शीतांशु कुमार सहाय
अगले वर्ष होने वाला लोकसभा निर्वाचन समय से हो या पहले मगर एक बात तो तय है कि हाल के 2-3 वर्षों से जो कुछ हो रहा है उन घटनाओं की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होने वाली है। इन घटनाओं में सबसे प्रमुख है सीबीआइ का दुरुपयोग। समाजवादी पार्टी के संस्थापक व सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव की मुलायमियत इन दिनों गायब होती महसूस हो रही है। ऐसा ही महसूस कर रही है कांग्रेस भी। केन्द्र की सत्ता से चिपकी कांग्रेस को मुलायम की दूरी कुछ ज्यादा ही खटकती है। ममता बनर्जी की तृणमूल पार्टी व करुणानिधि की द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम यानी डीएमके के साथ छोड़ देने से दलों के सहयोग की दरकार कांग्रेस को अधिक है। इस गरज को मुलायम भी गहराई से महसूस कर रहे हैं। इसलिए उनकी जुबान बेनी की तरह बदजुबान तो नहीं हुई पर उनकी जुबान अब आडवाणी का गुणगान करने लगी है। उनकी पार्टी केंद्रीय मंत्री बेनी वर्मा को पागल कहती है जो कभी उनके प्रिय पात्र थे। इससे इतर कांग्रेस पर केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के दुरुपयोग का भी आरोप खुलेआम लगाया। सपा प्रमुख ने जो कहा है, वही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी कहती आई है। ऐसा ही आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल व प्रख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे भी कहते हैं। पर, मुलायम का कहना खास असरकारक है। शेष सभी तो विरोधी हैं ही, मुलायम का सरकार समर्थक कुनबे में रहने के बावजूद विरोध करने का कारण अलग है। पर, विरोध की बात करते हुए सरकार से समर्थन वापस न लेने की लाचारी उनके हालिया वक्तव्य में झलकती है। कनिमोंझी व डीएमके का उदाहरण देते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि विरोधियों के पीछे कांग्रेस सीबीआइ को लगा देती है। विदित हो कि डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने केन्द्र से समर्थन वापसी की घोषणा कि और उनके पुत्र के घर पर सीबीआइ का छापा पड़ गया।
दिग्गजों को सीबीआइ से डर लगता है। जिसने गलती की नहीं उसे तो नहीं डरना चाहिए। स्वामी रामदेव की तरह निर्भय होकर सीबीआइ जांच करानी चाहिए। वैसे प्रकरण रामदेव का हो या उनके मित्र स्वामी बालकृष्ण का, मायावती या मुलायम का- गौर करें तो सीबीआइ के दुरुपयोग के ऐसे कई अन्य उदाहरण भी मिल जाएंगे। जब तक स्वामी रामदेव ने कांग्रेस का विरोध नहीं किया तब तक वे भद्र पुरुष थे। सभी नयाचारों को ताक पर रखकर उनकी अगुवाई करने हवाई अड्डे पर पांच केन्द्रीय मंत्री भी हाजिर हो गए थे। पर, जैसे ही उन्होंने कांग्रेसी खिलाफत शुरू की, उनके उत्पाद की गुणवत्ता जांचने सहित उनके गुम हुए गुरु की खोजबीन के नाम पर उनके पीछे सीबीआइ को लगा दिया गया। यही नहीं भाजपा की पिछली राज्य सरकार द्वारा हिमाचल प्रदेश में रामदेव की संस्था को दी गई जमीन को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू हो गई; क्योंकि वहां कांग्रेस की सरकार सत्ता में आ गई। इसी तरह स्वामी बालकृष्ण को परेशान करने के लिए भी सीबीआइ का इस्तेमाल हो रहा है। उन्हें नेपाली साबित करने की भी जद्दोजहद हो रही है और उनकी वैद्य की उपाधि को भी फर्जी बताया जा रहा है। यदि बालकृष्ण नेपाली हैं भी तो हो-हल्ला की कोई जरूरत नहीं है। भारतीय संविधान के अनुसार, नेपाली को भारत में सरकारी नौकरी भी करने का अधिकार है। क्या कांग्रेस को संविधान की यह बात मालूम नहीं? यदि रामदेव, उनके सहयोगी या उनकी संस्था इतनी बदतर है तो जांच वर्षों पहले ही शुरू क्यों नहीं हुई? वैसे कांग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार को समर्थन देकर सीबीआइ जांच की आंच से फिलहाल मायावती व मुलायम सुरक्षित हैं। उनकी संचिकाएं सीबीआइ के किस कार्यालय में धूल खा रही हैं, पता नहीं! इन घटनाओं को केवल संयोग नहीं कहा जा सकता।
यहां अन्ना आंदोलन के दौरान सीबीआइ को जनलोकपाल के अंतर्गत लाने के पुरजोर प्रयास का उल्लेख करना आवश्यक है। अन्ना, केजरीवाल, किरण बेदी, संतोष हेगड़े व प्रशान्त भूषण जैसे प्रखर समाजसेवियों ने स्पष्ट कहा था कि जब तक केन्द्र सरकार के अंतर्गत सीबीआइ रहेगी तब तक भ्रष्टाचार पर पूर्णतः अंकुश लगाना सम्भव नहीं होगा। यह भी कहा गया कि यदि ऐसा नहीं होता है तो सरकार सीबीआइ का विद्वेषपूर्ण इस्तेमाल कर सकती है। लगता है कि अभी ऐसा ही हो रहा है। इसपर लगाम जरूरी है अन्यथा सीबीआइ की रही-सही विश्वसनीयता पर भी प्रश्न चिह्न लग जाएगा।
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