कोरोना के जन्म के लिए कभी प्रयोगशाला, कभी चमगादड़ तो कभी इस पर और कभी उस को दोष दिया जा रहा है। पर, इस सन्दर्भ में अपनी ग़लती कोई नहीं मानना चाहता। स्वयं को दोष कोई नहीं देना चाहता।
कोरोना असल में चमगादड़ यानी बैट की जीन से बना वायरस-बैट है और कोरोना से प्रभावित हर एक मनुष्य बैटमैन है। कोरोना से प्रभावित दुनिया में बैट-मैन का मेला लग गया है और अभी गिनती जारी है। आप और हम कब फन्तासी की दुनिया से जुड़ गए और उस के जीते-जागते पात्र बन गये, पता भी नहीं चला, अलबत्ता इतनी मौतों के बाद मनुष्य को जीते-जागते पात्र कहना सही नहीं होगा। साथ ही यकीन मानिये, हम जो जीवन जी रहे हैं, वह कोई कपोल-कल्पना नहीं है। ...तो इस का मतलब यह हुआ कि यथार्थ की दुनिया में फन्तासी का विलय हो चुका है।
चमगादड़ की तो बात ही छोड़िये। चमगादड़ के अहोभाग्य कि विश्व में हॉरर फिल्मों के अलावा उसे मानव समाज ने कभी इतना सम्मान दिया हो। मानो इस से पहले धरती पर कभी चमगादड़ थे ही नहीं! उसे कभी इतना ख़ौफनाक समझा गया हो, ऐसा प्रमाण भी नहीं है।
कभी कैंसर और एड्स के विषाणु धरती पर नये थे, आज नोवेल कोरोना वायरस है। पर, इस से इतर चमगादड़ कब से विषाणु पैदा करने लगे? यह आश्चर्य भी है और प्रश्न भी। सच तो यह है कि मनुष्य के प्रयोग ने ही चमगादड़ों को इतना ख़तरनाक बना दिया।
कुछ दिनों से चमगादड़ों को नोवेल कोरोना का बाप घोषित और सिद्ध कर दिया गया है। चमगादड़ की इस औलाद की सारी दुनिया दुश्मन बन गयी है। हर कोई इसे मिटा देना चाहता है। जल्द-से-जल्द इस का वज़ूद समाप्त कर देने को आतुर है। यह आतुरता इसलिए; ताकि इन्सान के काले कारनामों, ग़लत करतूतों और सनकी भूल का सबूत जल्द-से-जल्द नष्ट हो जाय। जिस प्रकार यह जल्द-से-जल्द प्रकट हो गया, उसी प्रकार जल्द-से-जल्द नष्ट हो जाय। ऐसी भी क्या जल्दी है? अभी तो शुरूआत है!
कोरोना, मनुष्य और चमगादड़
इन्सान ने जिस प्रकार विविध जीवों का, चमगादड़ों का खून पीया था, उन्हीें के खून से सना और बना नोवेल कोरोना पिशाच बना इन्सानों का खून पी रहा है। कोरोना नरपिशाच बन चुका है।
कोरोना और चमगादड़
कोरोना से कोरोना के स्वयं के अलावा एक और चरित्र को भी फायदा हुआ। कोरोना वायरस के कारनामों से जितना सम्मान चमगादड़ों को मिला है, उतना सम्मान चमगादड़ को कभी अपने कारनामों से नहीं मिला होगा!
इन्सान ने पहले नरपिशाच की तरह चमगादड़ों का खून पीया फिर उसी को मेन विलेन बना दिया। उस पर प्रयोग ख़ुद किये और जब प्रयोग के परिणाम उलट आये तो अपने कुकर्मों का सारा दोष उस निरीह प्राणी पर थोप दिया- उन घोटालेबाजों की तरह जो अनाज की घोटालेबाजी की रपट लिखते समय चूहों का ज़िक्र करना कभी नहीं भूलते और फिर चूहों को ही मेन विलेन बना देते हैं।
इन्सान चमगादड़ों को इस प्रकार दोष दे रहा है, मानो आज से पहले धरती पर चमगादड़ कभी थे ही नहीं। अचानक ही प्रकट हो गये, अचानक ही खूनी बन गये।
ब्रैम स्टोकर, ड्रैकुला, चमगादड़, कोरोना
ब्रैम स्टोकर ने जब ‘ड्रैकुला’ लिखी होगी, तब सोचा भी नहीं होगा कि ड्रैकुला का सेनावाहिनी किरदार चमगादड़ फिल्मों का तो लोकप्रिय पिशाच पात्र बनेगा ही, साथ ही आनेवाले समय में वैज्ञानिकों का भी चहेता नरपिशाच बन जायेगा। आज यदि ब्रैम स्टोकर ड्रैकुला पर फिल्म लिखते तो चमगादड़ मण्डली को कोरोना मण्डली के साथ दिखाते ही या फिर आनेवाले समय में बै्रम स्टोकर की ड्रैकुला पर फिल्म बनी तो आश्चर्य नहीं कि इस के आनेवाले किसी सीक्वल में चमगादड़ मण्डली में कोरोना मण्डली के दर्शन हो जाय।
...तो ब्रैम स्टोकर का कोरोना से और कोरोना का ब्रैम स्टोकर से कनेक्शन हो ही गया। अलबत्ता ब्रैम स्टोकर के समय कोरोेना का और कोरोना के समय ब्रैम स्टोकर का कोई कनेक्शन नहीं है फिर भी इन का एक-दूसरे से कनेक्शन हो ही गया। इसे कहते हैं कोरोना कनेक्शन। .....किस्मत कनेक्शन!
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