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रविवार, 24 फ़रवरी 2013

रामसेतु के अस्तित्व पर प्रश्न, तोडऩे पर अडिग है केंद्र सरकार/ RAMSETU

यदि कुतुबमीनार को बचाने के लिए मेट्रो रेल के मार्ग में परिवर्तन किया जा सकता है, आगरा के ताजमहल की सुन्दरता को बचाने के लिए इसके आसपास की औद्योगिक इकाइयों को बंद करवाया जा सकता है, देश के अलग-अलग म्यूजियम में रखी गई प्राचीन वस्तुओ की देख–रेख पर करोडो रूपये खर्च किये जा सकते हैं तो इस प्राचीन धरोहर जो कि करोडो लोगों की आस्था का केंद्र है को तोड़ने हेतु केंद्र सरकार करोडो रूपये क्यों खर्चा करना चाह रही है|
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत से 22 फरवरी 2013 को कहा है कि 829 करोड़ खर्च करने के बाद इस परियोजना को बंद नहीं किया जा सकता। अपनी परियोजना को आर्थिक और पर्यावरण के लिहाज से सही ठहराते हुए केंद्र ने वैकल्पिक मार्ग के लिए गठित पर्यावरणविद् आरके पचौरी समिति की सिफारिशों को नकार दिया है। भाजपा ने सरकार के ताजा रुख की कठोर आलोचना करते हुए कहा है कि रामसेतु से कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। रामसेतु एक पौराणिक सेतु है जिससे होकर राम और उनकी सेना ने रावण के राज्य पर आक्रमण करने के लिए समुद्र पार किया था। सेतुसमुद्रम परियोजना के तहत भारत और श्रीलंका के बीच से जहाजों के गुजरने के लिए रामसेतु को पार करते हुए 30 मीटर चौड़े, 12 मीटर गहरे और 167 किलोमीटर लंबे रास्ते की खुदाई करनी है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 2008 में गठित की गई पचौरी कमेटी की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सेतुसमुद्रम पोत परिवहन मार्ग बनाने की परियोजना आर्थिक एवं पर्यावरणीय दोनों ही दृष्टि से ठीक नहीं है। इसके अलावा भाजपा, अन्नाद्रमुक और हिंदू संगठनों की ओर से इस आधार पर परियोजना का विरोध किया जा रहा है कि रामसेतु भगवान राम से जुड़ा है और इस धार्मिक महत्व के कारण उसे तोड़ा नहीं जाना चाहिए।
केंद्र सरकार 30 जून, 2012 तक परियोजना पर 829 करोड़ 32 लाख रूपये खर्च कर चुकी है। इस कारण पचौरी समिति की सिफारिशों को मानने का सवाल ही नहीं उठता। केंद्र सरकार भगवान राम के बनाए सेतु को तोड़कर सेतुसमुद्रम परियोजना का निर्माण करने पर अडिग है। सरकार ने सर्वोच्च अदालत से कहा है कि 829 करोड़ खर्च करने के बाद इस परियोजना को बंद नहीं किया जा सकता। अपनी परियोजना को आर्थिक और पर्यावरण के लिहाज से सही ठहराते हुए केंद्र ने वैकल्पिक मार्ग के लिए गठित पर्यावरणविद् आरके पचौरी समिति की सिफारिशों को नकार दिया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में जहाजरानी मंत्रालय ने कहा है कि भारत सरकार ने बहुत शीर्ष स्तर के शोध के आधार पर परियोजना को हरी झंडी दी है। परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय से भी मंजूरी मिल गई है। पर्यावरण की शीर्ष संस्था नीरी ने भी परियोजना को आर्थिक तथा पारिस्थितिकी तौर पर ठीक बताया है।
हलफनामे में कहा गया है कि सेतुसमुद्रम परियोजना सहित पचौरी समिति ने अपनी रिपोर्ट में वैकल्पिक मार्ग को साफ तौर पर नकार दिया है। समिति ने कहा था कि सेतुसमुद्रम परियोजना आर्थिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से ठीक नहीं है। मंत्रालय के उपसचिव अनंत किशोर सरन ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे यह भी कहा है कि केंद्र सरकार ने 2007 में विशिष्ठ व्यक्तियों की एक समिति का गठन किया था। उसकी ओर से इस परियोजना को मंजूरी प्रदान की गई थी। परियोजना समुद्र मार्ग निर्देशन, सुरक्षा व रणनीतिक लिहाज से और आर्थिक लाभ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार 30 जून, 2012 तक परियोजना पर 829 करोड़ 32 लाख रूपये खर्च कर चुकी है। इस कारण पचौरी समिति की सिफारिशों को मानने का सवाल ही नहीं उठता। याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने 2087 करोड़ रूपये की परियोजना की समीक्षा करने का सरकार को आदेश दिया था। पचौरी कमेटी का गठन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से किया गया था।
रामसेतु मामला--
देश के दक्षिणपूर्व तट पर रामेश्वरम और पडोसी देश श्रीलंका के पूर्वोत्तर में स्थित मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की लम्बी श्रंखला है, इसे हिन्दू समुदाय भगवान् राम से जोड़कर देखता है| मान्यता है कि जब असुर सम्राट रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया था तब भगवान् श्रीराम ने वानरों की सहायता से इस सेतु का निर्माण किया था| इसी सेतु को कालांतर में देशवासी 'रामसेतु' और विश्व में 'एडम्स ब्रिज' कहा जाता है| रामसेतु की लंबाई तक़रीबन 48 किलोमीटर है और ये मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक-दूसरे से जोड़ता है| इस इलाके में समंदर काफी उथला है इसी वजह से यहाँ जल यातायात प्रभावित होता है| इस इलाके में रहने वाले निवासी कहते हैं कि 15 शताब्दी तक रामसेतु पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था| बाद के वर्षों में समुद्री-तूफानों ने इसे काफी नुकसान पहुँचाया|पूर्वी एशिया से देश में आने वाले पानी के जहाजों के लिए वैकल्पिक रास्ता बनाने के लिए सेतुसमुद्रम परियोजना का ढांचा तैयार किया गया| इस योजना के तहत 30 मीटर चौड़े, 12 मीटर गहरे और 167 मीटर लंबे समुद्री चैनल के निर्माण का प्रस्ताव है, जिसका मुख्य उद्देश्य हिंद महासागर में पाक जलडमरूमध्‍य के मध्य एक रास्ता निर्मित करना है|
विवाद--
मन्नार की खाड़ी जैविक रूप से देश में बाकि तटों की अपेक्षा कहीं अधिक धनाड्य है| यहाँ पौधों और समुद्री जीवों की 3,600 से भी अधिक प्रजातियाँ निवास करती हैं| पर्यावरण जानकारों के मुताबिक, इस मार्ग के निर्माण से इन प्रजातियाँ के जीवन पर खतरा मंडराने लगेगा| विज्ञानियों के मुताबिक, रामसेतु के विद्द्वंस से समय-समय पर सुनामी केरल की तबाही की नयी इबारत लिखने लगेगी| वो हजारों मछुआरे जिनके घर इसी से चल रहे हैं, जिनके बच्चे इसी से कमाई गयी रकम से पढते हैं वो बेरोजगार हो जाएँगे| इसके साथ ही दुर्लभ शंख-सीप से होने वाली करोडो रुपए की वार्षिक आय बंद हो जाएगी| यही नहीं यूरेनियम के विकल्प थोरियम का विश्व में सबसे बड़ा भंडार यहीं है जो रामसेतु को तोड़ देने के बाद देश के हाथ से निकल जायेगा| यही नहीं सेतुसमुद्रम परियोजना को लेकर कोस्ट गार्ड संगठन ने भी आपत्ति जताई थी कि इस परियोजना से देश की सुरक्षा को खतरा पैदा हो जायेगा| ये भी कहा गया कि संभव है कि इस चैनल का प्रयोग आतंकवादी करें| इसके साथ ही हिन्दुओं के सबसे बड़े धार्मिक संगठन विश्व हिंदू परिषद सहित कई और हिंदूवादी संगठन आस्था के कारण इस योजना के मुखर का विरोध कर रहे हैं|
वीएचपी के अशोक सिंघल ने पचौरी समिति की इस रिपोर्ट पर उंगली उठाते हुए कहा भी है कि यह पूर्वाग्रह से ग्रसित है| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कहना है कि विकास के नाम पर जहाजरानी को विकसित करने के लिए इस अत्यंत प्राचीन धरोहर को नष्ट कर देना कितना उचित है? यदि कुतुबमीनार को बचाने के लिए मेट्रो रेल के मार्ग में परिवर्तन किया जा सकता है, आगरा के ताजमहल की सुन्दरता को बचाने के लिए इसके आसपास की औद्योगिक इकाइयों को बंद करवाया जा सकता है, देश के अलग-अलग म्यूजियम में रखी गई प्राचीन वस्तुओ की देख–रेख पर करोडो रूपये खर्च किये जा सकते हैं तो इस प्राचीन धरोहर जो कि करोडो लोगों की आस्था का केंद्र है को तोड़ने हेतु सरकार करोडो रूपये क्यों खर्चा करना चाह रही है|गौरतलब है कि 19 अप्रैल में सप्रंग सरकार ने रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने पर कोई कदम उठाने से मना कर दिया था| साथ ही उच्चतम न्यायलय से इस पर निर्णय देने को कहा था| सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वह वर्ष 2008 वाले पहले हलफनामे पर कायम रहेगी जिसे राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने मंजूरी दी थी और इसमें कहा गया था कि सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है| सप्रंग सरकार द्वारा पहले दो हलफनामे वापस लिए जाने के बाद संशोधित हलफनामा दायर किया गया, जिसमें भगवान श्रीराम और रामसेतु के अस्तित्व पर प्रश्न उठाए गए थे| हिन्दुओं के परम पूज्य भगवान राम और रामसेतु के अस्तित्व पर प्रश्न उठाए जाने पर देश में धार्मिक भावनाएं भड़क गयी थी| इसके बाद कोर्ट ने 14 सितंबर 2007 को केंद्र को 2,087 करोड़ रुपये की इस महत्वकांक्षी परियोजना पर नए सिरे से समीक्षा करने के लिए समूची सामग्री के फिर से निरीक्षण की अनुमति दे दी थी|(Source)

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