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मंगलवार, 6 अगस्त 2013

प्रेसीडेन्सी विश्वविद्यालय में अब प्यार की पढ़ाई


 
  शीतांशु कुमार सहाय
19वीं सदी में अपने द्वारा आविष्कृत क्रेस्कोग्राफ के माध्यम से पेड़-पौधों में प्रेम की उत्तेजना को विश्व में पहली बार प्रदर्शित करने वाले वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस को यह नहीं मालूम था कि 21वीं सदी में उसी प्रेसीडेन्सी विश्वविद्यालय में प्रेम की पढ़ाई भी आरम्भ हो जाएगी। पर, यह ऐतिहासिक पहल मूर्त्त रूप ले रहा है और 2014 के जनवरी से राजा राम मोहन राय द्वारा स्थापित प्रेसीडेन्सी विश्वविद्यालय में प्यार का पाठ पढ़ेंगे विद्यार्थी। वास्तव में क्रेस्कोग्राफ 1/100000 इंच प्रति सेकेण्ड तक की वनस्पति के स्पन्दन को दर्ज कर सकता है। पर, प्यार का स्पन्दन इससे भी सूक्ष्म है जिसका अध्ययन अब प्रेसीडेन्सी में आरम्भ होने वाला है। यह ऐसा समय है जब विश्वस्तर पर सर्वाधिक कमी प्यार की ही महसूस की जा रही है। घर-परिवार व समाज से प्यार गुम हो गया-सा लग रहा है। सबको वर्तमान यांत्रिक विकास ने इस कदर स्वार्थी बना दिया है कि सम्पत्ति-संचय और रुपयों के ढेर के बीच प्रेम की लकीर ढँक गई, विलीन हो गई। उसी की खोज फिर से प्रारम्भ करेंगे कोलकाता के करीब 2 सदी पुराने प्रेसीडेन्सी विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थी। तलाशे जाएंगे प्रेम के नए सूत्र, प्रादुर्भूत होंगे प्यार के नूतन सिद्धान्त और मोहब्बत के नवीन आयाम गढ़े जाएंगे। पुस्तकों की उबाऊ गन्ध के बीच प्यार के अफसाने की गुदगुदाहट महसूस करेंगी छात्र-छात्राओं की टोली। उन्हें प्यार की पढ़ाई इस तरह प्रभावित करेगी कि व्यावहारिक जीवन में वे प्रत्येक कार्य को बड़े प्यार-दुलार से निभाएंगे, परिणति तक पहुँचाएंगे। प्रसीडेन्सी में मटुकनाथ जैसे प्रेम विशेषज्ञ होंगे या जूली जैसी प्रेम दीवानी होगी, यह कहना भले ही अतिरेक सिद्ध हो मगर प्रसिद्ध प्रेमियों की जीवनी से प्रेम का विशेष रूप तो अख्तियार करेंगे ही विद्यार्थी। यह अनुकरणीय भी हो सकता है और निन्दनीय भी। पर, प्यार के पाठ्यक्रम को तैयार करने वाली टीम तो यही कहती है कि इसमें निहित तथ्य पढ़नेवालों में सकारात्मकता लाएगी, नकारात्मकता नहीं।

  
विदित हो कि सन् 1817 ईश्वी में कुछ सहयोगियों के साथ तत्कालीन समाजसेवी राजा राम मोहन राय ने कोलकाता में हिन्दू महाविद्यालय की स्थापना की। पश्चिम जगत की उच्च शिक्षा को एशिया में प्रदान करना ही इसका उद्देश्य था। 1855 ईश्वी में ब्रिटिश सरकार ने इसे अधिग्रहित कर ‘प्रसीडेन्सी कॉलेज ऑफ बंगाल’ नाम दिया जिसका संक्षिप्त प्रेसीडेन्सी कॉलेज कहलाया। जब 1857 ईश्वी में कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो प्रेसीडेन्सी महाविद्यालय को उसके अधीन कर दिया गया। 1944 ईश्वी से यहाँ लड़कियों को भी पढ़ने की इजाजत मिली। ऐतिहासिकता व प्रसिद्धि के मद्देनजर 7 जुलाई 2010 को इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। जगदीश चन्द्र बोस के अलावा प्रफुल्ल चन्द्र राय, मेघनाथ साहा, अमल कुमार रायचौधरी जैसे वैज्ञानिक, सुखमय चक्रवर्ती और अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्रियों के अलावा भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, बांग्ला देश के राष्ट्रपति अबु सईद चौधरी व पाकिस्तान के प्रधान मंत्री मुहम्मद अली जैसे प्रख्यात राजनीतिज्ञ प्रेसीडेन्सी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहे हैं। अब यहाँ से प्रख्यात प्रेम विशेषज्ञ भी निकलेंगे और देश-दुनिया में नाम करेंगे। विद्यार्थी प्यार जैसे गूढ़ विषय को पढ़ने के लिए चुन सकेंगे। प्यार का पाठ्यक्रम वस्तुतः नए बहुविषयक अध्ययन कार्यक्रम का ही एक भाग होगा। प्रेसीडेन्सी विश्वविद्यालय की कुलपति मालविका सरकार के अनुसार, प्यार का नया पाठ्यक्रम आगामी सत्र में जनवरी से आरम्भ हो जाएगा। फिलहाल यह समाज शास्त्र विभाग के अन्तर्गत संचालित होगा। इसमें मुख्यतः प्यार के सैद्धान्तिक पहलुओं को पढ़ाया जाएगा। 

 
  आने वाले दिनों में यहाँ प्रेम के नए-नए आयाम गढ़े जाएंगे, प्यार के नए तरीके और सिद्धान्त बताए जाएंगे, इस पर नया अनुसन्धान भी होगा। दरअसल, स्नातक में एक विषय के रूप में प्यार की पढ़ाई होगी। सभी विषयों के विद्यार्थियों को प्रेम का पाठ पढ़ना अनिवार्य होगा। यह फिलहाल 50 अंक का वैकल्पिक विषय है जिसे बाद में विस्तृत रूप दिया जा सकता है। बड़ा ही मनोरंजक और जीवन में पग-पग पर काम आने वाले इस कोर्स में हिन्दी फिल्मों के प्रेम के कई रूपों को एक अलग अन्दाज में पढ़ाया जाएगा। इसमें प्रेम के सभी पहलुओं और उसके सामाजिक प्रभावों वाले तथ्यों को समाहित किया गया है। विद्यार्थी जहाँ श्रीकृष्ण, राधा, मीरा को पढ़ सकेंगे वहीं राजकपूर, गुरुदत्त, यश चोपड़ा के प्रेमपूर्ण फिल्मों के विषय को भी जान सकेंगे। यों विद्यार्थी मो. रफी, मुकेश, किशोर कुमार व लता के पुराने रोमांटिक गीतों के साथ ही नए गायकों के गीतों सहित शेरों व अफसानों को पढ़कर प्रेम को जानेंगे, पहचानेंगे। प्रेम को लेकर विश्व में विश्वविद्यालय स्तर पर यह पहला प्रयास है। अब देखना है कि विद्वानों ने पाठ्यक्रम को कितना जीवनोपयोगी बनाया है। वैसे यह प्रशंसनीय पहल तो है ही।

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