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शनिवार, 6 मार्च 2021

इस विश्वविख्यात शिव मन्दिर के शीर्ष पर त्रिशूल नहीं होता There is No Trident on the Top of This World Famous Shiva Temple



वैद्यनाथधाम
-शीतांशु कुमार सहाय

    आम तौर पर शिवमन्दिरों के शीर्ष पर त्रिशूूल लगाये जाते हैं। पर, संसार में एकमात्र शिवमंदिर भारत के झारखण्ड राज्य के देवघर नगर में है। यह शिवमन्दिर विश्वविख्यात है। यहाँ वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। इस वैद्यनाथ मन्दिर के शीर्ष पर त्रिशूल न होकर पंचशूल है।  

    भारत के १२ ज्योतिर्लिंगों में झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शामिल है। विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं।

पंचशूल की पूजा
    कहा जाता है कि रावण पंचशूल से ही अपने राज्य लंका की सुरक्षा करता था। चूँकि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने के लिए कैलाश से रावण ही लेकर आया था पर विणाता को कुछ और ही मंजूर था। ज्योतिर्लिंग ले जाने की शर्त्त यह थी कि बीच में इसे कहीं नहीं रखना है मगर दैव योग से रावण को लघुशंका का तीव्र वेग असहनशील हो गया और वह ज्योतिर्लिंग को भगवान के बदले हुए चरवाहे के रूप को ज्योतिर्लिंग देकर लघुशंका करने लगा। वह चरवाहा ज्योतिर्लिंग को जमीन पर रख दिया। इस तरह चरवाहे के नाम वैद्यनाथ पर वैद्यनाथधाम का निर्माण हुआ।

    यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से २ दिनों पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जैसा कि नीचे के चित्रों में आप को दिखाई पड़ेगा--

पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़

    वैद्यनाथधाम परिसर में स्थित अन्य मंदिरों के शीर्ष पर स्थित पंचशूलों को महाशिवरात्रि के कुछ दिनों पूर्व ही उतार लिया जाता है। सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उन की पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।

    महाशिवरात्रि के दौरान बहुत-से श्रद्धालु सुल्तानगंज से काँवर में गंगाजल भरकर १०५ किलोमीटर पैदल चलकर और ‘बोल बम’ का जयघोष करते हुए वैद्यनाथधाम पहुँचते हैं।

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