सोमवार, 30 जुलाई 2018

भगवान शिव और सोमवार / Lord Shiv & Monday


-शीतांशु कुमार सहाय
श्रावण मास के प्रथम सोमवार को अपने सभी शुभेच्छुओं की ओर से भगवान शिव के श्रीचरणों में कोटिशः नमस्कार!
सनातन धर्म में हर दिवस का सम्बन्ध किसी--किसी देवता से है। सप्ताह का प्रथम दिवस रविवार को भगवान भास्कर की उपासना की जाती है। मंगलवार को भगवान मारूतिनन्दन हनुमान का दिन माना जाता है। कहीं-कहीं इसे मंगलमूर्ति गणपति का भी दिवस मानते हैं। बुधवार को बुध की पूजा का विधान है; क्योंकि यह शांति का दिवस है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी विशेष साप्ताहिक आराधना की जाती है। बृहस्पतिवार को कदली यानी कला वृक्ष में देवगुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है। अत: बृहस्पतिवार को गुरुवार भी कहते हैं। गुरुवार को भगवान विष्णु की अर्चना का भी विधान है। शुक्रवार भगवती संतोषी के दिवस के रूप में प्रसिद्ध है तो शनिवार को महाकाल रूप भैरव एवं महाकाली की उपासना के जाती है। शनिवार को भी भगवान हनुमान की विशेष पूजा होती है। ठीक ऐसे ही भगवान शंकर सोमवार को सब से ज्यादा पूजे जाते हैं। हर सनातनधर्मी का आग्रह होता है कि और किसी दिन शिव मंदिर जाएँ या जाएँ लेकिन सोमवार को दर्शन अवश्य करेंगे। आखिर ऐसा क्यों? शिव के लिए सोमवार का आग्रह ही क्यों? इस पर कुछ चिंतन करें, विचार करें।
सब से पहले दिनों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विचार करते हैं। वास्तव में ये सारे दिवस भगवान शिव से ही प्रकट माने जाते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार, प्राणियों की आयु का निर्धारण करने के लिए भगवान शंकर ने काल की कल्पना की। उसी से ही ब्रह्मा से लेकर अत्यन्त छोटे जीवों तक की आयुष्य का अनुमान लगाया जाता है। उस काल को ही व्यवस्थित करने के लिए महाकाल ने सप्तवारों की कल्पना की। सब से पहले ज्योतिस्वरूप सूर्य के रूप में प्रकट होकर आरोग्य के लिए प्रथमवार (रविवार) की कल्पना की-
संसारवैद्यः सर्वज्ञः सर्वभेषजभेषजम्।
आय्वारोग्यदं वारं स्ववारं कृतवान्प्रभुः॥
अपनी सर्वसौभाग्यदात्री शक्ति के लिए द्वितीयवार की कल्पना की। उस के बाद अपने ज्येष्ठ पुत्र कुमार के लिए अत्यन्त सुन्दर तृतीयवार की कल्पना की। तदनन्तर सर्वलोकों की रक्षा का भार वहन करनेवाले परम मित्र मुरारी के लिए चतुर्थवार की कल्पना की। देवगुरु के नाम से पञ्चमवार की कल्पना कर उस का स्वामी यम को बना दिया। असुरगुरु के नाम से छठे वार की कल्पना कर उस का स्वामी ब्रह्मा को बना दिया एवं सप्तमवार की कल्पना कर उस का स्वामी इंद्र को बना दिया।
नक्षत्र चक्र में सात मूल ग्रह ही दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए भगवान ने सूर्य से लेकर शनि तक के लिए सातवारों की कल्पना की। राहु और केतु छाया ग्रह होने के कारण दृष्टिगत होने से उन के वार की कल्पना नहीं की गयी।
भगवान शिव की उपासना हर वार को अलग फल प्रदान करती है। शिवमहापुराण में यह श्लोक कहा गया है--
आरोग्यम्सम्पद चैव व्याधीनांशान्तिरेव च।
पुष्टिरायुस्तथाभोगोमृतेर्हानिर्यथाक्रमम्॥
अर्थात् स्वास्थ्य, सम्पत्ति, रोग-नाश, पुष्टि, आयु, भोग तथा मृत्यु की हानि के लिए रविवार से लेकर शनिवार तक भगवान शिव या उन के साकार रूप शंकर की आराधना करनी चाहिये। सभी वारों में जब शिव फलप्रद हैं तो फिर सोमवार का आग्रह क्यों? ऐसा लगता है की मनुष्य मात्र को सम्पत्ति से अत्यधिक प्रेम होता है, इसलिए उस ने शिव के लिए सोमवार का चयन किया।
पुराणों के अनुसार, सोम का अर्थ चन्द्र या चाँद होता है और चन्द्र भगवान् शङ्कर के शीश पर मुकुटायमान होकर अत्यन्त सुशोभित होता है। लगता है कि भगवान शङ्कर ने जैसे कुटिल, कलंकी, कामी, वक्री एवं क्षीण चन्द्रमा को उस के अपराधी होते हुए भी क्षमा कर अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसे ही भगवान हमें भी सिर पर नहीं तो चरणों में जगह अवश्य देंगे। यह याद दिलाने के लिए सोमवार को ही भक्तों ने शिव का वार बना दिया। चन्द्र मन का प्रतीक है। जड़ मन को चेतनता से प्रकाशित करनेवाला परमेश्वर ही है। मन की चेतनता को पकड़कर हम परमात्मा तक पहुँच सकें, इसलिए परमेश्वर महादेव की उपासना सोमवार को की जाती है।
सोम का एक अर्थ सौम्य भी होता है। भगवान शङ्कर अत्यन्त शांत और समाधिस्थ देव हैं। इस सौम्य भाव को देखकर ही भक्तों ने इन्हें सोमवार का देवता मान लिया। सहजता और सरलता के कारण ही इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है।
सोम का एक विशेष अर्थ होता है-- उमा के सहित शिव। केवल कल्याणरी शिव की उपासना कर साधक भगवती शक्ति की भी साथ में उपासना करना चाहता है; क्योंकि बिना शक्ति के शिव के रहस्य को समझना अत्यन्त कठिन है। इसलिए भक्तों ने सोमवार को शिव का वार स्वीकृत किया।
एक विशेष बात बताता हूँ। जरा 'सोम' शब्द का उच्चारण कीजिये और इस उच्चारण पर ध्यान दीजिये। आप को 'सोम' में '' समाया हुआ मिलेगा। है नऽ गज़ब की बात! भगवान शिव ॐकारस्वरूप हैं। ॐकार की उपासना द्वारा ही साधक अद्वय स्थिति में पहुँच सकता है। अद्वय स्थिति ही एकेश्वरवाद है। अद्वय स्थिति आने पर योग साधना में सहस्रार चक्र (सिर के मध्य में स्थित) में शिव-शक्ति के मिलन का साक्षात् अनुभव होता है। इसलिए भगवान शिव को सोमवार का देव कहा जाता है।
सृष्टि का मूल आधार माता शक्ति हैं, जिन्हें आदिशक्तिकहा जाता है। आदिशक्ति ने सब से पहले सृष्टि की कल्पना की तो शक्ति का अनन्त प्रवाह निकला जो अनन्त आकार का अण्डस्वरूप शिवलिंग रूप में प्रकट हुआ। आदिशक्ति ने इस शिवलिंग का साकार रूप प्रकट किया जिन्हें हम भगवान शंकर कहते हैं। शक्ति को आदिस्त्रीरूप और शंकर को आदिपुरुषरूप की मान्यता है। इन दोनों का मिलन ही सृष्टि की रचना का मूल है। इन दोनों का मिलन रूप दर्शन ही मुक्ति का कारण है। अतः योग साधना द्वारा शिव और शक्ति का मिलन अद्वय रूप प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।    
वेदों ने 'सोम' का जहाँ अर्थ किया है, वहाँ सोमवल्ली का ग्रहण किया जाता है। जैसे सोमवल्ली में सोमरस आरोग्य और आयुष्यवर्द्धक है, वैसे ही शिव हमारे लिए कल्याणकारी हों, इसलिए सोमवार को महादेव की उपासना की जाती है।
सोमवार की शिव पूजा हमेशा सूर्योदय से पूर्व करना ही सर्वश्रेष्ठ है। सम्भव न हो पाने पर दोपहर से पूर्व अवश्य कर लें। शिव के विशेष स्थान या ज्योतिर्लिंगों की पूजा दिनभर या परम्परागत रूप से किसी भी समय की जा सकती है।

शनिवार, 28 जुलाई 2018

राशि के अनुसार करें शिव पूजन / Make Shiva Worship According to Your Zodiac


-शीतांशु कुमार सहाय
आप अपनी राशि के अनुसार यदि योगेश्वर भगवान शिव की आराधना करते हैं तो उन की विशेष कृपा प्राप्त होगी 

मेष

भगवान शिवजी को लाल चन्दन लाल रंग के फूल चढ़ायें तथा नागेश्वराय नमः का जाप करें।

वृष

चमेली के फूल चढ़ायें तथा रूद्राष्टक का पाठ करें।

मिथुन

धतूराभाँग चढ़ायें साथ में शिव पंचाक्षर मन्त्र (नमः शिवाय) का जाप करें।

कर्क

भाँग मिश्रित दूध से अभिषेक करें और रूद्राष्टाध्यायी का पाठ करें। 

सिंह

कनेर के लाल रंग फूल अर्पित करे तथा शिव चालीसा का पाठ करें।

कन्या

बेलपत्र, धतूरा, भाँग आदि चढ़ायें और पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें।

तुला

मिश्री मिले दूध से शिव का अभिषेक करें तथा शिव के सहस्रनाम का जाप करें।

वृश्चिक

गुलाब का फूल बिल्वपत्र की जड़ चढ़ायें और रूद्राष्टक का पाठ करें।

धनु

पीले फूल अर्पित करें और खीर का भोग लगायें और शिवाष्टक का पाठ करें।

मकर

शिवजी को धूतरा, फूल, भाँग और अष्टगंध चढ़ायें और पार्वतीनाथाय नमः का जाप करें।

कुम्भ

शिवजी का गन्ने के रस से अभिषेक करें और शिवाष्टक का पाठ करें।

मीन

शिवजी पर पंचामृत, दही, दूध पीले फूल चढ़ायें और चन्दन की माला से 108 बार शिव पंचाक्षर मन्त्र (नमः शिवाय) का जाप करें।

गुरुवार, 26 जुलाई 2018

गुरु पूर्णिमा : गुरु वेद व्यास का अवतरण दिवस / Guru Poornima : Incarnation Guru Veda Vyas

महाभारत की रचना : महर्षि कृष्ण द्वैपायन का वाचन व भगवन गणेश का लेखन 
-शीतांशु कुमार सहाय 
     गुरु पूर्णिमा यानी आषाढ़ पूर्णिमा का दिन 'महाभारत' के रचयिता महर्षि कृष्ण द्वैपायन (वेद व्यास) का जन्मदिन भी है। उन के पिता महर्षि पराशर तथा माता सत्यवती हैं। कृष्ण द्वैपायन व्यास संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उन का एक नाम 'वेद व्यास' भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उन के सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।
     'व्यास’ का शाब्दिक अर्थ संपादक है। वेदों का व्यास यानी विभाजन भी संपादन की श्रेणी में आता है। कथावाचक शब्द भी व्यास का पर्याय है। कथावाचन यानी देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप पौराणिक कथाओं का विश्लेषण भी संपादन है। भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, १८ पुराणों और उपपुराणों की रचना की। ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बनाकर व्यवस्थित किया। ‘महाभारत’ ऐसी रचना है जिसे वेदव्यास बोलते गये और भगवान गणेश लिखते गये। ‘महाभारत’ की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण हुई। विश्व के सुप्रसिद्ध आर्षग्रंथ 'ब्रह्मसूत्र' का लेखन महर्षि कृष्ण द्वैपायन ने इसी दिन आरंभ किया। तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया और तभी से 'व्यास पूर्णिमा' अर्थात्  'गुरु पूर्णिमा' मनायी जा रही है। 
     द्वापर युग के अंतिम भाग में वेदव्यासजी प्रकट हुए थे। उन्होंने अपनी सर्वज्ञ दृष्टि से समझ लिया कि कलियुग में मनुष्यों की शारीरिक शक्ति और बुद्धि शक्ति बहुत घट जायेगी। इसलिए कलियुग के मनुष्यों को सभी वेदों का अध्ययन करना और उन को समझ लेना संभव नहीं रहेगा। व्यासजी ने यह जानकर वेदों के चार विभाग कर दिये। जो लोग वेदों को पढ़, समझ नहीं सकते, उन के लिए महाभारत की रचना की। महाभारत में वेदों का सभी ज्ञान आ गया है। धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, उपासना और ज्ञान-विज्ञान की सभी बातें महाभारत में बड़े सरल ढंग से समझायी गयी हैं। इस के अतिरिक्त पुराणों की अधिकांश कथाओं द्वारा हमारे देश, समाज तथा धर्म का पूरा इतिहास महाभारत में आया है। महाभारत की कथाएँ बड़ी रोचक और उपदेशप्रद हैं। 
     धार्मिक ग्रंथों में महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखित 'शिव-पुराण' को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की भक्ति महिमा का उल्लेख है। इस में शिव के अवतार आदि विस्तार से लिखे गये हैं। 'वेद' और 'उपनिषद' सहित 'विज्ञान भैरव तंत्र', 'शिव पुराण' और 'शिव संहिता' में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समायी हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उन की शिक्षा का विस्तार हुआ है। सब प्रकार की रुचि रखनेवाले लोग भगवान की उपासना में लगें और इस प्रकार सभी मनुष्यों का कल्याण हो। इसी भाव से व्यासजी ने अठारह पुराणों की रचना की। इन पुराणों में भगवान के सुंदर चरित्र व्यक्त किए गये हैं। भगवान के भक्त, धर्मात्मा लोग की कथाएँ पुराणों में सम्मिलित हैं। इस के साथ-साथ व्रत-उपवास की विधि, तीर्थों का माहात्म्य आदि लाभदायक उपदेशों से पुराण परिपूर्ण हैं। 
     भारत में गुरु पूर्णिमा पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। आषाढ़ की पूर्णिमा को ही 'गुरु पूर्णिमा' कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। वैसे तो देशभर में एक से बड़े एक अनेक विद्वान हुए हैं, परंतु उन में महर्षि वेदव्यास, जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, उन का पूजन आज के दिन किया जाता है। 
     इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गये हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
     प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था, तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति, अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था।
     हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं, अतः वे हमारे आदिगुरु हुए। इसीलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। उन  स्मृति हमारे मन-मंदिर में हमेशा ताजा बनाये रखने के लिए हमें इस दिन अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उन की पाद-पूजा करनी चाहिए तथा अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरु का आशीर्वाद जरूर ग्रहण करना चाहिए। साथ ही केवल अपने गुरु-शिक्षक का ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
गुरु पूर्णिमा के दिन खासकर करें : 
      प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएँ। घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिये पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएँ बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए। फिर हमें 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए। फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए। अब अपने गुरु अथवा उन के चित्र की पूजा कर उन्हें यथायोग्य दक्षिणा देना चाहिए। 
     गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन कर उन के उपदेशों पर आचरण करना चाहिए। यह पर्व श्रद्धा से मनाना चाहिए, अंधविश्वास के आधार पर नहीं। इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उन का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। गुरु का आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े तथा हर विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है। इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
''यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥''
-कबीरदास

गुरु पूर्णिमा : गुरु पूजा का विशेष दिन / Guru Poornima : Special Day of Guru Pooja

-शीतांशु कुमार सहाय 
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूः साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।। 
गुरु अंतःकरण के अंधकार को दूर करते हैं। आत्मज्ञान के युक्तियाँ बताते हैं। गुरु प्रत्येक शिष्य के अंतःकरण में निवास करते हैं। वे जगमगाती ज्योति के समान हैं जो शिष्य की बुझी हुई हृदय-ज्योति को प्रकट करते हैं। 'गु' का अर्थ है- अंधकार या मूल अज्ञान और 'रु' का अर्थ है- उस का निरोधक। गुरु अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देते हैं। अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जानेवाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता है। जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है, वैसी ही गुरु के लिए भी। गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। आज विश्वस्तर पर जितनी भी समस्याएँ दिखायी  दे रही हैं, उन का मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना।
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥
(गीताः ४ / ३४)
इस श्लोक में भगवन ने अर्जुन के माध्यम से हम सब को समझाया है कि उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उन को भली-भाँति दण्डवत्-प्रणाम करने से, उन की सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म-तत्त्व को भली-भाँति जाननेवाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे। 
भारत में गुरु पूर्णिमा पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। आषाढ़ की पूर्णिमा को ही 'गुरु पूर्णिमा' कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। वैसे तो देशभर में एक से बड़े एक अनेक विद्वान हुए हैं, परंतु उन में महर्षि वेदव्यास, जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, उन का पूजन आज के दिन किया जाता है। 
इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गये हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था, तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति, अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। 

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

बिछड़ गये गोपाल दास 'नीरज'

-शीतांशु कुमार सहाय
 हिंदी साहित्य जगत के मशहूर गीतकार और कवि गोपालदास नीरज को गुरुवार १९ जुलाई २०१८ की शाम दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया. 94 वर्षीय नीरज को फेफडों में संक्रमण की वजह से बीते मंगलवार की रात आगरा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. तबीयत में सुधार नहीं होने की वजह से उन्हें गुरुवार को आगरा से दिल्ली के एम्स में शिफ्ट किया गया, जहां शाम करीब 8 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.

नीरज के निधन ने हिंदी साहित्य और फिल्मी जगत में शोक की लहर दौड़ गई है. बड़े-बड़े साहित्याकार, फिल्मी दुनिया और कई राजनेताओं ने उन के निधन पर शोक व्यक्त किया है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन के निधन पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि कवि गोपाल दास नीरज की प्रसिद्ध रचनाओं और गीतों को अनंत समय तक भुलाया न जा सकेगा.

नीरज को उन के गीतों के लिए भारत सरकार ने 'पद्मश्री' और 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था. उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी अनेक गीत लिखे और उन के लिखे गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं. हिंदी मंचों के प्रसिद्ध कवि नीरज को उत्तर प्रदेश सरकार ने यश भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया था.

गुरुवार, 12 जुलाई 2018

वीर सावरकर को शत-शत नमन Veer Sawrkar

-शीतांशु कुमार सहाय
जिन की किताब १९०९ में लिखी पुस्तक 'द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857' (१८५७ : प्रथम स्वातंत्र्य समर') को पढ़कर क्रांतिकारी भगत सिंह प्रेरित हुए और उसे पुनर्मुद्रित कराकर उस की प्रतियाँ जनता में बाँटी, जिन की पुस्‍तक 'हिंदुत्‍व' ने भारतीय राजनीति का परिदृश्‍य बदल दिया, जिन को क्रांतिकारी कार्य के लिए अँग्रेजों ने दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जिन्‍होंने समाज में व्‍याप्‍त कुरीतियों को खत्‍म करने की मुहिम चलायी-- ऐसे महापुरुष वीर सावरकर को शत-शत नमन! उन का जन्म २८ मई १८८३ को महाराष्ट्र (तत्कालीन बम्बई प्रान्त) के नासिक जिलान्तर्गत भगूर गाँव में हुआ था। उन का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर थावे स्वाधीनता संग्राम के तेजस्वी सेनानी, महान क्रान्तिकारी, वकील, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, नाटककार, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं उन्होंने १८५७  के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला दिया था। सावरकर कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे
* सावरकर दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य योद्धा थे जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा मिली, सजा को पूरा किया और फिर से राष्ट्र जीवन में सक्रिय हो गये।
* वे विश्व के ऐसे पहले लेखक थे जिन की कृति 'द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857' को दो-दो देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया। अमर शहीद भगत सिंह ने इस पुस्तक का तीसरा संस्करण अपने पैसों से छपवा कर बंटवाया।
* वे पहले स्नातक थे जिन की स्नातक की उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अँगरेज सरकार ने वापस ले लिया।
* सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उस के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठित किया था।
* सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् १९०५ ईस्वी के बंग-भंग के बाद सन् १९०६ में 'स्वदेशी' का नारा दे, विदेशी वस्त्रों की होली जलायी 
* वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया।
* वीर सावरकर ने राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्मचक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम ‍दिया था, जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने माना।
* सावरकर पहले भारतीय थे जिस ने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था।
* उन्होंने ही सब से पहले पूर्ण स्वतंत्रता को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य घोषित किया। वे ऐसे प्रथम राजनीतिक बंदी थे जिन्हें विदेशी (फ्रांस) भूमि पर बंदी बनाने के कारण हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला पहुँचा।
* वे पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया तथा बंदी जीवन समाप्त होते ही जिन्होंने अस्पृश्यता आदि कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया।
* दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंदमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएँ लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई दस हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।
* वे प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी माँगी।

* १९६६ ईस्वी में वीर सावरकर के निधन पर भारत सरकार ने उन के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। इस महान देशभक्त की मृत्यु २६ फ़रवरी १९६६ ईस्वी को मुम्बई में हुई