते हैं। पञ्चमी तिथि को अस्त होने के पश्चात् शाम में सूर्यदेव की पूजा की जाती है, जिसे 'खरना' कहा जाता है। षष्ठी की शाम में अस्ताचलगामी यानी डूबते अरुणाभ सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इसी तरह सप्तमी तिथि को उदयगामी यानी उगते अरुणाभ सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करने के पश्चात् चार दिवसीय छठ महापर्व सम्पन्न होता है।

नीचे जो प्रकाशित आलेख है, वह पटना से छपनेवाले दैनिक समाचार पत्र 'राष्ट्रीय सहारा' में शुक्रवार, 16 नवम्बर 2007 को प्रकाशित हुआ था। इस आलेख को राष्ट्रीय सहारा में कार्यरत तत्कालीन फीचर सम्पादकद्वय सुनील पाण्डेय और किशोर केशव ने अपनी कुशल विद्वत्ता में सम्पादित किया था।

एक बार आप भी पढ़िये और और जानिये उन तथ्यों को जिन्हें आप अबतक नहीं जानते..... 



मंगलवार, 2 नवंबर 2021

धनतेरस और प्रदोष व्रत एक ही दिन, जानिये शुभ मुहूर्त Dhanteras 2021

 


धनतेरस की शुभकामना!

   सनातन हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्त्व है। प्रदोष व्रत में आदिदेव भगवान शंकर और माता पार्वती की आराधना की जाती है।

भक्ति भाव के साथ प्रदोष व्रत रखने वालों को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मनोकामना पूरी होती है। 

प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। यह महीने में दो बार होता है-- पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में आता है।

कार्तिक महीने को शास्त्रों में बेहद शुभ माना जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

इस साल धनतेरस आज यानी २ नवम्बर, मंगलवार को है। मंगलवार को पड़नेवाले प्रदोष व्रत को 'भौम प्रदोष व्रत' कहा जाता है। त्रयोदशी तिथि में धनतेरस और प्रदोष व्रत होने के कारण हर वर्ष ये एक ही दिन पड़ते हैं।

भौम प्रदोष व्रत तिथि २ नवम्बर २०२१ को दोपहर ०२ बजकर ०१ मिनट से प्रारम्भ होगी, जो कि ३ नवम्बर को दोपहर ०१ बजकर ३२ मिनट पर समाप्त होगी। 

आज धनतेरस के दिन भौम प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ समय शाम ०६ बजकर ४२ मिनट से रात ०८ बजकर ४९ मिनट तक है। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि के दिन सूर्योदय से पुष्कर व सिद्ध योग रहेगा। 

इस सुअवसर पर 'प्रदोष व्रत कथा' को पूरे मनोयोग से पढ़ना अथवा सुनना चाहिये। नीचे के लिंक पर क्लिक करें और आप भी सपरिवार अवश्य सुनें प्रदीप व्रत कथा।

प्रदोष व्रत कथा इस लिंक पर क्लिक कर सुनिये...

    https://youtu.be/1nVsGtHS-ug

रविवार, 26 सितंबर 2021

छठ : सूर्यदेव की आरती Chhath : Lord Sun Aarti


ॐ जय कश्यपनन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।

त्रिभुवन तिमिर निकन्दन, भक्त हृदय चन्दन॥ 

ॐ जय कश्यपनन्दन।

छठ व्रत कथा 

सप्त अश्वरथराजित, एक चक्रधारी।

दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ 

ॐ जय कश्यपनन्दन।


सुर मुनि असुर वन्दित, विमल विभवशाली।

अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरणमाली॥ 

ॐ जय कश्यपनन्दन।


सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।

विश्व विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥ 

ॐ जय कश्यपनन्दन।


कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।

सेवत सहज हरत अति, मनसिज सन्तापा॥ 

ॐ जय कश्यपनन्दन।


नेत्रव्याधिहर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।

वृष्टि विमोचन सन्तत, परहित व्रतधारी॥ 

ॐ जय कश्यपनन्दन। 


सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।

हर अज्ञान मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥ 

ॐ जय कश्यपनन्दन। 

प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

भगवान विश्वकर्मा के १०८ नाम, १०८ मन्त्र मन्त्र Lord Vishwakarma's 108 Name & 108 Mantras


-शीतांशु कुमार सहाय         

      भगवान विश्वकर्मा को वास्‍तु शास्‍त्र और यन्त्रों का देवता कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में उन की पूजा पूरी विधि-विधान से की जाती है। निर्माण के देवता विश्वकर्मा की वार्षिक पूजा कन्या संक्रान्ति या १७ सितम्बर को होती है। भगवान विश्वकर्मा की कृपा पाने के लिए उन के १०८ नामों का पाठ करना बहुत लाभदायी होता है।

विश्वकर्मा के १०८ नाम-मन्त्र का वीडियो 

     भगवान विश्वकर्मा के एक सौ आठ नामों को जपिये। नियमानुसार जो जनेऊ धारण करते हैं, वे भगवान के नामों के आगे 'ऊँ' का उच्चारण करेंगे। जो भक्त जनेऊधारी नहीं हैं, वे भगवान के नामों के आगे 'श्री' का उच्चारण करेंगे। यहाँ भगवान विश्वकर्मा के नामों के आगे 'ऊँ' का उल्लेख किया गया है--

१.  ॐ विश्वकर्मणे नमः
२.  ॐ विश्वात्मने नमः
३.  ॐ विश्वस्माय नमः
४.  ॐ विश्वधाराय नमः
५.  ॐ विश्वधर्माय नमः 
६.  ॐ विरजे नमः
७.  ॐ विश्वेक्ष्वराय नमः
८.  ॐ विष्णवे नमः
९.  ॐ विश्वधराय नमः
१०.  ॐ विश्वकराय नमः
११.  ॐ वास्तोष्पतये नमः
१२.  ॐ विश्वम्भराय नमः
१३.  ॐ वर्मिणे नमः
१४.  ॐ वरदाय नमः
१५.  ॐ विश्वेशाधिपतये नमः
१६.  ॐ वितलाय नमः
१७.  ॐ विशभुजाय नमः
१८.  ॐ विश्वव्यापिने नमः
१९.  ॐ देवाय नमः
२०.  ॐ धार्मिणे नमः
२१.  ॐ धीराय नमः
२२.  ॐ धराय नमः
२३.  ॐ परात्मने नमः
२४.  ॐ पुरुषाय नमः
२५.  ॐ धर्मात्मने नमः
२६.  ॐ श्वेताङ्गाय नमः
२७.  ॐ श्वेतवस्त्राय नमः
२८.  ॐ हंसवाहनाय नमः
२९.  ॐ त्रिगुणात्मने नमः
३०.  ॐ सत्यात्मने नमः
३१.  ॐ गुणवल्लभाय नमः
३२.  ॐ भूकल्पाय नमः
३३.  ॐ भूलेंकाय नमः
३४.  ॐ भुवलेकाय नमः
३५.  ॐ चतुर्भुजाय नमः
३६.  ॐ विश्वरूपाय नमः
३७.  ॐ विश्वव्यापकाय नमः
३८.  ॐ अनन्ताय नमः
३९.  ॐ अन्ताय नमः
४०.  ॐ आह्माने नमः
४१.  ॐ अतलाय नमः
४२.  ॐ आघ्रात्मने नमः
४३.  ॐ अनन्तमुखाय नमः
४४.  ॐ अनन्तभुजाय नमः
४५.  ॐ अनन्तयक्षुय नमः
४६.  ॐ अनन्तकल्पाय नमः
४७.  ॐ अनन्तशक्तिभूते नमः
४८.  ॐ अतिसूक्ष्माय नमः
४९.  ॐ त्रिनेत्राय नमः
५०.  ॐ कम्बीघराय नमः
५१.  ॐ ज्ञानमुद्राय नमः
५२.  ॐ सूत्रात्मने नमः
५३.  ॐ सूत्रधराय नमः
५४.  ॐ महलोकाय नमः
५५.  ॐ जनलोकाय नमः
५६.  ॐ तषोलोकाय नमः
५७.  ॐ सत्यकोकाय नमः
५८.  ॐ सुतलाय नमः
५९.  ॐ सलातलाय नमः
६०.  ॐ महातलाय नमः
६१.  ॐ रसातलाय नमः
६२.  ॐ पातालाय नमः
६३.  ॐ मनुषपिणे नमः
६४.  ॐ त्वष्टे नमः
६५.  ॐ देवज्ञाय नमः
६६.  ॐ पूर्णप्रभाय नमः
६७.  ॐ हृदयवासिने नमः
६८.  ॐ दुष्टदमनाथाय नमः
६९.  ॐ देवधराय नमः
७०.  ॐ स्थिरकराय नमः
७१.  ॐ वासपात्रे नमः
७२.  ॐ पूर्णानन्दाय नमः
७३.  ॐ सानन्दाय नमः
७४.  ॐ सर्वेश्वराय नमः
७५.  ॐ परमेश्वराय नमः
७६.  ॐ तेजात्मने नमः
७७.  ॐ परमात्मने नमः
७८.  ॐ कृतिपतये नमः
७९.  ॐ बृहद्स्मरणाय नमः
८०.  ॐ ब्रह्माण्डाय नमः
८१.  ॐ भुवनपतये नमः
८२.  ॐ त्रिभुवननाथाय नमः
८३.  ॐ सततनाथाय नमः
८४.  ॐ सर्वादये नमः
८५.  ॐ कर्षापाय नमः
८६.  ॐ हर्षाय नमः
८७.  ॐ सुखकर्त्रे नमः
८८.  ॐ दुखहर्त्रे नमः
८९.  ॐ निर्विकल्पाय नमः
९०.  ॐ निर्विधाय नमः
९१.  ॐ निस्माय नमः
९२.  ॐ निराधाराय नमः
९३.  ॐ निकाकाराय नमः
९४.  ॐ महदुर्लभाय नमः
९५.  ॐ निर्मोहाय नमः
९६.  ॐ शान्तिमूर्तय नमः
९७.  ॐ शान्तिदात्रे नमः
९८.  ॐ मोक्षदात्रे नमः
९९.  ॐ स्थवीराय नमः
१००.  ॐ सूक्ष्माय नमः
१०१.  ॐ निर्मोहय नमः
१०२.  ॐ धराधराय नमः
१०३.  ॐ स्थूतिस्माय नमः
१०४.  ॐ विश्वरक्षकाय नमः
१०५.  ॐ दुर्लभाय नमः
१०६.  ॐ स्वर्गलोकाय नमः
१०७.  ॐ पञ्चवक्त्राय नमः
१०८.  ॐ विश्वल्लभाय नमः

     भगवान विश्वकर्मा की कृपा सब पर बनी रहे!