प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय
हरियाणा के गुड़गांव के शिकोहपुर गांव में रॉबर्ट वाड्रा का भूमि सौदा एक बार फिर कांग्रेस पार्टी और उसकी अध्यक्ष के लिए परेशानी का सबब बनता दिख रहा है। भंडाफोड़ करने वाले आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने आरोप लगाया है कि रॉबर्ट वाड्रा ने गुड़गांव के शिकोहपुर गांव में 3.53 जमीन के दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा किया और वाणिज्यिक कालोनी के लाइसेंस पर बड़ा मुनाफा हासिल किया।
आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने कहा--
1) हरियाणा सरकार ने पिछले 2012 के अक्टूबर में वाड्रा-डीएलएफ डील की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच समिति गठित किया था। हरियाणा सरकार और इस जांच समिति पहले ही वाड्रा को क्लीन चिट दे दी और डील कैंसल करने के लिए अशोक खेमका को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। हरियाणा सरकार ने इस पर खेमका से जवाब मांगा था।
2) अशोक खेमका ने 100 पन्नों की रिपोर्ट 21मई 2013 को हरियाणा सरकार को सौंप दी थी। खेमका को जवाब दाखिल किए हुए तीन महीना से अधिक समय हो चुका है लेकिन हरियाणा के चीफ सेक्रेटरी पीके चौधरी का कहना है कि इस विस्तृत जवाब का फिलहाल अध्ययन किया जा रहा है, खेमका ने जो सवाल उठाए हैं, उन पर गौर किया जा रहा है।
3) नवंबर 2012 में प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में वाड्रा के खिलाफ अनियमितताओं के आरोपों को झूठा और अफवाह पर आधारित बता चुका है।
4) आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने 21 मई 2013 को हरियाणा सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ड वाड्रा ने गुड़गांव के शिकोहपुर गांव में 3.53 एकड़ जमीन खरीदने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए और जमीन के लिए कोई कीमत नहीं चुकाई थी।
5) 12 फरवरी 2008 को वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से जमीन हासिल की थी और मार्च 2008 में उनकी कंपनी को वाणिज्यिक कालोनी की सहमति मिल गई। दोनों सेल डीड्स फर्जीवाड़ा हैं। हरियाणा राज्य सरकार ने ऐसा वाड्रा को फायदा पहुंचाने के लिए किया।
6) जैसा कि रजिस्ट्री डीड में कहा गया है कि कोई पेमेंट नहीं किया गया तो फिर इस संदिग्ध बिक्री से जमीन का मालिकाना हक स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी के पास चले जाना कैसे संभव है? कानून के मुताबिक बिक्री के तहत रकम के भुगतान या रकम देने के वादे पर मालिकाना हक का ट्रांसफर होता है। रजिस्टर्ड डीड में भविष्य में भी कोई भुगतान करने का वादा नहीं किया गया है। ऐसे में इसे सेल कहा ही नहीं जा सकता है और कानूनी या नैतिक रूप से वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी जमीन की मालिक नहीं हो सकती है।
7) रजिस्ट्रेशन ऐक्ट 1908 के सेक्शन 82 के तहत गलत जानकारी और फर्जी दस्तावेज देने पर 7 सालों तक की सजा का प्रावधान है।
8) सिर्फ जमीन की सेल डीडी ही नहीं स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी की ओर से दाखिल बैलेंस शीट भी गलतहै। कंपनी ऐक्ट और आईपीसी के सेक्शन 417, 468 और 471 के तहत यह अपराध है।
9) 5 अगस्त, 2008 को डीएलएफ यूनिवर्सल और स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी के बीच 2.7 एकड़ जमीन के लिए हुआ अनरजिस्टर्ड समझौता कानूनी रूप से मान्य नहीं है। इससे सरकार खजाने को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ।
10) डिपार्टमेंट ऑफ टाउन ऐंड कंट्री प्लैनिंग (डीटीसीपी) ने अप्रैल 2012 में स्काईलाइट को लाइसेंस डीएलएफ को ट्रांसफर करने की इजाजत दे दी और इसके बाद आखिरकार 18 सितंबर 2012 को यह लाइसेंस डीएलएफ को बेच दिया गया।
11) हरियाणा सरकार की जांच समिति ने इस वर्ष के प्रारंभ में कहा था कि वाड्रा से जुड़े भूमि सौदों की जांच के लिए खेमका की ओर से जारी आदेश नियमों या प्रावधानों के दायरे में नहीं आते हैं और उपयुक्त नहीं हैं।
12) अगर इस संबंध में वाणिज्यिक कालोनी लाइसेंस के लिए बाजार मुनाफा न्यूनतम एक करोड़ रूपया मान लिया जाए तब पिछले 8 वर्षों में जमीन लाइसेंस घोटाला करीब 20,000 करोड़ रुपये का होगा। उन्होंने दावा किया कि प्रति एकड़ 15.78 करोड़ रुपये के प्रीमियम पर यह राशि 3.5 लाख करोड़ रुपये जा सकती है।
13) डीटीसीपी ने अप्रैल 2012 में स्काईलाइट को डीएलएफ को लाइसेंस हस्तांतरित करने की अनुमति दी और लाइसेंसशुदा जमीन अंतत: 18 सितंबर 2012 को डीएलएफ को बेच दी गई।
14) वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी और डीएलएफ के बीच 2011 से 2012 तक हुए फर्जी लेन-देन। सेल डीड में 7.5 करोड़ रुपये के चेक का जिक्र है लेकिन यह वाड्रा की कंपनी का नहीं है। इतना ही नहीं, स्टांप ड्यूटी भी वाड्रा की कंपनी ने नहीं दी। उसे ओंकारेश्वर प्रॉपर्टी ने भरा।
15) खेमका ने 21 मई को अपना जवाब पेश किया था। इसमें कहा गया है कि 12 फरवरी 2008 के बिक्री के दोनों अनुबंध में वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से जमीन खरीदी और मार्च 2008 में डीटीसीपी की ओर से उनकी कंपनी को वाणिज्यिक लाइसेंस प्रदान करने के लिए जारी आशय पत्र फर्जी लेनदेन है, ताकि वाड्रा को बाजार से मुनाफा हासिल हो सके।
16) डिपार्टमेंट ऑफ टाउन ऐंड कंट्री प्लैनिंग (डीटीसीपी) ने इस हेराफेरी में वाड्रा का साथ दिया। डीटीसीपी ने नियमों को ताक पर रखकर बिचौलिये की तरह काम कर रहे वाड्रा को फायदा पहुंचाने के लिए जमीन के वाणिज्यिक इस्तेमाल का लाइसेंस दे दिया।
17) वाणिज्यिक इस्तेमाल का लाइसेंस के बाद वाड्रा ने 58 करोड़ में यह जमीन डीएलएफ के बेच दी थी। खेमका यह सवाल भी उठा रहे हैं कि एक दिन नें ही 7.5 करोड़ की जमीन 58 करोड़ की कैसे हो गई?
18) इंडियन नेशनल लोकदल ने अशोक खेमका के जवाब पर उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश से इसका जांच कराने की मांग की है।
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