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गुरुवार, 9 मई 2013
अनैतिक गठजोड़ सरकार व सीबीआई का
सर्वोच्च न्यायालय की तल्खी कुछ इन शब्दों में झलकी- सीबीआई पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है जो केवल अपने मालिक की बोली बोलता है। यह ऐसी अनैतिक कहानी है जिसमें एक तोते के कई मालिक हैं। वास्तव में सीबीआई को एक अस्त्र के रूप में सरकार प्रयोग करती रही है। हाल के वर्षों में यह देखने में आया है कि जिसने भी काँग्रेस की खिलाफत की उसके पीछे सीबीआई को लगा दिया गया।
आरोप-प्रत्यारोप के बीच शर्म, सामाजिक-राजनीतिक मर्यादा और नैतिकता को तिलांजलि देकर निरन्तर अनियमितताओं को अंजाम देती हुई कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) की केन्द्र सरकार सत्ता से चिपकी हुई है। साथ ही सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह सभी चर्चित मुद्दों पर मौन धारण किये रहते हैं।
मनमोहन सरकार के कई कदमों को कैग, विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक संगठनों, विपक्षी दलों, आम जनता सहित न्यायालय ने भी गलत करार दिया है। पर, सरकार को लगता है कि वह जो भी कर रही है, वही सच है। अपनी पीठ थपथपाने वाली संप्रग सरकार की कारगुजारियों पर इस बार सर्वोच्च न्यायालय ने प्रश्न चिह्न लगाया है।
कोयला खदान आवंटन काण्ड में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) की जांच रपट को ही हस्तक्षेप कर केन्द्र सरकार ने बदलवा दिया जिसपर न्यायालय ने बुधवार को कड़ा ऐतराज किया है। सर्वोच्च न्यायालय की तल्खी कुछ इन शब्दों में झलकी- सीबीआई पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है जो केवल अपने मालिक की बोली बोलता है। यह ऐसी अनैतिक कहानी है जिसमें एक तोते के कई मालिक हैं। वास्तव में सीबीआई को एक अस्त्र के रूप में सरकार प्रयोग करती रही है। हाल के वर्षों में यह देखने में आया है कि जिसने भी काँग्रेस की खिलाफत की उसके पीछे सीबीआई को लगा दिया गया। जो समर्थन में हैं उनकी सीबीआई जांच भी शिथिल हो गई।
दरअसल, सीबीआई सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर रह गई है। तभी तो सर्वोच्च न्यायालय को कहना पड़ा कि 15 वर्षों पूर्व चर्चित विनीत नारायण मामले में सीबीआई की स्वायत्तता के जो हालत थे, आज उससे भी बदतर स्थिति है। उस समय न्यायालय ने केन्द्र सरकार को आदेश दिया था कि वह सीबीआई को स्वायत्तता देकर मजबूत बनाए। उस आदेश पर 9 वर्षों से सत्ता पर काबिज मनमोहन सरकार ने अमल तो नहीं ही किया, ऊपर से सीबीआई की जांच रपट में फेर-बदल करने का दुस्साहस कर कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करती चली आ रही है। आदेश के इस उल्लंघन पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र को कडे़ लहजे में कहा कि वह 10 जुलाई से पूर्व सीबीआई की स्वायत्तता हेतु काननू बनाए। यदि सरकार ऐसा नहीं करेगी तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा।
न्यायालय इस बात से भी नाराज है कि निष्पक्ष जांच करने वाले अधिकारियों की तुरंत बदली कर दी जाती है। ऐसे में कोयला खदान आवंटन काण्ड की त्वरित जांच करने वाले उप महानिरीक्षक रविकांत मिश्र को इंटेलिजेंस ब्यूरो (आइबी) से वापस सीबीआई में भेजने का आदेश भी केन्द्र को दिया गया। साथ ही सीबीआई को ‘दिमाग’ से काम करने की हिदायत दी।
अब तक राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा केन्द्र सरकार पर यह आरोप लगाया जाता रहा कि सीबीआई को उसने कठपुतली बनाकर रखा है। इसलिए सरकार के साथ जनलोकपाल की बैठकों में अन्ना हजारे और उनके सहयोगी सीबीआई को सरकार के नियंत्रण से मुक्त कर जनलोकपाल के अधीन लाने की मांग करते रहे। पर, सरकार अन्त तक नहीं मानी। वर्तमान हालातों में यह स्पष्ट हो गया कि सीबीआई की हर जांच व गतिविधि को सरकार प्रभावित करती है। ऐसे में सीबीआई की साख धूमिल हुई और उसकी जांच को भी निष्पक्ष नहीं माना जा सकता।
इस प्रकरण में केन्द्र सरकार की परेशानी बढ़ गई है। चूँकि कोयला खदानों के आवण्टन के दौरान कोयला मंत्रालय का प्रभार प्रधान मंत्री के पास ही था। ऐसे में एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये के महाघोटाले में सीधे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की संलिप्तता दीख रही थी। लिहाजा मनमोहन को स्वच्छ साबित करने के लिए सरकार ने अनैतिक रूप से सीबीआई का जांच प्रतिवेदन ही बदलवा दिया।
न्यायालय के अनुसार, प्रतिवेदन में से हृदय को ही निकाल दिया गया। इस गंभीर गड़बड़ी को अंजाम देने वालों का नेतृत्व किया विधि मंत्री अश्विनी कुमार ने। उनके साथ इसमें दागदार नजर आते हैं कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, प्रधान मंत्री कार्यालय व कोयला विभाग के एक-एक संयुक्त सचिव, एटार्नी जनरल और एडिशनल सालिसिटर जनरल भी।
इस सदंर्भ में विपक्षियों की ओर से अश्विनी का त्याग पत्र मांगा जा रहा है। पर, इस मामले में पहला त्याग पत्र दिया एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने। इस बीच कर्नाटक फतह से काँग्रेस प्रसन्न है। इसी महीने में वर्तमान सरकार का चौथा वर्ष पूरा होगा और प्रश्नों के घेरे में मौजूद पवन बंसल व अश्विनी कुमार के मात्र विभाग में बदलाव होगा। टारगेट 2014 के मद्देनजर यही काँग्रेसी चाल होगी। इस दौरान जनता धोखे में है कि अबतक सीबीआई ने जिस भी मामले में जांच की, वह निष्पक्ष नहीं थी!
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