डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद- यही नाम है भारत के उस महापुरुष का, जिन की महानता, विद्वत्ता, त्याग और बलिदान का उचित सम्मान न उन्हें जीवनकाल में मिला और न ही मृत्यु के बाद। हालाँकि भारतवासियों ने उन की असीम और अतुल्य देशभक्ति के कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की संज्ञा से विभूषित किया। उन के गुण, उन के चरित्र और उन की विद्वत्ता, उन के परिश्रम, उन के त्याग और बलिदान का लाभ उन से जुड़े सभी लोग लेते रहे। आज भी उन के नाम का लाभ लोग ले रहे हैं, पर जब उन के सम्मान की बात आती है तो सभी मौन हो जाते हैं, घोषणाएँ तो बड़ी-बड़ी कर जाते हैं पर अमल कुछ नहीं होता।
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इस स्थिति में है देशरत्न डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की समाधि
पटना में राजभवन के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट स्थित राजेन्द्र बाबू की आदमकद प्रतिमा |
आप को जानकर आश्चर्य होगा कि समाधि स्थल पर एक भी ऐसा बोर्ड या शिलालेख नहीं है जिस पर यह लिखा हो कि आखिर डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद थे कौन। यहाँ परिसर की दीवार पर लगे ग्रिल से झाँकता एक बोर्ड दिखायी देगा जिस पर लिखा है- देश रत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद की समाधि स्थल। यह हिन्दी भाषी राज्य बिहार की हिन्दी है और इस में क्या ग़लत है, आप स्वयं देखिये।
अन्दर में मुख्य समाधि स्थल की सीढ़ियों के बगल में भी केवल यही बात लिखी है- देशरत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद की समाधि। पर, अफसोस की बात है कि देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर कहीं कुछ नहीं लिखा है। वैसे मैं बता दूँ कि राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के सीवान ज़िले के जीरादेई में 3 दिसम्बर 1884 ईस्वी को हुआ था। बिहार सरकार द्वारा अधिसूचित राजकीय कार्यक्रमों में 3 दिसम्बर को देशरत्न की जयन्ती और 28 फरवरी को पुण्यतिथि मनायी जाती है। बस इन दो अवसरों पर ही देशरत्न की समाधि को सफाई और चन्द फूल मयस्सर हो पाते हैं। इसी तरह बाँस-बल्लों से आकर्षक पण्डाल लगता है और शासक-प्रशासक फूलों की पंखुड़ियों को यहाँ छिड़ककर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।
थोड़ा अतीत में चलते हैं। 3 दिसम्बर 1985 ईस्वी को बिहार के तत्कालीन मुख्यमन्त्री बिन्देश्वरी दूबे और तत्कालीन राज्यपाल पेण्डेकान्ति वेंकट सुब्बैया के काल में समाधि स्थल के परिसर यानी ‘राजेन्द्र उद्यान’ का निर्माण कराया गया था और उद्घाटन भी हुआ था। प्रवेश द्वार के निकट एक शिलालेख पर इस बात की जानकारी भी दी गयी थी। उस समय समाधि केवल ईंटों से बनी थी। बाद में परिवर्तन यह हुआ कि समाधि स्थल के ईंटों पर काले रंग के ग्रेनाइट टाइल लगाये गये, साथ ही प्रवेश द्वार पर लाल टाइल लगा दिये गये और बिन्देश्वरी दूबे और पी. वेंकट सुब्बैया के नाम वाले शिलापट्ट को हटा दिया गया। बाद में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने क्षेत्र विकास निधि से सोलर लाइट लगवाया जो रख-रखाव का अभाव झेल रहा है।
26 जनवरी सन् 1950 ईस्वी से 13 मई 1962 ईस्वी तक 12 वर्षों से अधिक समय तक भारत के राष्ट्रपति रहे राजेन्द्र प्रसाद जीवन के अन्तिम क्षणों में पटना के सदाकत आश्रम में रहे और यहीं 28 फरवरी सन् 1963 ईस्वी को उन का देहान्त हो गया। उन का अन्तिम संस्कार पटना में गंगा तट के बाँस घाट पर किया गया और यहीं श्मशान घाट के एक किनारे उन की वर्तमान समाधि है। यहाँ से गंगा अब करीब चार किलोमीटर उत्तर चली गयी है पर बाँस घाट पर विद्युत शवदाह गृह का संचालन जारी है। बाँस घाट का नाम बदलकर ‘राजेन्द्र घाट’ या ‘देशरत्न घाट’ किया जाना था मगर लगता है कि सरकारी दस्तावेज में यह अब भी बाँस घाट ही है। श्मशान का सरकारी बोर्ड इस बात का प्रमाण है।
26 जनवरी सन् 1950 ईस्वी से 13 मई 1962 ईस्वी तक 12 वर्षों से अधिक समय तक भारत के राष्ट्रपति रहे राजेन्द्र प्रसाद जीवन के अन्तिम क्षणों में पटना के सदाकत आश्रम में रहे और यहीं 28 फरवरी सन् 1963 ईस्वी को उन का देहान्त हो गया। उन का अन्तिम संस्कार पटना में गंगा तट के बाँस घाट पर किया गया और यहीं श्मशान घाट के एक किनारे उन की वर्तमान समाधि है। यहाँ से गंगा अब करीब चार किलोमीटर उत्तर चली गयी है पर बाँस घाट पर विद्युत शवदाह गृह का संचालन जारी है। बाँस घाट का नाम बदलकर ‘राजेन्द्र घाट’ या ‘देशरत्न घाट’ किया जाना था मगर लगता है कि सरकारी दस्तावेज में यह अब भी बाँस घाट ही है। श्मशान का सरकारी बोर्ड इस बात का प्रमाण है।
समाधि स्थल के एक किनारे शिलापट्ट पर यह अंकित है-
हारिये न हिम्मत बिसारिये न हरि नाम।
जाहि बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये।।
वास्तव में यह दोहा देशरत्न की समाधि की दुर्दशा पर पूरी तरह चरितार्थ हो रहा है।
पटना ज़िले के दो शहरों पटना साहिब और दानापुर को जोड़नेवाले अशोक राजपथ के किनारे स्थित है भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद का समाधि स्थल। यह बुद्ध कॉलोनी थाने के अन्तर्गत पड़ता है। यह है समाधि स्थल का प्रवेश द्वार।
प्रवेश द्वार के निकट ही है बाँस घाट नाम का बस ठहराव स्थल। प्रवेश द्वार से आप पहुँचेंगे राजेन्द्र पार्क में। पार्क में फूलों के पौधे नहीं दिखायी देते, कुछ छोटे-बड़े पेड़ जरूर दीखते हैं। यहाँ कोई माली बहाल नहीं है, तो फूल लगाये कौन और देखभाल कौन करे! पार्क में राष्ट्रध्वज फहराने के लिए एक स्थल बना है। दीवारों की रंगाई वर्ष में दो बार देशरत्न की जयन्ती और पुण्यतिथि के दौरान ही होती है।
प्रवेश द्वार |
अब दर्शन करते हैं महामानव देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की समाधि का। मुख्य समाधि स्थल के प्रवेश द्वार के बायीं तरफ के शिलापट्ट पर यह दोहा अंकित है-
जाहि बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये।।
और दायीं तरफ ‘देशरत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद की समाधि’ लिखा हुआ शिलापट्ट लगा है। समाधि स्थल पर ये ग्रिल दोनों तरफ लगे हैं जिन्हें बन्द करनेवाला या खोलनेवाला कोई कर्मचारी यहाँ नियुक्त नहीं है। अब दस सीढ़ियों का फ़ासला तय कीजिये। यह है देशरत्न का समाधि। समाधि के पीछे से कुछ वर्षों पूर्व तक पतितपावनी नदी गंगा बहती थी। अब गंगा चार किलोमीटर उत्तर से प्रवाहित हो रही है। स्क्रीन पर जो मिट्टी की ऊँचाई आप देख रहे हैं, वहाँ सड़क बनायी जा रही है। प्रत्येक शाम में सूर्यदेव भारतमाता के अमर सपूत राजेन्द्र प्रसाद की समाधि पर अपनी किरणों से श्रद्धांजलि देते हैं।
समाधि स्थल का निर्माण काले ग्रेनाइट टाइल के छः बड़े चौकोर टुकड़ांे से हुआ है। किनारे भी ऐसे ही काले पत्थर लगे हैं। समाधि स्थल के चारांे ओर स्टील की रेलिंग लगी है। सीढ़ियों पर भी रेलिंग है। अब जरा भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की समाधि पर लगेे काले पत्थरों पर बिखरी गन्दगी को देखिये और तुलना कीजिये प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के नई दिल्ली स्थित समाधि स्थल ‘शान्ति वन’ से।
अब फिर आ जाइये पटना और देखिये कि देशरत्न की समाधि पर भारत सरकार, बिहार सरकार, पटना नगर निगम या अन्य किसी भी सरकारी एजेन्सी का कोई बोर्ड देखने को नहीं मिलेगा। राजेन्द्र प्रसाद कौन थे, यह भी बताने की आज तक आवश्यकता महसूस नहीं की गयी। समाधि के नीचे 14 शिलापट्टों पर देशरत्न की ‘अन्तिम इच्छा’ लिखी हुई है। यह वाल्मीकि चौधरी के सौजन्य से प्राप्त किया गया है।
देशरत्न की समाधि के ऊपर एस्बेस्टस की छत लगायी गयी है। पर, उपेक्षा से दो-चार होता देशरत्न का यह समाधि स्थल कब पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा, इस का इन्तज़ार समस्त भारतवासी को है।
देशरत्न की समाधि के ऊपर एस्बेस्टस की छत लगायी गयी है। पर, उपेक्षा से दो-चार होता देशरत्न का यह समाधि स्थल कब पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा, इस का इन्तज़ार समस्त भारतवासी को है।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान सेनानी, भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष और संविधान निर्माता, भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को आप सभी दर्शकों की ओर से हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जय हिन्द!
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