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शनिवार, 21 सितंबर 2013

500 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि : भयंकर महंगाई का काँग्रेसी तोहफा



शीतांशु कुमार सहाय
    केन्द्र में सरकार की अगुवाई करने वाली काँग्रेस फिर से सत्ता में आने के लिए कमर कस चुकी है। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा के आम निर्वाचन में जनता के बीच जाकर वह भले ही कामयाबियों का दिवास्वप्न दिखायेगी मगर सच तो यही है कि महंगाई के सिवा उसके पास दिखाने के लिए अगर कुछ है तो वह है भ्रष्टाचार। मनमोहन सिंह की सरकार ने भ्रष्टाचार व महंगाई के तमाम कीर्तिमानों को ध्वस्त कर दिया। लोकसभा निर्वाचन में जनता आदर्श सोसाइटी घोटाला, 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमण्डल खेल घोटाला, कोयला घोटाला, रुपये की भयानक गिरावट को अवश्य याद रखेगी। इन घोटालों में तो जनता द्वारा दिये गये कर की राशि को घपलेबाजों ने हड़पा जिससे जनता प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं हुई। पर, मनमोहन सरकार ने जो आकाश छूती महंगाई का तोहफा दिया है, वह सीधा जनता की जेब पर डाका डाल रहा है। अभी केन्द्र सरकार ने जो आँकड़े जारी किये हैंे, उनके अनुसार भोज्य-सामग्रियों की कीमत 250 प्रतिशत जबकि सब्जी का दाम 350 प्रतिशत बढ़ा है। यह महंगाई मनमोहन सिंह के शासन के दौरान वर्ष 2004 से 2013 के बीच बढ़ी है।
    दरअसल, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री से जितनी अपेक्षा जनता ने पाल रखी थी, उनमें से किसी पर भी वे खड़े नहीं उतर सके। भारत और भारतवासियों के लिए यह सबसे बड़ी विडम्बना है जो ताउम्र याद रखने लायक है, भले ही नकारात्मक लहजे में ही। खाने-पीने पर इतनी आफत पहले कभी नहीं आयी जबकि महंगाई पहले भी बढ़ती रही है। काँग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) के दोनों कार्यकालों में महंगाई ने आम आदमी को पस्त कर दिया है। भारत सरकार के आँकड़े जो कहानी बयान करते हैं, वे बेहद चौंकाने वाले हैं। आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2004 से 2013 के बीच खाने-पीने की वस्तुओं के मूल्य में 157 प्रतिशत वृद्धि हुई है। यहाँ जानने की बात है कि विश्व में भारत दूसरा सर्वाधिक सब्जी पैदा करने वाला देश है। इसके बावजूद यहाँ सब्जियों के दामों में 350 प्रतिशत की बेतहाशा वृद्धि हुई। 10 वर्षों में प्याज की कीमत 521 प्रतिशत, आलू 200 प्रतिशत, बैंगन का मूल्य 311 प्रतिशत बढ़ा है। पत्ता गोभी की कीमत में जबर्दस्त तेजी है और यह 714 प्रतिशत महंगी हुई है। अन्य सब्जियों के साथ भी यही हाल है। करोड़ों परिवारों को कई सब्जियों को अपनी थाली से हटाना पड़ा है। 2009 के बाद से दालों की कीमतें भी तेजी से बढ़ी हैं। दालें प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं। भारत में अधिकतर लोग शाकाहारी हैं, ऐसे में उनकी खाने की थाली से एक महत्त्वपूर्ण पोषक खाद्य पदार्थ गायब हो गया है। दालों के दाम 2005 से जो बढ़ने शुरू हुए, वे 2010 तक 200 प्रतिशत से ज्यादा बढ़े। 2012 में इनकी कीमतों में फिर इजाफा हुआ और पिछले साल सितंबर में इनमें बेतहाशा बढ़ोत्तरी देखी गयी। यों दूध 119 प्रतिशत, अंडा 124 प्रतिशत और चीनी ने 106 प्रतिशत की छलांग लगायी है।
    महंगाई का आलम यह है कि नमक की कीमत भी इन 10 वर्षों में काफी बढ़ी है। अनाज भी पीछे नहीं है। चावल की कीमत में 137 प्रतिशत तो गेहूँ की कीमत में 117 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मसालों के मूल्य में 119 प्रतिशत की तेजी आयी है। फलों की बढ़िया पैदावार के बावजूद इनकी कीमतें 95 प्रतिशत बढ़ीं। यह महंगाई तब है जब भारत में आमतौर पर खाद्य पैदावार ठीक-ठाक रही है। ये आंकड़े हैं थोक बाजार के जबकि आम आदमी को खुदरा कीमत पर खरीददारी करनी होती है। खुदरा कीमतों में 500 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गयी है। ऐसे में 2014 के चुनाव का बेड़ा कैसे पार लगेगा?

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