शनिवार (9 March 2013) को दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की प्रतिमा का अनावरण किया गया। पहली पूजा के दौरान लोगों ने दुग्ध और जल से अभिषेक किया, हेलीकॉप्टर से फूल बरसाये गये। दुनिया की सबसे उंची अर्द्धनारीश्वर (शिव-शक्ति) प्रतिमा का दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में अनावरण किया गया। प्रतिमा की उंचाई 20 मीटर है। बेनानी के एक्टनविले में स्थित स्टील से बनी इस प्रतिमा को नौ भारतीय कलाकारों ने 10 महीनों की मेहनत से बनाया है। इस प्रतिमा के आधे भाग में भगवान शिव है और आधे हिस्से में माता शक्ति। भगवान के इस रूप को अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है। बेनोनी तमिल स्कूल बोर्ड के अध्यक्ष कार्थी मुथसामी ने कहा- ‘‘वर्तमान परिवेश में दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं के लिए सम्मान में कमी को देखते हुए हमारी संस्था के लिए सभी महिलाओं और सबकी माता शक्ति का सम्मान करने से उत्तम क्या हो सकता था। हमारी प्रतिमा में अर्द्ध माता, अर्द्ध पिता हैं, यह लिंग आधारित समानता को दर्शाता है।’’ कार्थी ने कहा कि तीन वर्ष पहले मॉरिशस यात्रा के दौरान जब उन्होंने अर्द्धनारीश्वर की विशाल प्रतिमा देखी तभी से उनकी इसमें दिलचस्पी थी। उन्होंने बताया कि इस प्रतिमा के निर्माण में 90 टन स्टील लगा है। तमिल फेडरेशन ऑफ गावतेंग के अध्यक्ष नदास पिल्लै का कहना है कि यह प्रतिमा लोगों को लगातार याद दिलाएगी कि उन्हें अपने अहंकार को त्याग कर स्वार्थरहित मानवता और समाजसेवा के क्षेत्र में आना है।
अर्द्धनारीश्वर
शिव शब्द कल्याण, आनन्द, मंगल और यश का द्योतक है। आस्थाओं एवं परंपराओं के अनुरूप ही शिव अनेक मुद्राओं में चित्रित-वर्णित और पूजे जाते रहे हैं। किंतु उनकी सर्वोत्कृष्ट और विलक्षण मुद्रा है अर्द्धनारीश्वर की जो प्रकृति-पुरुष के एकाकार होने का प्रतीक है। आदि परंपरा में अर्द्धनारीश्वर की परिकल्पना ऐसी है जिसमें एक ओर पार्वती का सुंदर और कमनीय शरीर है और दूसरी ओर शिव का कठोर बदन। दोनों आधा-आधा। सामान्य जन को यह एक बेमेल परिकल्पना लग सकती है लेकिन क्या सचमुच यह बेमेल है? असल में दुनिया की कोई भी शक्ति सार्वभौम (universal) को बदल नहीं सकती, हमारे मानने-न-मानने का कोई अर्थ नहीं। यह सार्वभौमिकता ही प्रकृति है, कुदरत है, ईश्वर है, शिव और शक्ति है, जिनसे ब्रह्माण्ड गतिशील है, पृथ्वी और सूर्यादि नियत हैं। भारतीय कला का यह प्रतीक स्त्री-पुरुष के अद्वैत का सूचक है। इस मूर्ति में आधा शरीर पुरुष अर्थात 'रुद्र' (शिव) का है और आधा स्त्री अर्थात 'उमा' (सती, पार्वती) का है। दोनों अर्द्ध शरीर एक ही देह में सम्मिलित हैं। उनके नाम 'गौरीशंकर', 'उमामहेश्वर' और 'पार्वती परमेश्वर' हैं। दोनों के मध्य काम संयोजक भाव है। नर (पुरुष) और नारी (प्रकृति) के बीच का संबंध अन्योन्याश्रित है। पुरुष के बिना प्रकृति अनाथ है, प्रकृति के बिना पुरुष क्रिया रहित है। सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो स्त्री में पुरुष भाव और पुरुष में स्त्री भाव रहता है और वह आवश्यक भी है। ब्रह्मा की प्रार्थना से स्त्रीपुरुषात्मक मिथुन सृष्टि का निर्माण करने के लिए दोनों विभक्त हुए। शिव जब शक्तियुक्त होता है, तो वह समर्थ होता है। शक्ति के अभाव में शिव 'शव' के समान है। अर्द्धनारीश्वर की कल्पना भारत की अति विकसित बुद्धि का परिणाम है।
अर्द्धनारीश्वर
शिव शब्द कल्याण, आनन्द, मंगल और यश का द्योतक है। आस्थाओं एवं परंपराओं के अनुरूप ही शिव अनेक मुद्राओं में चित्रित-वर्णित और पूजे जाते रहे हैं। किंतु उनकी सर्वोत्कृष्ट और विलक्षण मुद्रा है अर्द्धनारीश्वर की जो प्रकृति-पुरुष के एकाकार होने का प्रतीक है। आदि परंपरा में अर्द्धनारीश्वर की परिकल्पना ऐसी है जिसमें एक ओर पार्वती का सुंदर और कमनीय शरीर है और दूसरी ओर शिव का कठोर बदन। दोनों आधा-आधा। सामान्य जन को यह एक बेमेल परिकल्पना लग सकती है लेकिन क्या सचमुच यह बेमेल है? असल में दुनिया की कोई भी शक्ति सार्वभौम (universal) को बदल नहीं सकती, हमारे मानने-न-मानने का कोई अर्थ नहीं। यह सार्वभौमिकता ही प्रकृति है, कुदरत है, ईश्वर है, शिव और शक्ति है, जिनसे ब्रह्माण्ड गतिशील है, पृथ्वी और सूर्यादि नियत हैं। भारतीय कला का यह प्रतीक स्त्री-पुरुष के अद्वैत का सूचक है। इस मूर्ति में आधा शरीर पुरुष अर्थात 'रुद्र' (शिव) का है और आधा स्त्री अर्थात 'उमा' (सती, पार्वती) का है। दोनों अर्द्ध शरीर एक ही देह में सम्मिलित हैं। उनके नाम 'गौरीशंकर', 'उमामहेश्वर' और 'पार्वती परमेश्वर' हैं। दोनों के मध्य काम संयोजक भाव है। नर (पुरुष) और नारी (प्रकृति) के बीच का संबंध अन्योन्याश्रित है। पुरुष के बिना प्रकृति अनाथ है, प्रकृति के बिना पुरुष क्रिया रहित है। सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो स्त्री में पुरुष भाव और पुरुष में स्त्री भाव रहता है और वह आवश्यक भी है। ब्रह्मा की प्रार्थना से स्त्रीपुरुषात्मक मिथुन सृष्टि का निर्माण करने के लिए दोनों विभक्त हुए। शिव जब शक्तियुक्त होता है, तो वह समर्थ होता है। शक्ति के अभाव में शिव 'शव' के समान है। अर्द्धनारीश्वर की कल्पना भारत की अति विकसित बुद्धि का परिणाम है।
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