53 वीं से 55वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में अनियमितता
शीतांशु कुमार सहाय
बिहार की सर्वोच्च नियुक्ति करनेवाली संस्था बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) और इसकी तमाम परीक्षाएं हमेशा से विवादों में रही हैं। इस बार का मामला बीपीएससी की अन्य परीक्षाओं के विवादों से अलग है। वर्तमान विवाद 53 वीं से 55वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा से जुड़ा है। यह परीक्षा आरम्भ से अन्त तक विवादों में ही है। बीपीएससी द्वारा अन्तिम परीणाम निकाल देने के बाद भी मामला शान्त नहीं हुआ है। पटना उच्च न्यायालय में मामला अब भी चल रहा है। अभ्यर्थियों का आरोप है कि बीपीएससी ने अंकों के मॉडरेटिंग (सभी विषयों में मिले अंकों की तुलना कर अंक देना) कर परिणाम घोषित किया गया है। इसमें व्यापक धांधली की गयी। कई अभ्यर्थियों के अंकों में मॉडरेटिंग के नाम पर भारी फेरबदल किये गये। कुछ के अंकों में कटौती की गयी तो कुछ के अंक बढ़ा दिये गये। अंकों में कटौती के कारण कई मेधावी अभ्यर्थी अनुत्तीर्ण हो गये तो अंकों में बढ़ोत्तरी के फलस्वरूप कई अपात्र भी उत्तीर्ण घोषित किये गये।
प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्न पत्र में गलती
6 जनवरी 2012 को पटना उच्च न्यायालय ने बीपीएससी को 53वीं से 55वीं प्रारंभिक संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा के प्रश्न पत्र से 8 गलत प्रश्नों को हटाकर फिर से असफल परीक्षार्थियों की कॉपियों का मूल्यांकन कर 142 को पूर्णांक मानते हुए अतिरिक्त परिणाम प्रकाशित करने का आदेश दिया था। बीपीएससी 150 सही-सही प्रश्नोत्तर तैयार नहीं कर पाने में दुबारा अक्षम साबित हुआ।
मामला आरक्षण का
53वीं से 55वीं प्रारंभिक संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में बीपीएससी ने राज्य सरकार के नियमानुसार आरक्षण लागू कर दिया। इस पर भी मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। न्यायालय ने आदेश दिया कि प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण लागू करना अवैध है। साथ ही अगली बार से ऐसा न करने की हिदायत भी दी। यों परीक्षा की प्रक्रिया आगे बढ़ी।
बिना सूचना के बढ़ी सीटे
अभ्यर्थियों के अधिवक्ता दीनू कुमार व इब्राहिम कबीर ने उच्च न्यायालय से कहा कि बीपीएससी ने 53वीं से 55वीं प्रशासनिक सेवा के 257 पदों के लिए 13 जनवरी 2011 को विज्ञापन निकाला था। विज्ञापन में उसने 14 सेवाओं के बारे में जिक्र किया था। जब रिजल्ट निकला तो उसमें 19 सेवाओं के लिए 1006 पदों पर नियुक्ति की बात कही थी। बिना पूर्व सूचना के और रिजल्ट निकाल दिये जाने के बाद कई सेवाओं को बढ़ा दिया जाना भी गलत है।
लेखा सेवा के 100 पद हुए अलग
लेखा सेवा के एक सौ पद को 53वीं से 55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा से हटाने का आदेश पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार सहित बीपीएससी को दिया। साथ ही लेखा सेवा को हटाकर मुख्य परीक्षा का रिजल्ट निकालने का आदेश अप्रैल में दिया। न्यायमूर्ति मिहिर कुमार झा की एकलपीठ ने विनोद कुमार तिवारी की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया था। विदित है कि हाई कोर्ट ने 15 मार्च को मुख्य परीक्षा के रिजल्ट के प्रकाशन पर रोक लगाया था। इसके पूर्व आवेदक के वकील ज्ञान शंकर ने अदालत को बताया कि विज्ञापन में प्रकाशित रिक्तियों में लेखा सेवा पद के बारे में कहीं चर्चा नहीं है। वहीं, बीपीएससी का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता संजय पांडेय ने कोर्ट को बताया कि आयोग ने सरकार की अनुशंसा पर ऐसा किया। अदालत ने आयोग को लेखा सेवा में बहाली के लिए अलग से परीक्षा लेने की बात कही। अदालत ने आयोग को इस सेवा को 53वी से 55वीं बीपीएससी से हटा कर रिजल्ट प्रकाशन करने का आदेश दिया।
साक्षात्कार के लिए 2610 चयनित
बीपीएससी ने 53वीं से 55वीं सम्मिलित संयुक्त मुख्य (लिखित) प्रतियोगिता परीक्षा का परिणाम इस वर्ष 10 अप्रैल को घोषित किया। यह परीक्षा 25 मई 2012 से 14 जून 2012 की अवधि में पटना स्थित 30 परीक्षा केंद्रों में आयोजित की गयी थी। बीपीएससी ने मुख्य परीक्षा में सम्मिलित कुल 14407 उम्मीदवारों में से कुल 2610 अभ्यर्थियों का चयन साक्षात्कार के लिए किया।
मुख्य परीक्षा के परिणाम को चुनौती
मुख्य परीक्षा के परिणाम को सुनील कुमार सहित अन्य ने अधिवक्ता दीनू कुमार के माध्यम से चुनौती दी। इसी मुद्दे को लेकर नवीन चंद्र कुमार सिंह व अन्य ने अधिवक्ता विवेक प्रसाद के माध्यम से याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि बीपीएससी ने 53वीं से 55वीं प्रशासनिक सेवा का रिजल्ट मॉडरेटिंग कर निकाला है जबकि यह बात विज्ञापन या प्रारंभिक परीक्षा के दौरान नहीं बतायी गयी थी। ऐसा किया जाना कानूनन गलत है।
मूल्यांकन की नीति नहीं बनी
न्यायालय के निर्णय के अनुसार बीपीएससी ने स्केलिंग कर भी रिजल्ट नहीं निकाला है। उच्च न्यायालय ने अपने 26 अगस्त 2011 के आदेश में रिजल्ट में समरूपता लाने के लिए नीति बनाने को कहा था। साथ ही नये नियम बनने तक संघ लोक सेवा आयोग के नियम का पालन करने को भी कहा था। इसके बावजूद बीपीएससी ने कोई नियम नहीं अपनाया। अब तक बीपीएससी ने मूल्यांकन की नीति नहीं बनायी है।
सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था
वर्ष 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने संजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के मामले में एक व्यवस्था दी। उसके तहत कहा गया है कि जब किसी परीक्षा में वैकल्पिक विषय अलग-अलग हों तो स्केलिंग पद्धति से और जब वैकल्पिक विषय एक ही हो तो मॉडरेशन पद्धति से अंक दिये जायें। पर,
बीपीएससी ने इस सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था को भी नहीं माना। इस मामले में बीपीएससी के अधिकारी कुछ भी बताने से परहेज कर रहे हैं।
मॉडरेशन का नियम
एक ही विषय की कॉपी को जब अलग-अलग परीक्षक जांच कर अंक देते हैं तब मुख्य परीक्षक यह निर्धारित करता है कि उदार परीक्षक द्वारा दिये गये अंक में से कितना काटा जाये और सख्त परीक्षक द्वारा दिये गये अंक में कितना जोड़ा जाये। इस प्रकार एक मॉडल आंसर के आधार पर जो मान्य अंक मुख्य परीक्षक द्वारा दिये जाते हैं, वही मॉडरेशन वाला अंक कहलाता है।
मॉडल आंसर बगैर मॉडरेशन
बीपीएससी ने एक आरटीआई के तहत 10 जून को बताया कि इस बार (53 वीं से 55वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में) मॉडल आंसर नहीं बनाया गया। यों बिना मॉडल आंसर के ही अंकों का मॉडरेशन कर परिणाम निकाले गये जो वैध नहीं कहे जा सकते।
अंतिम परिणाम
बीपीएससी ने 53वीं से 55वीं सम्मिलित संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा का अंतिम परिणाम अगस्त में जारी किया। राज्य संवर्ग की विभिन्न सेवाओं के लिए कुल 969 अभ्यर्थियों को अंतिम रूप से सफल घोषित किया गया, जिनमें 843 पुरुष व 126 महिलाएं हैं। प्रथम स्थान प्रदीप भुवनेश्वर सिंह को मिला। उन्हें 74 प्रतिशत अंक मिले, दूसरे व तीसरे स्थान पर रजनीश कुमार ने 70 प्रतिशत तो हरीश शर्मा ने 69 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। महिलाओं में कुमारी अनामिका को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। 2610 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। 28 मई से 5 जुलाई के बीच साक्षात्कार की प्रक्रिया पूरी की गयी। 31 अभ्यर्थियों ने साक्षात्कार में भाग नहीं लिया। एक की शैक्षणिक योग्यता नहीं रहने के कारण उम्मीदवारी रद्द कर दी गयी। शेष 2578 उम्मीदवारों ने साक्षात्कार प्रक्रिया में भाग लिया। इन अभ्यर्थियों ने अप्रैल 2011 में प्रारंभिक परीक्षा तो मई 2012 में लिखित परीक्षा दी थी।
आज अगली सुनवाई
पटना उच्च न्यायालय में 22 अक्टूबर को 53 वीं से 55वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा के मामले में दाखिल 8 मामलों को संयुक्त कर अगली सुनवाई होने वाली है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रेखा मोहन दोशित और न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह के डबल बेंच में यह सुनवाई होनी है। फिलहाल अभ्यर्थियों की मांग है कि मुख्य परीक्षा के परिणाम को रद्द कर पुनः साक्षात्कार आयोजित किया जाये।
सेवा / सफल उम्मीदवार
बिहार आरक्षी सेवा- आरक्षी उपाधीक्षक--34
जिला समादेष्टा--- 09
बिहार वित्त सेवा वाणिज्य कर पदा.--- 83
जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदा. --- 38
बिहार कारा सेवा-काराधीक्षक--- 10
जिला अंकेक्षण पदा. --- 03
सहायक निबंधक, सहयोग समितियां--- 09
अवर निबंधक --- 56
ईख पदाधिकारी --- 02
सहायक निदेशक, सामाजिक सुरक्षा--- 10
प्रोबेशन पदाधिकारी--- 56
उत्पाद निरीक्षक--- 03
ग्रामीण विकास पदाधिकारी--- 532
श्रम अधीक्षक, बिहार श्रम सेवा--- 14
नियोजन पदाधिकारी --- 25
नगर कार्यपालक पदाधिकारी--- 27
अवर निर्वाचन पदाधिकारी--- 21
सहायक निदेशक, बाल संरक्षण इकाई--- 37
कुल------------- 969
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