सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने कहा है कि संगीन अपराधों में एफआईआर दर्ज करने के लिए के लिए पुलिस अधिकारी को मामले की शुरुआती जांच करने की जरुरत नहीं है। संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा न्यायाधीश बीएस चौहान, न्यायाधीश रंजन पी देसाई, न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायाधीश एसए बोब्दे भी शामिल थे। संवैधानिक पीठ ने कहा कि एफआईआर को लेकर कानून में कोई अस्पष्टता नहीं है और कानून की मंशा संज्ञेय अपराधों में अनिवार्य एफआईआर दर्ज कराने की है। सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर पर बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा है----
1. संगीन अपराधों के मामले में प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य है।
2. अगर पुलिस अधिकारी के पास कोई शिकायत आती है और मामला संज्ञेय अपराध से जुड़ा तो बिना शुरुआती जांच के ही एफआईआर दर्ज करना होगा।
3. पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करने से बच नहीं सकते और संज्ञेय मामले की शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
4. मामलों की शिकायत मिलने पर एफआईआर दर्ज नहीं किए जाने को कोर्ट की अवमानना माना जाएगा और जिम्मेदार पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
5. एफआईआर दर्ज करने के एक हफ्ते के भीतर पुलिस अधिकारी को जांच पूरी करनी होगी। कोई भी पुलिस कर्मी ज्यादा समय तक मामले की जांच को नहीं लटका सकता है।
6. कई बार ऐसा लगता है कि शिकायत में लगाए गए आरोप झूठे हैं। ऐसे मामले में गिरफ्तारी भले ही न हो, लेकिन एफआईआर दर्ज करना जरूरी है।
संवैधानिक पीठ ने तीन जजों की बेंच द्बारा मामले को बड़ी बेंच के पास भेजे जाने के बाद यह फैसला दिया गया है। तीन जजों की पीठ ने इस आधार पर मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा था कि इस मुद्दे पर विरोधाभासी फैसले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 50 साल में कई फैसलों के दौरान ये बात कही है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार पुलिस किसी भी व्यक्ति की एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती है लेकिन फिर भी पुलिस मामला दर्ज करने से इनकार कर देती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से पुलिस के रवैये में कुछ सुधार होगा क्योंकि जो पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज नहीं करेगा उसके खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की गई है।
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