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रविवार, 8 सितंबर 2013

राहुल का गुणगान: घुटनों के बल मनमोहन


शीतांशु कुमार सहाय
    अपनी प्रतिभा व स्वभाव के अनुकूल कार्य करते कभी नजर नहीं आये प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह। प्रधान मंत्री के रूप में उन्होंने लगातार ऐसे निर्णय लिये हैं जो आलोचनाओं के शिकार रहे हैं। जिस प्रकार उनका हँसता हुआ चित्र दुर्लभ है, उसी तरह विवादरहित उनके निर्णय भी दुर्लभ हैं। समझ में नहीं आता कि विवादित निर्णय अथवा वक्तव्य उनका अपना होता है या कोई ‘ऊपरी दबाव’ का प्रभाव कार्य कर रहा होता है। इस दबाव का ही असर उन पर दीखता है। दबाव सहते हुए दबी जुबान में कुछ ऐसा कह जाते या कर जाते हैं कि लगता ही नहीं कि संसार के सबसे बड़े लोकतन्त्र का प्रधान मंत्री कुछ कह या कर रहा है! इस बार तो उन्होंने हद ही कर दी। रूस से स्वदेश लौटने के दौरान विशेष विमान में उन्होंने ऐसी विशेष बात कह डाली कि वह समाचारों के बीच सुर्खियों में रही, समाचार पत्रों में लीड बनी और विश्लेषकों के बीच मुद्दे के रूप में छायी रही।
    दरअसल, मनमोहन को काँग्रेसी नीति का पाठ अब याद हो गया है। काँग्रेसी नीति यह रही है कि चाहे कोई कितना भी उम्रदराज हो, प्रतिभा-योग्यता के सम्बन्ध में विश्व कीर्तिमानधारक हो पर उसे इन्दिरा परिवार के आगे जी-हुजुरी करनी ही पड़ेगी। इसी काँग्रेसी परम्परा का निर्वाह करते हुए प्रधान मंत्री को कहना पड़ा कि 2014 के लोकसभा निर्वाचन के बाद वे राहुल गाँधी के नेतृत्व में कार्य करेंगे। राहुल के अधीन रहकर उन्हें गर्व महसूस होगा। मतलब यह कि मनमोहन के माध्यम से काँग्रेस ने अपने प्रधान मंत्री के प्रत्याशी की अघोषित-घोषणा कर दी। ऐसी स्थिति में उन्हें राहुल के लिए जगह खाली करनी पड़ेगी। लिहाजा उन्हें स्वीकारना ही पड़ा कि वे तीसरी बार प्रधान मंत्री नहीं बनना चाहते। घुटनों के बल झूकने वाला यह व्यक्तित्व प्रधान मंत्री ने पहली बार पेश नहीं किया है। उनके घुटने टेकने की फेहरिश्त लम्बी है।
    लगता है कि इस वक्तव्य के समय मनमोहन सिंह में काँग्रेसी भावना जाग गयी! वे अपने को केवल काँग्रेसी मान बैठे। वे भूल गये कि वे देश के प्रधान मंत्री भी हैं। पर, एक बात तो सच है कि इस वक्तव्य से प्रधान मंत्री की गरिमा को भारी ठेस लगी है। प्रधान मंत्री द्वारा आगामी लोकसभा चुनाव के बाद काँग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के अधीन काम करने की इच्छा जताये जाने संबंधी बयान की भारी आलोचना हो रही है। इस बहाने सबसे ताकतवर संवैधानिक पदधारी द्वारा काँग्रेस ने यह कहवा लिया कि प्रधान मंत्री के रूप में सबसे योग्य हैं राहुल। अब देखना है कि गरीब देश में गरीबी को मन का फितूर मानने वाले राहुल को प्रधान मंत्री के पद तक पहुँचाने में कितना सहयोग दे पाते हैं मनमोहन।

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