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मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

पहली बार विश्व का मानचित्र भारत ने बनाया India Made The World Map For The First Time

११वीं शताब्दी में रामानुजाचार्य द्वारा महाभारत के श्लोकों के आधार पर बनाया गया विश्व का मानचित्र

-शीतांशु कुमार सहाय 

      एशिया, अफ्रीका, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अण्टार्कटिक महाद्वीपों को इंगित करनेवाले मानचित्र का आविष्कार कहाँ हुआ? महादेशों और महासागरों को अभिव्यक्त करनेवाले रेखाचित्र की शुरुआत किस ने की? इन दो प्रश्नों के उत्तर में कई देश अपना दावा ठोंकते हैं। इन दावों को तथ्य के आधार पर पड़ताल करता हूँ। 

      पृथ्वी के महाद्वीपों के मानचित्र को लेकर कई दावे अब तक सामने आये हैं। इस सन्दर्भ में कई बातें कही जाती रही हैं। कोई कहता है कि सम्पूर्ण धरती का मानचित्र रोमन सभ्यता में बना था तो कोई इसे नार्वे के वाइकिंग्स की देन मानता है। पुर्तगाली और फ्रेंच भी पृथ्वी के भौगोलिक मानचित्र को अपनी खोज बताने से नहीं चूकते। इसी तरह अमेरिका के कोलम्बस को भारत की खोज का श्रेय दिया जाता है। ये सभी दावे तथ्यहीन हैं। उपर्युक्त दावों के दावेदार समर्थन में कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पाते।

      सत्य यह है कि पृथ्वी का पहला भौगोलिक मानचित्र का निर्माण भारत में हुआ। चूँकि सृष्टि का आरम्भ भारत से हुआ, इसलिए समस्त ज्ञान का प्राकट्य भारत में हुआ और इन का विश्वव्यापी प्रसार भी। ऐसे में यह कहना कि किसी कोलम्बस ने भारत को खोजा तो यह बड़ी हास्यास्पद बात है। 

      भारतीय सभी क्षेत्रों में विश्व की अन्य सभ्यताओं से आगे थे। इस का प्रमाण हैं प्राचीन भारतीय ग्रन्थ जिन में अथाह ज्ञान भरे पड़े हैं। यहाँ मैं भौगोलिक मानचित्र की बात कर रहा हूँ। महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने विश्व को भौगोलिक मानचित्र का ज्ञान दिया। हालाँकि भारतीयों को यह ज्ञान वेदव्यास के प्रादुर्भाव से पूर्व भी था। वेदव्यास ने केवल उस भौगोलिक ज्ञान को पुस्तक के रूप में पहली बार संकलित किया। इस तथ्य को इस प्रकार समझिये कि वेदव्यास से पूर्व भी वेद और उस के ज्ञान का प्रसार था। वह ज्ञान श्रोत्र (सुनकर समझना) रूप में था। इसे सर्वसाधारण के लिए पुस्तक के रूप में संकलित किया वेदव्यास ने ही। इसलिए महर्षि कृष्णद्वैपायन का नाम वेदव्यास हो गया। वेदों के अलावा १०८ उपनिषद, १८ पुराण, महाभारत (इसी एक भाग श्रीमद्भगवद्गीता है) आदि ग्रन्थों में उन्होंने अतुलित ज्ञान का विशाल भण्डार दिया है। 

      महर्षि वेदव्यास ने ही भौगोलिक मानचित्र का ज्ञान विश्व समुदाय को दिया। उन्होंने महाभारत में पृथ्वी का पूरा मानचित्र हजारों वर्ष पूर्व ही दे दिया था।महाभारत में कहा गया है कि यह चन्द्रमण्डल से देखने पर पृथ्वी (स्थलीय भाग) दो अंशों मे शश (शशक या खरगोश) तथा अन्य दो अंशों में पिप्पल ( पीपल के पत्तों) के रुप में दिखायी देती है।

      इस आलेख के आरम्भ में जो मानचित्र दिया गया है, उसे ११वीं शताब्दी में रामानुजाचार्य द्वारा महाभारत के भीष्म पर्व के जिन श्लोकों के आधार पर बनाया गया, उन श्लोकों को आप भी जानिये...

“सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।

परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥

यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। 

एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ 

द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।”

      ऊपर के श्लोकों में कहा गया है... "हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इस के दो अंशों में पिप्पल और दो अंशों में महान शश (शशक, खरहा या खरगोश) दिखायी देता है।"

      अब यहाँ मैं श्लोकों की बात को सत्य रूप में देखता हूँ। आलेख के आरम्भ में जो मानचित्र है उसे उलटकर देखेंगे तो वह खरहा और पीपल के पत्तों की तरह दिखायी देगा...

पृथ्वी का उल्टा मानचित्र 


सोमवार, 3 अप्रैल 2023

भौतिक जीवन और भौतिकता के नियम Physical Life And The Laws Of Materiality


 -शीतांशु कुमार सहाय 

      शिव को कभी किसी समस्या से नहीं गुजरना पड़ा। हाँ, ऐसे कुछ ऐसी स्थितियाँ अवश्य उत्पन्न हुईं, जब वे विचलित दीखे,जैसे कि जब उन्होंने अपनी प्रिया पत्नी सती को खो दिया तब वे कुछ समय तक गहरे दुख में रहे। पर, कुछ समय बाद, वह फिर से ठीक हो गये। हर किसी के साथ ऐसा ही होता है। अपने किसी बहुत पात्र को खोने के बाद भी कुछ समय तक दुख में रहने के बाद आप जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। उन्हें भी उसी स्थिति का सामना करना पड़ा, इस में कोई बड़ी बात नहीं थी। कृष्ण को भी कई स्थितियों से गुजरना पड़ा और मेरे जीवन में भी ऐसा ही हुआ है। स्थितियाँ आती हैं, मगर कोई पीड़ा नहीं होती। चाहे जो भी हो जाय, उस से आप टूटते नहीं हैं, कमजोर नहीं पड़ते।

      अब प्रश्न यह है कि ऐसी स्थितियाँ कृष्ण, शिव, ईसा मसीह या मेरे सामने भी क्यों आती हैं? एक बार जब आप दुनिया में जीवन जीने का चयन कर लेते हैं, तो आप दुनिया के नियमों के वश में हो जाते हैं। मैं मानव निर्मित नियमों की बात नहीं कर रहा हूँ। पर, एक बार जब आप एक भौतिक शरीर अपनाने और दुनिया में एक भूमिका निभाने का फैसला कर लेते हैं, तो आप भी उन नियमों के अधीन हो जाते हैं, जो भौतिक अस्तित्व को नियन्तत करते हैं। 

      इसीलिए श्रीकृष्ण ने धर्म की बात की, गौतम बुद्ध ने धम्म की बात की और हम मूलभूत यौगिक सिद्धान्त की बात कर रहा हूँ; क्योंकि ये सिद्धान्त, धम्म या धर्म, जीवन के भौतिक आयाम को रास्ता दिखाते हैं या भौतिकता का मार्गदर्शन करते हैं। ईश्वर ऊपर बैठकर सारा प्रबन्ध नहीं कर रहे, सारा खेल कुछ नियमों और एक निश्चित प्रणाली के अनुसार संचालित हो रहा है।

      एक बार जब आप भौतिक आयाम में प्रवेश करने का मन बना लेते हैं, तो उस भौतिकता के नियम आप पर भी लागू होते हैं, चाहे आप कोई भी हों। आप कृष्ण हों, शिव हों या सद्‌गुरु हों – अगर आप विष पियेंगे, तो आप की मृत्यु हो जायेगी। हो सकता है कि आप के अंदर बहुत आवश्यक होने पर किसी-न-किसी तरह कुछ स्थितियों से परे जाने की क्षमता हो। हो सकता है कि आप की मौत न हो मगर फिर भी आप को कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। उस से आप बच नहीं सकते। अगर आप छत से नीचे गिरेंगे, तो कुछ न कुछ टूटेगा ही, चाहे आप जो भी हों – क्योंकि आप ने भौतिक में रहने का फैसला किया है। अगर आप ऐसी स्थिति में होना चाहते हैं, जहाँ कहीं से गिरकर भी आप को कुछ न हो, तो आप को शरीरहीन होना पड़ेगा। जब आप भौतिक शरीर छोड़ देते हैं, तो भौतिक नियम आप पर लागू नहीं होते। जब तक आप के पास एक भौतिक शरीर है, आप भौतिकता के नियमों के अधीन होते हैं। दूसरे आयामों पर भी यही बात लागू होती है। जब आप भौतिक या अभौतिक जीवन से ऊब जाते हैं, तभी मुक्ति की चाह उत्पन्न होती है।

      जब आप भौतिक दुनिया में होते हैं, तो इस भौतिक दुनिया के कुछ मूर्ख आप को धौंस दिखाते हैं। जब आप शरीरहीन दुनिया में होते हैं, तो कुछ शरीरहीन मूर्ख आप को धौंस दिखाते हैं। जब आप दिव्य दुनिया में होते हैं, तो कुछ दिव्य मूर्ख आप को तंग करते हैं। इन चीजों को देखते हुए, बुद्धिमान लोग मुक्ति चाहते हैं। आप ऐसी स्थिति में होना चाहते हैं, जहाँ कोई भी आप के ऊपर धौंस न जमा सके। किसी भी चीज के अधीन न होने के लिए आप को ऐसी स्थिति में आना होगा जहाँ या तो आप ‘कुछ नहीं’ हों या ‘सब कुछ’ बन जायें। इसे आप दोनों तरह से देख सकते हैं। आप को असीम हो जाना होगा; ताकि कोई भी आप को अधीन न कर सके। भले ही आप अपने अंदर असीम हों लेकिन एक बार जब आप भौतिक शरीर में रहना तय कर लेते हैं, तो भौतिक नियम आप के ऊपर लागू होते हैं। 

      यही कारण है कि अधिकतर ज्ञानी जीव अपने शरीर में नहीं रहते। एक बार जब उन्हें परे जाने की कुञ्जी मिल जाती है, तो उन्हें शरीर से चिपके रहने और भौतिकता के अधीन रहने में कोई समझदारी नहीं लगती। यह ऐसा ही है, मानो आप देश के प्रधान मंत्री हों और एक छोटे से गाँव में आने पर पंचायत का प्रमुख आप पर धौंस जमाये। सभी ज्ञानी प्राणियों का यही अनुभव होता है। उन के पास परे जाने की कुञ्जी होती है, वे कहीं और हो सकते हैं मगर एक भौतिक शरीर अपना लेने के बाद भौतिक क्षेत्र की हर चीज और हर इंसान लाखों अलग-अलग रूपों में उन पर मर्जी चलाता है। श्रीकृष्ण ने कई बार यह कहा है कि ईश्वर के रूप में उन्हें इन चीजों के अधीन होने की आवश्यकता नहीं होती; क्योंकि उन्होंने एक मानव शरीर अपनाया, वे भौतिक आयाम में धर्म की स्थापना करना चाहते थे, इसलिए उन्हें भौतिक नियमों के अधीन होना पड़ा। कुछ लोग उन की पूजा करते थे। पर, कुछ अलग प्रवृत्ति के लोग बार-बार ग्वाला कहकर उन की हँसी उड़ाते थे। प्यार से नहीं; बल्कि नीचा दिखाने के लिए उन्हें 'गोपाल' कहा। उन्हें यह सब सहन करने की आवश्यकता नहीं होती मगर उन्होंने धर्म की स्थापना का बीड़ा उठाया था, इसलिए उन्हें ऐसे कई अपमान सहने पड़े।