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शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

श्रीकृष्ण

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवाय।


कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम्।
नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले, वेणु करे कंकणम्।
सर्वांगे हरिचन्दनमं सुललितमं, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूड़ामणी॥

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