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शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की अन्तिम इच्छा First President of India Deshratna Doctor Rajendra Prasad's last wish

भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद का वास्तविक चित्र
-प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय
भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की ‘अन्तिम इच्छा’ उन की समाधि-स्थल पर अंकित है। बिहार की राजधानी पटना में अशोक राजपथ के किनारे गंगा तट पर देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की समाधि स्थित है। अब देशरत्न की अन्तिम इच्छा को जानिये-
‘‘हे भगवान! तुम्हारी दया असीम है। तुम्हारी कृपा का कोई अन्त नहीं। आज मेरे सत्तर वर्ष पूरे हो रहे हैं। तुम ने मेरी त्रुटियों की ओर निगाह न कर के अपनी दया की वर्षा मुझ पर हमेशा की। इन सत्तर वर्षों में जितना सुख, मान-मर्यादा, धन, पुत्र इत्यादि जितने समाज में सुख और बड़प्पन के साधन समझे जाते हैं, सब तुम ने विपुल मात्रा में दिया। मैं किसी भी योग्य नहीं था, तो भी तुम ने मुझ को बड़ा बनाया। यह कृपा बचपन से ही मेरे ऊपर रही। सब से छोटा बच्चा होने के कारण मेरे ऊपर पिता-माता तथा घर के सारे लोग का अधिक प्रेम रहा करता था। पढ़ने में भी मैं जिस योग्य नहीं था, उतना ही यश और प्रसिद्धि अनायास मेरे बिना परिश्रम और इच्छा के दी।
घर में अधिक कठिनाइयाँ होते हुए भी मुझे उस का कभी अनुभव नहीं होने दिया। जैसे पिता, वैसी ही माता; देवता-देवी तुल्य हर तरह से मुझे सुख देने के लिए हमेशा तत्पर और स्वयं अपनी तपस्या से हम को सुखी बनानेवाले हमारे ऊपर प्रेम की वर्षा करते रहे। भाई ऐसा मिला जैसा किसी को भी शायद ही कभी नसीब हुआ हो- जिस ने मेरे ऊपर ठीक साी तरह छत्रछाया कर के न केवल कष्टों से; बल्कि सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त कर रखा, जिस तरह कृष्ण ने गोवर्द्धन को उठाकर गोप-गोपियों को इन्द्र के कोप से सुरक्षित रखा और अपने ऊपर सभी कष्टों को ले लिया- पर इस भावना से कि यदि मुझे उस का अनुमान हो जाय तो मैं दुखी होऊँगा- मुझे कभी उस का आभास तक न होने दिया। 
बच्चों को इस तरह पाला जिस तरह कोई भी पिता अपने बच्चों को पाल सकता है। मैं मनमाना अपने आदर्शों और विचारों पर चलता रहा जिस का प्रभाव उन के जीवन पर कष्ट के रूप में ही मैं समझता हूँ, पड़ता रहा होगा, पर उन्होंने कभी भी यह नहीं जाहिर होने दिया कि वह मुझ से कुछ दूसरा करवाना चाहते थे या आशा रखते थे। बराबर मुझे अपनी इच्छा और भावना के अनुसार चलने देना ही अपने लिए आनन्द का विषय बना रखा था और यह कृत्रिम नहीं था- स्वाभाविक था। उन के लिए मेरे को खुश रखने के समान और दूसरा कोई आनन्द का विषय नहीं था। मैं अपने ढंग से विकसित होऊँ- ऊँचे-से-ऊँचे उठ सकूँ, यही उन के लिए सब से अधिक प्रिय स्वप्न था और इसी को उन्होंने चरितार्थ किया। 
घर के लोग के अलावा संसार में भी मेरे ऊपर जितनी कृपा रखी, शायद दूसरों पर नहीं रखी। यह तुम्हारे ही पथ-प्रदर्शन का फल है कि किसी का ध्यान मेरी त्रुटियों, अयोग्यताओं और कमजोरियों की ओर नहीं गया और सब ने मुझे केवल आदर-सम्मान ही नहीं दिया, मुझे यश भी दिया, जिस यश का मैं ने तो अपने को कभी अधिकारी ही नहीं समझता और न योग्य। घर में और बाहर सब के प्रेम और कृपा का पात्र बना रहा और इस प्रकार कोई भी ऐसी लालसा मुझे नहीं रह गयी जो किसी भी मनुष्य की हो सकती है। लालसा हो या न हो, कोई भी मनुष्य जो भी लालसा कर सकता है, सब मुझे बिना लालसा के अनायास ही तुम ने मुझे दिया और देते जा रहे हो। मैं तुम्हारी इस दया-दृष्टि को बनाये रखने के लिए क्या प्रार्थना करूँ! तुम ने आज तक बिना माँगे ही सब कुछ दिया है।
मैं जानता हूँ कि यह भी बिना माँगे ही बनाये रखेंगे। घर में सती-साध्विनी पत्नी, सुशील, आज्ञाकारी लड़के-लड़कियों और दूसरे सगे-सम्बन्धी हमें सुख देना ही अपना कर्तव्य मानते हैं। इस अवस्था में भी मैं अपने ढंग से ही अपनी इच्छा के अनुसार ही काम करता। उन की परवाह नहीं करता और न उन के सुख-दुख ही चिन्ता करता। पर तो भी उन का प्रेम वैसा ही असीम! 
अधिक मैं क्या कहूँ। एक ही भीख माँगनी है- मेरे बाकी दिनों को तुम अपनी ओर खींचने में लगाओ। मैं सांसारिक रीति से बहुत सफल अपने जीवन में रहा, पर आध्यात्मिक रीति से भक्ति बढ़ सकती- पथ बतानेवालों की कमी कभी नहीं रही। महात्माजी से बढ़कर कौन हो सकता है! उन की कृपा भी असीम रही। यदि मुझ में कुछ भी शक्ति होती तो मैं उन का सच्चा अनुयायी बन सकता था, पर उन की कृपा और उन के सम्पर्क का सांसारिक लाभ जो किसी को भी मिल सकता था, मैं ने प्रचुर मात्रा में पाया। उन के आध्यात्मिक और भगवान-भक्ति में से मैं कुछ भी नहीं ले सका और न अपने जीवन को किसी भी तरह उन के साँचे में ढाल सका। यदि कभी वह मुझे तौलते तो देखते की मुझ में सच्चा वज़न कुछ भी नहीं है। जिस तरह से तुम ने कभी तौलकर मुझे योग्यता के अनुसार कुछ नहीं दिया; बल्कि बिना तौले ही विपुल मात्रा में सब कुछ देते रहे- सब कुछ सुख, समृद्धि, धन, वंश, मित्र, सेवक और सब से अधिक यश- बराबर देते रहे; उसी तरह उन्होंने भी बिना तौले ही जो कुछ मैं आज सांसारिक दृष्टि से पाया, बनाया। क्या अब भी मुझे अपनी ओर नहीं खींचोगे? जीवन को सच्चा आध्यात्मिक नहीं बनाओगे? क्या बाकी दिन भी यश और सांसारिक समृद्धि लुटने में ही बिताने दोगे और मुझ से ऐसे कर्म कराओगे जो मुझे तुम्हारी ओर ले जाय? यदि कृपा है तो मुझे उस ओर खींचो और उस ओर ले चलो और जो मुझे आज बिना कारण मिल रहा है उस को सचमुच सार्थक बनाओ और सब को सच्चा अधिकारी बनाओ। पर, मुझे सचमुच इन सब को छोड़कर भी अपनी ओर खींचो और उसी दया-दृष्टि से एक बार मेरी आँखों को खोल दो जिस में मैं तुम्हारे सच्चे आनन्दमय दर्शन पा सकूँ।’’

देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की पटना में समाधि का सच्चा हाल Desharatna Dr. Rajendra Prasad's true condition of samadhi in Patna

-शीतांशु कुमार सहाय
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद- यही नाम है भारत के उस महापुरुष का, जिन की महानता, विद्वत्ता, त्याग और बलिदान का उचित सम्मान न उन्हें जीवनकाल में मिला और न ही मृत्यु के बाद। हालाँकि भारतवासियों ने उन की असीम और अतुल्य देशभक्ति के कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की संज्ञा से विभूषित किया। उन के गुण, उन के चरित्र और उन की विद्वत्ता, उन के परिश्रम, उन के त्याग और बलिदान का लाभ उन से जुड़े सभी लोग लेते रहे। आज भी उन के नाम का लाभ लोग ले रहे हैं, पर जब उन के सम्मान की बात आती है तो सभी मौन हो जाते हैं, घोषणाएँ तो बड़ी-बड़ी कर जाते हैं पर अमल कुछ नहीं होता।

वीडियो नीचे के लिंक पर देखें .....

इस स्थिति में है देशरत्न डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की समाधि 


पटना में राजभवन के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट स्थित
राजेन्द्र बाबू की आदमकद प्रतिमा
बात है 2009 के 3 दिसम्बर यानी भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की 125वीं जयन्ती के अवसर पर बिहार की राजधानी पटना में राजभवन के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट स्थित राजेन्द्र बाबू की आदमकद प्रतिमा पर तत्कालीन राज्यपाल देवानन्द कुँवर, मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार और अन्य नेताओं ने माल्यार्पण किया और फिर राज्यपाल, मुख्यमन्त्री, तत्कालीन सूचना व जनसम्पर्क मन्त्री रामनाथ ठाकुर जैसे नेताओं ने देशरत्न की समाधि स्थल पर भी पुष्पांजलि अर्पित की। इस दिन मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि समाधि स्थल को दर्शनीय और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जायेगा। नीतीश कुमार ने यह भी कहा था कि समाधि स्थल पर राजेन्द्र प्रसाद के जीवन के जो उपदेश हैं, उन्हें दर्शाया जायेगा; ताकि भावी पीढ़ी उन के जीवन से प्रेरणा ले सके। उन की यादगार वस्तुओं और उन के कृतित्व को संग्रहित कर एक संग्रहालय बनाने की भी बात की गयी। इन घोषणाओं के 11 साल बीत गये पर आज भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ। इन ग्यारह सालों में भी नीतीश कुमार ही मुख्यमन्त्री रहे और अब भी हैं, केवल कुछ महीनों के लिए उन्होंने जीतन राम मांझी को मुख्यमन्त्री बनाया था। 
आप को जानकर आश्चर्य होगा कि समाधि स्थल पर एक भी ऐसा बोर्ड या शिलालेख नहीं है जिस पर यह लिखा हो कि आखिर डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद थे कौन। यहाँ परिसर की दीवार पर लगे ग्रिल से झाँकता एक बोर्ड दिखायी देगा जिस पर लिखा है- देश रत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद की समाधि स्थल। यह हिन्दी भाषी राज्य बिहार की हिन्दी है और इस में क्या ग़लत है, आप स्वयं देखिये। 
अन्दर में मुख्य समाधि स्थल की सीढ़ियों के बगल में भी केवल यही बात लिखी है- देशरत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद की समाधि। पर, अफसोस की बात है कि देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर कहीं कुछ नहीं लिखा है। वैसे मैं बता दूँ कि राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के सीवान ज़िले के जीरादेई में 3 दिसम्बर 1884 ईस्वी को हुआ था। बिहार सरकार द्वारा अधिसूचित राजकीय कार्यक्रमों में 3 दिसम्बर को देशरत्न की जयन्ती और 28 फरवरी को पुण्यतिथि मनायी जाती है। बस इन दो अवसरों पर ही देशरत्न की समाधि को सफाई और चन्द फूल मयस्सर हो पाते हैं। इसी तरह बाँस-बल्लों से आकर्षक पण्डाल लगता है और शासक-प्रशासक फूलों की पंखुड़ियों को यहाँ छिड़ककर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।  
थोड़ा अतीत में चलते हैं। 3 दिसम्बर 1985 ईस्वी को बिहार के तत्कालीन मुख्यमन्त्री बिन्देश्वरी दूबे और तत्कालीन राज्यपाल पेण्डेकान्ति वेंकट सुब्बैया के काल में समाधि स्थल के परिसर यानी ‘राजेन्द्र उद्यान’ का निर्माण कराया गया था और उद्घाटन भी हुआ था। प्रवेश द्वार के निकट एक शिलालेख पर इस बात की जानकारी भी दी गयी थी। उस समय समाधि केवल ईंटों से बनी थी। बाद में परिवर्तन यह हुआ कि समाधि स्थल के ईंटों पर काले रंग के ग्रेनाइट टाइल लगाये गये, साथ ही प्रवेश द्वार पर लाल टाइल लगा दिये गये और बिन्देश्वरी दूबे और पी. वेंकट सुब्बैया के नाम वाले शिलापट्ट को हटा दिया गया। बाद में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने क्षेत्र विकास निधि से सोलर लाइट लगवाया जो रख-रखाव का अभाव झेल रहा है।
         26 जनवरी सन् 1950 ईस्वी से 13 मई 1962 ईस्वी तक 12 वर्षों से अधिक समय तक भारत के राष्ट्रपति रहे राजेन्द्र प्रसाद जीवन के अन्तिम क्षणों में पटना के सदाकत आश्रम में रहे और यहीं 28 फरवरी सन् 1963 ईस्वी को उन का देहान्त हो गया। उन का अन्तिम संस्कार पटना में गंगा तट के बाँस घाट पर किया गया और यहीं श्मशान घाट के एक किनारे उन की वर्तमान समाधि है। यहाँ से गंगा अब करीब चार किलोमीटर उत्तर चली गयी है पर बाँस घाट पर विद्युत शवदाह गृह का संचालन जारी है। बाँस घाट का नाम बदलकर ‘राजेन्द्र घाट’ या ‘देशरत्न घाट’ किया जाना था मगर लगता है कि सरकारी दस्तावेज में यह अब भी बाँस घाट ही है। श्मशान का सरकारी बोर्ड इस बात का प्रमाण है।
समाधि स्थल के एक किनारे शिलापट्ट पर यह अंकित है- 
हारिये न हिम्मत बिसारिये न हरि नाम।
जाहि बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये।।
वास्तव में यह दोहा देशरत्न की समाधि की दुर्दशा पर पूरी तरह चरितार्थ हो रहा है।
पटना ज़िले के दो शहरों पटना साहिब और दानापुर को जोड़नेवाले अशोक राजपथ के किनारे स्थित है भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद का समाधि स्थल। यह बुद्ध कॉलोनी थाने के अन्तर्गत पड़ता है। यह है समाधि स्थल का प्रवेश द्वार।   
प्रवेश द्वार
       प्रवेश द्वार के निकट ही है बाँस घाट नाम का बस ठहराव स्थल। प्रवेश द्वार से आप पहुँचेंगे राजेन्द्र पार्क में। पार्क में फूलों के पौधे नहीं दिखायी देते, कुछ छोटे-बड़े पेड़ जरूर दीखते हैं। यहाँ कोई माली बहाल नहीं है, तो फूल लगाये कौन और देखभाल कौन करे! पार्क में राष्ट्रध्वज फहराने के लिए एक स्थल बना है। दीवारों की रंगाई वर्ष में दो बार देशरत्न की जयन्ती और पुण्यतिथि के दौरान ही होती है। 
अब दर्शन करते हैं महामानव देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की समाधि का। मुख्य समाधि स्थल के प्रवेश द्वार के बायीं तरफ के शिलापट्ट पर यह दोहा अंकित है- 
हारिये न हिम्मत बिसारिये न हरि नाम।
जाहि बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये।।
और दायीं तरफ ‘देशरत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद की समाधि’ लिखा हुआ शिलापट्ट लगा है। समाधि स्थल पर ये ग्रिल दोनों तरफ लगे हैं जिन्हें बन्द करनेवाला या खोलनेवाला कोई कर्मचारी यहाँ नियुक्त नहीं है। अब दस सीढ़ियों का फ़ासला तय कीजिये। यह है देशरत्न का समाधि। समाधि के पीछे से कुछ वर्षों पूर्व तक पतितपावनी नदी गंगा बहती थी। अब गंगा चार किलोमीटर उत्तर से प्रवाहित हो रही है। स्क्रीन पर जो मिट्टी की ऊँचाई आप देख रहे हैं, वहाँ सड़क बनायी जा रही है। प्रत्येक शाम में सूर्यदेव भारतमाता के अमर सपूत राजेन्द्र प्रसाद की समाधि पर अपनी किरणों से श्रद्धांजलि देते हैं।   
समाधि स्थल का निर्माण काले ग्रेनाइट टाइल के छः बड़े चौकोर टुकड़ांे से हुआ है। किनारे भी ऐसे ही काले पत्थर लगे हैं। समाधि स्थल के चारांे ओर स्टील की रेलिंग लगी है। सीढ़ियों पर भी रेलिंग है। अब जरा भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की समाधि पर लगेे काले पत्थरों पर बिखरी गन्दगी को देखिये और तुलना कीजिये प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के नई दिल्ली स्थित समाधि स्थल ‘शान्ति वन’ से।
ये देखिये, ये हैं नई दिल्ली में स्थित शान्ति वन के चित्र.....
शान्ति वन
शान्ति वन



अब फिर आ जाइये पटना और देखिये कि देशरत्न की समाधि पर भारत सरकार, बिहार सरकार, पटना नगर निगम या अन्य किसी भी सरकारी एजेन्सी का कोई बोर्ड देखने को नहीं मिलेगा। राजेन्द्र प्रसाद कौन थे, यह भी बताने की आज तक आवश्यकता महसूस नहीं की गयी। समाधि के नीचे 14 शिलापट्टों पर देशरत्न की ‘अन्तिम इच्छा’ लिखी हुई है। यह वाल्मीकि चौधरी के सौजन्य से प्राप्त किया गया है।
देशरत्न की समाधि के ऊपर एस्बेस्टस की छत लगायी गयी है। पर, उपेक्षा से दो-चार होता देशरत्न का यह समाधि स्थल कब पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा, इस का इन्तज़ार समस्त भारतवासी को है। 
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान सेनानी, भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष और संविधान निर्माता, भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को आप सभी दर्शकों की ओर से हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जय हिन्द! 

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

प्रत्येक भारतीय को याद रखना है ११२ की आपात संख्या Remember 112 for Emergency in India

-शीतांशु कुमार सहाय
         क्यों ज़रूरी है ११२ की संख्या? भारत में हर व्यक्ति को क्यों याद रखना चाहिये यह संख्या? भारत का प्रत्येक व्यक्ति ले सकता है ११२ नम्बर की सहायता। मोबाइल फोन ऐप पर भी मौज़ूद है संख्या ११२ की सेवा। ११२ देश के हर नागरिक के लिए याद रखना बेहद ज़रूरी है।

नीचे के लिंक पर क्लिक करें और वीडियो देखें : 


       आखिर ११२ क्या है? यह संख्या याद रखना क्यों आवश्यक है? इस की शुरुआत कैसे और क्यों हुई? इस से आप को क्या फ़ायदा मिलेगा? इन सभी प्रश्नों के उत्तर मैं आप को बता रहा हूँ। 
         पुड्डुचेरी, दमन व दीव, अन्दमान-निकोबार, दादर नगर हवेली के बाद दिल्ली में भी इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम यानी आपात प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस) लागू कर दिया गया है। इस के अलावा देश के कई अन्य राज्यों में भी यह लागू है। ईआरएसएस लागू करनेवाला भारत का पहला राज्य हिमाचल प्रदेश है। तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने २८ नवम्बर २०१८ को ही हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में पूरे हिमाचल प्रदेश के लिए आपात प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस) की शुरूआत की। इस तरह ईआरएसएस के अंतर्गत अखिल भारतीय एकल आपात संख्या ‘११२’ की शुरूआत करनेवाला हिमाचल प्रदेश पहला राज्य बना। इस एक नम्बर (११२) पर फोन कर लोग पुलिस, अग्निशमन सेवा, स्वास्थ्य और अन्य आपातकालीन सुविधा पा सकते हैं। वास्तव में ११२ एक इमरजेंसी नम्बर है, जिसे अमेरिका के ९११ के तर्ज पर शुरू किया गया है। इसे भारत में आपात प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली यानी इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम (ईआरएसएस) के तहत आरम्भ किया गया है।
         हिमाचल प्रदेश में नवंबर २०१८ में ही ११२ शुरू किया गया था। भारत सरकार के गृह मन्त्रालय के अधीन ईआरएसएस के लिए एक विशेष वेबसाइट शुरू की गयी जिस का लिंक है-- https://ners.in इस वेबसाइट से आप ११२ की सेवा का लाभ लेने के लिए अपने स्मार्ट फोन में ऐप डाउनलोड कर सकते हैं। वेबसाइट में ऐप डाउनलोड करने का लिंक दिया हुआ है। आप चाहें तो गूगल प्ले स्टोर या एप्पल के स्टोर से भी संख्या ११२ वाला ऐप डाउनलोड कर सकते हैं। इस ऐप का नाम है- ‘112 इण्डिया’ (112 INDIA)।
         ११२ नम्बरवाला ऐप डाउनलोड करने के बाद उस में दस परिजनों या मित्रों के फोन नम्बर जोड़े जा सकते हैं और जब कभी फोनधारक ११२ डायल करेगा तो इस से जुड़े सभी १० फोन को भी इस की सूचना मिल जायेगी। इस के बाद ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) या मोबाइल ऑपरेटर कम्पनी के टावर के माध्यम से ऐप स्वतः ११२ नम्बर डायल करनेवाले का लोकेशन पता कर लेगा। इस के बाद उस व्यक्ति तक सहायता आसानी से पहुँचायी जा सकेगी। 
         इस ऐप के जरिये आम लोग स्वयंसेवक के रूप में पंजीकृत हो सकते हैं। जब भी कोई व्यक्ति संख्या ११२ डायल करेगा तो पुलिस के साथ ही निकटस्थ स्वयंसेवक को भी एक सन्देश जायेगा। ११२ पर की गयी पूरी बात रिकॉर्ड होगी। 
         भारत में देशव्यापी आपात दूरभाष सहायता संख्या ११२ की शुरुआत मंगलवार, १९ फरवरी २०१९ को तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की और तत्काल भारत के सोलह राज्य और केंद्र शासित प्रदेश संख्या ११२ की सेवा से जुड़ गये। अब दिल्ली में भी इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम यानी आपात प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस) ११२ लागू कर दिया गया है। अन्य राज्य भी इस सेवा से जुड़ रहे हैं। वर्ष २०२० में पूरे भारत में ११२ की सेवा चालू कर दी जायेगी। ११२ को डायल करने पर परेशानी में फँसे व्यक्ति को तत्काल सहायता मिलती है और मिलेगी। 
         फ़िलहाल भारत में पुलिस के लिए १००, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए १०८, अग्निशमन सेवाओं के लिए १०१, महिला हेल्पलाइन के लिए १०९१ और १८१, चाइल्ड हेल्पलाइन के लिए १०९८ नम्बर हैं। इन सभी हेल्पलाइन को कई राज्यों में ११२ के अन्तर्गत लाया गया है। मतलब यह कि अब कई इमरजेंसी नंबर याद रखने की ज़रूरत नहीं है, याद रखिये केवल ११२ को। सिर्फ़ ११२ डायल कीजिये और किसी भी आपात सेवा का लाभ उठाइये। स्वास्थ्य हेल्पलाइन १०८ को भी जल्द ही इस के साथ समाहित किया जायेगा। इस वर्ष देशभर में हेल्पलाइन नम्बर ११२ को सक्रिय हो जाना है और मोबाइल फोन का केवल एक बटन दबाकर कोई भी ज़रूरतमन्द व्यक्ति हेल्पलाइन तक पहुँच सकता है।
         जिन १६ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह प्रणाली शुरू हो गयी है, उन में आन्ध्र प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात, पुडुचेरी, लक्षद्वीप, अन्दमान-निकोबार, दादर नगर हवेली, दमन और दीव, जम्मू-कश्मीर हैं। हिमाचल प्रदेश और नगालैंड में हेल्पलाइन-११२ की शुरूआत पहले ही हो चुकी है। दिल्ली में भी यह चालू है।
         नंबर '११२' साल २०१२ में दिल्ली में हुए निर्भया दुष्कर्म मामले से जुड़ा है। उस घटना के बाद ही आपात प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली यानी इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम (ईआरएसएस) शुरू करने का फैसला लिया गया था। ईआरएसएस दिसंबर २०१२ में हुई निर्भया की दुखद घटना के सन्दर्भ में न्यायमूर्ति वर्मा समिति की महत्त्वपूर्ण सिफ़ारिशों में से एक है। इस के तहत इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम (ईआरएसएस) की राष्ट्रीय परियोजना को मंजूरी दी गयी। .....तो याद रखिये 112 मतलब ११२ की संख्या को।