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सोमवार, 24 जनवरी 2011

भारत में काला धन- २०११ BLACK MONEY IN INDIA- 2011

Black Money in India ( Global Financial Integrity Report 2010)

(1.) India is losing nearly Rs.240 crore every 24 hours, on average, in illegal financial flows out of the country. India’s aggregate illicit flows are more than twice the current external debt of US $230 billion.
(2.) The nation lost $213 billion (roughly Rs.9.7 lakh crore) in illegal capital flight between 1948 and 2008. These illicit financial flows were generally the product of: tax evasion, corruption, bribery and kickbacks, and criminal activities.
(3.) Over $125 billion (Rs.5.7 lakh crore) of that was lost in just this decade between 2000-2008.In just five years from 2004-08 alone, the country lost roughly Rs.4.3 lakh crore to such outflows.
(4.) Had India managed to avoid this staggering loss of capital, the country could have paid off its outstanding external debt of $230.6 billion (as of end-2008) and have another half left over for poverty alleviation and economic development.
(5.) Total capital flight represents approximately 16.6 per cent of India's GDP as of year-end 2008.
(6.) The total value of (such) illicit assets held abroad represents about 72 per cent of the size of India's underground economy which has been estimated at 50 per cent of India's GDP (or about $640 billion at end-2008) by several researchers. This implies that only about 28 per cent of illicit assets of India's underground economy are held domestically.
(7.) From 1948 through 2008 the Indian private sector shifted away from deposits into developed country banks and moved more of its money into offshore financial centers (OFCs). The share of OFC deposits increased from 36.4 percent in 1995 to 54.2 percent in 2009.
(8.) Some 68 percent of India’s aggregate illicit capital loss occurred after India’s economic reforms in 1991, indicating that deregulation and trade liberalization actually contributed to/accelerated the transfer of illicit money abroad.High net-worth individuals and private companies were found to be the primary drivers of illicit flows out of India's private sector.

बुधवार, 19 जनवरी 2011

भारत में किसानों की आत्महत्या (2009)

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकंडों के अनुसार भारत भर में वर्ष 2009 के दौरान 17,368 किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों की आत्महत्या की ये घटनाएँ, वर्ष 2008 के मुकाबले 1172 ज़्यादा है. इससे पहले वर्ष 2008 में 16,196 किसानों ने आत्महत्या की थी. महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में किसानों की स्थिति सबसे ज़्यादा खराब है. किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में से 62 प्रतिशत यानी 10,765 आत्महत्याएँ इन पाँच राज्यों में ही हुई है. वर्ष 2008 में तमिलनाडु में 512 किसानों ने आत्महत्याएँ कीं जो वर्ष 2009 में 1,060 पर जा पहुँची. पिछले दस वर्षों से किसान के आत्महत्याओं के आंकड़ो में अव्वल रहने के लिए बदनाम महाराष्ट्र वर्ष 2009 में भी सबसे आगे रहा. महाराष्ट्र में 2009 के दौरान 2,872 किसानों ने आत्महत्या की जो कि 2008 के मुकाबले 930 कम है. इसके बाद कर्नाटक में 2,282 किसानों ने आत्महत्याएँ की. केन्द्रशासित प्रदेशों में पुडुचेरी में सबसे ज्यादा 154 किसानों ने आत्महत्याएँ की. पश्चिम बंगाल में 1,054, राजस्थान में 851, उत्तर प्रदेश में 656, गुजरात में 588 और हरियाणा में 230 किसानों ने आत्महत्याएँ की. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकंडों के अनुसार वर्ष 1997 से 2009 तक भारत में दो लाख 16 हज़ार 500 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. कुल 28 राज्यों में से 18 राज्यों में किसान आत्महत्याओं की संख्या में इज़ाफा हुआ है. जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में किसान आत्महत्याओं में कम इज़ाफ़ा हुआ है.

सोमवार, 10 जनवरी 2011

नींद की अधिकता और डायबिटीज के बीच गहरा रिश्ता

सामान्य व्यक्ति के लिए आठ घंटे तक की नींद पर्याप्त मानी जाती है। आठ घंटे से ज्यादा नींद लेना, भविष्य में कई स्वास्थ्य समस्याओं को भी बुलावा देती है। डायबिटीज, हर्ट डिसीज, मोटापे और अल्पायु के लिए भी ओवर स्लीपिंग जिम्मेदार हो सकती है। अमेरिका में किए गए अध्ययन में करीब 9,000 लोगों को शामिल किया गया। इसमें कहा गया है कि सोने के समय पर कई पहलू निर्धारित होते हैं। अध्ययन के अनुसार नींद की अधिकता और डायबिटीज के बीच गहरा रिश्ता है। जो रोजाना नौ या इससे अधिक घंटे की नींद लेते हैं उनमें डायबिटीज की आशंका सात घंटे नींद लेने वालों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक होती है। शोध में खुलासा किया गया है कि सामान्य से अधिक नींद शरीर के वजन को अनियंत्रित कर सकती है। अमेरिकी शोधकर्ताओं के अनुसार जो रोजाना 9 से 10 घंटे की नींद लेते हैं, उनमें मोटापे की समस्या 7 से 8 घंटे की नींद लेने वालों की तुलना में 21 प्रतिशत अधिक होती है। योग-व्यायाम में लापरवाही, शारीरिक गतिशीलता की कमी और अधिक सोने के कारण पाचन की क्रिया ठीक से नहीं हो पाती है, इसलिए वजन बढ़ना स्वाभाविक है। मोटापा बढ़ने के साथ ही अन्य बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है। हार्ट डिसीज, पीठ और कमर दर्द, घुटने का दर्द सहित अन्य परेशानियां हो सकती हैं। कई लोग वीकेंड या छुट्टी होने पर अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक नींद लेना पसंद करते हैं। इस कारण से भी पीड़ित को अगले दिन सिरदर्द होती है। कई बार अधिक नींद लेने की वजह से दिमाग के कुछ न्यूरोट्रांसमीटर्स और दिमाग में सक्रिय होने वाले सेरोटॉनिन हार्मोन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा दिन में अधिक नींद लेने वालों की रात की नींद प्रभावित होती है। इस वजह से भी सुबह सिर में दर्द बना रहता है। कई लोगों की शिकायत होती है कि बिस्तर पर लेटते ही पीठ में दर्द होने लगता है। यदि रेग्युलर योग-व्यायाम के चलते पीठदर्द की शिकायत है, तो उसे तुरंत रोक दें या उसमें बदलाव करें। शोध के अनुसार गहरे तनाव की स्थिति में पीड़ित को अधिक नींद आने की समस्या 15 प्रतिशत ज्यादा हो सकती है जो उसके तनाव की स्थिति को और गंभीर बना सकती है। नर्सेस हेल्थ स्टडी के मुताबिक जो लोग रोजाना 9 से 11 घंटे की नींद लेते हैं उनमें कोरोनरी हर्ट डिसीज का खतरा आठ घंटे की नींद लेने वालों की तुलना में 38 प्रतिशत अधिक होता है।

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

श्रीकृष्ण

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवाय।


कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम्।
नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले, वेणु करे कंकणम्।
सर्वांगे हरिचन्दनमं सुललितमं, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूड़ामणी॥

अरब सागर

हिंद महासागर का उत्तरी पश्चिमी भाग है अरब सागर। इसकी सीमाएँ पूर्व में भारत, उत्तर में पकिस्तान तथा दक्षिणी ईरान और पश्चिम में अरब तथा अफ्रीका के सोमाली प्रायद्वीप द्वारा निर्धारित होती हैं। इस सागर की दो मुख्य शाखाएँ हैं। पहली शाखा अदन की खाड़ी है जो लाल सागर और अरब सागर को बाबलमंदब के जलसंयोजक द्वारा मिलाती है। दूसरी शाखा ओमान की खाड़ी है जो आगे चलकर फारस की खाड़ी कहलाती है। अरब सागर का क्षेत्रफल (अंतर्गत समुद्रों सहित) लगभग १७,१५,००० वर्ग मील है। यह सागर प्राचीन काल में समुद्रतटीय व्यापार का केंद्र था और इस समय यूरोप और भारत के बीच के प्रधान समुद्रमार्ग का एक अंग है।
अरब सागर में द्वीपों की संख्या न्यून है और वे अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं। इन द्वीपों में कुरिया मुरिया, सोकोत्रा ओर लकादिव द्वीपसमूह उल्लेखनीय हैं। लकादिव द्वीपसमूह समुद्रांतर (सबमैरीन) पर्वतश्रेणियों के द्योतक हैं। इन द्वीपों का क्रम दक्षिण की ओर हिंदमहासागर के मालदिव और चागोज़ द्वीपसमूहों तक चला जाता है। यह समुद्रांतर श्रेणी संभवत: अरावली पर्वत का ही दक्षिणी क्रम है जो तृतीयक (टर्शियरी) युग में, गोंडवाना प्रदेश के खंडन और भारत के पश्चिमी तट के विभंजन के साथ ही मुख्य पर्वत से विच्छिन्न हो गया। लकादिव-मालदिव-चागोज़ श्रृंखला पूर्णत: प्रवाल (कोरल) द्वारा रचित है और विश्व की कुछ सर्वोत्कृष्ट प्रवाल्याएँ (ऐटॉल) एवं उपढ़्ह्रद (लैगून, समुद्री ताल) यहाँ विद्यमान हैं। बंबई और कराची के बीच की तटरेखा को छोड़कर इस सागर में महाद्वीपीय निधाय (कांटिनेंटल शेल्फ़) अत्यंत संकीर्ण है और महाद्वीपीय ढाल (स्लोप) बड़ी तेज है। (उस लगभग चौरस भूमि को महाद्वीपीय निधाय कहते हैं जो समुद्र के तट पर जल के नीचे रहता है और जिसकी गहराई ६०० फुट से कम होती है। इसके बाद गहराई बड़ी तेजी से बढ़ती है। इस प्रकार बढ़ने से उत्पन्न ढाल को महाद्वीपीय ढाल (कॉन्टिनेंटल स्लोप) कहते हैं।)
अरब सागर के अन्य समुद्रांतर कटों (सबमैरीन रिजेज़) में मरे कूट है, जो उत्तर दक्षिण फैला है। अपनी लंबाई के अधिकांश में यह दोहरा है, अर्थात, दो ऊँची श्रेणियों के मध्य एक घाटी स्थित है। यह मध्यवर्ती घाटी लगभग १२,००० फुट गहरी है। पूर्वोक्त कूट संभवत: सिंध की किरथर श्रेणी का समुद्रांतर विस्तार है। कुछ समय पूर्व एक तीसरी गिरिश्रृंला का पता चला जो बलूचिस्तान और ईरान के तट पर पूर्व पश्चिम दिशा में विद्यमान है। यह संभवत: जेग्रोस पर्वतमाला का समुद्रांतर अंश है। समुद्रांतर कूटों के अतिरिक्त अरब सागर में एक महत्वपूर्ण समुद्रांतर नाली है। यह पश्चिम में सिंध नदी के मुहाने पर इंडस स्वाच के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाद्वीपीय निधाय के सिरे पर लगभग १०० फुट गहरी है, परंतु क्रमश: आगे चलकर सिंध नदी के मुहाने पर ,७२० फुट गहरी हो गई है। इस समुद्रांतर नाली के दोनों ओर ६५६ फुट ऊँची दीवारें हैं।
अरब सागर के वितल में विद्यमान शिलाओं के विषय में हमारा ज्ञान अभी अपूर्ण एवं नगण्य है। इन शिलाओं पर एकत्र निक्षेपों का ही साधारण ज्ञान प्राप्त हो सका है। इस सागर के महाद्वीपीय निजाए का अधिकांश भूजात पंक (टेरोजेनस मड) द्वारा आच्छादित है। यह पंक नदियों द्वारा परिवहित अवसाद है। अधिक गहराई पर ग्लोबीजरोना का निकर्दम (कीचड़) तथा टेरोपाड का निकर्दम है और अगाध सागरीय भागों में लाल मिट्टी विद्यमान है।
अरब सागर के जलपृष्ठ का ताप उत्तर में २६ अंश सेंटीग्रेड से लेकर दक्षिण में २७ अंश से ५अंश सेंटीग्रेड तक है। इस सागर की लवणता ३६ से लेकर३७ प्रति सहस्र है।
अरब सागर की धाराएँ पावस (मानसून हवाओं) के दिशापरिवर्तन के साथ साथ अपना दिशापरिवर्तन करती रहती हैं। शीतकाल में पावस (मानसून हवाएँ) उत्तरपूर्व से चलता है, जिसके फलस्वरूप अरब सागरीय तटरेखा के अनुरूप प्रवाहित जलधारा पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। इसे उत्तर पूर्वी पावसप्रवाह (नॉर्थ-ईस्ट मानसून ड्रिफ़्ट) कहते हैं। ग्रीष्मकाल में दक्षिण पश्चिमी पावसप्रवाह अरब सागरीय तट के अनुरूप पूर्व की ओर प्रवाहित होता है। (india waterportal)

स्वामी विवेकानंद ने कहा–

(1) "तुम्‍हारे भविष्‍य को निश्चित करने का यही समय है। इसलिये मै कहता हूँ, कि तभी इस भरी जवानी में, नये जोश के जमाने में ही काम करो। काम करने का यही समय है इसलिये अभी अपने भाग्‍य का निर्णय कर लो और काम में जुट जाओ क्‍योकि जो फूल बिल्‍कुल ताजा है, जो हाथों से मसला भी नही गया और जिसे सूँघा ही नहीं गया, वही भगवान के चरणों में चढ़ाया जाता है, उसे ही भगवान ग्रहण करते हैं। इसलिये आओ! एक महान ध्‍येय को अपनाएँ और उसके लिये अपना जीवन समर्पित कर दें।"
(2) "पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता और एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान। ध्यान के द्वारा ही हम इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। शम, दम और तितिक्षा अर्थात मन को रोकना, इन्द्रियों को रोकने का बल, कष्ट सहने की शक्ति और चित्त की शुद्धि तथा एकाग्रता को बनाए रखने में ध्यान बहुत सहायक होता है।"
(3) "मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है; क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।"
(4) "जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।"
(5) "जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।"
(6) "आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।"
(7) "मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन-सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।"
(8) "हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।"
(9) "मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो उससे अतिशीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।"
(10) "पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।"
(11) "सभी मरेंगे साधु या असाधु, धनी या दरिद्र सभी मरेंगे। चिरकाल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।"
(12) "संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।"
(13) ''भारत को समाजवाद विषयक अथवा राजनीतिक विचारों से प्लावित करने से पहले यह आवश्यक है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों की बाढ़ ला दी जाए। सर्वप्रथम हमारे उपनिषदों, पुराणों और अन्य सब शास्त्रों में जो अपूर्व सत्य निहित है, उन्हें इन सब ग्रंथों के पृष्ठों के बाहर लाकर, मठो की चहारदीवारियां भेदकर, वनों की नीरवता से दूर लाकर, कुछ संप्रदाय-विशेषों के हाथों से छीनकर देश में सर्वत्र बिखेर देना होगा; ताकि ये सत्य दावानल के समान सारे देश को चारों ओर से लपेट लें उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सब जगह फैल जाए हिमालय से कन्याकुमारी और सिंधु से ब्रह्मपुत्र तक सर्वत्र वे धधक उठें।''