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गुरुवार, 18 मार्च 2021

न्यूज पोर्टल, ऑनलाइन कंटेंट व ऑनलाइन फिल्मों पर भारत सरकार की नज़र New Law on News Portal, Online Content & Online Movies in India

    हाल के दिनों में इंटरनेट (Internet) पर कई विवादित सामग्रियों के चलते सामाजिक सौहार्द बिगड़े और धार्मिक-राजनीतिक विवाद भी हुए। इसलिए भारत सरकार ने इंटरनेट पर परोसी जानेवाली सामग्रियों पर नकेल कसने के लिए कानून का सहारा लेना उचित समझा और नवम्बर २०२० में नया कानून बनाया गया जिस का अब असर देखने लगा है। 

    भारत में प्रिंट मीडिया का ख्याल प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया रखता है, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) समाचार चैनलों की निगरानी करता है, विज्ञापन के लिए एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया है जबकि फिल्मों को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) प्रमाण पत्र देता है। इन से इतर वर्तमान में डिजिटल सामग्री को नियंत्रित करनेवाला कोई कानून या स्वायत्त निकाय भारत में नहीं है।

    ऑनलाइन मीडिया को रेगुलेट करने को लेकर भारत सरकार ने एक बड़ा निर्णय लिया है। देशभर में चलनेवाले ऑनलाइन न्यूज पोर्टल, ऑनलाइन कंटेंट प्रोग्राम और ऑनलाइन धारावाहिक और फिल्में अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत आयेंगे। बुधवार, ११ नवम्बर २०२० को भारत सरकार ने ऑनलाइन न्यूज पोर्टलों, ऑनलाइन कंटेंट प्रोवाइडर्स को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत लाने की अधिसूचना जारी की। इस का मतलब हुआ कि अब अमेजन और नेटफ्लिक्स जैसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को सूचना और प्रसारण मंत्रालय रेगुलेट करेगा।

    राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा हस्ताक्षरित इस अधिसूचना में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद ७७ के खंड तीन में निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए भारत सरकार ने (कार्य आबंटन) नियमावली, १९६१ को संशोधित करते हुए यह फैसला किया है। अधिसूचना के साथ ही यह तत्काल प्रभाव से लागू हो गया। इसके साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ऑनलाइन मंचों पर उपलब्ध फिल्म, दृश्य-श्रव्य और समाचार व समसामयिक विषयों से संबंधित सामग्रियों की नीतियों के विनियमन का अधिकार मिल गया है। अधिसूचना के मुताबिक, इन नियमों को भारत सरकार (कार्य आवण्टन) ३५७वाँ संशोधन नियमावली, २०२० कहा जाएगा। ये एक ही बार में लागू होंगे।'

    केन्द्रीय मंत्रिमंडल सचिवालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि भारत सरकार ने ऑनलाइन मंचों पर उपलब्ध समाचार, करंट अफेयर्स सामग्री को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में लाने का फैसला लिया है। यह निश्चय ही सराहनीय कदम है।

शनिवार, 13 मार्च 2021

मंगल-पाठ Mangal-Paath


-शीतांशु कुमार सहाय

इस जगत में, उस जगत में, सर्वत्र मंगल छा जाय।

हो अमंगल नहीं किसी का, ज्ञान-मंगल मिल जाय।।

जिस गुरुदेव ने धर्म दिया है, उन का मंगल होय रे।

ज्ञान-मार्ग पर चलना सिखाया, गुरु का मंगल होय रे।

जिस जननी ने जन्म दिया है, उस का मंगल होय रे।

पाला-पोसा और बढ़ाया, उस पिता का मंगल होय रे।

इस जगत में, उस जगत में, सर्वत्र मंगल छा जाय।

हो अमंगल नहीं किसी का, ज्ञान-मंगल मिल जाय।।

तेरा मंगल, इन का मंगल, उन का मंगल होय रे।

सब का मंगल, सब का मंगल, सब का मंगल होय रे।

इस जगत के सब दुखियारे प्राणी का मंगल होय रे।

जल में, थल में और गगन में सब का मंगल होय रे।

इस जगत में, उस जगत में, सर्वत्र मंगल छा जाय।

हो अमंगल नहीं किसी का, ज्ञान-मंगल मिल जाय।।

अन्तर्मन की गाँठें खुले, तन-मन निर्मल होय रे।

राग-द्वेष-मद-मोह मिट जाय, भ्रान्ति न रह पाय रे।

धर्म-कर्म का राज बढ़े और पाप पराजित होय रे।

इस वसुधा के सब कोने में, सदाचार लहराये रे।

इस जगत में, उस जगत में, सर्वत्र मंगल छा जाय।

हो अमंगल नहीं किसी का, ज्ञान-मंगल मिल जाय।।

तेरा मंगल, मेरा मंगल, सब का मंगल होय रे।

न अमंगल हो किसी का, सब का मंगल होय रे।

घर में मंगल, बाहर मंगल, चहुँओर मंगल होय रे।

शुद्ध धर्म जन-जन में जागे, घर-घर शान्ति समाय रे।

इस जगत में, उस जगत में, सर्वत्र मंगल छा जाय।

हो अमंगल नहीं किसी का, ज्ञान-मंगल मिल जाय।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

गुर्वष्टकम् Gurwashtakam इन श्लोकों में छिपी है गुरु की महिमा


प्रस्तोता : गुरुपादकिंकर शीतांशु कुमार सहाय


शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं यशश्चारु चित्रं धनं मेरुतुल्यम्।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।१।।


शरीर रूपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तारित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किन्तु गुरु के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो, तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ?


कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्व्वं गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम्।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।२।।


सुन्दरी पत्नी, धन, पुत्र, पौत्र, घर और स्वजन आदि प्रारब्ध से सर्वसुलभ हों, किन्तु गुरु के श्रीचरणों में मन की आसक्ति न हो, तो इस प्रारब्ध-सुख से क्या लाभ?


षडङ्गादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।३।।


वेद और षट्वेदांगादि शास्त्र जिसे कण्ठस्थ हों, जिस में सुन्दर काव्य-निर्माण की प्रतिभा हो, किन्तु उस का मन यदि गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न हो, तो इन सद्गुणों से क्या लाभ?


विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्यः।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।४।।


जिसे विदेश में आदर मिलता हो, अपने देश में जिस का नित्य स्वागत किया जाता हो और जो सदाचार-पालन में भी अनन्य स्थान रखता हो, यदि उस का भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति अनासक्त हो, तो इन सद्गुणों से क्या लाभ?


क्षमामण्डले भूपभूपालवृन्दैः सदा सेवितं यस्य पादारविन्दम्।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।५।।


जिन महानुभाव के चरणकमल पृथ्वीमण्डल के राजा-महाराजाओं से नित्य पूजित रहा करते हों, किन्तु उन का मन यदि गुरु के श्रीचरणों में आसक्त न हो, तो इस सद्भाग्य से क्या लाभ?


यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापाद् जगद्वस्तु सर्व्वं करे सत्प्रसादात्।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।६।।


दानवृत्ति के प्रताप से जिन की कीर्ति जगत में व्याप्त हो, अति उदार गुरु की सहज कृपादृष्टि से जिन्हें संसार के सारे सुख-ऐश्वर्य हस्तगत हों, किन्तु उन का मन यदि गुरु के श्रीचरणों में आसक्तिभाव न रखता हो, तो इन सारे ऐश्वर्यों से क्या लाभ?


न भोगे न योगे न वा वाजिराज्ये न कान्तासुखे नैव वित्तेषु चित्तम्।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं तः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।७।।


जिस का मन भोग, योग, अश्व, राज्य, धनोपभोग और स्त्री-सुख से कभी विचलित न हुआ हो, फिर भी गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाया हो, तो इस मन की अटलता से क्या लाभ?


अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्य्ये न देहे मनो वर्तते मेऽत्यनर्थैः।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।८।।


जिस का मन वन या अपने विशाल भवन में, अपने कार्य या शरीर में तथा अमूल्य भण्डार में आसक्त न हो, पर गुरु के श्रीचरणों में भी यदि वह मन आसक्त न हो पाये, तो उस की सारी अनासक्तियों का क्या लाभ?


अनर्घ्याणि रत्नानि मुक्तानि सम्यक् समालिङ्गिता कामिनी यामिनीषु।

गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।९।।


अमूल्य मणि-मुक्तादि रत्न उपलब्ध हों, रात्रि में समलिंगिता विलासिनी पत्नी भी प्राप्त हो, फिर भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाये, तो इन सारे ऐश्वर्य-भोगादि सुखों से क्या लाभ?


गुरोरष्टकं यः पठेत् पुण्यदेही तिर्भूपतिर्ब्रह्मचारी च गेही।

लभेद्वाञ्छितार्थं पदं ब्रह्मसंज्ञं गुरोरुक्तवाक्ये मनो यस्य लग्नम्।।१०।।


गुरु के वचन में मन से प्रीति रखनेवाले जो यती, राजा, ब्रह्मचारी और गृहस्थ इस गुरु अष्टक का पाठ करते हैं, वे पुण्यशाली शरीरधारी वाञ्छित फल व ब्रह्मपद को प्राप्त कर लेते हैं।

ज़रूर जानिये राहुकाल का रहस्य Know About Rahukaal & Timing

-शीतांशु कुमार सहाय   
    सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के समय में से आठवें भाग का स्वामी राहु है, जिसे 'राहुकाल' कहते हैं। यह प्रत्येक दिन ९० मिनट का होता है। भारतीय शास्त्रों में राहुकाल को अशुभ माना गया है। इस काल में आरम्भ किये गये कार्यों में सफलता के लिए अत्यधिक प्रयास करने पड़ते हैं, अकारण समस्याएँ आती हैं या कार्य पूरे नहीं हो पाते। राहुकाल में किये गये कार्य विपरीत व अनिष्ट फल प्रदान करते हैं। इस काल में कोई शुभ कार्य आरम्भ नहीं करना चाहिये। राहु को छाया ग्रह माना गया है। यह ग्रह अशुभ फल प्रदान करता है। इसलिए राहुकाल भी अशुभ फल देता है।  
    राहुकाल का विशेष प्रभाव रविवार, मंगलवार और शनिवार को होता है। अन्य दिनों में राहुकाल का प्रभाव कम होता है।
    राहुकाल का समय किसी स्थान के सूर्योदय व वार पर निर्भर करता हैं। सरलता के लिए सूर्योदय को यदि ६ बजे का माना जाय तो प्रत्येक वार के लिए राहुकाल इस तरह होगा-
रविवार : 
सायं ४:३० से ६:०० बजे तक।
सोमवार : 
प्रात:काल ७:३० से ९:०० बजे तक।
मंगलवार : 
अपराह्न ३:०० से ४:३० बजे तक।
बुधवार : 
दोपहर १२:०० से १:३० बजे तक।
बृहस्पतिवार : 
दोपहर १:३० से ३:०० बजे तक।
शुक्रवार : 
प्रात:१०:३० से दोपहर १२:०० तक।
शनिवार : 
प्रात: ९:०० से १०:३० बजे तक।

शनिवार, 6 मार्च 2021

इस विश्वविख्यात शिव मन्दिर के शीर्ष पर त्रिशूल नहीं होता There is No Trident on the Top of This World Famous Shiva Temple



वैद्यनाथधाम
-शीतांशु कुमार सहाय

    आम तौर पर शिवमन्दिरों के शीर्ष पर त्रिशूूल लगाये जाते हैं। पर, संसार में एकमात्र शिवमंदिर भारत के झारखण्ड राज्य के देवघर नगर में है। यह शिवमन्दिर विश्वविख्यात है। यहाँ वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। इस वैद्यनाथ मन्दिर के शीर्ष पर त्रिशूल न होकर पंचशूल है।  

    भारत के १२ ज्योतिर्लिंगों में झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शामिल है। विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं।

पंचशूल की पूजा
    कहा जाता है कि रावण पंचशूल से ही अपने राज्य लंका की सुरक्षा करता था। चूँकि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने के लिए कैलाश से रावण ही लेकर आया था पर विणाता को कुछ और ही मंजूर था। ज्योतिर्लिंग ले जाने की शर्त्त यह थी कि बीच में इसे कहीं नहीं रखना है मगर दैव योग से रावण को लघुशंका का तीव्र वेग असहनशील हो गया और वह ज्योतिर्लिंग को भगवान के बदले हुए चरवाहे के रूप को ज्योतिर्लिंग देकर लघुशंका करने लगा। वह चरवाहा ज्योतिर्लिंग को जमीन पर रख दिया। इस तरह चरवाहे के नाम वैद्यनाथ पर वैद्यनाथधाम का निर्माण हुआ।

    यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से २ दिनों पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जैसा कि नीचे के चित्रों में आप को दिखाई पड़ेगा--

पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़

    वैद्यनाथधाम परिसर में स्थित अन्य मंदिरों के शीर्ष पर स्थित पंचशूलों को महाशिवरात्रि के कुछ दिनों पूर्व ही उतार लिया जाता है। सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उन की पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।

    महाशिवरात्रि के दौरान बहुत-से श्रद्धालु सुल्तानगंज से काँवर में गंगाजल भरकर १०५ किलोमीटर पैदल चलकर और ‘बोल बम’ का जयघोष करते हुए वैद्यनाथधाम पहुँचते हैं।