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शुक्रवार, 6 सितंबर 2013
झारखण्ड में पर्यटन : सम्भावनाएँ अपार पर सब बेकार
शीतांशु कुमार सहाय
बिहार से अलग होने के बाद भी झारखण्ड में विकास का सूर्य चमकता हुआ नहीं दीख रहा है। अन्य मन्थर विकास की तरह ही पर्यटन क्षेत्र में भी विकास का नकारात्मक पहलू ही नजर आ रहा है। राज्य में इस क्षेत्र में सम्भावनाएँ अपार हैं पर सब बेकार! सम्भावनाओं को राज्य की सरकार अवसर में परिवर्तित नहीं कर पा रही है। विस्तृत वन प्रदेश, विभिन्न खनिजों के खानों की प्रचुरता, सुरम्य पठारी क्षेत्र, अन्य आकर्षक प्राकृतिक दृश्य और प्राचीन मन्दिरों-स्मारकों से भरपूर यह प्रदेश इन सबको पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित न कर सका। झारखण्ड में चारों ओर हरे-भरे जंगलों की भरमार है। एक ओर छोटे-बड़े जलप्रपात हैं, तो दूसरी ओर छऊ जैसी विश्वस्तरीय युद्ध कला, मान्दर की थाप और बाँसुरी की सुरीली धुन मौजूद है। इन संसाधनों की बदौलत राज्य के पर्यटन व्यवसाय को प्रगति की ओर ले जा सकते हैं। राज्य सरकार पर्यटन को लेकर लम्बा-चौड़ा दावा करती रहती है। कभी किसी एक स्थल को तो कभी दूसरे स्थल को पर्यटन स्थल घोषित कर विकास के लिए पैसे दिये गये लेकिन कुछ नहीं हुआ। राज्य में पर्यटन विभाग का पूरा अमला ही बेकार है। राज्य सरकार पुराने पर्यटक स्थलों की सुरक्षा व रख-रखाव ठीक से नहीं कर पा रही है। पर्यटन विभाग के होटल को ही देखें तो असलियत सामने आ जायेगी। करोड़ों खर्च कर बने होटल को निजी एजेन्सी को सौंपने की तैयारी चल रही है। हटिया डैम में करोडों रुपये खर्च कर नौके मँगाये गये थे, जो जहाँ-तहाँ पडे़ हैं। इधर टैगोर हिल की स्थिति और जर्जर हो गयी है। हुण्डरू में बने अतिथिशाला की स्थिति भी गंभीर है तो दशम फॉल का आकर्षण घटता ही जा रहा है। इसमें झारखण्ड राज्य बनने के बाद भी सुरक्षा के अभाव में पर्यटकों के डूबने का सिलसिला जारी है।
राज्य के अधिकतर पर्यटन स्थलों पर चाहकर भी पर्यटक रात में ठहरने से घबराते हैं। इसका प्रधान कारण है कि पर्यटकों की हिफाजत की कोई व्यवस्था नहीं है। झारखण्ड में अधिकतर जल प्रपात व सुरम्य प्राकृतिक-पठारी क्षेत्र नक्सल प्रभावित इलाकों में हैं। यहाँ के जंगल व पहाड़ पर नक्सलियों का बसेरा है। दुर्गम इलाके में इनकी ही समानान्तर सरकार चलती है। कई बार पर्यटन विभाग ने गाँव में युवकों को जागरूक करने का प्रयास किया लेकिन असफल रही। अब तो राज्य सरकार नक्सली क्षेत्रों में पर्यटकों को सुरक्षा देने पर चर्चा भी नहीं करती है। पर्यटन के क्षेत्र में राज्य सरकार की नाकामी का आलम यह है कि यहाँ पर्यटन की 19 योजनाएँ बंद हो गयी हैं। ये योजनाएँ जमीन के अभाव में बंद हुई हैं। पर्यटन विभाग ने संबधित जिलों के उपायुक्तों से जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया था पर इस दिशा में कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया। इन योजनाओं पर 13.29 करोड़ रुपये की राशि खर्च होने वाली थी। बन्द होने वाली योजनाओं में पूरे झारखण्ड को पर्यटन वृत्त व देवघर को पर्यटन का मुख्य केन्द्र बनाने की योजना शामिल थी। लोहरदगा तमाड़ में पर्यटन केन्द्र, पुराना पलामू किला पिकनिक स्पॉट, नया पलामू किला ट्रेकिंग सुविधा, मिरचियाँ फॉल पिकनिक स्पॉट बेतला, सुगाबाँध पिकनिक स्पॉट बेतला, चाण्डिल रिसॉर्ट, पंचघाघ का सम्पूर्ण पर्यटन विकास, हटिया डैम टूरिस्ट हट एवं भूमि विकास, दशम फॉल का समग्र विकास, हजारीबाग पर्यटन केंद्र और देवघर पर्यटन सर्किट से सम्बद्ध योजनाएँ अनन्त काल के लिए स्थगित कर दी गयीं। देवघर पर्यटन सर्किट के तहत देवघर में बुद्ध पार्क, होटल वैद्यनाथ विहार, होटल नटराज विहार, होटल वासुकि विहार और हजारीबाग में कैनहरी हिल, चरवा डैम की योजनाएँ भी बंद हुई हैं। दशम फॉल में नागरिक सुविधा केन्द्र, सीढ़ी निर्माण व शेड निर्माण की योजनाएँ जमीन के अभाव में बंद करनी पड़ी हैं।
भले ही कई पर्यटन योजनाएँ बन्द हो गयीं पर इस क्षेत्र में सम्भावनाएँ अपार हैं। बेतला राष्ट्रीय उद्यान, सारण्डा, तिलैया डैम व हुण्डरू जल प्रपात के नाम से ही पर्यटक रोमान्चित हो उठते हैं पर सुविधाहीन ये स्थल नाम के अनुसार आय अर्जित करने में नाकाम हैं। बेतला राष्ट्रीय उद्यान को बेतला वन घोषित किया गया है जो केच्की से नेतरहाट तक 753 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में फैला है। बेतला में 970 प्रजातियों के पौधे, 174 प्रजातियों के पक्षी, 39 प्रकार के स्तनधारी और औषधीय पौधे की 180 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। यों सारण्डा वन एशिया का सबसे बड़ा व घना वन है जिसमंे उड़नेवाली छिपकली भी पायी जाती है। यह वन साहसिक व पारिस्थितिकी के प्रति उत्साही पर्यटकों के लिए बड़े आनन्द की जगह है। इसी तरह तिलैया डैम का खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण आकर्षित करता है। परम्परागत पर्यटनों के अलावा पर्यटन के नये क्षेत्रों को भी विकसित किया जाना चाहिये। खनिजों के मामले में भारत का सबसे अमीर राज्य है झारखण्ड। यहाँ खनन पर्यटन को दक्षिण अफ्रीका व ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर बढ़ावा दिया जा सकता है। हेरिटेज पर्यटन के लिए प्राचीन स्मारकों, रजवाड़ों के किले, ऐतिहासिक भवनों व स्थलों को विकसित किया जाना चाहिये। इसी तरह धार्मिक पर्यटन, जनजातीय पर्यटन, ग्रामीण पर्यटन और पठारी भागों में एडवेंचर टूरिज्म की तमाम सम्भावनाओं को विकसित कर राज्य की आय व रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। साथ ही सड़कों की खस्ता हालत में सुधार व व्यापक स्तर पर सुरक्षा की व्यवस्था भी अनिवार्य है।
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