-शीतांशु कुमार सहाय / SHEETANSHU KUMAR SAHAY
स्थापना के 13 वर्ष 2 महीने के बाद भी खनिज में देश का सबसे धनी राज्य झारखण्ड में बिजली के लिए हाय-तौबा मचा है। सामान्यतः राज्य में 1400 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है पर यहाँ मात्र 500 मेगावाट बिजली ही उत्पादित हो पाता है। इस मामले में केन्द्रीय पुल पर ही आश्रित रहना पड़ रहा है। वैसे अर्जुन मुण्डा की सरकार ने मेकन कम्पनी से पड़ताल करवायी तो उसने 23 स्थानों पर पनबिजली घर लगाने अनुशंसा भी की थी। यों 100 मेगावाट अतिरिक्त बिजली बनाने की योजना पर अब तक अमल न हो सका।
राँची/शीतांशु कुमार सहाय। झारखंड को पनबिजली से रौशन करने का सपना धराशायी होने की स्थिति में है। झारखंड में ऊर्जा की कमी दूर करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर पनबिजली घर बनाने की योजना पर काम शुरू किया गया। कई बैठकें हुईं। कई कंपनियों से सलाह भी ली गयी। पिछली सरकार ने काम जोर-शोर से शुरू करने का निर्देश भी दिया लेकिन सारी-की-सारी योजनाएँ संचिकाओं में ही दबी रह गयीं।
-नहीं मिली अतिरिक्त 100 मेगावाट बिजली
राज्य में पनबिजली घरों से लगभग 100 मेगावाट अतिरिक्त बिजली बनाने की योजना बनायी गयी थी। राज्य के ताप बिजली घरों पर से दबाव कम करने के लिए इनका उपयोग किया जाना था। इनमें से कई परियोजनाओं पर काम भी शुरू किया गया। सिविल वर्क पूरा हो जाने के बाद अभी तक काम जोर नहीं पकड़ पाया है।
-कम्पनियों की राय का असर नहीं
झारखंड के लोअर घाघरा, सदनी, नेतरहाट, निंदीघाघ, जालिमघाघ, तेनुघाट, उत्तरी कोयल और चाण्डिल में पनबिजली परियोजना लगाने की स्वीकृति दी गयी थी। इस संदर्भ में पिछली सरकार ने मेकन से सलाह भी माँगी थी। मेकन ने पूरी जाँच-पड़ताल के बाद कुछ स्थानों को पनबिजली घरों के लिए उपयुक्त माना था। कंपनी ने 23 स्थानों पर पनबिजली घर लगाने की अनुशंसा भी की। इसके बाद ऊर्जा विभाग ने एक कंसल्टेंट बहाल किया था। पनबिजली घर लगाना कितना उपयुक्त होगा, इसकी जाँच कर डीपीआर तैयार करने का काम कंसल्टेंट कंपनी को दिया गया लेकिन इस रिपोर्ट का क्या हुआ, इसके बारे में कोई कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है।
-बिहार से झंझट
झारखंड में पनबिजली घरों की उपयोगिता के मद्देनजर संयुक्त बिहार में बिहार राज्य जल विद्युत निगम की स्थापना की गयी थी। निगम ने झारखंड क्षेत्र में 8 परियोजनाओं पर काम शुरू किया जिसपर करीब 150 करोड़ रुपये निगम खर्च भी कर चुका है। राज्य बँटवारे के बाद से ही ऊर्जा विभाग इन परियोजनाओं को अपने अधीन लेने के प्रयास में जुटा हुआ है लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिल पायी है। इसमें सबसे बड़ी अड़चन यह है कि अभी तक इस निगम का बँटवारा दोनों राज्यों के बीच नहीं हुआ है। काफी जद्दोजहद के बाद झारखंड सरकार सिकदरी पनबिजली परियोजना को ही अभी तक अपने अधीन कर पायी है। इन परियोजनाओं को अपने अधीन लेने के लिए सरकार ने निगम के गठन के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी लेकिन अभी तक इस मामले में ऊर्जा विभाग एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है।
-1400 मेगावाट की जरुरत
झारखंड गठन के 13 वर्ष 2 महीने बाद भी बिजली के मामले में राज्य केन्द्रीय पुल पर निर्भर है। इसके अलावा अतिरिक्त बिजली के लिए वह डीवीसी की ओर देखता है। राज्य में लगभग 1400 मेगावाट बिजली की जरुरत है पर राज्य सरकार अपने संयंत्रों से लगभग 500 मेगावाट बिजली ही उत्पादन कर पाती है। इस स्थिति में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में पनबिजली घरों का महत्त्व बढ़ जाता है।
स्थापना के 13 वर्ष 2 महीने के बाद भी खनिज में देश का सबसे धनी राज्य झारखण्ड में बिजली के लिए हाय-तौबा मचा है। सामान्यतः राज्य में 1400 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है पर यहाँ मात्र 500 मेगावाट बिजली ही उत्पादित हो पाता है। इस मामले में केन्द्रीय पुल पर ही आश्रित रहना पड़ रहा है। वैसे अर्जुन मुण्डा की सरकार ने मेकन कम्पनी से पड़ताल करवायी तो उसने 23 स्थानों पर पनबिजली घर लगाने अनुशंसा भी की थी। यों 100 मेगावाट अतिरिक्त बिजली बनाने की योजना पर अब तक अमल न हो सका।
राँची/शीतांशु कुमार सहाय। झारखंड को पनबिजली से रौशन करने का सपना धराशायी होने की स्थिति में है। झारखंड में ऊर्जा की कमी दूर करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर पनबिजली घर बनाने की योजना पर काम शुरू किया गया। कई बैठकें हुईं। कई कंपनियों से सलाह भी ली गयी। पिछली सरकार ने काम जोर-शोर से शुरू करने का निर्देश भी दिया लेकिन सारी-की-सारी योजनाएँ संचिकाओं में ही दबी रह गयीं।
-नहीं मिली अतिरिक्त 100 मेगावाट बिजली
राज्य में पनबिजली घरों से लगभग 100 मेगावाट अतिरिक्त बिजली बनाने की योजना बनायी गयी थी। राज्य के ताप बिजली घरों पर से दबाव कम करने के लिए इनका उपयोग किया जाना था। इनमें से कई परियोजनाओं पर काम भी शुरू किया गया। सिविल वर्क पूरा हो जाने के बाद अभी तक काम जोर नहीं पकड़ पाया है।
-कम्पनियों की राय का असर नहीं
झारखंड के लोअर घाघरा, सदनी, नेतरहाट, निंदीघाघ, जालिमघाघ, तेनुघाट, उत्तरी कोयल और चाण्डिल में पनबिजली परियोजना लगाने की स्वीकृति दी गयी थी। इस संदर्भ में पिछली सरकार ने मेकन से सलाह भी माँगी थी। मेकन ने पूरी जाँच-पड़ताल के बाद कुछ स्थानों को पनबिजली घरों के लिए उपयुक्त माना था। कंपनी ने 23 स्थानों पर पनबिजली घर लगाने की अनुशंसा भी की। इसके बाद ऊर्जा विभाग ने एक कंसल्टेंट बहाल किया था। पनबिजली घर लगाना कितना उपयुक्त होगा, इसकी जाँच कर डीपीआर तैयार करने का काम कंसल्टेंट कंपनी को दिया गया लेकिन इस रिपोर्ट का क्या हुआ, इसके बारे में कोई कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है।
-बिहार से झंझट
झारखंड में पनबिजली घरों की उपयोगिता के मद्देनजर संयुक्त बिहार में बिहार राज्य जल विद्युत निगम की स्थापना की गयी थी। निगम ने झारखंड क्षेत्र में 8 परियोजनाओं पर काम शुरू किया जिसपर करीब 150 करोड़ रुपये निगम खर्च भी कर चुका है। राज्य बँटवारे के बाद से ही ऊर्जा विभाग इन परियोजनाओं को अपने अधीन लेने के प्रयास में जुटा हुआ है लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिल पायी है। इसमें सबसे बड़ी अड़चन यह है कि अभी तक इस निगम का बँटवारा दोनों राज्यों के बीच नहीं हुआ है। काफी जद्दोजहद के बाद झारखंड सरकार सिकदरी पनबिजली परियोजना को ही अभी तक अपने अधीन कर पायी है। इन परियोजनाओं को अपने अधीन लेने के लिए सरकार ने निगम के गठन के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी लेकिन अभी तक इस मामले में ऊर्जा विभाग एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है।
-1400 मेगावाट की जरुरत
झारखंड गठन के 13 वर्ष 2 महीने बाद भी बिजली के मामले में राज्य केन्द्रीय पुल पर निर्भर है। इसके अलावा अतिरिक्त बिजली के लिए वह डीवीसी की ओर देखता है। राज्य में लगभग 1400 मेगावाट बिजली की जरुरत है पर राज्य सरकार अपने संयंत्रों से लगभग 500 मेगावाट बिजली ही उत्पादन कर पाती है। इस स्थिति में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में पनबिजली घरों का महत्त्व बढ़ जाता है।
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