११वीं शताब्दी में रामानुजाचार्य द्वारा महाभारत के श्लोकों के आधार पर बनाया गया विश्व का मानचित्र |
-शीतांशु कुमार सहाय
एशिया, अफ्रीका, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अण्टार्कटिक महाद्वीपों को इंगित करनेवाले मानचित्र का आविष्कार कहाँ हुआ? महादेशों और महासागरों को अभिव्यक्त करनेवाले रेखाचित्र की शुरुआत किस ने की? इन दो प्रश्नों के उत्तर में कई देश अपना दावा ठोंकते हैं। इन दावों को तथ्य के आधार पर पड़ताल करता हूँ।
पृथ्वी के महाद्वीपों के मानचित्र को लेकर कई दावे अब तक सामने आये हैं। इस सन्दर्भ में कई बातें कही जाती रही हैं। कोई कहता है कि सम्पूर्ण धरती का मानचित्र रोमन सभ्यता में बना था तो कोई इसे नार्वे के वाइकिंग्स की देन मानता है। पुर्तगाली और फ्रेंच भी पृथ्वी के भौगोलिक मानचित्र को अपनी खोज बताने से नहीं चूकते। इसी तरह अमेरिका के कोलम्बस को भारत की खोज का श्रेय दिया जाता है। ये सभी दावे तथ्यहीन हैं। उपर्युक्त दावों के दावेदार समर्थन में कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पाते।
सत्य यह है कि पृथ्वी का पहला भौगोलिक मानचित्र का निर्माण भारत में हुआ। चूँकि सृष्टि का आरम्भ भारत से हुआ, इसलिए समस्त ज्ञान का प्राकट्य भारत में हुआ और इन का विश्वव्यापी प्रसार भी। ऐसे में यह कहना कि किसी कोलम्बस ने भारत को खोजा तो यह बड़ी हास्यास्पद बात है।
भारतीय सभी क्षेत्रों में विश्व की अन्य सभ्यताओं से आगे थे। इस का प्रमाण हैं प्राचीन भारतीय ग्रन्थ जिन में अथाह ज्ञान भरे पड़े हैं। यहाँ मैं भौगोलिक मानचित्र की बात कर रहा हूँ। महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने विश्व को भौगोलिक मानचित्र का ज्ञान दिया। हालाँकि भारतीयों को यह ज्ञान वेदव्यास के प्रादुर्भाव से पूर्व भी था। वेदव्यास ने केवल उस भौगोलिक ज्ञान को पुस्तक के रूप में पहली बार संकलित किया। इस तथ्य को इस प्रकार समझिये कि वेदव्यास से पूर्व भी वेद और उस के ज्ञान का प्रसार था। वह ज्ञान श्रोत्र (सुनकर समझना) रूप में था। इसे सर्वसाधारण के लिए पुस्तक के रूप में संकलित किया वेदव्यास ने ही। इसलिए महर्षि कृष्णद्वैपायन का नाम वेदव्यास हो गया। वेदों के अलावा १०८ उपनिषद, १८ पुराण, महाभारत (इसी एक भाग श्रीमद्भगवद्गीता है) आदि ग्रन्थों में उन्होंने अतुलित ज्ञान का विशाल भण्डार दिया है।
महर्षि वेदव्यास ने ही भौगोलिक मानचित्र का ज्ञान विश्व समुदाय को दिया। उन्होंने महाभारत में पृथ्वी का पूरा मानचित्र हजारों वर्ष पूर्व ही दे दिया था।महाभारत में कहा गया है कि यह चन्द्रमण्डल से देखने पर पृथ्वी (स्थलीय भाग) दो अंशों मे शश (शशक या खरगोश) तथा अन्य दो अंशों में पिप्पल ( पीपल के पत्तों) के रुप में दिखायी देती है।
इस आलेख के आरम्भ में जो मानचित्र दिया गया है, उसे ११वीं शताब्दी में रामानुजाचार्य द्वारा महाभारत के भीष्म पर्व के जिन श्लोकों के आधार पर बनाया गया, उन श्लोकों को आप भी जानिये...
“सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।
परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः।
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।”
ऊपर के श्लोकों में कहा गया है... "हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इस के दो अंशों में पिप्पल और दो अंशों में महान शश (शशक, खरहा या खरगोश) दिखायी देता है।"
अब यहाँ मैं श्लोकों की बात को सत्य रूप में देखता हूँ। आलेख के आरम्भ में जो मानचित्र है उसे उलटकर देखेंगे तो वह खरहा और पीपल के पत्तों की तरह दिखायी देगा...
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