-शीतांशु कुमार सहाय
श्रीकृष्ण और बलराम जगत के स्वामी हैं। दोनों भाइयों ने केवल गुरु के एक बार बोलनेभर से ही 64 दिन-रात में 64 अद्भुत कलाओं को सीख लिया। श्रीकृष्ण का सांसारिक धर्म का पालन कर गुरुकुल जाना, वहाँ अद्भुत 64 कलाओं व विद्याओं को सीखने के पीछे भी असल में गुरुसेवा व ज्ञान की अहमियत दुनिया के सामने उजागर करने की ही एक लीला थी। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि साक्षात् जगतपालक विष्णु के अवतार होने से श्रीकृष्ण स्वयं ही सारे गुण, ज्ञान व शक्तियों के स्रोत थे। सारी विद्याएँ व ज्ञान उनसे ही निकला है और वे स्वयंसिद्ध है, फिर भी उन दोनों ने मनुष्य की तरह बने रहकर उन्हें छुपाए रखा। पुस्तकीय ज्ञान से व्यक्ति पैसा और सम्मान तो बटोर सकता है, किंतु मन की शांति नहीं। शांति के लिए अहम है– सेवा। खुद की कोशिशों से बटोरा ज्ञान अहंकार पैदा कर सकता है व अधूरापन भी, किंतु गुरु सेवा से पाया ज्ञान इन दोषों से बचाने के साथ संपूर्ण, विनम्र व यशस्वी बना देता है। श्रीकृष्ण व बलराम ने भी अंवतीपुर (आज का उज्जैन) में गुरु संदीपन से केवल 64 दिनों में ही गुरु सेवा व कृपा से 64 कलाओं में दक्षता हासिल की। गुरु से मिले इन कलाओं और ज्ञान के अक्षय व नवीन रहने का आशीर्वाद 'श्रीमद्भगवद्गगीता' के रूप में आज भी जगद्गुरु श्रीकृष्ण के साक्षात् ज्ञानस्वरूप का दर्शन कराता है। श्रीमद्भगवद्गगीता हर युग में जीने की कला उजागर करनेवाला विलक्षण धर्मग्रंथ है। गुरु संदीपन ने श्रीकृष्ण व बलराम को सारे वेद, उनका गूढ़ रहस्य बतानेवाले शास्त्र, उपनिषद, मंत्र व देवताओं से जुड़े ज्ञान, धनुर्वेद, स्मृति सहित सारे धर्मशास्त्रों, तर्कविद्या या न्यायशास्त्र का ज्ञान दिया। संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैध व आश्रय जैसे 6 रहस्योंवाली राजनीति भी सिखाई।
64 प्रकार की कलाएँ ये हैं---
1- गानविद्या 2- विभिन्न प्रकार के वाद्य बजाना 3- नृत्य 4- नाट्य 5- चित्रकारी 6- बेल-बूटे बनाना 7- चावल और पुष्पादि से पूजा के उपहार की रचना करना 8- फूलों की सेज बनान 9- दाँत, वस्त्र और अंगों को रंगना 10- मणियों की फर्श बनाना 11- शय्या-रचना 12- जल को बाँध देना 13- विचित्र सिद्धियाँ दिखलाना 14- माला आदि बनाना 15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना 16- कपड़े और गहने बनाना 17- फूलों के आभूषणों से शृँगार करना 18- कानों के पत्तों की रचना करना 19- सुगन्धित वस्तुएँ- इत्र, तैल आदि बनाना 20- इंद्रजाल-जादूगरी 21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना 22- हाथ की फुर्ती कें काम 23- विभिन्न प्रकार के खाने की वस्तुएँ बनाना 24- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना 25- सूई का काम 26- कठपुतली बनाना, नाचना 27- पहेली 28- प्रतिमा आदि बनाना 29- कूटनीति 30- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी 31- नाटक, आख्यायिका आदि की रचना करना 32- समस्यापूर्ति करना 33- पट्टी, बेंत, बाण आदि नाना 34- गलीचे, दरी आदि बनाना 35- बढ़ई की कारीगरी 36- गृह आदि बनाने की कारीगरी 37- सोने, चाँदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा 38- सोना-चाँदी आदि बना लेना 39- मणियों के रंग को पहचानना 40- खानों की पहचान 41- वृक्षों की चिकित्सा 42- भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति 43- तोता-मैना आदि की बोलियाँ बोलना 44- उच्चाटनकी विधि 45- केशों की सफाई का कौशल 46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना 47- म्लेच्छ-काव्यों को समझ लेना 48- विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान 49- शकुन-अपशकुन जानना, शुभाशुभ बतलाना 50- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना 51- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना 52- सांकेतिक भाषा बनाना 53- मन में रचना करना 54- नयी-नयी बातें निकालना 55- छल से काम निकालना 56- समस्त कोशों का ज्ञान 57- समस्त छन्दों का ज्ञान 58- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या 59- द्यू्त क्रीड़ा 60- दूर के मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण 61- बालकों के खेल 62- मन्त्रविद्या 63- विजय प्राप्त करानेवाली विद्या 64- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या।
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