आज 'फादर्स डे' के अवसर पर आज मेरे पुत्र अभ्युदय ने फाइल-फोल्डर, कलम और सेलो टेप का अमूल्य उपहार दिया तो मुझे कुछ लिखने को विवश होना पड़ा।
भारत में पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित ‘फादर्स डे’ नहीं मनाया जाता। इस का प्रधान कारण यह है कि भारत में समाज और परिवार की संकल्पना में पिता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। माँ और पिता के अभाव में परिवार की संकल्पना भारत में नहीं हो सकती। जिस बच्चे की माँ और पिता दोनों नहीं होते, उसे भी परिवार में कोई बड़े-बुजुर्ग लोग ही पालते हैं और माँ-पिता की तरह प्यार देने की कोशिश करते हैं; ताकि उस बच्चे को माँ-बाप का अभाव न महसूस हो।
भारत की संस्कृति ही ऐसी है कि यहाँ प्रातः उठते ही माँ और पिता सहित घर के सभी बड़े लोग को चरण स्पर्श कर प्रणाम करने की परम्परा है। यहाँ माँ या पिता के लिए कोई एक दिन निर्धारित नहीं कियसा गया है। प्रतिदिन उन के अभिवादन करने का विधान है। यही कारण है कि भारत में ‘फादर्स डे’नहीं मनाया जाता।पश्चिमी सभ्यता में माँ और पिता के साथ बच्चे रहेंगे ही यह अनिवार्य नहीं। प्रायः माँ अलग, पिता अलग और बच्चे किसी छात्रावास में! कई जगह माँ और बाप दोनों नौकरी-पेशा वाले होने की वजह से एक घर में रहने के बाद भी माँ, पिता और बच्चे एक साथ खुशहाल समय नहीं व्यतीत कर पाते। ऐसे में उन्होंने ‘फादर्स डे’यानी पितृ दिवस की संकल्पना बनायी। पर, भारत में इस संकल्पना की कोई आवश्यकता ही नहीं है। भारत में कोई एक दिन पिता को सम्मान देने का नियम नहीं है; बल्कि प्रतिदिन उन्हें अभिवादन का नियम है।
वैसे भारत के युवाओं को भारत की सरकार ने पाठ्यक्रमों के माध्यम से देश की समृद्ध पुरानी परम्परा के बारे में पढ़ाया ही नहीं। वैसे भारत में जून के तीसरे रविवार को 'फादर्स डे' बनाया जाता है। कई देशों में अलग-अलग तिथियों पर 'फादर्स डे' मनाया जाता है।
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