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रविवार, 25 अगस्त 2013

लाल हिंसा में झारखंड सर्वाधिक लाल


शीतांशु कुमार सहाय

    येन-केन-प्रकारेण झारखण्ड में सरकार बनी और शनिवार को मन्त्रिमण्डल का विस्तार भी पूरा हो गया। कहने को जनता की सरकार झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में पूरी तरह सत्तासीन हो गयी। पर, एक मुख्य बात की ओर अब तक सरकार का ध्यान कमतर है और वह है नक्सलियों का लाल आतंक। इस आतंक के साये में राज्य के 24 में से 18 जिलों के लोग जीने को मजबूर हैं। कब उन्हें इस मजबूरी से मुक्ति मिलेगी, यह बताने में झामुमो, काँग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की तिकड़ी वाली राज्य की सरकार असमर्थ है। यह समस्या सरकार की प्राथमिकता में शामिल होनी चाहिये मगर सरकारी तौर पर यह गौण है। केवल अपराध संगोष्ठियों में ही इस पर विचार होता है। विचार से उभरे निष्कर्षों पर कोई सार्थक पहल नहीं हो पाती। लिहाजा हर दिन लाल आतंकियों यानी नक्सलियों का प्रसार बढ़ रहा है। इसने अब अपनी पहुँच राजधानी राँची और उपराजधानी दुमका में भी दर्ज करा दी है। इसका प्रमुख कारण है नियमित विकास का अभाव। राज्य का गठन जब सन् 2000 के 15 नवम्बर को हुआ था तब आधार यही बताया गया था कि अनियमित विकास नहीं अब नियमित होगा। पर, अब तक ऐसा न हो पाया। जो भी सरकारें राज्य में आयीं वह जनविकास से ज्यादा सरकार को स्थिर रखने में ही व्यस्त रहीं। वर्तमान सरकार का भी गठन इतनी पैंतरेबाजी के बाद हुआ कि झामुमो, काँग्रेस व राजद की सारी ऊर्जा सरकार को संभालने में ही खर्च हो जा रही है। उनका ध्यान लाल आतंक से जनता को मुक्ति दिलाने पर जा ही नहीं रहा है।
    झारखण्ड के गठन से अब तक यहाँ 426 सुरक्षाकर्मियों सहित करीब 1,100 लोगों को नक्सलियों ने मौत के घाट उतारा है। नक्सलियों के हमले में जान गँवाने वालों में लोकसभा के एक सदस्य, राज्य के 2 विधायकों तथा भारतीय आरक्षी सेवा के एक अधिकारी भी हैं। 2 जुलाई को काठीकुंड के जंगल में घात लगाकर नक्सलियों ने पाकुड़ के आरक्षी अधीक्षक अमरजीत बलिहार और 5 अन्य पुलिसकर्मियों को मार डाला। यों जनवरी 2005 में नक्सलियों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी लेनिनवादी (भाकपा-माले) के विधायक महेंद्र सिंह की गिरीडीह में हत्या कर दी थी। लाल आतंकियों ने मार्च 2007 में झामुमो के लोकसभा सदस्य सुनील महतो की हत्या कर दी। वर्ष 2008 में पूर्व मंत्री व जनता दल (युनाइटेड) के विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या कर दी गयी। राज्य में पिछले 5 वर्र्षांे में नक्सली हमले व इसमें जान गँवाने वालों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2008 में 57, 2009 में 138, 2010 में 70, 2011 में 130 और वर्ष 2012 में 169 लोगों को लाल आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया। इनसे ग्रामीण अधिक प्रभावित हैं। जब कभी नक्सलियों के एक समूह को लगता है कि लोग प्रतिद्वन्द्वी समूह की मदद कर रहे हैं तो वे ग्रामीणों को निशाना बनाते हैं। राज्य में 6 से अधिक नक्सली गिरोह हैं और आम लोग उनके आपस के झगड़े में मारे जा रहे हैं। इस बीच सरकार कहती है कि विकास के हथियार से लाल आतंकियों की समस्या समाप्त की जाएगी। पर, इसमें सच नजर नहीं आता है। यदि यह सच होता तो वर्ष 2000 में जिस राज्य के केवल 8 जिले नक्सल प्रभावित थे अब उसके 24 में से 18 जिलों में लाल गतिविधियाँ प्रसारित हो चुकी हैं। नये आँकड़े में झारखण्ड में सर्वाधिक नक्सल घटनाएँ दर्ज की गयीं। वर्ष 2013 की पहली छमाही में झारखण्ड में पिछले वर्ष के मुकाबले नक्सली घटनाओं में कमी आयी है। यह कमी कुल 101 घटनाओं (गत वर्ष जनवरी से जून तक 302 नक्सली घटनाएँ हुईं) की है। साथ ही इस वर्ष झारखण्ड में अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक नक्सली वारदातें हुईं। नक्सली वारदातों के मामले में दूसरे स्थान पर छत्तीसगढ़ जबकि बिहार तीसरे स्थान पर है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, झारखण्ड में इस वर्ष 30 जून तक 201 नक्सली वारदातों को अंजाम दिया गया। वहीं देशभर में 593 घटनाएँ हुई हैं। देशभर में हुई नक्सली वारदातों में से 33.89 प्रतिशत केवल झारखण्ड में हुए। लाल हिंसा में आम लोगों की मौतें भी सर्वाधिक झारखण्ड में ही हुई हैं। इस वर्ष की पहली छमाही में राज्य में 58 आम लोग नक्सलियों केे शिकार बने। यह संख्या देशभर में नक्सली हिंसा में मारे गये आम लोगों की संख्या 140 का 41.42 प्रतिशत है।
    सूचना का अधिकार के तहत केन्द्रीय गृह मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2003 से 2012 के बीच झारखण्ड में नक्सली हिंसा में 1275 नागरिक मारे गये और 328 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए। इस अवधि में राज्य में 193 नक्सली मारे गये। देश में नक्सली हिंसा में प्रतिदिन औसतन एक से अधिक आम नागरिक मारे जा रहे हैं। 2003 से 2012 तक 10 वर्ष के दौरान लाल हिंसा में 8494 लोग मारे गये जिनमें 4952 आम लोग, 1840 सुरक्षाकर्मी व 1702 नक्सली थे। इस कोहराम के पीछे निश्चय ही असमान विकास का हाथ है। झारखण्ड में 72 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है। 73 प्रतिशत महिलाएँ रक्ताल्पता से पीड़ित हैं और 52 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। पिछले 12 वर्षों में सरकार ने दर्जनों ऐसी योजनाओं को हरी झंडी दी है जो आदिवासियों को उन्हीं की जमीन से बेदखल और संविधान के तहत उनके हक के सारे प्रश्नों को हाशिये पर ढकेलती हैं। कॉरपोरेट, पैसे और योजनाओं में मुनाफे के खेल ने समूचे झारखण्ड को ही ताक पर रख दिया। वैसे झारखण्ड सरकार ने राज्य के नक्सलग्रस्त क्षेत्रों के सभी बेरोजगारों को तकनीकी व कौशल विकास प्रशिक्षण देने का निर्णय मई के दूसरे सप्ताह में लिया। यों लाल क्षेत्र सरयू में ‘सरयू विकास योजना’ चलायी जा रही है। ये पहल प्रशंसनीय हैं। ऐसी ही पहल लाल हिंसा को कम या खत्म का सकती हैं।

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