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गुरुवार, 1 अगस्त 2013

दुर्गा शक्ति से घबरायी अखिलेश की सरकार


शीतांशु कुमार सहाय
याद है मुझे अब भी कि विद्यालय में शिक्षक ने पढ़ाया था- ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है यानी ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी। पढ़ाते समय शिक्षक महोदय ने यह भी कहा था कि इस उक्ति पर अमल करने से ही जीवन सफल होगा। पर, अब व्यावहारिक जीवन में वह उक्ति सफल होती नहीं दीख रही है। ‘डिजऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी’ ही हर जगह सफल दीख रहा है, खासकर भारतीय लोकतन्त्र में। ईमानदारों को तन्त्र और समाज दोनों से दग्ध व पीड़ित होना पड़ रहा है। कुछ ऐसा ही हुआ है उत्तर प्रदेश कैडर की भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी (भाप्रसेअ) दुर्गा शक्ति नागपाल के साथ। वर्ष 2010 बैच की भाप्रसेअ दुर्गा को उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने 27 जुलाई को निलम्बित कर लखनऊ स्थित राजस्व बोर्ड में भेज दिया है। उनपर आरोप लगाया गया है कि सरकारी भूमि पर बन रही मस्जिद की दीवार को तोड़ने का उन्होंने आदेश दिया था। यह तो हुआ सरकारी पक्ष पर वास्तविकता इससे अलग है। वास्तव में खनन माफियाओं पर दुर्गा ने कार्रवाई की थी। उन माफियाओं की राजनीतिक पहुँच की ही यह परिणति है।

दुर्गा शक्ति की घटना ने अशोक खेमका की याद दिला दी। 1991 बैच के हरियाणा कैडर के भाप्रसेअ खेमका को 22 साल की नौकरी में 44 तबादलों का दंश झेलना पड़ा। उनके 19 तबादलों का आदेश हरियाणा के मुख्य मंत्री भूपिन्दर सिंह हुड्डा ने दिया। इन दोनों ने विश्व कीर्तिमान बनाया है। खेमका के नाम सर्वाधिक तबादले का कीर्तिमान है तो हुड्डा के नाम एक ही अधिकारी को सर्वाधिक तबादले का आदेश देने का। खेमका ने इसी वर्ष अप्रील में जब काँग्रेस प्रमुख सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा व रियल एस्टेट कम्पनी डीएलएफ के बीच के करोड़ों रुपयों के घोटाले को उजागर किया व जमीन के निबन्धन को रद्द कर दिया तो हुड्डा की काँग्रेसी सरकार ने अगले ही दिन उनका तबादला कर दिया गया। ईमानदार खेमका जहाँ भी गये, अनियमितता को उजागर किया और पुरस्कारस्वरूप तबादले का आदेश मिलता रहा। कुछ विभागों से तो 4-5 दिनों में ही उन्हें हटा दिया गया। इसी नक्श-ए-कदम पर दुर्गा भी चलीं और निलम्बन का पुरस्कार पायीं। इस निलम्बन को अखिलेश ने जायज ठहराया। पर, दुर्गा पर लगाया उनका आरोप तब निराधार लगा जब गौतम बुद्ध नगर के जिलाधिकारी की रपट आयी कि जिले के ग्रेटर नोएडा के रबुपुरा क्षेत्र के कांदलपुर गाँव की निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार ग्रामीणों ने स्वयं तोड़कर सरकारी भूमि खाली कर दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भवन का निर्माण आरम्भ ही नहीं हुआ, ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह धार्मिक स्थल है या नहीं। जिला पुलिस भी दंगा भड़कने की किसी सम्भावना से इनकार करती है। स्थानीय लोग भी कहते हैं कि निर्माण में गाँव के सभी धर्मों के लोग शामिल थे इसलिये साम्प्रदायिकता भड़कने का सवाल ही नहीं उठता। फिर सरकार किस साम्प्रदायिकता की बात कर रही है? सच्चाई कुछ और ही है। हाल के दिनों में नोएडा में यमुना और हिण्डन नदियों के तटवर्ती क्षे़त्रों में चल रहे अवैध बालू खनन के विरुद्ध नोएडा की उपजिलाधिकारी के रूप में दुर्गा ने विशेष अभियान छेड़ा था। 2 दर्जन प्राथमिकियाँ दर्ज करवाई थीं तो खनन माफिया बौखला गये। विरोधी दलों की बात मानें तो इन माफियाओं के तार सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं। लिहाजा बहाना बनाकर दुर्गा को वहाँ से हटा दिया गया। माफियाओं के पक्ष में अखिलेश सरकार के मंत्री आजम खान ने कहा- राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। जाहिर है कि जब लूट को तन्त्र का ही सहयोग मिल रहा है तो इस लूट से कंगाल हो रही जनता को कौन बचाएगा?

इस बीच भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी संघ को केन्द्रीय कार्मिक राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने न्याय का वचन दिया है। 4737 सदस्यों वाले इस संघ ने दुर्गा के निलम्बन वापसी की माँग की है। वैसे मामला अब जनहित याचिका के माध्यम से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पहुँच गया है। देखना दिलचस्प होगा कि न्यायालय का क्या फैसला आता है? वैसे एक बात तो सच ही है कि राजनेताओं को सच्चे अधिकारियों से डर लगता है। लिहाजा अशोक खेमका, मनोज नाथ, राहुल शर्मा, अमिताभ ठाकुर और दुर्गा शक्ति नागपाल जैसे भाप्रसे अधिकारियों को बार-बार तबादला या निलम्बित होना पड़ता है। इस संदर्भ में सरकार की तरफ से ‘गलत’ कार्य करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की बात की जाती है पर जब नियम के विरुद्ध राजनेता की ओर से तबादला या निलम्बन किया जाता है तो उनपर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? दुर्गा प्रकरण में भी नियम के खिलाफ ही कार्रवाई की गयी है।  

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