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बुधवार, 7 अगस्त 2013

पाकिस्तान को जवाब तो देना ही होगा


   
शीतांशु कुमार सहाय
हम अपने घरों में सुरक्षित हैं, अपने परिवार के साथ सुख-चैन की जिन्दगी व्यतीत कर रहे हैं और शान से चला रहे हैं अपना कारोबार, निश्चिन्त होकर कर रहे हैं नौकरी। यह इसलिये सम्भव है कि देश की सीमा पर हमारे जांबाज प्रहरी कड़ाके की ठण्ड या कड़कड़ाती धूप में दिन-रात मुस्तैद हैं, देश और देशवासियों की सुरक्षा के लिए अपनी सुरक्षा हथेली पर लेकर तैनात हैं। ऐसे में देशवासियों का नैतिक समर्थन तो उन्हें मिल ही रहा है, तभी तो 6 अगस्त को पुंछ के चक्कां दा बाग इलाके में घुसकर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा 4 जवानों और एक जेसीओ की हत्या के विरोध में देशवासी गुस्से में हैं। देश के कोने-कोने से पाकिस्तान को माकूल जवाब देने की माँग उठ रही है। आवश्यकता है कि उन्हें सरकारी स्तर पर भी उचित सम्मान मिले और उनके त्याग-बलिदान की सराहना हो। पर, अफसोस है कि ऐसा हो नहीं रहा है। उक्त हमले पर रक्षा मंत्री एके एण्टनी ने संसद में कहा कि हमलावर पाकिस्तानी सैनिक नहीं; बल्कि पाकिस्तानी सैनिकों के वेश में आतंकवादी थे। यह बयान पाकिस्तानी सैनिकों को एक तरह से ‘क्लीन चिट’ देने जैसा है। देशवासियों के अलावा विपक्षी नेताओं ने भी एण्टनी के बयान को निन्दनीय कहा है और उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी माँगने को कह रहे हैं।

वास्तव में लोकसभा में एण्टनी ने एक तरह से सीमा प्रहरियों के बलिदान को नजर-अन्दाज किया है। सीमा प्रहरी अपनी जान गँवाकर देश की हिफाजत   करें और देश का रक्षा मंत्री उन्हें चन्द बोलों से भी नैतिक सम्बल न दे! यह तो निश्चय ही निन्दनीय है। अब उनके दल काँग्रेस के बयान बहादुरों ने तो यहाँ तक कह दिया कि एण्टनी माफी नहीं माँगेंगे। जान हथेली पर लेकर देश की सुरक्षा करने वाले सैनिकों को सरकारी स्तर पर मिलने वाले नैतिक सम्बल का यही है नमूना!

   
एक वह भी समय था जब धोती पहनने वाले प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री फेंटा बाँधकर पहुँच गये थे सीमा पर अपने सैनिकों की हिम्मत बढ़ाने और एक आज के रक्षा मंत्री हैं। शास्त्री भी काँग्रेसी थे और एण्टनी भी काँग्रेस के ही हैं। पर, दोनों में अन्तर देख रहे हैं देशवासी और शिद्दत से महसूस भी कर रहे हैंे। जहाँ तक सीमा पर हमले की बात है तो 3 जुलाई से अब तक पाकिस्तान ने 7 बार युद्धविराम का उल्लंघन किया। 3 जुलाई को पुंछ के सब्जियाँ में एक शव की तलाशी में गये पुलिसवालों पर पाकिस्तानी सैनिकों ने गोली चलायी। 8 जुलाई को पाकिस्तानी आतंकियों के बम विस्फोट में पुंछ में 2 कुली मारे गये। भारतीय सेना ने जब जख्मी हुए अन्य कुलियों को राहत पहुँचाने की कोशिश की तो पाकिस्तानी सेना ने फायरिंग की। 12 जुलाई को जम्मू जिले के पिण्डी इलाके में पाकिस्तानी रेंजरों ने भारतीय चौकी पर फायरिंग की। 22 जुलाई को पुंछ में भारतीय चौकी पर पाकिस्तान ने छोटे हथियारों से फायरिंग की। 27 जुलाई को पुंछ में भारतीय चौकियों को पाकिस्तान ने गोलीबारी का निशाना बनाया तो 28 जुलाई को पुंछ के ही डोडा बटालियन फॉरवर्ड इलाके में पाकिस्तान ने मशीन गन और ग्रेनेड दागे। यों 6 अगस्त को पाक सेना ने पुंछ के चक्कां दा बाग इलाके में घुसकर 4 जवानों और एक जेसीओ की हत्या कर दी। नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी हरकतों को देखकर स्पष्ट है कि नवाज शरीफ भारत के साथ ‘शराफत’ नहीं दिखा रहे हैं।

    अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी है। इसके लिए चौतरफा दबाव बनाना होगा। इसमें कूटनीति, कारोबार, सैन्य दबाव और खेल-संस्कृति से जुड़े मोर्चे पर सख्ती शामिल हैं। ऐसा करने से पाकिस्तान पर जबर्दस्त दबाव बन सकता है और उसे अपनी गलती का पुरजोर एहसास हो सकता है। कूटनीतिक दबाव के तहत भारत व पाकिस्तान के राजनयिकों के बीच प्रस्तावित मुलाकात को कुछ समय के लिए रोका जाना चाहिये। साथ ही भारत अगले महीने न्यूयार्क में प्रस्तावित मनमोहन सिंह व नवाज शरीफ की मुलाकात को भी रद्द कर सकता है। इससे पाकिस्तान पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनेगा। कारोबारी दबाव के अन्तर्गत भारत द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही रियायतों पर लगाम लगाया जाना चाहिये। बिजली के क्षेत्र में प्रस्तावित मदद के प्रोजेक्ट को भी तुरन्त रोका जाना चाहिये। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को दी जा रही कारोबारी मदद के खिलाफ भी भारत गोलबन्दी कर सकता है। सैन्य विकल्प के रूप में सेना को यह निर्देश दिया जा सकता है कि सीमा पर पाकिस्तानी हमले का स्थानीय स्तर पर ही मुँहतोड़ जवाब दे। साथ ही सांस्कृतिक रिश्तों पर कुछ समय के लिए विराम लगाया जाये। क्रिकेट समेत कई खेलों को लेकर भी भारत रिश्ता तोड़ सकता है। खस्ताहाल पाकिस्तानी क्रिकेट और उसके प्रशंसकों पर इससे जबर्दस्त  दबाव बनेगा। यों बिगड़ैल पाकिस्तान का होश ठिकाने लग जाएगा।

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