प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय
माघ महीने में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान शिव के आदेश और आशीर्वाद से नदी के रूप में नर्मदा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। अमरकंटक पर्वत से निकलकर यह पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हुई मध्यप्रदेश और गुजरात के पार अरब सागर में मिल जाती है। गंगा की तरह नर्मदा भी देवी के रूप में पूजित हैं। यहाँ 'नर्मदा स्तुति' और 'नर्मदा मन्त्र' प्रस्तुत है। इन का पाठ और जप कल्याणकारी है।
नर्मदा स्तुति
नम: पुण्यजलेआद्येनम: सागरगामिनि।
नमोऽस्तुतेऋषिगणै: शंकरदेहनि:सृते।
नमोऽस्तुते धर्मभृतेवरानने नमोऽस्तुते देवगणैकवन्दिते।
नमोऽस्तुते सर्वपवित्रपावने नमोऽस्तुते सर्वजगत्सुपूजिते।।१।।
पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामेवा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।
त्रिभि: सारस्वतं पुण्यं सप्ताहेनतुयामुनम्।
सद्य:पुनातिगाङ्गेयं दर्शनादेवनर्मदाम्। कनकाभांकच्छपस्थांत्रिनेत्रांबहुभूषणां।
पद्माभय: सुधाकुम्भ: वराद्यान्विभ्रतींकरै:।।२।।
नर्मदा मंत्र
ऐं श्रीं मेकल-कन्यायै सोमोद्भवायै देवापगायै नम:।*
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