-शीतांशु कुमार सहाय
लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पूछा, “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है?”
पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये। फिर वे बोले, “बेटे एक मनुष्य की कीमत आँकना बहुत मुश्किल है, वह तो अनमोल है।”
"क्या सभी उतनी ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं?" बालक ने फिर प्रश्न किया।
पिताजी ने कहा, "हाँ बेटा।"
बालक कुछ समझा नहीं। उस ने फिर प्रश्न किया, "तो फिर इस दुनिया में कोई ग़रीब तो कोई अमीर क्यों है? किसी की कम इज्ज़त तो किसी की ज़्यादा क्यों होती है?"
प्रश्न सुनकर पिताजी कुछ देर तक शान्त रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा।
रॉड लाते ही पिताजी ने पूछा, "इस की क्या कीमत होगी?"
बालक ने २०० रुपये कीमत बतायी।
पिताजी ने समझाते हुए कहा, "अगर मैं इस के बहुत-से छोटे-छोटे कील बना दूँ तो इस की क्या कीमत हो जायेगी?"
बालक कुछ देर सोचकर बोला, "तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रुपये में।
पिताजी ने पुनः प्रश्नात्मक अन्दाज़ में बताया, "अगर मैं इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?"
बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला, ”तब तो इस की कीमत बहुत अधिक हो जायेगी।”
फिर पिताजी उसे मर्म समझाया, “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इस में नही है कि अभी वह क्या है; बल्कि इस में है कि वह अपने आप को क्या बना सकता है।” बालक अपने पिता की बात समझ चुका था।
...तो अब आप भी समझिये.....
अक्सर हम अपनी सही कीमत आँकने में ग़लती कर देते हैं। हम अपनी वर्तमान स्थिति को देखकर अपने आप को निरुपयोगी समझने लगते हैं लेकिन हम में हमेशा अथाह शक्ति होती है। हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओं से भरा होता है। हमारे जीवन में कई बार स्थितियाँ अच्छी नहीं होती हैं पर इस से हमारी कीमत कम नहीं होती है। मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया में हुआ है, इस का मतलब है कि हम बहुत विशेष और महत्त्वपूर्ण हैं। हमें हमेशा अपने आप में सुधार करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये।
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