अनेकता में एकता की परंपरा को हमारा देश सहेज रहा है। यहां हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, पारसी के साथ अनेक धर्म और समुदायों के लोग अपनी-अपनी संस्कृति के अनुसार नया साल मनाते हैं। इन सबके अपने अलग-अलग त्योहार और रीति-रिवाज हैं। प्रत्येक समुदाय के नए वर्ष भी अलग-अलग हैं। इस दिन कई सांस्कृतिक आयोजन होते हैं, तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और एक-दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं दी जाती हैं।
हिन्दू नववर्ष : सृष्टि का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हुआ था। इस हिसाब से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा) को नववर्ष मनाया जाना चाहिए। हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ विक्रम संवत् के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इसी दिन से वासंती नवरात्र का भी प्रारंभ होता है। एक साल में 12 महीने और 7 दिन का सप्ताह विक्रम संवत् से ही प्रारंभ हुआ है। वर्तमान में विक्रम संवत् 2069 चल रहा है। विक्रम संवत् पंचांग की गणना चांद के अनुसार होती है।
अंग्रेजी नववर्ष : यह अनेकता में एकता का नववर्ष है। यह एक ऐसा नया साल है जिसे सभी वर्गों-समुदायों द्वारा मान लिया गया है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मनाया जाने वाला नया साल की शुरुआत 1 जनवरी से होती है। 1 जनवरी से नए वर्ष 2013 का प्रारंभ हो गया है। आजकल इसी पंचांग को सर्वमान्य रूप से नए वर्ष की शुरुआत मान लिया गया है। सारे सरकारी कार्य और लेखा-जोखा इसी के अनुसार संचालित किए जाते हैं।
हिजरी संवत् : मुस्लिम समुदाय में नया वर्ष मोहर्रम की पहली तारीख से मनाया जाता है। मुस्लिम पंचांग की गणना चांद के अनुसार होती है। हिजरी सन् के नाम से जाना जाने वाला मुस्लिम नववर्ष अभी-अभी शुरू हुआ है। इस समय 1434 हिजरी चल रहा है।
पारसियों का नववर्ष : पारसियों द्वारा मनाए जाने वाले नववर्ष नवरोज का प्रारंभ 3 हजार साल पहले हुआ। नवरोज को जमशेदी नवरोज भी कहा जाता है। यह 19 अगस्त को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन फारस के राजा जमशेद ने सिंहासन ग्रहण किया था। उसी दिन से इसे नवरोज कहा जाने लगा। राजा जमशेद ने ही पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी।
जैन नववर्ष : जैन समुदाय का नया साल दीपावली के दिन से माना जाता है। इसे वीर निर्वाण संवत् कहा जाता है। वर्तमान में 2539 वीर निर्वाण संवत् चल रहा है।
महाराष्ट्रीयन नववर्ष : महाराष्ट्रीयन परिवारों में चैत्र माह की प्रतिपदा को ही नववर्ष की शुरुआत माना जाता है। इस दिन बांस में नई साड़ी पहनाकर उस पर तांबे या पीतल के लोटे को रखकर गुड़ी बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है। गुड़ी को घर के बाहर लगाया जाता है और सुख-संपन्नता की कामना की जाती है।
मलयाली नववर्ष : मलयाली समाज में नया वर्ष ओणम से मनाया जाता है। ओणम मलयाली माह छिंगम यानी अगस्त और सितंबर के मध्य मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आते हैं। राजा बलि के स्वागत के लिए घरों में फूलों की रंगोली सजाई जाती है और स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं।
तमिल नववर्ष : तमिल नववर्ष पोंगल से प्रारंभ होता है। पोंगल से ही तमिल माह की पहली तारीख मानी गई है। पोंगल प्रतिवर्ष 14-15 जनवरी को मनाया जाने वाला बड़ा त्योहार है। सूर्यदेव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है उसे पोंगल कहते हैं। 4 दिनों का यह त्योहार नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है।
पंजाबी नववर्ष : पंजाबी समुदाय अपना नववर्ष बैसाखी में मनाते हैं। यह त्योहार नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है। बैसाखी प्रतिवर्ष 13-14 अप्रैल को मनाई जाती है। गीत-संगीत की अनोखी परंपरा और खुशदिल लोगों से सजी है पंजाबियों की संस्कृति। बैसाखी के अवसर पर नए कपड़े पहने जाने के साथ ही भांगड़ा और गिद्दा करके खुशियां मनाई जाती हैं।
गुजराती नववर्ष : गुजराती बंधुओं का नववर्ष दीपावली के दूसरे दिन पड़ने वाली परीवा के दिन खुशी के साथ मनाया जाता है। गुजराती पंचांग भी विक्रम संवत् पर आधारित है।
बंगाली नववर्ष : अपनी विशेष संस्कृति से पहचाने जाने वाले बंग समुदाय का नया वर्ष बैसाख की पहली तिथि को मनाया जाता है। बंगाली पंचांग के अनुसार, इस समय सन् 1419 चल रहा है। यह पर्व नई फसल की कटाई और नया बही-खाता प्रारंभ करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक ओर व्यापारी लोग जहां नया बही-खाता बंगाली में कहें तो हाल-खाता करते हैं तो दूसरी तरफ अन्य लोग नई फसल के आने की खुशियां मनाते हैं।
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