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सोमवार, 2 सितंबर 2013

झारखण्ड : थम नहीं रही दरिन्दगी


एक जनवरी से 31 मई तक राज्य में दुष्कर्म की 500 घटनाएँ दर्ज

शीतांशु कुमार सहाय
    पिछले वर्ष दिसम्बर में दिल्ली में चलती बस में एक लड़की से सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद देश में जो उबाल आया और सरकार ने कानून को कठोर बनाया तो ऐसा लगा था कि अब ऐसी घटनाओं में कमी आएगी पर हुआ ठीक उल्टा। कठोर कानून का भय नहीं रहा दुष्कर्मियों को। लगातार महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ रही है। इससे जहाँ देशभर की महिलाएँ डरी-सहमी हैं, वहीं प्रबुद्धों के बीच यह चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। इस सन्दर्भ में प्रशासनिक चूक भी कम जिम्मेदार नहीं है। तभी तो न्यायालयों को भी महिला सुरक्षा पर चिन्ता जतानी पड़ रही है। यह पूरा वर्ष दुष्कर्मों के लिए चर्चित है। मेरी याद में इतने दुष्कर्म किसी वर्ष नहीं हुए। सर्वाधिक दुष्कर्मों के लिए वर्ष 2013 याद किया जाएगा। एक जनवरी से 31 मई तक राज्य में दुष्कर्म की 500 घटनाएँ दर्ज हुई हैं। कुछ वर्षों पूर्व तक जब इक्के-दुक्के ऐसी घटनाएँ घटती थीं तो कहा जाता था कि यह महानगरों तक ही सीमित है पर अब तो गाँवों-कस्बों में की भी लड़कियाँ व महिलाएँ महफूज नहीं रहीं। शहरीकरण में अत्यन्त पिछड़ा राज्य झारखण्ड में भी आए दिन दुष्कर्म की घटनाएँ घट रही हैं।
झारखण्ड उच्च न्यायालय ने महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा पर चिन्ता जतायी है। एक मामले में सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी सरकार की है लेकिन जिस तरह से घटनाएँ हो रही हैं उससे लगता है कि सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई ठोस पहल नहीं की है, महिलाओं को सुरक्षा देने में सरकार पूरी तरह विफल है। उच्च न्यायालय ने महिला सुरक्षा पर सरकार से ठोस कदम उठाने को कहा है। देखना है कि हेमन्त सरकार का ठोस कदम क्या होगा!
    दरअसल, राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान देवघर में 2 नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गयी जिसके बाद से घटनाओं की झड़ी लगी है। देवघर की घटना सुरक्षित माने जाने वाले स्थानीय पुलिस लाईन में घटी। विरोध में जनता व विभिन्न दलों के नेता सड़कों पर उतरे मगर आरोपित पकड़ा नहीं गया। अन्ततः मामले को केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को सौंपकर ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। फिर जोड़-तोड़ कर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में काँग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल के सहयोग से सरकार बनी। लगा कि अब माहौल बदलेगा पर हेमन्त राज में दुष्कर्म व सामूहिक दुष्कर्म की कई घटनाएँ घट चुकी हैं। इस पर झारखण्ड उच्च न्यायालय ने सख्त रूख अख्तियार किया है। गौरतलब है कि न्यायामूर्ति एनएन तिवारी व न्यायामूर्ति एस चंद्रशेखर की खंडपीठ ने छेड़खानी को लेकर स्वतः संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका के एक मामले में शुक्रवार व शनिवार को सुनवाई की। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से इस मामले में शपथ-पत्र दायर करने को कहा था। साथ ही राँची नगर निगम के सीईओ को उपस्थित होने को कहा था। इस बीच सरकार की तरफ से शपथ-पत्र दाखिल किया गया जिससे न्यायालय संतुष्ट नहीं है। शनिवार को नगर निगम के सीईओ न्यायालय में उपस्थित हुए और उन्होंने महिला सुरक्षा के बाबत उठाये गये कदमों की जानकारी दी। न्यायालय ने पहले ही इस मामले में सरकार को ठोस कदम उठाने के आदेश दिये थे लेकिन उसका अनुपालन कायदे से नहीं हो रहा है। यदि उचित अनुपालन होता तो दुष्कर्म की घटनाएँ नहीं बढ़तीं। देवघर की घटना के बाद गिरिडीह में एक अबला की प्रतिष्ठा तार-तार हुई। 14 जुलाई को पाकुड़ के लबादा गाँव में 4 नाबालिग पहाड़िया विद्यालीय बच्चियों को अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म किया गया। यों 7 अगस्त को पाकुड़ के महेशपुर स्थित घटकोरा गाँव में 2 नाबालिग लड़कियों की इज्जत से गाँव के ही 4 लोगों ने खिलवाड़ किया। पाकुड़ के ही मालपहाड़ी थाने के नसीपुर पंचायत में 19 अगस्त को एक महिला पार्षद के साथ 4 लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। यों 22 अगस्त की देर रात एनएच-75 पर लातेहार के जगलदगा पुल के निकट लातेहार पुलिस लाइन में पदस्थापित विधवा महिला आरक्षी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। फिर 27 अगस्त की रात राँची से 40 किलो मीटर दूर बुंडू अनुमंडल क्षेत्र में 9वीं कक्षा की एक छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना हुई। 29 अगस्त को हजारीबाग में 11वीं कक्षा की एक छात्रा के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया। उसे 2 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया था।

    झारखण्ड में लगातार महिला उत्पीड़न की घटनाएँ बढ़ रही हैं। सरकारी आँकड़े के अनुसार, इस वर्ष एक जनवरी से 31 मई के बीच राज्य में दुष्कर्म की 500 घटनाएँ सामने आयी हैं। मतलब यह कि राष्ट्रपति शासन में झारखण्ड की महिलाएँ अधिक असुरक्षित थींे। इसी अवधि में 2012 में 328 तथा 2011 में 292 मामले दर्ज कराये गये थे। ये आँकड़े विभिन्न थानों में दर्ज हैं। दुष्कर्म की वारदातों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है; क्योंकि लोक लाज से लोग कई मामलों को पुलिस तक नहीं पहुँचने देते हैं। महिला उत्पीड़न की घटनाओं को न्यूनतम करने के लिए जरूरी है कि कानून का सख्ती से पालन हो। त्वरित न्यायालयों में ऐसे मामलों की सुनवाई की जाये। साथ ही सबसे कारगर उपाय के तौर पर नशीले पदार्थों से दूरी रखते हुए आत्मसंयम को अपनाना अत्यावश्यक है। आत्मसंयम को एक दिन में आत्मसात् नहीं किया जा सकता। इसके लिए जरूरी है कि पाठ्यक्रम में नैतिकता, व्यावहारिकता व सामाजिकता से जुड़े सन्दर्भ जोड़े जाएँ; ताकि विद्यार्थी नैतिक रूप से सबल होकर मर्यादित जीवन का आनन्द लें।

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