Pages

पृष्ठ Pages

रविवार, 25 सितंबर 2016

मुक्ति का मार्ग दिखानेवाला सन्त श्रीसाईं Shreesai Baba

प्रस्तुत रचना शीतांशु कुमार सहाय की शीघ्र प्रकाशित होनेवाली पुस्तक ‘श्रीसाईंचरितामृतम्’ से ली गयी है।

-शीतांशु कुमार सहाय

नाना चोपदार की माँ थी वह वृद्धा। चोपदार धार्मिक प्रवृत्तिवाले थे जो स्थानीय स्तर पर शिरडी में प्रसिद्ध थे। एक बार एक खेत में घूमती हुई उस वृद्धा ने नीम के पेड़ की छाँव में शारीरिक सौष्ठव व अतुलनीय सौन्दर्यवाले तरुण को ध्यानमग्न देखा। दिन व रात के आने-जाने और मौसम के परिवर्तन का उस पर कोई असर न हो रहा था। देवस्वरूप उस तपस्वी बालक के सम्मोहक व्यक्तित्व की चर्चा उसने गाँव में की। हुजूम जुटने लगा। पर, बालक पर किसी से दिन में नहीं मिलता। वह रात को निर्भीक घूमता। त्याग व वैराग्य की इस प्रतिमूर्ति को खण्डोवा के म्हालसापति ने चाँद पाटिल के साले के पुत्र की बारात के साथ पुनः शिरडी में पधारे उस युवा सन्त को ‘आओ साईं’ कहकर स्वागत किया। तब से जन-जन के प्रिय होते गये साईं और अप्रतिम सम्मान ने बना दिया उन्हें साईं बाबा।
नामदेव और कबीर जहाँ बालरूप में प्रकट हुए, वहीं तरुणावस्था में साईं बाबा शिरडी में एक नीम वृक्ष तले अवतीर्ण हुए। से तीनों सन्त अयोनिज थे अर्थात् उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ। ़ऐतिहासिक प्रमाणों से विदित होता है कि साईं का अवतरण 28 सितम्बर 1835 ईस्वी को हुआ। कुछ प्रमाण 1838 ईस्वी की ओर भी इशारा करते हैं।
साईं बाबा तब प्रकट हुए, जब धर्मों-सम्प्रदायों में बँटकर लोग अशान्ति फ।ला रहे थे। इसलिए उन्होंने ‘सबका मालिक एक’ कहकर एकेश्वरवाद व धर्मसाम्यता की ऐसी मिसाल दी, जो अब भी प्रासंगिक और अतुलनीय है। यही कारण है कि सभी धर्मों ने उन्हें अपना साईं (भगवान) माना।
वे कौन थे? उनके माता-पिता कौन थे? वे कहाँ से आये थे? उनका जन्म (अवतार) कब हुआ? ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं। स्वयं साईं बाबा ने भी इस सन्दर्भ में कुछ नहीं बताया। आखिर वे बतायें भी कैसे? वे तो स्वयं परब्रह्म अर्थात् आदिशक्ति स्वरूप थे, अयोनिज थे। परब्रह्म तो स्वयं ही समस्त जीवों के जनक हैं, उनका जनक कोई हो ही नहीं सकता। इसलिए साईं ने माता-पिता का नाम नहीं बताया। हाँ, उन्होंने शिरडी को अपने गुरुदेव की पवित्र भूमि अवश्य बताया।
कहते हैं कि कुछ सिद्ध व्यक्तियों पर ईश्वरीय शक्ति कुछ समय के लिए प्रकट होती है। उस दौरान उससे पूछे गये प्रश्नों के उत्तर वह बिल्कुल सही देता है। खण्डोबा में म्हालसापति के खेत के निकट भगवान खण्डोबा का मन्दिर था। एक भक्त पर खण्डोबा की शक्ति प्रकट हुई तो साईं के भक्तों ने उनसे साईं के बारे में पूछा। भगवान खण्डोबा ने कुदाल मँगाकर बताये गये स्थान पर खुदाई करवायी। खुदाई में प्राप्त ईंट-पत्थरों को हटाने पर एक दरवाजा दिखायी दिया, जहाँ चार दीपक जल रहे थे। दरवाजे का रास्ता एक गुफा की ओर जा रहा था, जहाँ गाय के मुख के आकार का भवन, लकड़ी के तख्ते, मालाएँ आदि दिखायी पड़ीं। खण्डोबा ने बताया कि इस तरुण (साईं) ने यहाँ बारह वर्षों तक तप किया था। दरअसल, तपोपरान्त ही शिरडीवासियों के बीच सिद्ध पुरुष के रूप में साईं प्रकट हुए।
साईं बाबा के गुरु कौन थे, यह भी किसी को पता नहीं है। स्वयं साईं खुदाईवाले स्थान को ’गुरु स्थान’ कहते थे परन्तु कभी गुरु का नाम नहीं बताया। हालाँकि समकालीन सन्त जौहर को वे गुरु कहते और जौहर बाबा अपना गुरु साईं बाबा को बताते थे।
साईं बाबा के कारण ही महाराष्ट्र के अहमदनगर जिलान्तर्गत कोपर तालुका स्थित शिरडी इन दिनों विश्वविख्यात तीर्थ स्थल बन गया है। शिरडी की एक प्राचीन व वीरान मस्जिद को उन्होंने अपना निवास बनाया। यहाँ उन्होंने जीवन के महत्त्वपूर्ण साठ साल व्यतीत किये। उस मस्जिद अर्थात् अपने निवास स्थान को साईं ने ‘द्वारकामाई’ का अर्थपूर्ण नाम दिया। ‘स्कन्दपुराण’ में उल्लेख है कि जिस स्थान के द्वार चारों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र) के व्यक्तियों को चारों पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) देने के लिए सदैव खुले रहें, उसे ‘द्वारका या द्वारिका’ कहा जाता है। द्वारकामाई के सन्दर्भ में भी यही उक्ति पूरी तरह सच सिद्ध होती थी। तभी तो सभी जाति-धर्मों के रंक से राजा तक, भोगी से योगी तक, निरक्षर से विद्वान तक, सेवक से उच्चाधिकारी तक, गृहस्थ से संन्यासी तक- सबने उनकी इस कदर भक्ति की कि वे सन्त (साईं बाबा) से भगवान (साईंनाथ) हो गये।
श्रद्धा और धैर्य (सब्र) को जीवन में धारण करने की शिक्षा देनेवाले साईंनाथ ने योगबल से शिरडी में पवित्र अग्नि (धूनी) प्रज्वलित की, जिसे लकड़ी व हवन सामग्रियों से निरन्तर प्रज्वलित अवस्था में रखा गया है। धूनी व भस्म को उन्होंने ‘ऊदी’ का नाम दिया। ऊदी का तिलक लगाकर और उसका सेवन करके तब से अब तक लाखों-करोड़ों भक्त विभिन्न रोगों या दुःखों से मुक्त हो चुकहैं। ऊदी की आज भी उतनी ही महत्ता है; क्योंकि जीवन काल में साईंनाथ स्वयं इसे भक्तों के बीच कल्याणार्थ बाँटते थे।
महान क्रियायोगी व भविष्यद्रष्टा इस सन्त ने समाज में भक्ति, मुक्ति और धार्मिक एकता के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का व्यावहारिक आन्दोलन भी चलाया। ग्लोबल वार्मिंग अर्थात् विश्वस्तर पर बढ़ रहे मौसमी तापमान व मौसमी अनिश्चितता के इस काल में साईंनाथ का वह आन्दोलन शतशः अनुकरणीय प्रतीत हो रहा है। अपने व्यवहार से उन्होंने बताया कि मनुष्य सहित समस्त जन्तुओं के जीवन, स्वास्थ्य, भोजन ही नहीं; ऋतुओं की अनुकूलता भी वनस्पतियों से सम्बद्ध हैं। उन्होंने द्वारकामाई की फुलवारी स्वयं बनायी और पौधों को भी स्वयं ही सींचते थे। शिरडी से तीन किलोमीटर दूर राहाता से गेन्दा, जूही, जई सहित कई तरह के पेड़-पौधे लाकर लगाये। उनका एक भक्त वामन तात्या उन्हें प्रतिदिन मिट्टी के दो घड़े देता। बाबा स्वयं कुएँ से उन घड़ों में जल भरते और पेड़-पौधों को सींचते थे। सन्ध्या काल में उन घड़ों को वे नीम पेड़ के तले रख देते, जो अगली सुबह तक स्वयं टूट जाते। पुनः तात्या दो नये घड़े लेकर बाबा की सेवा में पहुँच जाता।
वास्तव में साईं के प्रत्येक भौतिक कार्य का आध्यात्मिक अर्थ होता था। तात्या के दिये हुए दो घड़े वस्तुतः श्रद्धा और सबूरी के प्रतीक थे। वे सब्र अर्थात् धैर्य को सबूरी कहा करते थे। प्रत्येक सुबह तक घड़ों का फूट जाना यह बताता है कि शुरुआत में श्रद्धा और सब्र स्थायी नहीं हो पाते। जब तक ये स्थायी न हो जायें, तब तक इनके स्थायित्व का प्रयास जारी रहना चाहिये। शरीर त्यागने के बाद भी साईंनाथ विश्वभर के भक्तों के मन की मिट्टी में दबे आध्यात्मिकता के बीज को स्नेह के जल से सींच रहे हैं।
विक्रम सम्वत् 1975 की विजयादशमी अर्थात् 15 अक्तूबर 1918 ईस्वी को ब्रह्मलीन होनेवाले शिरडी के इस महान संन्यासी ने घरेलू भौतिक जीवन जीते हुए ब्रह्म-उपासना के सहज तरीके बताये। आध्यात्मिक इतिहास में वे एकमात्र संन्यासी हुए, जिन्होंने एक ही स्थान पर रहकर भक्ति व मुक्ति का मार्ग दिखाया। सभी धर्मों का सम्मान करते हुए उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया। जातिवाद के विरुद्ध वे कहा करते थे कि ईश्वर सबको समान बनाया। यहाँ मनुष्य ने ऊँच-नीच व मनुष्य-मनुष्य में भेद उत्पन्न कर दिया, जो सामाजिक एकता के लिए खतरा बन गया। गरीबों व लाचारों की सेवा को साईं ने देवपूजन से बड़ा पुण्यकर्म बताया और आजीवन ऐसा करते भी रहे। इसलिए ऐसा तो कहना ही पड़ेगा कि साईं बाबा के उपदेश कष्टसाध्य न होकर सहज व्यवहार में ग्रहणयोग्य हैं। गुरुजों, माता, पिता व बड़े-बुजुर्गों के सम्मान की सलाह तो वे हर दिन अपने भक्तों को देते थे। नक्सली, आतंकी और हिंसा से भरे वर्तमान माहौल में साईं बाबा की सलाह अधिक प्रासंगिक बन गयी है।
जनकल्याण में निरन्तर तल्लीन महासन्त साईं ने प्रतिदिन सोना भी छोड़ दिया। वे एक दिन छोड़कर आराम करने हेतु चावड़ी चले जाते थे, जो द्वारकामाई से थोड़ी दूर पर था। बाद में उनके भक्तगण शोभायात्रा के साथ हरिगुणगान करते साईं बाबा को चावड़ी तक लाने लगे। इस स्मृति में प्रत्येक वृहस्पतिवार को द्वारकामाई से साईं बाबा की पालकी चावड़ी तक ले जायी जाती है। इस शोभायात्रा में देश-विदेश के भक्त विशेष रूप से शामिल होते हैं।
विलक्षण स्वभाव के चमत्कारी सन्त थे सााईं बाबा। समाज को औश्र खण्डित होने से बचाने के लिए उन्होंने न तो किसी धर्म या सम्प्रदाय की शुरुआत की और न ही किसी धर्म की बुराई। उन्होंने योग, ध्यान आदि की प्राचीन विधियों को तोड़-मरोड़कर उसे स्वयं द्वारा प्रणीत या आविष्कृत भी नहीं बताया। साईं ने ईशभक्ति के लिए किसी जटिल प्रक्रिया में पड़ने के बदले कहीं भी किसी भी स्थिति में उन्हें (ईश्वर) याद करते रहने की सलाह दी।
ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण समर्पण को वे मुक्ति का मार्ग मानते रहे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि मुक्ति का यह मार्ग दिखानेवाला एक गुरु चाहिये। जब तक ब्रह्मज्ञानी गुरु न मिलें, तब तक ईश्वर के भी रूप (राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा, अल्लाह, ईसा) को गुरु मानकर भक्ति तो शुरू कर ही देनी चाहिये। जब उचित पात्रता आ जायेगी तो ईश्वर ही ब्रह्मज्ञानी गुरु के पास किसी-न-किसी माध्यम से पहुँचा देंगे।

गुरु वन्दना : हे गुरुदेव GURU VANDANA : HE GURUDEV


-शीतांशु कुमार सहाय

हे गुरुदेव ! हे भगवान !
चरण-कमल में तेरे प्रणाम !
साधन तुम हो, साध्य हो तुम ही
मेरा एक आराध्य भी तू ही
हे गुरुदेव ! हे भगवान !
चरण-कमल में तेरे प्रणाम !

अज्ञानी था, ज्ञान दिया
सोया भाग्य जगा दिया
अन्तस् में जो उजियारा
दिव्य किरण है वो तेरा
तू ही सकल जहान
हे गुरुदेव ! हे भगवान !
चरण-कमल में तेरे प्रणाम !

दीक्षा का दिन था पावन,
सब कुछ तुझ को किया अर्पण।
तेरी कृपा मुझ पर हरदम,
सहस्रार में हैं हरदम।
हर कण है भगवान
हे गुरुदेव ! हे भगवान !
चरण-कमल में तेरे प्रणाम !

क्रिया-योग तुम ने बतलाया,
आत्मतत्त्व को भी समझाया।
चरणामृत को पीकर के,
सबल हुआ साधन कर के।
गीता है वरदान
हे गुरुदेव ! हे भगवान !
चरण-कमल में तेरे प्रणाम !

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

शीतांशु की ओर से नव विक्रम सम्वत् २०७३ की मंगलकामना ! / HAPPY NEW VIKRAM SAMVAT 2073 BY SHEETANSHU

भारतीय संस्कृति और और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला विक्रम संवत् देश के प्रत्येक समाज में परंपरागत ढंग मनाया जाता है। देश पर अंग्रेजों ने बहुत समय तक राज्य किया फिर उनका बाह्य रूप इतना गोरा था कि भारतीय समुदाय उस पर मोहित हो गया और शनैः शनैः उनकी संस्कृति, परिधान, खानपान तथा रहन सहन अपना लिया भले ही वह अपने देश के अनुकूल नहीं था। अंग्रेज चले गये पर उनके मानसपुत्रों की कमी नहीं है। सच तो यह है कि अंग्रेज वह कौम है जिसको बिना मांगे ही दत्तक पुत्र मिल जाते हैं जो भारतीय माता पिता स्वयं उनको सौंपते हैं। सच तो यह है कि विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाता है और कम से कम इस बात की अनुभूति तो होती है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सारे समुदाय इसे एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं। दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहाँ तक की ईस्वी सन बाला कैलेण्डर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था। इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीये गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत्) में से ही उठा लिया गया था। आइये जाने क्या है इस कैलेण्डर का इतिहास: दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चाँद, सूरज आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत्) तैयार किया, इसके महत्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि - आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं। किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् (पंडित) के पास जाना पड़ता था। अलग अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ। लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था। पृथ्वी द्वारा 365/366 दिन में होनेवाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए। पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था। 1. एकाम्बर ( 31 दिन) 2. दुयीआम्बर (30 दिन) 3. तिरियाम्बर (31 दिन) 4. चौथाम्बर (30 दिन) 5. पंचाम्बर (31 दिन) 6.षष्ठम्बर (30 दिन) 7. सेप्तम्बर (31 दिन) 8. ओक्टाम्बर (30 दिन) 9. नबम्बर (31 दिन) 10. दिसंबर ( 30 दिन) 11. ग्याराम्बर (31 दिन) 12. बारम्बर (30/29 दिन) निर्धारित किया गया।
सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात, अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया। इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे। जनवरी (31 दिन), फरबरी (30/29 दिन), मार्च (31 दिन), अप्रैल (30 दिन), मई (31 दिन), जून (30 दिन), जुलाई (31 दिन), अगस्त (30 दिन), सितम्बर (31 दिन), अक्टूबर (30 दिन), नवम्बर (31 दिन), दिसंबर (30 दिन) माना गया। फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि उसके नामवाला महीना 31 दिन का होना चाहिए। राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर को 30 दिन, अक्तूबर को 31 दिन, नबम्बर को 30 दिन, दिसंबर को 31 दिन का कर दिया। एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके 28/29 दिन कर दिया गया।
हमें पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत्) के अनुसार आनेवाले नववर्ष प्रतिपदा पर समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नववर्ष का स्वागत करना चाहिये। हिंदू धर्म की तरह ही हर धर्म में नया साल मनाया जाता है लेकिन इसका समय भिन्न-भिन्न होता है तथा तरीका भी। किसी धर्म में नाच-गाकर नए साल का स्वागत किया जाता है तो कहीं पूजा-पाठ व ईश्वर की आराधना कर। आप भी जानिए किस धर्म में नया साल कब मनाया जाता है-
1. हिंदू नववर्ष : हिंदू नवर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा (इस बार 08 अप्रैल 2016) से माना जाता है। इसे हिंदू नवसंवत्सर या नवसंवत् भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत् के नए साल का आरंभ भी होता है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादि आदि नामों से भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।
2. इस्लामी नववर्ष : इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुसलमानों का नया साल हिजरी शुरू होता है। इस्लामी या हिजरी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में इस्तेमाल होता है बल्कि दुनियाभर के मुसलमान भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं।
3. ईसाई नववर्ष : ईसाई धर्मावलंबी 1 जनवरी को नव वर्ष मनाते हैं। करीब 4000 वर्ष पहले बेबीलोन में नया वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। तब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। तब से आज तक ईसाई धर्म के लोग इसी दिन नया साल मनाते हैं। यह सबसे ज्यादा प्रचलित नव वर्ष है।
4. सिंधी नववर्ष : सिंधी नववर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरु होता है, जो चैत्र शुक्ल दिवतीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुणदेव के अवतार थे।
सिक्ख नववर्ष : पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) नया साल होता है।
5. जैन नववर्ष : ज़ैन नववर्ष दीपावली से अगले दिन होता है। भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं।
6. पारसी नववर्ष : पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव पारसी लोग मनाते हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की। नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन।
7. हिब्रू नववर्ष : हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इन सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है।

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

रूक सकता है फिल्म ‘फैन’ का प्रदर्शन / May Pause the Movie "Fan" Display

-शीतांशु कुमार सहाय
शाहरूख खान अभिनीत फिल्म ‘फैन’ का प्रदर्शन आगामी 15 अप्रैल 2016 को होना तय है। इसी लिहाज से फिल्म की निर्माण कम्पनी यशराज फिल्म्स ने जोर-शोर से प्रचार अभियान चला रखा है। पर, इस बीच यह समाचार आ रहा है कि फिल्म ‘फैन’ की कहानी चोरी की है। फिल्म राइटर्स एसोसिएशन के निबन्धित फिल्म कथाकार पटना के अमित कुमार नयनन ने दावा किया है कि फिल्म ‘फैन’ की कहानी उनकी है। उनकी यह कहानी फिल्म राइटर्स एसोसिएशन में पंजीकृत है। इस बाबत जब अमित को पता चला कि उनकी कहानी पर यशराज फिल्म्स के बैनर तले चोरी-छिपे मनीष शर्मा के निर्देशन में शाहरूख खान के नायकत्व में ‘फैन’ नाम से फिल्म का निर्माण जारी है तो उन्होंने उक्त बैनर के पते पर 20 से 29 अगस्त 2015 के बीच फोन किया और ई-मेल भी भेजे पर कोई जवाब नहीं दिया गया। अन्ततः अमित ने यशराज फिल्म्स के पते पर निर्देशक मनीष शर्मा के नाम 29 अक्तूबर 2015 को कानूनी नोटिस भेजा पर इसका भी प्रत्युत्तर नहीं आया। तब अमित ने 20 जनवरी 2016 को पटना उच्च न्यायालय की शरण ली। अमित के मामले की गंभीरता को देखते हुए पटना उच्च न्यायालय ने रिट याचिका के रूप में मामले को स्वीकृत किया है जिसकी सुनवाई शीघ्र होनी है। इस कारण शाहरूख खान व यशराज फिल्म्स की यह महत्त्वाकांक्षी फिल्म निर्धारिम तिथि 15 अप्रैल 2016 को प्रदर्शित नहीं भी हो सकती है। फिल्म के निर्माता आदित्य चोपड़ा हैं।



रविवार, 3 अप्रैल 2016

हिन्दू-मुस्लिम एकता को नया आयाम : पण्डित ने पढ़ा वैदिक मन्त्र, रखी मस्जिद की नींव / Vedic Mantras Read by the Priest, Laid the Foundations of the Mosque



-शीतांशु कुमार सहाय
इस समय देशभर में काँग्रेस और वामपंथी दल वाले भारत माता की बेइज्जती पर उतारू हैं। वे कभी तथाकथित साम्प्रदायिकता का मुद्दा उठाते हैं तो कभी आरक्षण के बहाने समाज को जातिवाद की ज्वाला में धकेलने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे देशद्रोही नेता भारत की एकता के दुश्मन हैं मगर देशवासी इनकी मौकापरस्ती को कामयाब नहीं होने देंगे। ऐसे नेताओं के गाल पर करारा तमाचा जड़ा है ग्रेटर नोएडा के मुसलमानों ने। वहाँ के मुसलमानों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को नया आयाम देते हुए ब्राह्मण पुजारी से वैदिक मन्त्रोच्चार करवाते हुए उन्हीं के हाथों मस्जिद की आधारशिला रखवायी। भारत के सभी कट्टर हिन्दुओं और कट्टर मुसलमानों को यह समझना ही होगा कि उनकी समाज में फूट डालने की रणनीति कभी कामयाब नहीं होगी। 
ग्रेटर नोएडा का बिसाहड़ा गाँव हिन्दू-मुस्लिम विवाद के लिए आजकल सुर्खियों में है। देश में भारत माता की जय बोलने पर फतवे आ रहे हैं। वहीं ग्रेटर नोएडा के खेरली भाव गाँव के मुसलमानों ने आपसी भाईचारे और सांप्रदायिक एकता की मिसाल पेश कर दी। गाँव में शनिवार को मस्जिद तामीर हुई। पंडित ने मंत्रोच्चारण के साथ नींव रखी। मुसलमानों ने भी कलाई पर कलावा (मौली) बँधवाये और प्रसाद बाँटा गया। खेरली गाँव में एक मस्जिद है। जनसंख्या के लिहाज से बड़ी मस्जिद की जरूरत है। गाँव के मंदिर में पंडित ने तय किया कि शनिवार 2 अप्रैल 2016 को नई मस्जिद की नींव रखी जाय, शुभ मुहूर्त है। खेरली समेत आसपास के गाँव से दोनों समुदायों के सैकड़ों लोग को बुलाया गया। पुजारी बाबा महेन्द्र गिरी ने वैदिक मंत्रोच्चारण किया। नींव खुदवाई। चावल और रोली से नाग देवता की पूजा की। हिन्दू परम्परा के मुताबिक मुसलमानों ने भी कलाई पर कलावा (मौली) बँधवाये। हाजी राज मौहम्मद, नसरू ठेकेदार, ओम प्रकाश सिंह, सतवीर सिंह, अब्दुल सलाम ने नींव में ईंटें रखीं। ग्रामीणों ने कहा गाँव में आज भी लोग भाईचारा व अमन के साथ रहते हैं। नेता अपने फायदे के लिए समाज में जहर घोल रहे हैं। करीब तीन हजार की आबादीवाले इस गाँव में हिन्दू व मुस्लिमों की संख्या लगभग बराबर है। लोग के बीच किसी तरह का मनमुटाव नहीं हुआ। कार्यक्रम में पहुँचे किसान नेता ठाकुर धीरेंद्र सिंह ने ग्रामीणों को बधाई दी।
मस्जिद की नींव रखने के बाद रबूपुरा में किसान नेता धीरेन्द्र सिंह के आवास पर किसान महापंचात का आयोजन किया गया। पंचायत के माध्यम से जाति और सम्प्रदायों में नहीं बंटने की अपील की गई। धीरेन्द्र सिंह ने महापंचायत में कहा कि आज राजनैतिक लोगों ने अपने फायदे के अनुसार समाज को ऐसी स्थिति में पहुँचा दिया है कि अमन पंसद लोग को भाईचारा कायम रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। वह देश जहाँ अहिंसा और शान्ति का संदेश दिया जाता था, आज धार्मिक उन्माद और जातीय संघर्ष का अखाड़ा बन चुका है।
दयौरार गाँव के पूर्व प्रधान यशपाल सिंह ने कहा कि कहने को तो देश को आजाद हुए 67 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आज भी हम नौकरशाही और सरकारों के गुलाम हैं। पंचायत में करीब 100 गाँवों के लोग ने भाग लिया। ऐसी पंचायतें पूरे क्षेत्र में होंगी। अगली पंचायत थोरा गाँव में 24 अप्रैल 2016 को बुलाई गई है। इस दौरान किशनचंद शर्मा, राजा नम्बरदार, देवेन्द्र सिंह मास्टर जी, चन्द्रपाल सिंह, धर्मवीर सिंह, किरनपाल सिंह, इन्दर प्रधान, ईश्वरचंद शर्मा, लाला बरूआ, दुष्यन्त प्रताप शर्मा मौजदू रहे।

ठाकुर धीरेंद्र सिंह ने बताया कि खेरली गाँव में कई बिरादरी के लोग एक साथ रहते हैं। ग्रामीणों ने मस्जिद में नींव रखने के लिए बुलाया था। वहाँ हिन्दू पुजारी और मौलाना बैठे मिले। सबको देखकर बड़ी खुशी हुई। यह गाँववालों की ही इच्छा थी कि सारे लोग मिलकर मस्जिद की नींव रखें। मुस्लिम समाज ने बेहतरीन मिसाल पेश की है। 
भारत के सभी कट्टर हिन्दुओं और कट्टर मुसलमानों को यह समझना ही होगा कि उनकी समाज में फूट डालने की रणनीति कभी कामयाब नहीं होगी। 
आइये, भारत की एकता, अखण्डता और साम्प्रदायिक सौहार्द के सदियों पुराने ताने-बाने को और मजबूत बनायें।

रविवार, 20 मार्च 2016

झाँसी के वीरा गाँव में मुसलमान मनाते हैं होली, लगाते हैं देवी के जयकारे / Muslims celebrate Holi


हिंदू व मुसलमान एक-दूसरे को लगाते हैं तिलक
देश में इन दिनों ‘भारत माता की जय’ पर जिरह छिड़ी हुई है, इतना ही नहीं 'जय' के आधार पर ही देशभक्त और देशद्रोही तय किए जा रहे हैं, मगर बुंदेलखंड के झाँसी जिले में ‘वीरा’ एक ऐसा गाँव है, जहां होली के मौके पर हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी देवी के जयकारे लगाकर गुलाल उड़ाते हैं। उत्तर प्रदेश में झाँसी के मउरानीपुर कस्बे से लगभग 12 किलोमीटर दूर है वीरा गाँव। यहां हरसिद्घि देवी का मंदिर है। यह मंदिर उज्जैन से आए परिवार ने वर्षों पहले बनवाया था, इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा भी यही परिवार अपने साथ लेकर आए थे। मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी मनौती (मुराद) मांगी जाती है, वह पूरी होती है। वीरा गाँव में होली का पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है, यहाँ  होलिका दहन से पहले ही होली का रंग चढ़ने लगता है, मगर होलिका दहन के एक दिन बाद यहाँ की होली सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देनेवाली होती है। जिसकी मनौती पूरी होती है, वे होली के मौके पर कई किलो व क्विंटल तक गुलाल लेकर हरसिद्धि देवी के मंदिर में पहुंचते हैं। यही गुलाल बाद में उड़ाया जाता है। होली में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और देवी के जयकारे भी लगाते हैं। होली के मौके पर यहां का नजारा उत्सवमय होता है; क्योंकि लगभग हर घर में मेहमानों का डेरा होता है, जो मनौती पूरी होने के बाद यहां आते हैं। बुंदेलखंड सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल रहा है। बुंदेलखंड के अन्तर्गत ही झाँसी जिला पड़ता है। यहाँ कभी धर्म के नाम पर विभाजन रेखाएं नहीं खिंची हैं। होली के मौके पर वीरा में आयोजित समारोह इस बात का जीता जागता प्रमाण है। 

यहाँ फाग (जिसे भोग की फाग कहा जाता है) के गायन की शुरुआत मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि ही करता रहा है, उसके गायन के बाद ही गुलाल उड़ने का क्रम शुरू होता रहा है। अब सभी समाज के लोग फाग गाकर होली मनाते हैं। इसमें मुस्लिम भी शामिल होते हैं। होली के मौके पर इस गाँव के लोग पुराने कपडे़ नहीं पहनते, बल्कि नए कपड़ों को पहनकर होली खेलते हैं, क्योंकि उनके लिए यह खुशी का पर्व है। बुंदेलखंड के लोगों के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता का पर्व बताते हैं। उनका कहना है कि होली ही एक ऐसा त्योहार है, जब यहाँ के लोग सारी दूरियों और अन्य कुरीतियों से दूर रहते हुए एक दूसरे के गालों पर गुलाल और माथे पर तिलक लगाते हैं। वीरा गांव तो इसकी जीती-जागती मिसाल है। बुंदेलखंड के वीरा गांव की होली उन लोगों के लिए भी सीख देती है, जो धर्म और जय के नाम पर देश में देशभक्त और देशद्रोह की बहस को जन्म दे रहे हैं। अगर देश का हर गांव और शहर ‘वीरा’ जैसा हो जाए, तो विकास और तरक्की की नई परिभाषाएं गढ़ने से कोई रोक नहीं सकेगा। 

अन्तर्राष्ट्रीय सूफी सम्मेलन : ताहिर-उल-कादरी ने कहा, धर्म के नाम पर आतंकवाद राजद्रोह है / International Sufi Conference : Tahir-ul-Qadri said, Terrorism in the name of Religion is Treason


-शीतांशु कुमार सहाय
विश्व में इस्लाम के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा देनेवालों को अन्तर्राष्ट्रीय सूफी सम्मेलन 2016 ने आइना दिखाया है। गुरुवार 17 मार्च 2016 से रविवार 20 मार्च 2016 तक विश्व के सबसे अधिक शान्तिप्रिय देश भारत की राजधानी नयी दिल्ली में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सूफी सम्मेलन में विश्व के 20 देशों के 200 से ज्यादा धर्मगुरुओं व वक्ताओं ने धर्म के नाम पर आतंकवाद फैलानेवालों की जमकर भर्त्सना की। हमें ऐसे नेताओं के भाषण से सीख लेनी चाहिये और विश्व को आतंकवाद से निजात दिलाने के लिए ऐसी पहल की प्रशंसा करनी चाहिये। हम समस्त सुधी पाठकों से आग्रह करते हैं कि इसपर अपना मन्तव्य दें और आतंकवाद की तीव्र भर्त्सना करें। इस समाचार-विाचार को अपने मित्रों को भी पढ़ाएँ। 
इस्लाम सहित किसी भी धर्म में धार्मिक कट्टरता की बात नहीं है। इस्लाम भी शांतिप्रिय धर्म है, केवल इसकी गलत व्याख्या करनेवाले कठमुल्लाओं ने ही युवाओं को तथाकथित ‘जेहाद’ के नाम पर उकसाया है। यह निहायत ही निन्दनीय है। इस सम्मेलन में यह बात उभरकर सामने आयी कि आतंकवाद से निपटने के लिए हमें विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में आतंकवाद-विरोधी विषयों को शामिल करना चाहिये और विद्यार्थियों को यह बताना चाहिये कि किसी भी धर्म का आतंकवाद से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है।

भारत में सूफी दरगाहों का मैनेजमेंट करनेवाला शीर्ष संगठन ऑल इंडिया उलेमा एंड मशाइख बोर्ड (एआइयूएमबी) की ओर से नई दिल्ली में आयोजित चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सूफी सम्मेलन (वर्ल्ड सूफी कॉन्फ्रेंस) में पाकिस्तानी राजनेता व इस्लामी विद्वान मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी ने 20 मार्च को 2016 को परिचर्चा में हिस्सा लिया। डेढ़ साल पहले अपने व्यापक आंदोलन से नवाज शरीफ सरकार को हिला देने वाले पाकिस्तान के शक्तिशाली धर्मगुरु मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी ने नई दिल्ली में कहा है कि आतंकवाद फैलाने के लिए धर्म का इस्तेमाल ‘राजद्रोह’ माना जाना चाहिए और भारत तथा पाकिस्तान को धार्मिक कट्टरता एवं चरमपंथ के विस्तार को रोकने के लिए कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। ताहिर-उल-कादरी  ने कहा, वतन की सरजमीन को मां का दर्जा देना, वतन की सरजमीन से मोहब्बत करना, वतन की सरजमीन से प्यार करना, वतन की सरजमीन के लिए जान भी दे देना, ये हरगिज़ इस्लाम के खिलाफ नहीं है। ये इस्लामी तालीम में शामिल है, जो वतन से प्यार के खिलाफ बात करता है उसे चाहिए कि कुरान को पढ़े, इस्लामी इतिहास को पढ़े। 
कादरी ने कहा, ‘यह एक आपराधिक कृत्य है। अगर जैश-ए-मोहम्मद, अगर लश्कर-ए-तैयबा, अगर अलकायदा, आईएसआईएस या अगर कोई हिंदू संगठन आतंकवादी हरकत करने के लिए धर्म का उपयोग करता है, तो बहुत कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए।’ उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद है और यह वक्त का तकाजा है कि आतंकवादियों से और धर्म के नाम पर गड़बड़ी मचाने एवं हिंसा करने वालों से प्रभावी तौर पर निबटा जाए।
कादरी ने कहा, ‘जहां भी आतंकवाद है, जहां भी जड़ें हैं, जहां भी समूह हैं, हर को इसका पता है। भारत और पाकिस्तान दोनों को साझा कार्रवाई करनी चाहिए। जब तक आतंकवाद खत्म नहीं किया जाएगा, क्षेत्र विकास से वंचित रहेगा।’ पाकिस्तानी धर्मगुरू ने भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद एवं वार्ता की जोरदार वकालत करते हुए कहा कि दोनों ही देशों को फैसला करना चाहिए कि क्या वे दुश्मनी को सात दशक जारी रखना चाहते हैं, या फिर शांति, आर्थिक वृद्धि और विकास की राह पसंद करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘यह जीने का तरीका नहीं है। दोनों देशों को एहसास करना चाहिए कि तकरीबन 70 साल गुजर गए। उन्हें फैसला करना चाहिए कि क्या वे शाश्वत दुश्मन की तरह जीना चाहेंगे या फिर वे दोस्ताना पड़ोसी बनेंगे। अगर वे यह बुनियादी बिंदू तय करते हैं सिर्फ तभी अच्छे रिश्तों का एक नया अध्याय शुरू हो सकता है।’ कादरी ने कहा कि युवकों को चरमपंथ में दीक्षित किए जाने से निबटना आतंकवाद और चरमपंथ खत्म करने की कुंजी है।
पाकिस्तानी धर्मगुरु से जब इस संबंध में पूछा गया कि भारत, पाकिस्तान से आनेवाले आतंकवाद का पीड़ित है तो उन्होंने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद इंसानियत का दुश्मन है और दोनों मुल्कों को कबूल करना चाहिए कि यह उनका साझा दुश्मन है।
कादरी ने कहा, ‘मैं हमेशा पुरउम्मीद रहता हूं और भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्तों की बेहतरी के लिए दुआएं करता हूं। लेकिन दोनों मुल्कों को ज्यादा कुछ करने की जरूरत है। जो कुछ चल रहा है, मैं नहीं समझता कि यह गलतफहमियों और दुश्मनी दूर करने के लिए काफी है।’ 
कादरी से जब पूछा गया कि युवकों को आतंकवाद में दीक्षित होने से कैसे रोका जा सकता है तो उन्होंने कहा कि स्कूलों, कालेजों, युनिवर्सिटियों, मदरसों और धार्मिक संस्थाओं में विशिष्ट पाठ्यक्रम चलाया जाना चाहिए। पाकिस्तानी धर्मगुरु ने कहा, ‘प्राइमरी स्कूल से ही एक विशिष्ट विषय शुरू किया जाना चाहिए। इसे माध्यमिक स्कूलों, और कालेजों से ले कर युनिवर्सिटियों में लागू किया जाना चाहिए। उसी तरह इसे मदरसों, मस्जिदों, मंदिरों और सभी धार्मिक संस्थाओं में शुरू किया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘हमें अमन-शांति, आतंकवाद-निरोध और चरमपंथी विचार धाराओं से मुक्ति को विषय बनाने की जरूरत है ताकि नौजवान समझ सकें कि चरमपंथी विचार-धाराएं, दूसरों के प्रति उग्र होना ऐसी चीजें हैं जो हमारे धर्म में स्वीकार्य नहीं है।’
कादरी ने कहा कि भारत और पाकिस्तान को धार्मिक कट्टरता की काट करने वाले पाठ्यक्रम स्कूलों, कालेजों, युनिवर्सिटियों, मदरसों और धार्मिक संस्थाओं में शुरू करना चाहिए ताकि गलत तत्व युवकों का ब्रेनवाश नहीं कर सकें और धर्म के नाम पर उन्हें हथियार उठाने तथा गलत काम करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकें। उन्होंने कहा, ‘जहां भी आस्था और धर्म के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा दिया जाता है, उसे राजद्रोह की कार्रवाई मानी जानी चाहिए।’ पाकिस्तानी धर्मगुरु ने कहा कि आतंकवाद फैलाने के लिए धर्म का दुरूपयोग करने वाले आतंकवादी संगठनों से पूरी कठोरता से निबटा जाना चाहिए। उन्हें कभी बख्शा नहीं जाना चाहिए।
कनाडा के नागरिक हैं ताहिर-उल-कादरी
ताहिर-उल-कादरी का जन्म 19 फरवरी 1951 को फरीद उद्दीन कादरी के घर में झंग (पंजाब) में हुआ था। उनके पुरखे झंग के पंजाबी सियाल परिवार से रहे हैं। उन्होंने झंग के एक ईसाई स्कूल से शिक्षा की शुरुआत की थी और बाद में वे इस्लामी अध्ययन में रत रहे हैं। उन्हें पाकिस्तान में अध्ययन के दौरान बहुत अधिक श्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए सम्मान दिए गए। सूफी विचारधारा को माननेवाले कादरी ने सऊदी अरब में शिक्षा ग्रहण की और पंजाब (पाकिस्तान) की यूनिवर्सिटी में 'अंतरराष्ट्रीय संविधान कानून' विषय के प्रोफेसर रहे हैं। उन्होंने अपनी कानून और इस्लाम की तालीम यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब, लाहौर से ली। नामवर इस्लामिक विद्वान ताहिर-उल-कादरी पाकिस्तान जैसे कट्टर देश में भी प्रगतिशील मुस्लिम विद्वान के तौर पर जाने जाते हैं। वे कनाडा के नागरिक हैं और वहीं रहते हैं। पाकिस्तान में सियासत को हिला देने वाले प्रगतिशील मुस्लिम विद्वान और क्यू टीवी के प्रमुख वक्ता ताहिर-उल-कादरी को इस्लाम से खारिज कर दिया गया है।  कादरी ने पिछले दिनों मुंबई में कई जगह तकरीर की थी। उन्होंने यहूदी और नसारा (ईसाई) को अहले ईमान बताया था। अर्थात ईसाई और यहूदी भी मस्जिद में नमाज अदा कर सकते हैं। उन्होंने देवबंदी, वहाबी, सुन्नी फिरकों में विरोध को शाब्दिक करार दिया और कहा था कि एक-दूसरे के पीछे नमाज पढ़ी जा सकती है, वह खुद भी ऐसा करते हैं। 'फिरका परस्ती का खात्मा' किताब लिखने वाले इस विद्वान ने 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमले की सबसे पहले निंदा की थी। आतंकवाद के खिलाफ फतवा देने वाले एक विद्वान ये भी हैं। वे मिनहाजुल कुरआन इंटरनेशन (1981) नामक संस्था के संस्थापक हैं। ताहिर-उल-कादरी दुनिया में घूमकर इस्लाम की सूफी विचारधारा का प्रचार करते हैं। कट्‍टरपंथियों ने उन्हें देश (पाकिस्तान) और विदेश में यहूदियों का एजेंट करार दिया है और पाकिस्तान में उनके विचारों का कड़ा विरोध किया जाता है। वे अपने 2 मार्च 2010 में जारी किये गए फ़तवा (इस्लामी धार्मिक मत व आदेश) के लिए भी जाने जाते हैं जिसमें उन्होंने ठहराया कि आतंकवाद और आत्मघाती हमले दुष्ट और इस्लाम-विरुद्ध हैं और इन्हें करने वाली काफ़िर हैं। यह घोषणा तालिबान और अल-क़ायदा जैसे संगठनों की विचारधाराओं के ख़िलाफ़ समझी गई है। इसमें लिखा था कि 'आतंकवाद आतंकवाद ही है, हिंसा हिंसा ही है और इनकी न इस्लामी शिक्षा में कोई जगह है और न ही इन्हें न्यायोचित ठहराया जा सकता है।' यह 600 पन्नों का आदेश 'आतंकवाद पर फ़तवा' (Fatwa on Terrorism) कहलाया।

प्रधानमंत्री  के सामने भारत माता की जय' के नारे 


अन्तर्राष्ट्रीय सूफी सम्मेलन का उद्घाटन सत्र विज्ञान भवन में हुआ। इसके बाद इंडिया इस्लामिक सेंटर में 2 दिन और आखिरी सत्र 20 मार्च को रामलीला मैदान में हुआ। उद्घाटन के मौके पर दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार (17 मार्च 2016) से नई दिल्ली में शुरू हुई अंतरराष्ट्रीय सूफी सम्मेलन में स्पीच दी। जैसे ही उन्होंने अपनी बात शुरू की, दुनियाभर से अाए सूफी स्कॉलर्स के बीच 'भारत माता की जय' के नारे लगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि आप कई देशों से आए हैं और अलग-अलग संस्कृतियों से ताल्लुक रखते हैं लेकिन सूफीवाद के माध्यम से एक सूत्र में बंधें हैं। सूफी गुरुओं के ऊपर उन चेहरों पर मुस्कान लाने की जिम्मेदारी है जो आतंक के शिकार हैं। सूफीवाद सिखाता है कि सभी जीवों को ईश्वर ने बनाया है और हमें इन सबसे प्रेम करना चाहिए। आतंकवाद की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसने दुनिया को बांटने और तबाह करने का काम किया है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी धर्म के साथ टकराव नहीं है और न ही ऐसा हो सकता है। विविधता प्रकृति की मूलभूत सच्चाई है और किसी भी समाज की समृद्धि का स्रोत है। यह किसी विवाद का कारण नहीं हो सकता है। 

मंगलवार, 15 मार्च 2016

असदुद्दीन ओवैसी की शब्दबाजी व देशभक्ति : बोले, भारत माता की जय और जयहिन्द / Asaduddin Owaisi's Patriotism and Tricks of Speech : Called Bharat Mata Ki Jai & Jai Hind

शीतांशु कुमार सहाय
भारत सभी धर्मों और विभिन्न जातियों का संगम है। संसार में सर्वाधिक सनातनर्धी (हिन्दू) इसी भूमि पर बसते हैं। ये धरती को माता मानते हैं और सर्वशक्तिमान ईश्वर की प्रतिनिधि के रूप में इसे पूजते हैं। भारत देश की भूमि को भी ‘भारत माता’ के रूप में पूजने की परम्परा है और श्रद्धास्वरूप कभी-कभी बोल उठते हैं- भारत माता की जय ! प्रत्येक देशभक्त को ‘भारत माता की जय’ का उद्घोष करना ही चाहिये।
आज मैं अपने देश के एक विशेष देशभक्त की चर्चा कर रहा हूँ। वह देशभक्त एक राजनीतिक दल का नेता है। दाढ़ी रखता है। अपनी ‘करनी’ और ‘कथनी’ से मीडिया में, चर्चा में, समाचारों में बना रहता है। संसद में जनता के प्रतिनिधि हैं। ऐसा नहीं है कि देश में जहाँ वे खड़े हो जायेंगे, वहाँ हजारों लोग उन्हें सुनने पहुँचेंगे। बात ऐसी भी बिल्कुल नहीं है कि वे परम्परागत राजनीतिज्ञ हैं। जो मन में आता है, बोलते रहते हैं। अपने देश के हैं, अल्पसंख्यक हैं, सरकार की आरक्षण नीति के लाभार्थी हैं। मुझे लगता है कि इसी आरक्षण नीति की तर्ज पर चलती हुई मीडिया भी एक नेतावाले राजनीतिक दल के इस नेता को समाचारों के बीच जगह देती है। इस बार भी मीडिया ने इस नेता को समाचार बनाया; क्योंकि इस देशभक्त ने कहा- कोई मेरे गले पर छुरी भी रख दे तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूँगा।
पर, इस सच्चे भारतीय मुसलमान की ईमान देखिये कि मातृभूमि से उनका लगाव, देश के प्रति उनकी मोहब्बत उनकी जुबां से निकल ही गयी। भरी सभा में उन्होंने कहा..... मैं ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलूँगा। वाह कितनी हमदर्दी है भारत माता के प्रति। नहीं बोलने के बावजूद ‘भारत माता की जय’ तो बोल ही दिया। दरअसल, यह देशप्रेमी है अपना दाढ़ीवाला भाई असदुद्दीन ओवैसी जो एआईएमआईएम का अध्यक्ष है। वास्तव में यह कुछ कठमुल्लाओं के चक्कर में पड़ गया है, अतः उनकी भी बात रखनी पड़ती है। अब भरी सभा में तो कठमुल्लाओं ने ‘भारत माता की जय’ बोलने को कहा नहीं है और मन में देशभक्ति भी उफान मार रही है। ऐसे में भाई ओवैसी ने जो बीच का रास्ता अपनाया, जो काबिल-ए-तारीफ है। मतलब यह कि कठमुल्ला भी खुश और देशभक्ति भी हो गयी। उन्होंने कहा..... मैं ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलूँगा।  
भारत माता के इस बेटे के बयान पर भारत पुत्र और केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह तो गरजने लगे कि भारत पसन्द नहीं तो देश छोड़ दो। भाई गिरिराज! इतना गरम होने की जरूरत नहीं है। आपको इस देशभक्त ओवैसी की बात को रूक-रूककर पढ़ना या सुनना चाहिये था। उन्होंने अपने कथन में ‘भारत माता की जय’ तो कहा ही था और ‘भारत माता की जय’ के आगे-पीछे जो शब्द उनकी जुबान से निकले, वे कठमुल्लाओं के लिए थे- आपके लिए, हमारे लिए या खुद आवैसी के लिए भी नहीं। अब समझे इस देशभक्त की शब्दबाजी! 
अब देखिये कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इनके खिलाफ मंगलवार 15 मार्च 2016 को जनहित याचिका दाखिल कर दिया गया। ऐसे में फिर उनकी देशभक्ति उजागर हुई और उन्होंने मंगलवार 15 मार्च 2016 को ही पत्रकारों के बीच कहा- जय हिन्द! अब भी कोई शक! ......शक थोड़ा-सा होगा, यह मैं मान रहा हूँ पर इस बात का सुकून तो अवश्य है कि अब ओवैसी भाई में कठमुल्लाओं से लोहा लेने की हिम्मत बढ़ी है। वे सबके सामने ‘जय हिन्द’ तो बोले........अब वे सब भी बोलेंगे जो उनका देशभक्त दिल कहता है, बार-बार कहता है और उनका दिल भी वही कहता है जो आम भारतीय का दिल कहता है।
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्‍तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी के भारत माता की जय को लेकर दिए गए बयान के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है। ओवैसी के खिलाफ मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में देशद्रोह के आरोप में पीआईएल दाखिल की गई। उनके खिलाफ लखनऊ के सीजेएम कोर्ट में भी देशद्रोह की शिकायत की गई है। पीआईएल के सवाल पर ओवैसी ने कहा, 'मुझे कोर्ट में पूरा भरोसा है। कोई केस नहीं है। जय हिंद।'
इलाहाबाद हाईकोर्ट में हैदराबाद से सांसद ओवैसी के खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए के तहत पीआईएल दाखिल की गई है। बता दें कि ओवैसी ने महाराष्ट्र के लातूर जिले में सभा में कहा था कि वह भारत माता की जय नहीं बोलेंगे। ओवैसी ने कहा,'चाहे मेरे गले पर चाकू लगा दो पर मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा।' उन्होंने कहा कि संघ नेताओं के कहने पर वो भारत माता की जय के नारे नहीं लगाएंगे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के विरोध में ओवैसी ने यह बात कही। भागवत ने पिछले दिनों कहा था कि नई पीढ़ी को भारत माता की जय बोलना भी सीखाना पड़ता है।
......तो मेरे मित्रों सोच को सदैव सकारात्मक रखें....शत्रु भी प्यार करने लगेंगे।