-शीतांशु कुमार सहाय
नवरात्र के षष्टम् दिवस को आदिशक्ति दुर्गा के षष्टम् स्वरूप ‘कात्यायनी’ की आराधना की जाती है। महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में प्रकट होने के कारण इन्हें ‘कात्यायनी’ कहा गया। भक्तों को वरदान के साथ अभय देनेवाली माँ कात्यायनी सिंह पर सवार रहती हैं। इन्हें षष्टम् दुर्गा भी कहते हैं।
प्राचीन काल में कत ऋषि हुए थे। उन के पुत्र भी ऋषि हुए जिन का नाम कात्य था। कात्य के गोत्र में ही महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए। आदिशक्ति के उपासक थे कात्यायन। कात्यायन ने इस उद्देश्य से तपस्या की कि आदिशक्ति उन की पुत्री के रूप में जन्म लें। माता आदिशक्ति ने उन की यह प्रार्थना स्वीकार की। यों महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में अवतरित होने के कारण इन्हें ‘कात्यायनी’ कहा गया।
कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में माँ कात्यायनी का अवतरण आश्विन कृष्णपक्ष चतुर्दशी को हुआ। इन्होंने आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी, अष्टमी व नवमी तिथि को कात्यायन ऋषि की त्रिदिवसीय पूजा स्वीकार की और दशमी को भयंकर महिषासुर का वध किया। छठी दुर्गा माता कात्यायनी के प्रथम पुजारी ऋषि कात्यायन ही थे।
नवरात्र के छठे दिन माँ कात्यायनी की आराधना के लिए योगी आज्ञा चक्र में ध्यान लगाते हैं। यह चक्र मेरुदण्ड के शीर्ष पर भू्रमध्य (भौंहों) के बीच के सीध में स्थित है। आज्ञा चक्र हल्के भूरे या श्वेत रंग का दो पंखुड़ियोंवाला कमल है। इन पंखुड़ियों पर हं और क्षं मन्त्र अंकित हैं। इस के मध्य में बीज मन्त्र ऊँ है। आज्ञा चक्र के इष्टदेव परमशिव हैं और हाकिनी देवी हैं जिन का मन पर अधिकार है।
आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाकर माँ कात्यायनी के चरणों में सर्वस्व अर्पित कर देना चाहिये। ऐसा करने से ही माँ षष्टम् दुर्गा दर्शन देती हैं और भक्त को परमपद की प्राप्ति होती है।
चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करनेवाली माँ कात्यायनी की आराधना करके ही ब्रजवासी गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पतिरूप में प्राप्त किया था। कालिन्दी (यमुना) नदी के तट पर गोपियों ने उन की उपासना की थी, इसलिए माता कात्यायनी को ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। ब्रजवासी प्राचीन काल से उन की उपासना करते आ रहे हैं।
सिंह पर सवार माँ कात्यायनी की चार भुजाएँ हैं। दाहिनी तरफ की ऊपरी भुजा अभयमुद्रा में व निचली भुजा वरमुद्रा में हैं। ऊपरवाली बायीं भुजा में तलवार और नीचेवाली भुजा में कमल सुशोभित हैं। स्वर्ण के समान चमकीले और भास्वर वर्णवाली माता भक्तों को वर भी देती हैं और भयमुक्त भी बनाती हैं।
जन्म-जन्मान्तर के समस्त कष्टों को समाप्त करनेवाली माँ कात्यायनी के चरणों में हाथ जोड़कर प्रणाम करें-
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आलेख या सूचना आप को कैसी लगी, अपनी प्रतिक्रिया दें। https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/ पर उपलब्ध सामग्रियों का सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित है, तथापि आप अन्यत्र उपयोग कर सकते हैं परन्तु लेखक का नाम देना अनिवार्य है।