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मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

पण्डित मुकुन्द दत्त द्वारी : नाना ने पहचानी प्रतिभा, दुनिया ने माना संगीत का लोहा / MUKUND DUTT DWARI



-शीतांशु कुमार सहाय/ SHEETANSHU KUMAR SAHAY

वर्ष 1970 से आकाशवाणी के नियमित कलाकार पण्डित मुकुन्द दत्त द्वारी कई पुरस्कारों व सम्मानों से सम्मानित हैं। इन्हें 19-20 दिसम्बर 2013 को पटना में आयोजित ‘नटराज कला सम्मान-2013’ से सम्मानित किया जायेगा। इन के साथ प्रसिद्ध कथक नर्तकी शोभना नारायण व नाट्यकर्मी अनिल पतंग भी सम्मानित होंगे।
तिरस्कृत होने वाला वह पत्थर भी सुगन्धित हो उठता है जिस पर चन्दन का घर्षण किया जाता है। वह बोल वन्दित होता है जो संगीत का साहचर्य पाता है। वास्तव में संगीत वही है जो मन को प्रसन्न करे, शान्ति प्रदान करे। जिस से मन उद्वेलित हो जाये, हृदय की धड़कन बढ़ जाये, रक्तचाप ऊपर-नीचे होने लगे और साँस का तारतम्य गड़बड़ा जाये, वह धुन वास्तव में संगीत नहीं कहला सकता। सरगम का वह क्रम जो प्रकृतिवत् तन-मन के लिए लाभप्रद हो, कर्णप्रिय हो; वही संगीत कहलाता है। इसे ही लोकाचार में शास्त्रीय संगीत कहते हैं। शास्त्रीय संगीत के असंख्य साधक हुए पर इन दिनों इस के वास्तविक जानकारों की संख्या काफी कम है। शास्त्रीय संगीत के वास्तविक जानकारों में भी निःशुल्क संगीत शिक्षा देने वाले संगीत गुरुओं की संख्या अँगुलियों के पोरों में ही समा पायेगी। ऐसे ही गिने-चुने संगीत गुरुओं में एक हैं पण्डित मुकुन्द दत्त द्वारी। पण्डित एमडी द्वारी के संक्षिप्त नाम से प्रसिद्ध इस उस्ताद ने दशकों तक देश के विभिन्न नगरों में गुरु-शिष्य परम्परा के तहत संगीत की शिक्षा देने के उपरान्त अपनी जन्म-भूमि वैद्यनाथधाम को पुनः अपना आश्रय-स्थली बनाया है। झारखण्ड के देवघर स्थित वैद्यनाथधाम के हरिहरबाड़ी में ‘जयगुरु संगीत शिक्षा केन्द्र’ के माध्यम से निःशुल्क संगीत प्रशिक्षण दे रहे हैं।
नाना ने पहचानी प्रतिभा
पलुस्कर संगीत घराने के प्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित मुकुन्द दत्त द्वारी के मानस पटल पर संगीत का बीजारोपण उन के नाना पण्डित शम्भूनाथ खवाड़े ने उस वर्ष किया, जिस वर्ष गणतन्त्र बनकर उभरा था भारत। नाना ने छिपी हुई प्रतिभा को पहचाना और कालान्तर में संसार ने उन की संगीत मर्मज्ञता का लोहा माना। 3 वर्ष की अल्पावस्था से ही सरगम को साथी बनाने वाले मुकुन्द का जन्म 2 जुलाई 1947 को वैद्यनाथधाम में हुआ था। माता हरसुन्दरी देवी व पिता गोविन्द दत्त द्वारी के आँगन को अपने बाल कलरव से गुंजायमान करने वाले बालक में छिपी प्रतिभा को नाना पण्डित शम्भूनाथ खवाड़े ताड़ गये। वे देवघर के प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतज्ञ व लोकप्रिय कीर्तनकार थे। नाती को नाना का सान्निध्य मिला। यों बालक मुकुन्द की कोमल अँगुलियाँ वीणा और तानपूरे के तारों को छेड़ने लगीं, झंकृत करने लगीं जो अनवरत् जारी है।
ईश्वर के प्रति कृतज्ञता
जहाँ तक शास्त्रीय संगीत की बात है तो यह प्रकृतिजन्य है। भगवान शिव के संगीत-स्वरूप नटराज ही संगीत के मूल हैं। उन की नगरी देवघर में जन्म लेकर मुकुन्द भला संगीतहीन कैसे रहते! उन्होंने नटराज का अनुसरण किया और संगीत को भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान का सोपान बनाया। इन तीनों क्षेत्रों में अपने उत्थान के बाबत वे सदैव ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। समस्त भौतिक सुख और मानसिक शान्ति के बीच उन की साधना निरन्तर जारी है, जीवन के 67वें वर्ष में भी।
संगीत शिक्षा की शुरुआत
संगीत साधना के बीच द्वारी ने परम्परागत शिक्षा भी हासिल की। इन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की। देवघर के तत्कालीन प्रख्यात संगीत गुरु विदेश्वर झा से प्रथमतः संगीत की नियमित शिक्षा आरम्भ की। इस के पूर्व नाना पण्डित शम्भूनाथ खवाड़े से संगीत सीखा। पण्डित खवाड़े ने शास्त्रीय संगीत के माध्यम से इतनी आध्यात्मिक उन्नति की थी कि उन का देहावसान भी भग्वद्-भजन गाते-गाते ही हुआ। रात में कीर्तन करते रहे और प्रातः गोद में पखावज लिये बैठे हुए थे मगर शरीर निस्प्राण हो चुका था।
पलुस्कर घराने में दीक्षित
पण्डित खवाड़े व पण्डित विदेश्वर के पश्चात् मुकुन्द दत्त द्वारी ने पलुस्कर घराने के पण्डित सीताराम हरिदाण्डेकर का सान्निध्य प्राप्त किया। महाराष्ट्र के हरिदाण्डेकर को बिहार के तत्कालीन जलपोत कम्पनी के मालिक बच्चा बाबू ने मुजफ्फरपुर में रहने की व्यवस्था कर दी और उन के समस्त खर्चों का वहन करते थे। देवघर से मुकुन्द नियमित मुजफ्फरपुर जाते और महीनों गुरु के पास रहकर गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत संगीत की सूक्ष्मता को आत्मसात् करते रहे। पण्डित विदेश्वर की संस्था में ही द्वारी को गाते देख प्रभावित होकर पण्डित नाथ बाबा गोखले ने अपने ठिकाने पर बुलाया। हिमालय क्षेत्र में तपस्या करने वाले गोखले यदा-कदा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन को देवघर आते और संगीत मर्मज्ञ होने के नाते स्थानीय संगीत शिक्षालयों में जाते तथा चुनिन्दा विद्यार्थियों को संगीत की बारीकियाँ सिखाते थे। इन से संगीत के कई आध्यात्मिक पहलुओं को द्वारी ने सीखा। फिर किराना घराने के उस्ताद अमीर खाँ व पलुस्कर घराने के पण्डित नारायण राव पटवर्द्धन से संगीत की उच्च शिक्षा ग्रहण की। हालाँकि संस्थागत संगीत शिक्षा में पण्डित द्वारी स्नात्कोत्तर हैं मगर गुरु-शिष्य परम्परा के तहत उन्होंने संगीत में इतनी पैठ बनायी कि कई शिष्यों ने उन के मार्गदर्शन में संगीत में डॉक्टरेट भी की।
पटना में विशेष चर्चित
वर्ष 1970 से पण्डित द्वारी ने शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देना आरम्भ किया, जब इन्होंने पटना के अनीसाबाद में ‘पण्डित विदेश्वर संगीत केन्द्र’ की स्थापना की। शीघ्र ही वे पटना में इतने चर्चित व लोकप्रिय हो गये कि कई कथित संगीत गुरुओं ने अपने को पण्डित द्वारी बताकर मोटी राशि लेकर संगीत सिखाने लगे थे। इस बारे में बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कई रोचक घटनाएँ सुनायीं। पटना के अलावा बोकारो, दिल्ली, सिरसा, भागलपुर, धनबाद, दुमका, बड़ौदा, जोधपुर, कोलकाता में भी संगीत का प्रशिक्षण दिया।
शिष्य परम्परा
देश-विदेश में इन के हजारों शिष्य हैं। इन में कुछ संगीत प्रशिक्षक बने हैं तो कुछ अन्य दूसरे रूप में संगीत को आजीविका का साधन बनाकर सफल जीवन का आनन्द ले रहे हैं। हालाँकि ये कभी दरबारी गायक नहीं रहे फिर भी बड़ौदा के पूर्व रजवाड़े के वर्तमान वारिस महाराज प्रताप सिंह गायकवाड़ इन के शिष्य हैं। यों प्रसिद्ध कथक व भरतनाट्यम केे नृत्यगुरु नागेन्द्र प्रसाद मोहिनी ने अपने गुरु पण्डित द्वारी का नाम रौशन किया। फिल्म जगत के जाने-माने गायक व संगीतकार ज्ञानेश्वर दूबे व संतोष अनीसाबादी, गायिका प्रिया और गायक मोहित इन के ही शागिर्द हैं। 20 वर्षों तक पटना में रहने के कारण उन के सर्वाधिक शिष्य भी पटना में ही हैं। चर्चित संगीत संस्था ‘निनाद’ के निदेशक राजीव सिन्हा जैसे पटना के सैकड़ों कलाकार ने पण्डित द्वारी से संगीत की शिक्षा ली। यों गायन, वादन, नृत्य, संगीत प्रशिक्षण, आकाशवाणी व विभिन्न टेलीविजन चैनलों में इन के कई शिष्य कार्यरत हैं। सोनिया सिन्हा अमेरिका में, अर्पणा विश्वास दक्षिण अफ्रीका में तो सुनीता हॉलैण्ड में संगीत की शिक्षा दे रही हैं जो पण्डित द्वारी की शिष्याएँ हैं।
सरकारी सेवा 
शास्त्रीय संगीत को समर्पित पण्डित द्वारी सरकारी सेवा में भी रहे। पर, इस दौरान संगीत-साधना पर तनिक असर न पड़ा। नियमित रियाज जारी रहा और सिखाने का सिलसिला भी। सन् 1974 में देवघर स्थित गोवर्द्धन साहित्य महाविद्यालय में व्याख्ता नियुक्त हुए। तदुपरान्त केन्द्रीय विद्यालय, पटना में संगीत शिक्षक बने। 2000 ई. में सिरसा, हरियाणा के केन्द्रीय विद्यालय से अवकाश प्राप्त किया।
निःशुल्क संगीत की शिक्षा
सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्ति के पश्चात् इन्होंने जन्मभूमि देवघर का रुख किया। बाबा वैद्यनाथ की इस नगरी में ऐतिहासिक व पवित्र शिवगंगा के तट पर स्थित हरिहरबाड़ी में ‘जयगुरु संगीत शिक्षा केन्द्र’ संचालित कर रहे हैं। प्राचीन कला केन्द्र, चण्डीगढ़ से मान्यता प्राप्त इस संस्था में पण्डित द्वारी निःशुल्क संगीत की शिक्षा दे रहे हैं। इन दिनों संस्था में करीब 800 विद्यार्थी नामांकित हैं।
संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना
चुनिन्दा संगीत कार्यक्रमों में बतौर कलाकार या बतौर निर्णायक शिरकत करने वाले पण्डित द्वारी के दिल में एक कसक शेष है। उन की चाहत है कि बिहार या झारखण्ड में एक संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना हो। विदित हो कि इन दोनों राज्यों के हजारों संगीत केन्द्रों से करोड़ों रुपये बतौर विविध शुल्क अन्य राज्यों में चले जाते हैं। वे विभिन्न स्तरों पर प्रयासरत हैं कि झारखण्ड के देवघर व बिहार के पटना में संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना हो।


कहते हैं कि जो संगीत में माहिर होते हैं, उन में स्वतः कवित्त-शक्ति प्रादुर्भूत हो जाती है। उन की कविता, उन की तुकबन्दी, उन के प्रत्येक बोल किसी-न-किसी राग-रागिनी पर आधृत होते हैं। इस के जीते-जागते उदाहरण हैं नटराज की बस्ती के वासी पण्डित मुकुन्द दत्त द्वारी।



12 टिप्‍पणियां:

  1. गुरूदेव श्री मुकुंद दत्त द्वारी जी को कोटि कोटि प्रणाम।
    मैं ईश्वर से आपके आरोग्य एवं दीर्घायु की कामना करता हुँ।हमें आपका सान्निध्य और आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता रहे।

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  2. गुरूजी का पोस्टल एडरेस मिल सकता है?

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    1. Sri mukund dutta dwary at hariharbari colony near shivganga,baidyanathdham deoghar,jharkhand.pin no.-814112
      Mob.-9905719875
      8084975864(son)

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  3. मुकुंद दत्त द्वारी जी का निवास देवघर के हरिहरवारी में है।

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  4. इन महापुरुष को मैं ह्रदय की अनंत गहराईयों से नमन करता हूं। मैं ईश्वर से आपके दीर्घायु होने की कामना करता हूं।🙏🙏

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  5. प्रतिभा के धनी और नि:शुल्क संगीत की शिक्षा देने वाले गुरु जी को नमन 🙏🏻🙏🏻

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  6. महान संगीतमर्मज्ञ पण्डित मुकुन्द दत्त द्वारी ने 4 अगस्त 2021, बुधवार तदनुसार श्रावण कृष्ण पक्ष द्वादशी सम्वत् 2078 को इस नश्वर संसार को सदा के लिए अलविदा कह दिया। झारखण्ड के देवघर स्थित वैद्यनाथधाम के हरिहरबाड़ी में शिव-भक्त पण्डित द्वारी ने अन्तिम साँस ली। उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ और परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता हूँ! उन के हज़ारों शिष्य और उन के शिष्यों के शिष्य उन्हें धरा-धाम पर अमर बनाये रखेंगे।
    हरि ऊँ तत्सत्!

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  7. जय गुरू देव
    जहाँ से रूठ कर सितारे चले ,
    गगन को छोड़कर कहाँ जाएँगे

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  8. कहां चले गए छोड़ कर मुझे इस कदर, हर बार की तरह इस सफर पर भी तो साथ चलने को कहा होता, बाद हरपल तन्हाई मे हूं सबके बीच मैं, काश साथ ना छोड़ मेरे वक्त की शाख से कोई लम्हा ही तोड़ा होता।
    कहां चले गए।

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