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सोमवार, 11 मार्च 2013

वैद्यनाथधाम में महाशिवरात्रि व पंचशूल की पूजा/MAHASHIVRATRI AT VAIDYANATHDHAM & PANCHOOL PUJA- 2013

शीतांशु कुमार सहाय/SHEETANSHU KUMAR SAHAY

Mahashivratri on 10 March 2013

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शामिल है। विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। कहा जाता है कि रावण पंचशूल से ही अपने राज्य लंका की सुरक्षा करता था। चूंकि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने के लिए कैलाश से रावण ही लेकर आया था पर विणाता को कुछ और ही मंजूर था। ज्योतिर्लिंग ले जाने की शर्त्त यह थी कि बीच में इसे कहीं नहीं रखना है मगर देव योग से रावण को लघुशंका का तीव्र वेग असहनशील हो गया और वह ज्योतिर्लिंग को भगवान के बदले हुए चरवाहे के रूप को ज्योतिर्लिंग देकर लघुशंका करने लगा। वह चरवाहा ज्योतिर्लिंग को जमीन पर रख दिया। इस तरह चरवाहे के नाम वैद्यनाथ पर वैद्यनाथधाम का निर्माण हुआ।

यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से 2 दिनों पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जैसा कि नीचे के चित्रों में आपको दिखाई पड़ेगा। वैद्यनाथधाम परिसर में स्थित अन्य मंदिरों के शीर्ष पर स्थित पंचशूलों को महाशिवरात्रि के कुछ दिनों पूर्व ही उतार लिया जाता है। सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। महाशिवरात्रि के दौरान बहुत-से श्रद्धालु सुल्तानगंज से कांवर में गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर पैदल चलकर और ‘बोल बम’ का जयघोष करते हुए वैद्यनाथधाम पहुंचते हैं। BY SHEETANSHU KUMAR SAHAY












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