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शनिवार, 25 दिसंबर 2021

२५ दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस क्यों Why Tulsi Poojan Diwas on 25 December


-शीतांशु कुमार सहाय 

       हिन्दू धर्म में तुलसी पूजन की परम्परा प्राचीन काल से है। प्रतिदिन तुलसी की पूजा करना, उन की जड़ को शुद्ध जल अर्पित करना हमारी शुद्ध, स्वस्थ और आनन्दपूर्ण संस्कार का अभिन्न अंग है। हम गुरु, माँ, पिता, भाई या बहन के लिए विशेष डे नहीं मनाते; क्योंकि प्रतिदिन इन के अभिवादन करने का परामर्श हमारा ग्रन्थ देता है और यह हमारी दिनचर्या में शामिल है। वैसे आषाढ़ पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' कहते हैं और उस दिन गुरु की विशेष आराधना की जाती है। पर, सच को थोड़ा और जानिये कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु वेद व्यास जी का अवतरण दिवस है। इसलिए उन की जयन्ती को 'गुरु पूर्णिमा' कहते हैं। 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भगवान ने वेद व्यास जी को अपना ही प्रतिरूप बताया है। इस तरह "कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्" के आधार पर भी गुरु पूर्णिमा की सार्थकता समझ में आती है।  

     आखिर जिन का पूजन या अभिवादन दिनचर्या में सम्मिलित हो, उन के लिए वर्ष में एक दिन का निर्धारण क्यों?     

     वैसे पिछले कुछ वर्षों से भारत में २५ दिसम्बर को 'तुलसी पूजन दिवस' मनाने की प्रथा शुरू हुई। इस प्रथा की शुरुआत सन् २०१४ ईस्वी से हुई और इस दौरान देश के कई केंद्रीय मंत्रियों और सन्तों ने तुलसी पूजा के महत्त्व का बखान सोशल मीडिया द्वारा किया था। तब से २५ दिसम्बर को प्रतिवर्ष 'तुलसी पूजन दिवस' मनाया जाने लगा। यदि तुलसी की महत्ता बताने के लिए एक अदद दिवस की आवश्यकता थी तो पहले से ही विक्रम सम्वत् के पञ्चाञ्ग में 'तुलसी विवाह'  (कार्तिक शुक्ल एकादशी) के रूप में विद्यमान है। तुलसी विवाह को ही और धूमधाम से, भव्य आयोजन कर, सोशल मीडिया पर प्रचार कर मनाया जाता तो अधिक अच्छा होता। 

     जब हमारे सारे पर्व-त्योहार विक्रम सम्वत् के अनुसार होते हैं तो फिर 'तुलसी पूजन' अंग्रेजी सम्वत् के अनुसार २५ दिसम्बर को क्यों? वैसे तुलसी पूजा हमारी दिनचर्या में शामिल है और इस के लिए वर्ष में केवल एक दिन का निर्धारण उचित नहीं? अगर इस का निर्धारण किया भी गया तो विक्रम सम्वत् के अनुसार ही दिन निर्धारित किया जाना चाहिये था। 

     कहीं ऐसा तो नहीं कि हम गणेश चतुर्थी के बदले गणेश दिवस, रामनवमी को छोड़कर राम दिवस, जन्माष्टमी को छोड़कर कृष्ण दिवस, महाशिवरात्रि के बदले शिव दिवस, नवरात्र की जगह दुर्गा दिवस, छठ को छोड़कर सूर्य दिवस की ओर बढ़ रहे हैं? 

सोमवार, 13 दिसंबर 2021

काशी विश्वनाथ धाम के नये स्वरूप का अनावरण


काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  अनावरण किया। वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम के नये परिसर का अनावरण्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुभ मुहूर्त रेवती नक्षत्र (दोपहर १:३७ बजे से १:५७ बजे तक २० मिनट का शुभ मुहूर्त था) में किया। मोदी ने मंदिर में मंत्रोच्चार के साथ पूजा की, मंदिर निर्माण में शामिल मजदूरों पर पुष्प वर्षा कर सम्मानित किया और उन के साथ सीढ़ी पर बैठ फोटो भी खिंचवाई। उन्होंनेे धर्माचार्यों और विशिष्टजनों से संवाद किया।

काशी विश्वनाथ धाम पूरी तरह से नया हो चुका है और ५ लाख स्क्वायर फीट में यह फैला हुआ है। ९०० करोड़ रुपये की लागत से बनी इस परियोजना में कई आकर्षण हैं। साथ ही कुछ प्रतीक भी हैं, जो बड़ा संदेश देते हैं। इन में हैं- शंकराचार्य, भारत माता और अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमाएँ। भारत माता की प्रतिमा के जरिए भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रवाद को उकेरना का प्रयास किया है। इसी तरह शंकराचार्य के माध्यम से हिंदुत्व का संदेश देने की कोशिश है। ऐसा पहली बार है, जब ऐसे किसी स्थान पर अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा लगायी जा रही है। 


१८वीं सदी की रानी रहीं अहिल्याबाई होलकर को बड़ी संख्या में मंदिरों के निर्माण के लिए इतिहास में जाना जाता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐसा पहली बार है, जब किसी धार्मिक स्थान पर उन की प्रतिमा लगी है और उन के जरिये गलत इतिहास को सुधारने का संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है। मराठा रानी अहिल्याबाई होलकर की राजधानी इंदौर के दक्षिण में स्थित महेश्वर में थी, जो मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे स्थित था। कुशल योद्धा और प्रशासक होने के साथ ही अहिल्याबाई होलकर मंदिरों के निर्माण और उन के पुनरुद्धार के लिए चर्चित रही हैं। 

अहिल्याबाई होलकर का काशी विश्वनाथ धाम से भी निकट का सम्बन्ध रहा है। मंदिर का जो मौजूदा स्वरूप है, उस का निर्माण १७८० ईस्वी में अहिल्याबाई होलकर ने ही कराया था। इस के बाद १९वीं सदी में महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बाबा विश्वनाथ को चढ़ाया था। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के वक्त बड़ी संख्या में महारानी अहिल्याबाई होलकर के पोस्टर देखने को मिले। मोदी के नेतृत्व में केदारनाथ में शंकराचार्य की प्रतिमा, राम मंदिर निर्माण और अब काशी कॉरिडोर का निर्माण हुआ। 

'दिव्य काशी, भव्य काशी' अभियान


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी २०१४ से ही काशी के सांसद हैं और वह यहाँ एक-एक प्रोजेक्ट की निजी तौर पर निगरानी कर रहे हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण उन का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है और उस की हर अपडेट वह लगातार लेते रहे हैं।

विश्‍वनाथधाम के गर्भगृह में पूजा-अर्चना के बाद पीएम मोदी सीधे उन मजदूरों के बीच पहुँचे जिन्‍होंने दिन-रात मेेेहनत कर काशी विश्‍वनाथ काॅरिडोर तैयार किया। पीएम ने मजदूरों पर फूल बरसाए और उन के साथ बैठकर फोटो खिंचवाई। मोदी ने वहाँ अपने लिए रखी कुर्सी हटवा दी और मजदूरों के साथ सीढ़ी पर बैठकर ही फोटो खिंचवाई। कुछ देर तक पीएम ने मजदूरों से बात भी की।