प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय
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"हम वो लोग हैं, जो जीव में शिव देखते हैं, हम वो लोग हैं, जो नर में नारायण देखते हैं, हम वो लोग हैं, जो नारी को नारायणी कहते हैं, हम वो लोग हैं, जो पौधे में परमात्मा देखते हैं, हम वो लोग हैं, जो नदी को मां मानते हैं, हम वो लोग हैं, जो कंकड़-कंकड़ में शंकर देखते हैं।"
नरेन्द्र मोदी, भारत के प्रधानमंत्री,
१५ अगस्त २०२२ को लालकिले की प्राचीर से
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भारत की राजधानी नयी दिल्ली में खुशनुमा माहौल में लाहौरी गेट से होते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुबह-सुबह लाल किले की प्राचीर पर पहुँचे। रास्ते में दो हाथियों ने उन की अगुवानी की। पूरा लाल किले तिरंगे के रंगों से सराबोर नजर आ रहा था। ठीक ७.३० बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ध्वजारोहण किया। इस के बाद राष्ट्रगान की धुन ने हर भारतीयों को गौरव से भर दिया।
भारत अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अवसर पर लालकिले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित किया। यहाँ पढ़िये उन के भाषण का मुख्यांश :-
लालकिले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज देशवासियों को संकल्प दिलाया कि अब हमें रूकना नहीं है, अगले २५ साल में भारत को विकसित राष्ट्र बनाना ही होगा। हमें छोटा नहीं, अब बहुत बड़ा लक्ष्य लेकर चलना होगा। अमृतकाल का पहला प्रभात आकांक्षी समाज की आकांक्षा को पूरा करने का सुनहरा अवसर है। हमारे देश के भीतर कितना बड़ा सामर्थ्य है, एक तिरंगे झंडे ने दिखा दिया है। उन्होंने शारीरिक स्वास्थ्य व मानसिक शान्ति के लिए योग को और सामाजिक सौहार्द व सह-अस्तित्व के लिए सन्युक्त परिवार की परम्परा को अपनाने पर बल दिया। इन दोनों को वर्तमान विश्व की आवश्यकता बताया।
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नरेन्द्र मोदी ने नया नारा दिया :
जय जवान
जय किसान
जय विज्ञान
जय अनुसन्धान
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मोदी ने एक तरफ बापू, सुभाष को याद करते हुए नेहरू को नमन किया तो सावरकर के त्याग का भी जिक्र किया। उन्होंने इतिहास में भुला दिये गये उन क्रांतिकारियों को भी याद किया जिन्हें आज़ादी का अमृत महोत्सव में नमन किया जा रहा है। आज़ादी के ७५वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने एक और बड़ी बात कही कि किसी-न-किसी कारण से हमारे अंदर यह विकृति आयी है। हमारे बोलचाल में, हमारे व्यवहार में, हमारे कुछ शब्दों में.. हम नारी का अपमान करते हैं... क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं.. मोदी यह बोलते हुए भावुक हो गये। वह बोलते-बोलते कुछ देर के लिए रूक भी गये।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगे कहा कि देश के सामने दो बड़ी चुनौतियाँ हैं। पहली चुनौती- भ्रष्टाचार और दूसरी चुनौती भाई-भतीजावाद और परिवारवाद है। मोदी ने आगे कहा कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है, उस से देश को लड़ना ही होगा। हमारी कोशिश है कि जिन्होंने देश को लूटा है, उन को लौटाना भी पड़े, हम इस की कोशिश कर रहे हैं।
आज का दिवस ऐतिहासिक दिवस है। एक पुण्य पड़ाव, एक नई राह, एक नए संकल्प और नए सामर्थ्य के साथ कदम बढ़ाने का यह शुभ अवसर है। आजादी की जंग में गुलामी का पूरा कालखंड संघर्ष में बीता है। भारत का कोई कोना ऐसा नहीं था, जब देशवासियों ने सैकड़ों सालों तक गुलामी के खिलाफ जंग न किया हो। जीवन न खपाया हो, आहुति न दी हो। आज हम सब देशवासियों के लिए ऐसे हर महापुरुष के लिए नमन करने का अवसर है, उनका स्मरण करते हुए।
मोदी ने कहा, हम नहीं भूल सकते भगवान बिरसा मुण्डा, सीताराम राजू, गोविन्द गुरु अनगिनत नाम हैं जिन्होंने आज़ादी के आंदोलन की आवाज़ बनकर दूर जंगलों में रहनेवाले आदिवासियों के दिलों में मातृभूमि के लिए जीने-मरने की प्रेरणा जगायी। देश का सौभाग्य रहा है कि आज़ादी के जंग के कई रूप रहे हैं। एक रूप यह भी रहा जिस में नारायण गुरु हों, स्वामी विवेकानंद हों, महर्षि अरविंदो हों, टैगोर हों ऐसे अनेक महापुरुष भारत की चेतना को जगाते रहे।
कल भारी मन से विभाजन विभीषिका दिवस मनाया। आज़ादी का अमृत महोत्सव के दौरान उन सभी महापुरुषों को याद करने का प्रयास किया गया जिन को किसी-न-किसी कारण से इतिहास में जगह न मिली, या उन्हें भुला दिया गया। देश ने खोज-खोजकर हर कोने में ऐसे लोगों को याद किया, नमन किया! अमृत महोत्सव के दौरान इन सभी महापुरुषों को याद किया। कल १४ अगस्त को भारत ने "विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" भी बड़े भारी मन से हृदय के गहरे घावों को याद कर के मनाया।
जब आज़ादी की लड़ाई अंतिम चरण में थी तो देश को डराने के लिए तमाम कोशिशें की गयीं। अंग्रेज चले जायेंगे तो देश बिखर जायेगा.... लेकिन उन्हें पता नहीं था कि ये हिंदुस्तान की मिट्टी है। इस मिट्टी में वो सामर्थ्य है जो शासकों से भी परे सामर्थ्य का एक अंतर प्रवाह लेकर जीता रहा है। उसी का परिणाम है। कभी अन्न का संकट झेला, युद्ध का शिकार हो गये, आतंकवाद ने चुनौतियाँ पैदा कीं। निर्दोषों को मारा गया। छद्म युद्ध चलते रहे। प्राकृतिक आपदाएँ आती रहीं। न जाने कितने पड़ाव आये लेकिन इन सब के बीच भारत आगे बढ़ता रहा।
जिन के जेहन में लोकतंत्र होता है, वे जब संकल्प लेकर चल पड़ते हैं वो सामर्थ्य दुनिया की बड़ी सल्तनतों के लिए संकट का काल लेकर आती है। ये लोकतंत्र की जननी हमारे भारत ने सिद्ध कर दिया कि हमारे पास अनमोल सामर्थ्य है। ७५ साल की यात्रा में उतार चढ़ाव आये। २०१४ में देशवासियों ने मुझे दायित्व दिया। आज़ादी के बाद जन्मा मैं पहला व्यक्ति था जिसे लाल किले से देशवासियों का गौरव गान करने का अवसर मिला। लेकिन मेरे दिल में जो भी आप लोगों से सीखा हूँ, जितना आप लोगों को जान पाया हूँ, सुख-दुःख को समझ पाया हूँ- उस को लेकर मैंने अपना पूरा कालखण्ड देश के उन लोगों को सशक्त बनाने में खपाया- दलित, शोषित, किसान, महिला, युवा हों, हिमालय की कंदराएँ हों, समुद्र का तट हो- हर कोने में बापू का जो सपना था आखिरी इंसान को सामर्थ्यवान बनाने का, मैं ने अपने आप को उस के लिए समर्पित किया।
आकांक्षी समाज किसी भी देश की अमानत होती है। आज समाज के हर वर्ग में, हर तबके में आकांक्षाएँ उफान पर हैं। देश का हर नागरिक चीजें बदलना चाहता है, इंतज़ार करने को तैयार नहीं है, अपनी आँखों के सामने चाहता है। ७५ साल में बचे सपने पूरा करने के लिए उतावला है। ऐसे में सरकारों को भी समय के साथ दौड़ना पड़ता है। केंद्र हो या राज्य या कोई और शासन व्यवस्था हो, हर किसी को आकांक्षाओं को पूरा करना होगा। हमारे समाज ने काफी इंतज़ार किया है लेकिन अब वह आनेवाली पीढ़ी को इंतज़ार करवाने के लिए तैयार नहीं है।
भारत में सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण हुआ है। ये चेतना का जागरण, यह हमारी सब से बड़ी अमानत है। १० अगस्त को लोगों को पता भी नहीं होगा शायद लेकिन पिछले तीन दिनों के भीतर जिस प्रकार से तिरंगे झण्डे को लेकर देश चल पड़ा है। बड़े-बड़े सोशल साइंस के एक्सपर्ट भी इस की कल्पना नहीं कर सकते कि देश के भीतर कितना बड़ा सामर्थ्य है, देश के झण्डे ने दिखा दिया है। जब देश का हर कोना जनता कर्फ्यू के लिए निकल पड़ता है, थाली-ताली बजाकर कोरोना योद्धाओं के साथ खड़ा होता है, दीया जलाकर योद्धाओं को शुभकामनाएँ देता है तो उस चेतना की अनुभूति होती है। दुनिया कोरोना वैक्सीन की उलझन में थी और देश २०० करोड़ डोज लगा चुका था।
आज विश्व पर्यावरण की समस्या से जो जूझ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्याओं के समाधान का रास्ता हमारे पास है। इस के लिए हमारे पास वो विरासत है, जो हमारे पूर्वजों ने हमें दी है।
आज दुनिया का भारत को लेकर नज़रिया बदल चुका है। दुनिया भारत की धरती पर समाधान देखने लगी है। ७५ साल की अनुभव यात्रा का यह परिणाम है। विश्व भी उम्मीदें लेकर जी रहा है, उम्मीदें पूरी करने का सामर्थ्य कहाँ पड़ा है। त्रिशक्ति के रूप में मैं इसे देखता हूँ :-
१. एसपिरेशन
२. पुनर्जागरण और
३. विश्व की उम्मीदें
आज दुनिया में विश्वास जगने में देशवासियों की भूमिका है। १३० करोड़ लोगों ने दशकों के अनुभव करने के बाद स्थिर सरकार का महत्त्व, राजनीतिक स्थिरता और इस के कारण दुनिया में असर, नीतियों को लेकर भरोसा जताया है। हम सब का साथ, सब का विकास के मंत्र लेकर चले थे, लोगों ने सब का विश्वास, सब का प्रयास बढ़ा दिया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से भारतीयों के लिए पञ्चप्रण की बात कही :
अगर हम अपनी ही पीठ थपथपाते रहेंगे तो हमारे सपने कहीं दूर चले जाएंगे। इसलिए हम ने कितना भी संघर्ष किया हो उस के बावजूद भी जब आज हम अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं तो अगरे २५ साल हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। आज मैं लाल किले से १३० करोड़ लोगों को आह्वान करता हूँ। साथियों! मुझे लगता है कि आनेवाले २५ साल के लिए भी हमें उन पाँच प्रण पर अपने संकल्पों को केंद्रित करना होगा। हमें पंच प्रण को लेकर २०४७ जब आजादी के १०० साल होंगे, आज़ादी के दीवानों के सारे सपने पूरे करने का जिम्मा उठाकर चलना होगा।
पहला प्रण अब देश बड़े संकल्प लेकर चलेगा और वो बड़ा संकल्प है विकसित भारत। अब उस से कम नहीं होना चाहिए।
दूसरा प्रण किसी भी कोने में, हमारे मन के भीतर गुलामी का एक भी अंश अगर है तो उसे किसी भी हालत में बचने नहीं देना है। सैकड़ों साल की गुलामी ने हमारे मनोभाव को बाँधकर रखा है, हमें गुलामी की छोटी-सी-छोटी चीज भी नज़र आती है, हमें उस से मुक्ति पानी होगी।
तीसरा प्रण हमें हमारी विरासत पर गर्व होना चाहिए; क्योंकि यही विरासत है जिस ने कभी भारत को स्वर्णिम काल दिया था।
चौथा प्रण एकता और एकजुटता, १३० करोड़ देशवासियों में एकता, न कोई अपना न कोई पराया। एकता की ताकत 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के सपनों के लिए है।
पाँचवाँ प्रण नागरिकों का कर्तव्य। इस में पीएम और सीएम भी आते हैं। ये हमारे आनेवाले २५ साल के सपनों को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी प्रणशक्ति है।
जब सपने बड़े होते हैं, संकल्प बड़ा होता है, पुरुषार्थ भी बहुत बड़ा होता है, शक्ति भी बहुत बड़ी मात्रा में होती है।
२५ साल में विकसित भारत बनाना है। आज जब अमृत काल की पहली प्रभात है तो संकल्प लेना है कि हमें इन २५ साल में विकसित भारत बनाकर रहना है। अपनी आँखों के सामने.... देश के नौजवानों! जब देश आज़ादी के १०० साल मनायेगा तो आप ५०-५५ साल के होंगे। आप संकल्प लेकर मेरे साथ चल पड़िये, तिरंगे की शपथ लेकर चल पड़िये। बड़ा संकल्प, मेरा देश विकसित होगा। हम मानवकेंद्रित व्यवस्था को विकसित करेंगे।
हमारा प्रयास है कि देश के युवाओं को असीम अंतरिक्ष से लेकर समंदर की गहराई तक रिसर्च के लिए भरपूर मदद मिले। इसलिए हम स्पेस मिशन का, डीप ओसन मिशन का विस्तार कर रहे हैं। स्पेस और समंदर की गहराई में ही हमारे भविष्य के लिए ज़रूरी समाधान हैं।
आत्मनिर्भर भारत, ये हर नागरिक का, हर सरकार का, समाज की हर एक इकाई का दायित्व बन जाता है। आत्मनिर्भर भारत, ये सरकारी एजेंडा या सरकारी कार्यक्रम नहीं है। ये समाज का जनआंदोलन है, जिसे हमें आगे बढ़ाना है।
आज़ादी के ७५ साल के बाद जिस आवाज़ को सुनने के लिए हमारे कान तरस गये थे, आज सुनायी दी है। ७५ साल के बाद लालकिले से तिरंगे को सलामी देने का काम मेड इन इंडिया तोप ने किया है। कौन हिंदुस्तानी होगा, जिसे ये आवाज़ प्रेरणा या ताकत न देती हो। आत्मनिर्भर भारत की बात को सेना ने जिस जिम्मेदारी के साथ कंधे पर उठाया है, उसे जितना सैल्यूट करूँ उतना कम है। पीएम ने कहा- सैल्यूट, सैल्यूट मेरी सेना के अधिकारियों को सैल्यूट!
पुलिस से खेलकूद का मैदान या युद्ध की भूमि देखें। भारत की नारी शक्ति एक नए जोश के साथ आगे आ रही है। मैं आने वाले २५ सालों में नारी शक्ति हमें आगे बढ़ने में मौका देगा। जितनी सुविधाएँ हमारी बेटियों के लिए केंद्रिंत करेंगे। वो बहुत कुछ लौटाकर देंगी। इस अमृतकाल में जो सपने पूरे करने में जो मेहनत लगनेवाली है। अगर नारी शक्ति जुड़ जायेगी, हमारी मेहनत कम हो जायेगी, हमारे सपने और तेजस्वी, ओजस्वी होंगे। हम इन जिम्मेदारियों को लेकर आगे बढ़ें।
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