-शीतांशु कुमार सहाय
संस्कृत व्याकरण के अनुसार, ‘नवरात्रि’ कहना त्रुटिपूर्ण है। नौ रात्रियों का समाहार (समूह होने के कारण से द्वऩ्द्व समास) होने के कारण यह शब्द पुल्लिंग रूप ‘नवरात्र’ में ही शुद्ध है।
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक वर्ष की चार सन्धियाँ हैं। चैत्र में वसन्त ऋतु व ग्रीष्म ऋतु की और आषाढ़ में ग्रीष्म ऋतु व वर्षा ऋतु की सन्धि होती है। इसी तरह आश्विन में वर्षा ऋतु व शरद ऋतु की तथा माघ में शिशिर ऋतु व वसन्त ऋतु की सन्धि होती है।
ऋतुओं के उपर्युक्त चार सन्धियों के समय रोगाणुओं के आक्रमण की सर्वाधिक सम्भावना रहती है। ऋतु सन्धियों में अक्सर शारीरिक व मानसिक बीमारियाँ बढ़ती हैं। अतः उस काल में स्वास्थ्य के उद्देश्य से शरीर-शुद्धि और तन-मन की निर्मलता के लिए की जानेवाली प्रक्रिया का नाम नवरात्र है। अमावस्या की रात से अष्टमी तक या प्रथमा (प्रतिपदा) से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रातें होती हैं अर्थात् ‘नवरात्र’ नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, नौ रातों का समूह ही नवरात्र कहा जाता है।
हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारोंवाला कहा गया है और दसवाँ द्वार सहस्रार चक्र है जहाँ आदिशक्ति माँ दुर्गा स्थित हैं। सहस्रार चक्र में निवास करनेवाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा है। इन मुख्य इन्द्रियों के बीच अनुशासन, स्वच्छता व तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में शरीर-तन्त्र को पूरे वर्ष के लिए सुचारू रूप से कार्यशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नवरात्र मनाया जाता है।
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